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कछवाहा वंश

कछवाहा वंश अयोध्या राज्य के इक्ष्वाकु वंश की एक शाखा है। अयोध्या राज्य वंश में महान राजा इक्ष्वाकु, दानी हरिशचन्द्र, सगर, पितृ भक्त भागीरथ, गौ भक्त दिलीप, रघु, सम्राट दशरथ, मर्यादा पुरूषोत्तम भगबान रामचंद्र हुए। भगवान श्री रामचन्द्र जी के ज्येष्ठ पुत्र कुश से इस वंश (शाखा) का विस्तार हुआ है । क्षत्रियों के प्रसिद्ध 36 राजवंशों में कछवाहा वंश के कश्मीर, राजपुताने (राजस्थान) में अलवर, जयपुर, मध्यप्रदेश में ग्वालियर, राज्य थे। मईहार, अमेठी, दार्कोटी आदि इनके अलावा राज्य, उडीसा मे मोरमंज, ढेकनाल, नीलगिरी, बऊद और महिया राज्य कछवाहो के थे। कई राज्य और एक गांव से लेकर पाँच-पाँच सौ ग्राम समुह तक के ठिकानें, जागीरे और जमींदारीयां थी.  राजपूताने में कछवाहो की 12 कोटडीया और 53 तडे प्रसिद्ध थी.

बिहार में कछवाहा वंश का इतिहास – महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा अयोध्या से चलकर साकेत आयी और साकेत से, बिहार मे सोन नदी के किनारे रोहिताशगढ़ (बिहार) आकर वहा रोहताशगढ किला बनाया।

मध्यप्रदेश में कछवाहा वंश का इतिहास – महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा फिर बिहार के रोहताशगढ से चलकर पदमावती (ग्वालियर) मध्यप्रदेश मे आये। नरवर (ग्वालियर ) के पास का प्रदेश कच्छप प्रदेश कहलाता था और वहा आकर कछवाह वंशज के एक राजकुमार तोरुमार ने एक नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया। क्योकि यहा पर कच्छप नामक नागवंशीय क्षत्रियो की शाखा का राज्य था । (महाभारत आदि पर्व श्लोक 71) नागो का राज्य ग्वालियर के आसपास था । इन नागो की राजधानी पद्मावती थी, पदमावती राज्य पर अपना अधिकार करके सिहोनिया गाँव को अपनी सर्वप्रथम राजधानी बनायी। यह मध्यप्रदेश मे जिला मुरैना मे पड़ता है।

कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली। सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण कराया। नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार)  हुवा जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रसिद्ध नायक है। उसका विवाह पूगल कि राजकुमारी मारवणी के साथ हुवा था। ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परम प्रतापी महाराजाधिराज बज्रदामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धार कर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जीत लिया। बज्रदामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए, किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला। सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद नरवर (ग्वालियर) राज्य के राजा ईशदेव जी थे और राजा ईशदेव जी के पुत्र सोढदेव के पुत्र, दुल्हराय जी नरवर (ग्वालियर) राज्य के अंतिम राजा थे। सोढदेव की मृत्यु व दुल्हेराय के गद्दी पर बैठने की तिथि माघ शुक्ला 7 वि.संवत 1154 है I ज्यादातर इतिहासकार दुल्हेराय जी का राजस्थान में शासन काल वि.संवत 1154 से 1184 के मध्य मानते है I

राजपूताना में कछवाहा

कछवाहा वंश राजस्थानी इतिहास के मंच पर बारहवीं सदी से दिखाई देता है। सोढदेव जी का बेटा दुल्हराय जी जिसका विवाह राजस्थान में मोरागढ़ के शासक रालणसिंह चौहान की पुत्री से हुआ था। रालणसिंह चौहान के राज्य के पड़ौसी दौसा के बड़गुजर राजपूतों ने मोरागढ़ राज्य के करीब पचास गांव दबा लिए थे। अत: उन्हें मुक्त कराने के लिए रालणसिंह चौहान ने दुल्हेराय को सहायतार्थ बुलाया और दोनों की संयुक्त सेना ने दौसा पर आक्रमण कर बड़गुजर शासकों को मार भगाया। दौसा विजय के बाद दौसा का राज्य दुल्हेराय के पास रहा।

इस प्रकार राजस्थान में दुल्हेराय जी ने सर्वप्रथम दौसा में कछवाह राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी सर्वप्रथम दौसा स्थापित की। राजस्थान में कछवाह साम्राज्य की नींव डालने के बाद दुल्हेराय जी ने मीणों से भांडारेज, मांची, गेटोर, झोटवाड़ा आदि स्थान जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया। दौसा से इन्होने ढूढाड क्षेत्र में मांच गॉव पर अपना अधिकार किया जहॉ पर मीणा जाति का कब्जा था, मांच (माँची) गॉव के पास ही कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बनबाया । कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपने ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी तथा अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी के नाम पर उस मांच (माँची) गॉव का नाम बदल कर जमवारामगढ रखा।

