1. शौर्य तेजोधृति र्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनमं।
दानमीश्वर भावश्च क्षत्रं कर्म स्वभावजम॥’

क्षत्रिय
 
 भगवान् श्री राम
 .
  •  ऋग्वेद
ऋग्वेद के पुरुषसूक्त – 10 /09/ 12 – में वर्णन है कि –
ब्रम्हणोस्य मुखमासीत वाहू राजन्यकय्तः।
अरुःयत तद्वैश्यः पदभ्यांशूद्रो आजयता॥
अर्थात ब्राह्मण का जन्म ईश्वर के मुख से, क्षत्रिय का बांह से, वैश्य का जंघा से और शुद्र का पांव से हुआ बताया गया।
‘यो क्षयेन त्रायते सः क्षत्रिय’  या “क्षतात त्रायते इति क्षत्रिय”
अर्थात क्षत या आघात से त्राण देने (बचाने) वाला क्षत्रिय है।
 .
  • गीता
क्षत्रिय के लिये गीता में कहा गया कि-

‘शौर्य तेजोधृति र्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनमं।

दानमीश्वर भावश्च क्षत्रं कर्म स्वभावजम॥’
अर्थात ‘शूरवीरता, तेज, धैर्य, युद्ध में चतुरता, युद्ध से न भागना, दान, सेवा, शास्त्रानुसार राज्यशासन, पुत्र के समान प्रजा का पालन’ ! ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म कहे गये हैं।
  • राजपूत शब्द की उत्त्पति
प्राचीन ग्रंथों में राजपूतों के लिए राजपुत्र, राजन्य, बाहुज आदि शब्द मिलते है। यजुर्वेद जो स्वयं ईश्वरकृत है, में भी राजपूतों की खूब चर्चा हुई है।
ब्रध्यतां राजपुत्राश्च बाहू राजन्य कृत :।
बध्यतां राजपुत्राणां क्रन्दता मित्तेरम्।।
इसके बाद पुराणों में सूर्य और चन्द्रवंश जो राजपूतों के वंश है की उत्पति भी क्षत्रियों से मानी गयी है।
‘चंद्रादित्य मनुनांच् प्रवराः क्षत्रियाः स्मतः ‘ 

पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राजवंश 

सूर्यवंश – अनेक वंशों में सूर्यवंश ही सबसे विस्तृत एवं अपनी त्याग और तपस्वी आचरण से समस्त भूमण्डल में कीर्ति स्थापित करने वाला है। पौराणिक इतिहास से पता चलता है की सूर्यवंशी पहला राजा वैवस्वत मनु का बेटा इक्ष्वाक हुआ जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इक्ष्वाक से 55 पीढ़ी बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र ने अवतार लिया। रामचन्द्र जी के बड़े राजकुमार कुश की संतति कुशवाह वंश है। केशव दास जी ने अपनी प्रसिद्ध महाकाव्य ‘रामचन्द्रिका’ में लिखा है कि रामचन्द्र ने अपने विशाल साम्राज्य को आठ भागों में विभाजित करके अपने पुत्रों और भ्रातृजों में विभक्त किया था। अपने बड़े पुत्र कुश को कुशावती और लव को अवंतिका (उज्जैन) दी, भरत के पुत्रों में पुष्कल को पुष्करावती और तक्ष को तक्षशिला और लक्षमण के पुत्र अंगद को अंगद नगर और चन्द्रकेतु को चन्द्रावती का राजा बनाया। शत्रुध्न के पुत्र सुबाहु को मथुरा और शत्रुघात को अयोध्या का राजा बनाया था।  

चन्द्रवंश – उत्तरकालीन भारतीय इतिहास में अयोध्या, विदेह एवं वैशाली इन तीनों देशों को छोड़कर बाकी सारे उत्तर भारत तथा दक्षिणी भारत पर सोमवंशीय राजाओं का राज्य था। 

स्वायंभुव मनुवंश – प्राचीन भारतखंड के ब्रह्मावर्त नामक प्रदेश में स्थित वर्हिष्मती नगरी का सर्वाधिक प्राचीन राजा स्वयंभुव मनु था। इस वंश की उत्तानपाद एवं प्रियब्रत नामक दो शाखाएँ मानी जाती हैं। 