वर्तमान जयपुर शहर से 32 कि.मी. की दूरी पर ऑधी जाने वाली रोड पर जमवा रामगढ है। जमवा रामगढ से 5 किमी की दूरी पर कछवाहो की कुलदेवी श्री जमवाय माता का मंदिर बना है। इस मंदिर के अंदर तीन मूर्तियॉ विराजमान है। पहली मूर्ति गाय के बछडे के रूप में विराजमान है, दूसरी मूर्ति श्री जमवाय माता जी की है, और तीसरी मूर्ति बुडवाय माता जी की है। श्री जमवाय माता के बारे में कहा गया है कि सतयुग में मंगलाय, त्रेता में हडवाय, द्वापर में बुडवाय तथा कलियुग में जमवाय माता जी के नाम से देवी की पूजा अर्चना होती आ रही है। दुल्हेराय जी के वंशज जो राजस्थान में कछवाह वंश की उपशाखाओं यथा – राजावत, शेखावत, नरूका, नाथावत, खंगारोत आदि नामों से जाने जाते है आज भी जन्म व विवाह के बाद जमवाय माता जी के जात लगाते है I

राजस्थान में दौसा के आप-पास बड़गुजर राजपूतों व मीणा शासकों का पतन कर उनके राज्य जीतने के बाद दुल्हेराय जी ग्वालियर की सहायतार्थ युद्ध में गए थे। जिसे जीतने के बाद वे गंभीर रूप से घायलावस्था में वापस आये और उन्ही घावों की वजह से दुल्हेराय का देहांत हुवा। दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव पिता के उतराधिकारी हुए जिन्होंने आमेर के सुसावत जाति के मीणों का पराभव कर आमेर जीत लिया और अपनी राजधानी मांची से आमेर ले आये। काकिलदेव के बाद हणुदेव व जान्हड़देव आमेर के राजा बने जान्हड़देव के पुत्र पजवनराय हुए जो महँ योधा व सम्राट प्रथ्वीराज के सम्बन्धी व सेनापति थे। संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी। आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने, राजा उदयकरण के पुत्रो से ही कछवाहों की शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओं का निकास हुवा।

आमेर नरेश उदयकरण जी के पांच पुत्र हुए।
1. नरसिंहजी- आमेर के राजा बने !
2. वरसिंहजी- भेराणा व मौजमाबाद की 12 गांवों की जागीर मिली। इनके पौत्र नरुजी हुए, जिनसे इनके वंशज नरुका कहलाए। नरुजी के पुत्र लालाजी से अलवर का राजवंश व दासाजी से उणियारा, लावा व लदाना के ठिकाने कायम हुए।
3. बालाजी- 12 गांवों से बरवाड़ा की जागीर मिली।
4. स्योब्रह्म जी- 12 गांवों से नींदड़ की जागीर मिली। उनके वंशज स्योब्रह्म पोता कहलाए।
5. पिथाजी- पापड़ा (5 गांव) !
6. नापाजी- समोद (7 गांव) !

कछवाह वंश के गोत्र-प्रवरादि
गोत्र – मानव, गोतम
प्रवर – मानव, वशिष्ठ
कुलदेव – श्री राम
कुलदेवी – श्री जमुवाय माता जी
इष्टदेवी – श्री जीणमाता जी
इष्टदेव – श्री गोपीनाथ जी
वेद – सामवेद
शाखा – कोथुमी
नदी – सरयू
वॄक्ष – अखेबड़
नगारा – रणजीत
निशान – पंचरंगा
छत्र – श्वेत
पक्षी – कबूतर
तिलक – केशर
झाड़ी – खेजड़ी
गुरु – वशिष्ठ
भोजन – सुर्त
गिलास – सुख
पुरोहित – गंगावत, भागीरथ

कछवाहों की खापें निम्न है:-
राजावत, शेखावत, नरुका, कुंभावत, भीमपोता या नरवर के कछवाहा, पिचयानोत, खंगारोत, सुल्तानोत, चतुर्भुज, बलभद्रपोत, प्रतापपोता, नाथावत, बाघावत, देवकरणोत, कल्याणोत, रामसिंहहोत, साईंदासोत, रूपसिंहसोत, पूर्णमलोत, बाकावत, जगन्नाथोत, सल्देहीपोता, सादुलपोता, सुंदरदासोत, मेलका, करणावत, मोकावत, भिलावत, जितावत, बिझाणी, सांगणी, शिवब्रह्मपोता, पीथलपोता, देलणोत, झामावत, घेलणो, राल्णोत, जीवलपोता, आलणोत (जोगी कछवाहा), प्रधान कछवाहा, सावंतपोता, खीवाँवा, बिकसीपोता, पीलावत, भोजराजपोता, राधरका, बीकापोता, गढ़ के कछवाहा, सावतसीपोता, सोमेश्वरपोता, खींवराज पोता, दशरथपोता, बधवाड़ा, जसरापोता, हम्मीरदेक, भाखरोत, सरवनपोता, नपावत, तुग्या कछवाहा, सुजावत कछवाहा, मेहपाणी, उग्रावत, सीधादे कछवाहा, कुंभाणी, बनवीरपोता, हरजी का कछवाहा, वीरमपोता, मेंगलपोता, पातलपोता।

शेखावत वंश

शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर, शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ, सुरजगढ़, नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, चौकड़ी, दांता, खूड़, खाचरियाबास, डूंडलोद, अलसीसर, मलसिसर, रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रसिद्ध है ।

आमेर नरेश उदयकरण जी के पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा (समोद के पास) की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे। इनके दो रानियां थी।
पहली लोकदेवता रामदेवजी तंवर की भतीजी !
दूसरी मांचेड़ी के राजा सोढ़देव बडगूजर कीपुत्री!
इन दोनों पत्नियों से कुल 12 पुत्र हुए।
1. मोकलजी (टिकाई)- बरवाड़ा के मालिक हुए। बाद में डाहलियों से नजदीकी ‘नांण’ जीती। इनके पुत्र शेखाजी से शेखावत हुए।
2. खरथजी- इनके वंशज कर्णावत हुए।
3. मोकाजी- इनके वंशज मोकावत हुए।
4. झमजी- इनके वंशज झामावत हुए।
5. बीजाजी- इनके वंशज बीजावत हुए।
6. संगाजी- इनके वंशज सांगावत हुए।
7. भीलोजी- इनके वंशज भीलावत हुए।
8. डुंगरसी- इनके वंशज जीतावत हुए।
9. खींवराज
10. नाथाजी
11. गोविन्ददास
12. चांदाजी
वर्तमान में शेखावाटी में रायथल, गढ़या, टांट्यास, खारिवाड़ा, समरथ पुरा, मलारणा, अभयपुरा, जगनेर, बलेखण, विजयपुर व भड़ुन्दा में बलपोतों की कोटड़ी है।

महाराव शेखाजी

बालाजी के टिकाई पुत्र मोकलजी के काफी समय तक कोई पुत्र नहीं हुआ। मोकलजी काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे व गायों की सेवा करते थे। वहीं एक बार उन्हें प्रसिद्ध शेख बुरहान फकीर मिले, जो अजमेर ख्वाजा की जियारत को जा रहे थे। मोकलजी ने उनकी सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर शेख बुरहान फकीर ने उन्हें पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। पुत्र जन्म के बाद उन्ही फकीर की याद में उसका नाम शेखा रखा।

महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक राव शेखा का जन्म आसोज सुदी विजयादशमी सं १४९० वि. में बरवाडा व नाण के स्वामी मोकलजी कछवाहा की रानी निरवाण जी के गर्भ से हुआ। १२ वर्ष की छोटी आयु में इनके पिता का स्वर्गवास होने के उपरांत राव शेखा वि. सं. १५०२ में बरवाडा व नाण के २४ गावों की जागीर के उतराधिकारी हुए | आमेर नरेश इनके पाटवी राजा थे। राव शेखा अपनी युवावस्था में ही आस पास के पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण कर अपनी सीमा विस्तार करने में लग गए और अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर ३६० गावों पर अधिकार कर एक नए स्वतंत्र कछवाह राज्य की स्थापना की।

शेखावाटी राज्य (360 गांव)-

राजधानी- अमरसर (बरवाड़ा से 12 मील उत्तर में नाण के पास अमरसर बसाया)
शेखाजी के राज्य शेखावाटी की सीमाएं-
दक्षिण- आमेर राज्य (सामोद तक शेखावाटी था)
पश्चिम- गोड़ों का गौड़ाटी प्रदेश (कुचामन, मिठड़ी, मारोठ, घाटवा, खाटू व झुन्थर तक शेखावाटी)
पश्चिमोत्तर- चन्देल (रेवासा, कासली, रघुनाथगढ़ तक)
उत्तर- खण्डेला के निर्वाण (पूंख, बबाई, उदयपुर तक)
पूर्वोत्तर- तंवर, यादव व टांक (मैढ़, बैराठ व नगरगढ़)
पूर्व- सांखलों का नागरचाल राज्य (साँईवाड़, मनोहरपुर- शाहपुरा तक)