भविष्य वंश में वंश श्रृंखलाएँ – 1.आन्ध्र (भृत ृवंश ), 2.काणवायन (श्रृंगभृत्य) वंश, 3.नन्द वंश, 4.प्रद्योत वंश, 5.मगध वंश, 6.मौर्यवंश, 7.शिशु नागवंश, 8. श्रृंगवंश, 9.यवन, 10.शक, 11.हूण। 

मानवेतर वंश – पौराणिक साहित्य में देव, गन्धर्व, दानव, अप्सरा, राक्षस, यक्ष, नग, गरुड़ आदि अनेक वंशों का निर्देश प्राप्त है। जो प्रायः कश्यप ऋषि की सन्तान मानी गई हैं जिनकी तेरह पत्नियाँ थीं। 

वानर वंश – वानरों को पुलह एवं हरिभद्रा की सन्तान कहा गया है। उनके प्रमुख 12 कुल कहे गए हैं। 

राक्षस वंश – यह भी पुलह पुलस्त्य अगस्त्य ऋषियों की संतान कहा गया है। दैत्यों में हिरण्य कशिपु हिरण्याक्ष का स्वतन्त्र वंश वर्णन भी प्राप्त है। आगे चलकर इन जातियों का स्वतन्त्र अस्तित्व नष्ट होकर अनार्य एवं दुष्ट जाति के लोगों के लिए ये नाम प्रयुक्त किए जाने लगे।

क्षत्रियों के 36 वंश माने जाते हैं ! लेकिन विभिन्न विद्वानों में इसमें मतभेद हैं ! सबसे पहले विक्रम संवत 1205 की कल्हण की ”राजतरंगिणी” में क्षत्रियों के 36 कुलों का उल्लेख मिलता है। यहाँ ”पृथ्वीराज रासो” की उन पंक्तियों का उल्लेख किया जा रहा है जिनमें उन 36 कुलों के नाम गिनाये गए हैं –

रवि ससि जादव वंस ककटस्थ परमार सदावर!
चाहुवान   चालुक्य   छन्द    सिलार अभीयर !!

दोयमत मकवान गुरुअ गोहिल गोहिलपुत !
चापोत्कट  परिहार  राव   राठौर    रोसजुत !!

देवरा टांक सैंधव अणिग योतिक प्रतिहार दघिषत !
कारटपाल कोटपाल हूल हरित गोरकला[मा] षमट!!

धन [धान्य] पालक निकुंभवार, राजपाल कविनीस!
कालच्छुरकै आदि दे बरने बंस छतीस !!”

ये 36 कुल सूर्यवंश, चन्द्रवंश एवं अन्य वंशों में विभक्त हैं
“दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,
चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण ! 
अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-
१.कछवाह २.राठौड ३.बडगूजर ४.सिकरवार ५.सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-
१.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.स्वांगवंश १०.वैस

अग्निवंश की चार शाखायें:-
१.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-
१.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन  ७.करछुल  ८.हय ९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला !

क्षत्रिय वंश भास्कर  (लेखक डाo इन्द्रदेव नारायण सिंह) के अनुसार –

  1. 1- सूर्यवंश , 2- चन्द्रवंश , 3- यदुवंश , 4- गहलौत , 5- तोमर , 6- परमार , 7- चौहान , 8- राठौर , 9- कछवाहा , 10- सोलंकी , 11- परिहार , 12- निकुम्भ , 13- हैहय , 14- चन्देल , 15- तक्षक , 16- निमिवंशी , 17- मौर्यवंशी , 18- गोरखा , 19- श्रीनेत , 20- द्रहयुवंशी , 21- भाटी , 22- जाड़ेजा , 23- बघेल , 24- चाबड़ा , 25- गहरवार , 26- डोडा , 27- गौड़ , 28- बैस , 29- विसैन , 30- गौतम , 31- सेंगर , 32- दीक्षित , 33- झाला , 34- गोहिल , 35- काबा , 36- लोहथम्भ। 

राजस्थान के प्रमुख क्षत्रिय राजवंश

राठौड़

राठौड़ों की सम्पूर्ण भारत में कुल 13 मुख्य शाखाएं हैं 1.दानेश्वरा, 2.अभेपुरा, 3.कपालिया, 4.कुरहा, 5.जलखेड़ा, 6.बुगलाणा, 7.अहर, 8.पारकरा, 9.चंदेल, 10.वीर, 11.दरियावरा, 12.खरोदिया, 13.जयवंशी (दहिया) आदि !   