अपनी स्वतंत्रता के लिए राव शेखा जी को आमेर नरेश राजा चंद्रसेन जी से (जो शेखाजी से अधिक शक्तिशाली थे) छः लड़ाईयां लड़नी पड़ी और अंत में विजय शेखाजी की ही हुई, अन्तिम लड़ाई मै समझोता कर आमेर नरेश चंद्रसेन ने राव शेखा को स्वतंत्र शासक मान ही लिया | राव शेखा ने अमरसर नगर बसाया, शिखरगढ़, नाण का किला, अमरसर गढ़, जगन्नाथ जी का मन्दिर आदि का निर्माण कराया जो आज भी उस वीर पुरूष की याद दिलाते है |

राव शेखा जहाँ वीर, साहसी व पराक्रमी थे वहीं वे धार्मिक सहिष्णुता के पुजारी थे। उन्होंने १२०० पन्नी पठानों को आजीविका के लिए जागिरें व अपनी सेना मै भरती करके हिन्दूस्थान में सर्वप्रथम धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया। उनके राज्य में सूअर का शिकार व खाने पर पाबंदी थी, तो वहीं पठानों के लिए गाय, मोर आदि मारने व खाने के लिए पाबन्दी थी। राव शेखा दुष्टों व उदंडों के तो काल थे। एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने निकट सम्बन्धी गौड़ वाटी के गौड़ क्षत्रियों से उन्होंने ग्यारह लड़ाइयाँ लड़ी और पांच वर्ष के खुनी संघर्ष के बाद युद्ध भूमि में विजय के साथ ही एक वीर क्षत्रिय की भांति प्राण त्याग दिए।

राव शेखा की मृत्यु रलावता गाँव के दक्षिण में कुछ दूर पहाडी की तलहटी में अक्षय तृतीया वि.स.१५४५ में हुई जहाँ उनके स्मारक के रूप में एक छतरी बनी हुई है। जो आज भी उस महान वीर की गौरव गाथा स्मरण कराती है। राव शेखा अपने समय के प्रसिद्ध वीर साहसी योद्धा व कुशल नीतिज्ञ शासक थे। युवा होने के पश्चात उनका सारा जीवन लड़ाइयाँ लड़ने में बीता। अंत में भी युद्ध के मैदान में ही एक सच्चे वीर की भांति हुआ। अपने वंशजों के लिए विरासत में वे एक शक्तिशाली राजपूत-पठान सेना व विस्तृत स्वतंत्र राज्य छोड़ गए जिससे प्रेरणा व शक्ति ग्रहण करके उनके वीर वंशजों ने नए राज्यों की स्थापना की विजय परम्परा को अठारवीं शताब्दी तक जारी रखा। राव शेखा ने अपना राज्य झाँसी, दादरी, भिवानी तक बढ़ा दिया था।

उनके नाम पर उनके वंशज शेखावत कहलाने लगे और शेखावातो द्वारा शासित भू-भाग शेखावाटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार सूर्यवंशी कछवाहा क्षत्रियों में एक नई शाखा “शेखावत वंश” का आविर्भाव हुआ। राव शेखा जी की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र राव रायमल जी अमरसर की राजगद्दी पर बैठे जो पिता की भांति ही वीर योद्धा व निपूण शासक थे।

1. शेखावत वंश की शाखाएँ
1.1 टकनॆत शॆखावत
1.2 रतनावत शेखावत
1.3 मिलकपुरिया शेखावत
1.4 खेज्डोलिया शेखावत
1.5 सातलपोता शेखावत
1.6 रायमलोत शेखावत
1.7 तेजसी के शेखावत
1.8 सहसमल्जी का शेखावत
1.9 जगमाल जी का शेखावत
1.10 सुजावत शेखावत
1.11 लुनावत शेखावत
1.12 उग्रसेन जी का शेखावत
1.13 रायसलोत शेखावत
1.13.1 लाड्खानी
1.13.2 रावजी का शेखावत
1.13.3 ताजखानी शेखावत
1.13.4 परसरामजी का शेखावत
1.13.5 हरिरामजी का शेखावत
1.13.6 गिरधर जी का शेखावत
1.13.7 भोजराज जी का शेखावत
1.14 गोपाल जी का शेखावत
1.15 भेरू जी का शेखावत
1.16 चांदापोता शेखावत

राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये जिनमे अनेकानेक वीर योधा, कला प्रेमी व स्वतंत्रता सेनानी हुए। शेखावत वंश जहाँ राजा रायसल जी, राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी, सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की वहीं बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह, जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाया था।

राव शेखाजी के 12 पुत्र हुए

  1.  दुर्गाजी- इनके वंशज माता टांकणजी के नाम से टकणेत कहलाये। दुर्गाजी के प्रपौत्र नारायणदास के चार पुत्र हुए :–
    १. अलखाजी- वंशज पिपराली, खोह (रघुनाथपुरा), गुंगारा, अजाड़ी, तिहावली, जाखड़ां, भाकरवासी व चूरू में हैं।
    २. केशोदासजी- वंशज खण्डेलसर व गोवटी में हैं।
    ३. मोहनदास- खोरी, मंडावरा व बाजोर।
    ४. सकतसिंह- बारवा, तिहाय, बाय, ठेडी तथा पिलानी में हैं।
  2. रतनाजी- इनके वंशज रतनावत शेखावत कहलाये। इनका स्वामित्व बैराठ के पास प्रागपुर व पावठा पर था ! हरियाणा के सतनाली के पास का इलाका रतनावातों का चालीसा कहा जाता है। इनके तीन पुत्र कान्ह, कल्ला, पेमसिंह तथा एक पुत्री हुई जो जोधपुर के राव मालदेव जी को ब्याही थी।
    १. कान्ह के पांच पुत्रों में जैतसी के वंशज प्रागपुरा में, उद्धरण के खेलणा व भूमास में, बाघजी के बाघावास में, चतुर्भुज के जयसिंहपुरा, भादरसिंह की ढाणी में तथा सबसे छोटे दयालदास के हरियाणा में सतनाली, सोड़ी, ढाणा, जड़वा, उरीका, श्यामपुरा, सुहासड़ा में हैं।
    २. कल्ला के वंशज जोधपुरा, बिंजवासी, निमड़ा की ढाणी, चांदाणा, काकडाली, डोलीवाला, कारोलि, राजनोता, नोलखा, जांटवाला, पाटवाला, रामसागर, नीमड़यां, कारोड़ी, बाजों, रेला, कालरा, म्याना, रोड़ी आदि गांवों में।
    ३. पेमसी के वंशज भाबरू गांव में हैं।
  3.  भरतजी- निस्संतान
  4.  तिलोकजी- निस्संतान
  5. प्रतापजी- निस्संतान
  6.  अभाजी- इनके वंशज मिलकपुर गांव में रहने से मिलकपुरिया कहलाए।
  7.  अचलाजी- इनके वंशज भी मिलकपुर गांव में रहने से मिलकपुरिया कहलाए। इनके गावं बाढाकी ढाणी, पलथाना,सिश्याँ, देव गावं, दोरादास, कोलिडा, नारी व तारानगर के पास मेघसर है !
  8.  पूरणजी- निस्संतान
  9.  रिड़मल जी- खेजड़ोली गांव में रहने से खेजड़ोलीया कहलाये।
  10.  कुम्भाजी- (सातलपोता खेजड़ोलीया) वर्तमान में सीकर जिले के बेरी, भूमा छोटी, बासनी,कंटेवा, भोजासर, रोरु बड़ी व झुंझुनू के जेईपहाड़ी, सेणुसर, खेजडोलीया की ढाणी में हैं।
  11.  भारमलजी- (बाघावत खेजड़ोलीया) भरडाटू, पालसर, ढाकास, गरंडवा, पटोदा में हैं।
  12.  राव रायमलजी – (अमरसर के राव) शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र थे लेकिन शेखाजी के प्रिय होने से इन्हें उत्तराधिकारी बनाया। इन्होंने झूंथर के गोड़ों, टोडा के सोलंकियों, मेवात के चौहानों से सैंकड़ों गांवों के अलावा साम्भर परगने व आमेर के व अन्य भी सैंकड़ों गांव दबाए। कुल 550 गांवों के स्वामी हुए। इनके चार पुत्र हुए।
    १. सूजाजी- अमरसर के राव (विस्तृत विवरण नीचे दिया है-)
    २. तेजसी- (तेजसीका) अलवर जिले के नारायणपुर व बानसूर क्षेत्र में।
    ३. सहसमल- (सहसमलजीका) 12 गांवों से सांईवाड़ जागीर मिली।
    ४. जगमाल- (जगमालजीका) अलवर जिले के हमीरपुर व हाजीपुर में।

राव सूजाजी (सूरजमल जी)-
रायमलजी के जेष्ठ पुत्र, 1594 में अमरसर के राव बने। इनके पांच पुत्र हुए-