इनमें से राजस्थान में मात्र दानेश्वरा (दानेसरा) शाखा के राठौड़ हैं। जिनकी यहां निम्नलिखित मुख्य खांप हैं …

1.महेचा राठौड़ (4 उप शाखाए) 2.जौधा राठौड़ (45 उप शाखाएँ) 3.बीका राठौड़ (26 उप शाखाएं) 4.मेड़तिया राठौड़ (26 उप शाखाएँ) 5. कांधलोत राठौड़ (4 उप शाखाएं) 6.चांपावत राठौड़ (15 उप शाखाएँ) 7.मण्डलावत राठौड़ (13 उप शाखाएँ) 8.रूपावत राठौड़ (7 उप शाखाएँ है) 9.बीदावत राठौड़ (22 उप शाखाएँ) 10.उदावत राठौड़ 11.बनीरोत राठौड़ (11 उप शाखाए) 12.इडरिया राठोड़ 13.हटुण्डिया 14.बागडिया राठौड 15.छप्पनिया राठौड  16.पोकरणा राठौड़ 17.बाडमेरा राठोड़ 18.कोटडीया राठौड़ 19.खाबडिया राठौड़ 20.गोगादेव राठौड़ 21.देवराजोत राठौड़  22.जैतावत राठौड़ (3 उपशाखाएँ है) 23.धांधल राठौड़ 24.चाचक राठौड  25.उहड़ राठौड 26.गोलू राठौड़ 27.बाढेल (बाढेर) राठौड़ !

  • Amar Singh Rathore Nagaur
  • कछवाहा–  राजावत, शेखावत, नरुका, नाथावत, खंगारोत, बालापोता, कुंभावत, बलभद्रोत, पिच्याणोत, कल्याणोत, झमावत, कर्णावत, सुरतानोत, जगनाथोत.
Maharao Shekhaji
  • गहलोत– राणावत, चूंडावत, शक्तावत, चंद्रावत, कुंभावत, जगमलोत, खिंवावत, विरमदेवोत, आहड़िया, सारंगदेवोत, आंगावत.
Maharana Pratap
  •  चौहान– १. हाडा २.खींची ३.सोनगरा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल ८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेचा ७.रूसिया १८.चांदा १९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर. ( बालोत, मोहिल, चायल, चाहड़दे, पावेचा, रायजादे इनमें ही होतेे हैं)
Prithviraj Chauhan
  • यदुवंशी– भाटी, जादौन, चुड़ासमा, जाड़ेचा.
यदुवंशी महान राजा पोरस
यदुवंशी महान राजा पोरस
  • परमार (पंवार) – सोढा, मोरी, सांखला, डोदिया, भापेल, काबा, चावड़ा.
शीश का दान देने वाले प्रतापी जगदेव पंवार
शीश का दान देने वाले प्रतापी जगदेव पंवार
  • तोमर (तंवर) – ग्वालेरा, जाटू, जावला, किलोड़जीके (बाईसी के), कर्णोजी के (चौबीसी के)
दिल्ली के सम्राट अनंगपाल तंवर
दिल्ली के सम्राट अनंगपाल तंवर
  • झाला– देवत, चंदेल, गोड़.
राणा प्रताप के अनन्य सहयोगी झाला मान
राणा प्रताप के अनन्य सहयोगी झाला मान
  • प्रतिहार (पड़िहार) – बडगूजर, ईन्दा, देवल.
मिहिरभोज प्रतिहार
मिहिरभोज प्रतिहार
  • सोलंकी– बघेल, भोजावत, बालणोत, भुट्टा.
गुजरात नरेश सिद्धराज सोलंकी
गुजरात नरेश सिद्धराज सोलंकी

 


मेनू
चंगोई गढ़

चंगोई गढ़