  1.  राव लूणकरण जी- (सूजाजी के बाद अमरसर के राव हुए) इनके 6 पुत्र हुए-
    १. किशनदास- वंशज की लालासर, बावड़ी में कोटड़ी।
    २. सांवलदास (सांवलदासजीका) हस्तेड़ा, पचार, रामजीपुरा ठिकाने।
    ३. नरसिंहदास (पुत्र उग्रसेण से उग्रसेणजीका) खेजड़ोली, महरौली, ढोडसर, करीरी, गुढा, दौराला, सांगसर, सिंगोद, जूणस्या, सबलपुरा में हैं।
    ४. भगवानदास (पुत्र अचलदास से अचलदासजीका) बघोल तथा जाहोता ठिकाने थे। अब रुण्डलव मानपुरा में हैं।
    ५. नाथाजी (नाथाजीका) तालबा गांव था।
    ६. राव मनोहरदास- सबसे छोटे होने के बावजूद अमरसर के राव हुए। इन्होंने मनोहरपुर बसाया। तीन पुत्र हुये-
    i. रायचन्द- मनोहरपुर, पालड़ी ठिकाने !
    ii. पृथ्वीचंद- चंदवाजी !
    iii. प्रताप चंद- निठोरा !
  2. राजा रायसल दरबारी-  (इनका विवरण नीचे दिया गया है )
  3. चांदाजी सुजावत- (चांदापोता) सीकर जिले के बेरी, फागलवा, बीदासर, रूलाणी व अलवर जिले के बसई, बिसालु में हैं।
  4. गोपालजी सूजावत- (गोपालजीका) मुख्य ठिकाना करड़। इनके पुत्रों के वंशज- १. माधोदास के- करड़, सीपर, रघुनाथपुरा, पीथलपुरा, अथोरी व बाड़ी जोड़ी।
    २. बणीदास के- जवानपुरा, चेनपुरा, नवरंगपुरा, बिलवानी, लुहाकना, सुराणी, आसपुरा व थापडा।
    ३. केशोदास के- टाटेरा व ख़िरान्टी।
    ४. हरदास के- बलरिया, नारसिंघानी, सेंसवास, फ़ूसखानी, देवगांव, कुहाडू, भड़ुन्दा, टोडरवास, उवादपुरा, झाड़ली, रामपुरा, हरिपुरा, हाथीहद, हरदास का बास व सांबलपुरा।
  5.  भैरूंजी सूजावत- (भैरूंजीका) भैरूंजी के पुत्र नरहरदास व पोत्र नाहरू खां ने लोहारू जीतकर वहां अपना राज्य कायम किया। लोहारू व उसके आसपास का विस्तृत भूभाग पर संवत 1828 तक भैरूंजीका का अधिकार था। यह क्षेत्र भैरूंजीका का पेंतालीसा कहलाता है।
    इनके वंशज लुहारू, अलसीसर, बाडेट, पिपली, दुलानिया, लाडुंदा, ढकरवा, काजड़ा, भापर, भगिना, सूजडोला, छिंदवा, दूदवा, बनगोठड़ी बड़ी व छोटी, दीलोद, फ़रट, जीणी, फरटीया, छापड़ा, बेरी, रामपुरा, लीखवा, हमीदपुर, गोडली, ढढार, गूगलवा, बेवड़, पिलानी, रायला, पांथड़िया, खेड़ला, भावठड़ी, जाखोद, बीजोली, जालमपुरा, ढीलसर व चूरू जिले के गोगटिया, लखनवास व उड़सर में हैं।  भैरूंजी के अन्य तीन छोटे पुत्रों कँवरसाल, सांगा व भारमल के वंशज अलवर जिले के हाजीपुर, हमीरपुर, श्यामपुरा, खेड़ा आदि में है।

राजा रायसल दरबारी

राव सुजाजी के द्वितीय पुत्र ! अमरसर राज्य से लाम्या की जागीर गुजारे हेतु पाकर, निर्वाणों व चन्देलों से खंडेला उदयपुर व कासली जीतकर रायसल जी ने अमरसर के बराबर ही खंडेला का स्वतंत्र राज्य कायम किया। सम्राट अकबर के दरबार में वे राजा रायसल दरबारी के नाम से जाने जाते थे। जहांगीर के शासन काल में तीन हजारी मनसबदार की उच्च श्रेणी में पहुँच गए थे। इनके वंशज रायसलोत शेखावत कहलाये। इनके 12  पुत्रों में केवल 7 पुत्रों, लालसिंहजी (लाडाजी), तेजसी, त्रिमलजी, भोजराजजी, परसरामजी, हरिरामजी व गिरधरदासजी का वंश चला।

  1.  लालसिंहजी (लाडाजी नाम से लाडखानी कहलाये) सबसे बड़े होने पर भी राज्य से वंचित रहे। इनके वंशज के खाचरियावास, रामगढ़, लाम्या, बाज्यवास, धींगपुर, ललासरी, बरड़वा, हुडील, खुड़ी, निराधनू, रोरू, खाटू श्यामजी अदि जागीर में थे। इनके आलावा सांवलोदा, लूमाँस, डाबड़ी, दीनवा, हेमतसर अदि में भी बस्ते हँ।
  2.  तेजसी (वंशज तेजसिका या ताजखानी कहलाये) इनके गावं चावंङिया, भोदेसर , छाजुसर आदि है।
  3. राव तिरमलजी (रावजीका) ठिकाना सीकर  – तिरमल बड़े वीर थे । सम्राट् अकबर ने राजा रायसल के जीवन काल ही में तिरमल को राव की पदवी देकर उनके मनसब में नागौर की जागीर लगा दी थी। इस कारण तिरमल के वंशधर “रावजी” का शेखावत कहलाते हैं।राव तिरमल से छठी पीढ़ी में होने वाले राव शिवसिंह ने फतहपुर के क्यामखानी नवाबों को हराकर सीकर राज्य का विस्तार किया।राव तिरमल के बड़े पुत्र गंगाराम के बड़े पुत्र श्यामराम के पुत्र जसवन्तसिंह के वंशज सीकर के और जगतसिंह के वंशज कासली के राव कहलाए। श्यामराम के पुत्र सांवतसिंह, करणसिंह और किशनसिंह के वंशज अनोखू गांव में हैं। जसवन्तसिंह के बड़े पुत्र दौलतसिंह सीकर के राव बने। छोटे फतेहसिंह को दूजोद का ठिकाना मिला। फतेहसिंह के वंशज दूजोद बाडोलास, जसूपुरा, कूमास, परड़ोली सेवा आदि गांवों में हैं। राव शिवसिंह सीकर के भाई सरूपसिंह के वंशज सीहोट, गाड़ोदा, बागड़ोदा और शेखसर में हैं। विष्णुसिंह, के वंशज सीहोट माल्यासी, बेवा और रोरू में हैं। राव शिवसिंह के पुत्र समरथसिंह के वंशज 12 गाँवों से श्यामगढ़ के ठाकूर थे। राव शिवसिंह के छोटे दो पुत्र की रतसिंह और मेदसिंह के वंशज क्रमश: बठोठ. पाटोदा, सखड़ी तथा दीपपुरा के ठाकुर थे। चांदसिंह के वंशज सीकर के राव कहलाये।राव तिरमल के छोटे पुत्र बद्रीदास ( बनीछोड ) के वंशजों की एक कोटड़ी नागवा गाँव में है। गंगाराम के पुत्र रामरतन के वंशज टाडास गांव में हैं। कल्याणसिंह के वंशज टांटणवा, फागल्वा, बीजासी, खाखोली, पालवास आदि गाँवों में हैं। तुलसीदास के वंशज तिड़ोकी, जूलियासर, भलमल आदि गाँवों में हैं
  4. परसरामजी (वंशज परसरामजीका कहलाये)- भाईबन्ट में १२ गांव (रींगस सहित) बाय का ठिकाना मिला। कुछ समय बाद जयपुर राज्य द्वारा ‘बाय’ छीन लेने पर खेतड़ी राजाजी द्वारा जागीर दी गयी व् चूड़ी में रहे। इनके वंशज सीकर राज्य की सेवा में चले गए व राव देवीसिंह सीकर द्वारा पालड़ी, पनरावा, पूरा, खोर, हमीरवास अदि गांव दिये गए।
  5. हरिरामजी (वंशज हरिरामजीका कहलाये)- मूंडरू, दादिया, जेठी अदि गांवों में आबाद है।
  6. भोजराजजी (वंशज भोजराजजीका कहलाये) ठिकाना उदयपुरवाटी- भोजराजजी अपने पिता के शासनकाल में खंडेले का  शासन प्रबंध संभालते थे। सम्वत 1653 के अकाल में होद गांव में खुदवाया गया तालाब भोजसागर कहलाता है। पाटण के तँवरों को उन्होंने पराजित किया था। सम्राट् शाहजहां के राज्य के प्रथम दस वर्षों में उनका मनसब 800 जात और 400 सवारों का था, जिसमें वृद्धि होकर अन्त में वे हजार जात और 500 सवारों के मनसबदार बन गये। राजस्थान में जागीर समाप्ति से पूर्व तक एक विस्तृत भू-भाग पर भोजराजजी के शेखावतों का अधिकार था। उदयपुर वाटी के 45 ग्रामों के स्वामित्व के अलावा खेतड़ी, सूरजगढ़, बिसाऊ, नवलगढ़, मंडावा, डूडलोद, चोकड़ी, अलसीसर आदि बड़े ठिकानों के वे अधिपति थे। भोजराजजी के बड़े पुत्र टोडरमल उदयपुर के स्वामी हुए व् छोटे केशरीसिंह (केशरीसिंहोत भोजराजजीका) के वंशज चंवरा, पूसपरिया, मऊ, जालपाली,नांगल, भीम, ढाणी जोरावरसिंह में है।टोडरमल प्रारंभ में बादशाही सेवा में थे। जल्दी ही उन्होंने शाही सेवा छोड़ दी । उनके ज्येष्ठ पुत्र पुरुषोत्तमदास को उदयपुरवाटी के 24 गांवों की जागीर के साथ मनसब मिला, किन्तु गृहकलह के फलस्वरूप विष प्रयोग से उनका अन्त कर दिया गया। तब से ही टोडरमल ने अपने किसी एक पुत्र को टीकाई न मानकर बराबर भाई वॅटवारे की पृथा को जन्म दिया।पुरुषोत्तमदास के वंशज झाझड़ में और भीमसह के वंशज धमोरा, गोठड़ा, मंडावरा और हरड़िया में बसते हैं। श्यामसिंह के वंशजों के हाथ से पहले शाहपुरा और बाद में छापोली छूट जाने के बाद वे मेही, मिठोई आदि गांवों में जा बसे । हिम्मतसिंह के वंशज, कारी, इख्तियारपुरा में हैं। हरनाथसिंह के वंशजों के पास उदयपुर की पाँती नहीं रही। उनके वंशज पबाणा, साखू आदि गांवों में हैं। कहते हैं कि उनके कुछ वंशज उत्तर प्रदेश में चले गये।झूझारसिंह  टोडरमल के सबसे छोटे पुत्र थे किन्तु सब भाइयों से अधिक प्रतापी थे। उन्होंने केड के नवाब की धरती दबाकर गुढा में अपना अलग टिकाना पिता की विद्यमानता में ही कायम कर लिया था। उनकी गौडजी और बीदावतजी दो ठुकराणियों से 18 पुत्र उत्पन्न दुये जो अपनी माताओं के नाम पर गौड़जीका और बीदावतजीका कहे जाते हैं। पैंतालीसा के प्रायः सारे ही गांव उनके अधिकार में हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- मोहनसिंह, मुकन्दसिंह, रूपसिंह, दीपसिंह, भगवतसिंह, जगरामसिंह, किशोरसिंह, सरदारसिंह, सूरतसिंह, अभयसिंह, साहिबसिंह, सुल्तानसिंह, मानसिंह, प्रेमसिंह, गुमानसिंह, जयसिंह, शक्तिसिंह और सावन्तसिंह।
  7. राजा गिरधरदासजी (खंडेला के राजा बने -वंशज गिरधरजीका कहलाये)- राजा रायसलजी के पुत्रों में गिरधरजी छोटे थे, तथापि बादशाह जहाँगीर ने उन्हें योग्य समझ कर खण्डेला का राजा बनाया। राजा गिरघर अपनी मृत्यु के समय (वि. सं. 1680) तक 2000 जात और 1500 सवार के मनसबदार बन चुके थे। उनके पुत्र राजा द्वारकादास का मनसब 1500 जात 1000 सवार था। उनके पुत्र राजा बरसिंहदेव 800 जात 800 सवार मनसबदार थे। उनके छोटे भाई सलेदीसिंह और विजयसिंह छोटे मनसबदारों में थे। राजा बहादुरसिंह तथा उनके पुत्र राजा केशरी सिंह भी शुरू में बादशाही मनसबदार थे किन्तु बादशाह के विरुद्ध बगावत करने पर मनसब छूट गए। राजा उदयसिंह 1000 जात और 700 सवार के मनसबदार थे। ऊपर लिखित मनसबों की जानकारी के लिए जहांगीर नामा, शाहजहांनामा तथा वकील रिपोर्ट महाराजा आम्बेर पठनीय है।राजा केशरीसिंह वि. सं. 1754 में अजमेर के सूबेदार सैयद अब्दुला से युद्ध करके वीरगति को प्राप्त हुए। उनके छोटे भ्राता उदयसिंह के वंश में खण्डेला बड़ापाना के राजाजी तथा उनके भाई बान्धव हैं। उनके ही दूसरे भाई फतहसिंह के वंश में खण्डेला छोटा पाना के राजा तथा उनके भाई बांधव हैं। राजा गिरधरजी के वंशज गिरधरजी के शेखावत कहे जाते हैं।गिरधरजी के वंशजों में खंडेला के अतिरिक्त दाँता और खूड़ दो प्रमुख ठिकाने थे। इसके अलावा राणोली, दादिया, कल्याणपुरा, तपीपल्या, कोछोर, डूकीया, भगतपुरा, रायपुरिया, तिलोकपुरा, सूजावास, रलावता, पलसाना बानूड़ा, दूदवा, रूपगढ़, सांगलिया, गोड़ियावास, धीजपुरा, गोवटी, मांडोली, नयाबास, सामी, राजपुरा जाना, बीराणां, मगरासी, सुरेरा, जाजोद, ठिकरिया बावड़ी, रोयल, इटावा, नीमेड़ा, गुरारा गजसिहपुरा आदि अनेक छोटे ठिकाने जो भाईपे के गाँव कहलाते थे जागीर समाप्ति से पूर्व गिरधरजी के वंशजों के अधिकार में थे।गिरधरदास जी के पोत्र खंडेला के राजा बरसिंहदेव के छोटे पुत्र भोपतसिंह के सीहोट में मारे जाने के बाद उनके पुत्र बीकानेर चले गए। बीकानेर के महाराजा ने भोपतसिंह के पुत्रों सुजानसिंह और सरदारसिंह को धीरासर, सांवतसिंह को पुंदलसर, देवीसिंह को आसलसर व अन्य को काकलासर की जागीर दी।

 


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