चौहान वंश

चौहान वंश : परिचय एवं उत्पत्ति 



           चौहान वंश : परिचय एवं उत्पत्ति 

                (By- घनश्यामसिंह चंगोई)

 

राजपूतों के 36 राजवंशों में चौहानों का भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रहा है। ये सूर्यवंशी भगवान राम के वंशज है। इन्होंने सातवीं शताब्दी से आजादी तक देश के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया है। राजपूताने में शाकम्भरी (सांभर), नाडोल, भीनमाल, अजमेर, जालोर, सिरोही, बूंदी, कोटा अदि चौहानों के प्रमुख राज्य रहे हैं। चौहानवंशीय जयपुर के साम्भर झील के समीप में, पुष्कर प्रदेश में और आमेर क्षेत्र में निवास करते थे। अभी वे उत्तरभारत में विस्तृत रूप से फैले हैं। उत्तरप्रदेश राज्य के मैनपुरी बिजनौर जिले में अथवा नीमराणा राजस्थान में बहुधा निवास करते हैं। नीमराणा से ये उत्तरप्रदेश ओर उत्तर हरियाणा में फ़ैल गये।

 

इतिहास में चौहान वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए हैं। जिनमे नाडोल के राजा लक्ष्मण (लाखन), शाकम्भरी के राजा दुर्लभराज (प्रथम व् द्वितीय), अजमेर के राजा बीसलदेव चौहान, जालोर के कीर्तिपाल सोनगरा व कान्हड़देव सोनगरा, सिरोही के सुरताण देवड़ा, बूंदी के सुरजन हाड़ा तथा रणथम्भोर के हम्मीर चौहान इतिहास में प्रसिद्द हुए हैं। 

 

उत्पत्ति 


कथाओं के अनुसार चौहान वंश की उत्तपत्ति ऋषियो द्वारा आबू पर्वत पर किए गए यज्ञ के अग्निकुंड मे से हुयी। जबकि विद्वानों का  मत है कि आबू पर्वत पर कन्नौज के ब्राह्मणों के यज्ञ की रक्षा करने में परमार, चालुक्य, प्रतिहार व चौहान सम्मिलित होने से ये चारों अग्नीवंशी कहलाये। इस राजवंश के संस्थापक राजा चाहमान माने जाते हैं।

चौहान वंश की शाखाएँ


       चौहान वंश की शाखाएँ 

(1) सोनगरा चौहान :-- नाडोल के शासक आल्हण ( सन् 1152 से 1163 ईस्वी तक) के एक पुत्र केल्हण तो नाडोल के शासक बने व कीर्तिपाल जी जालौर के शासक हुए। जिनके वंशज स्वर्णगिरि किले से सोनगरा चौहान कहलाये। 

(2) सांचौरा चौहान :- आल्हण के एक और पुत्र विजयसी ने सन् 1184 ईस्वी मे सांचोर पर अधिकार किया। सांचौर से निकास के कारण इनके वंशज सांचौरा चौहान कहलाये। विजयसी के बाद पदमसी, शोभित, साल्हा, विक्रमसी सांचोर के शासक हुए। इनके वंशज महकरण, सांवतसी व राव बल्लू सांचोर के शासक हुए। राव बल्लू के ज्येष्ठ भ्राता शार्दूल के वंशज सांचोरा चौहान मालवा मे है। शार्दूल के बड़े पुत्र अमरदास के वंशज मालवा मे ठिकाना महुवा, दीपाखैड़ा, मोरखैड़ा, करनपुरा, मामटखैड़ा, जाकली सांसरी, पिपल्या व नकेड़िया मे है। शार्दूल के द्वितीय पुत्र भगवानदास के वंशज ठि पंचेड़ व ताजपुरिया मे है। शार्दूल के तृतीय पुत्र भोजराज के वंशज ठि टीमाइची मे व चतुर्थ पुत्र जगन्नाथ के वंशज ठि गडगारा मे है। 

(3) पुरबिया चौहान :- बीकानेर क्षेत्र के घंघराज के वंशज चन्दवाड़ व मैनपुरी जिले मे जा बसे। इनके वंशजो ने खानवा के युद्ध मे महाराणा सांगा के सहायतार्थ भाग लिया व काम आये। ये मेवाड़ मे पूर्व दिशा से आये थे, इसलिये इनके वंशज पुरबिया चौहान कहलाये। इन्हे मेवाड़ मे प्रथम श्रेणी के ठिकाने कोठारिया, बेदला व पारसोली मिले। बेदला सामन्त सिंह जी को डुंगरपुर महारावल सा ने बिछीवाड़ा की जागीर दी थी।

(4) निरवाण चौहान :- नाडौल नरेश असराज जी (सन् 1110 से 1115) के पुत्र नरदेव जी के वंशज निरवाण चौहान कहलाये।

(5) वागड़िया चौहान :- नाडोल नरेश असराज जी (सन् 1110 से 1115) के वंशज क्रमशः सोभसेही,  महणदास, भोजदे, गुहड़दे, आलणसी, बाहड़दे, भाण, नरबददास, गजसी, देदू व कुंतल हुए। कुंतल के पुत्र सीहड़ व जैतसिंह थे। *सीहड़ के पुत्र मुधपाल जी ने वि सं 1380 मे गामड़ी (वागड़) मे आशापुरा माताजी की स्थापना की।* वागड़ क्षेत्र में रहने से ये वागड़िया चौहान कहलाये। मुधपाल के वंशज क्रमशः हरराजजी, देशलजी, दूदाजी, वीरसिंह, पाथल, भोजराज व बालाजी हुए। मेवाड़ महाराणा रायमल ने वि सं 1532 मे बालाजी को बदनौर व धरियावद की जागीर दी। डूंगरपुर महारावल उदयसिंह जी ने वि सं 1535 मे बालाजी को पुनः बोरी का पट्टा प्रदान किया। इस प्रकार कटारा, मोटागाँव आदि आधी वागड़ बालाजी के जागीर मे थी। बालाजी के पुत्र डूंगरसी ईडर युद्ध मे काम आये व इनके पुत्र कान्हसिंह अहमद नगर दूर्ग के किवाड़ हाथी से तुड़वाने के लिए  खुद शहीद हुए व अभूतपूर्व वीरता दिखाई।

     वागड़िया चौहानों की शाखाएँ- 
     (1) जैतावत :-- ठि एमणिया पाडला
     (2) वीरसिंहोत :-- ठि भबराणा
     (3) हथियावत :-- ठि अर्थूणा
     (4) मंगलावत :-- ठि उखरैली
     (5) मादावत :-- ठि मेतवाला
     (6) लखावत :-- ठि ओडवाड़िया 
     (7) सबलावत :-- ठि मोटागाँव (मोटागाँव वागड़ के चौहानों का पाटवी ठिकाना है)
     (8) वैरावत :-- ठि मांड
     (9) चन्द्रभाणोत :-- ठि बिलूड़ा
     (10) केशरीसिंहोत :-- ठि बनकौड़ा। 

(6) खींची चौहान :-- नाडोल राज्य के संस्थापक लाखन के पुत्र असराज के पुत्र मानकराव के पुत्र अजय राव हुए। मानक राव द्वारा राज्य परिक्रमा के समय ग्वारियों की खिचड़ी खाने अजयराव जी का उपनाम खींची रहा। जिससे इनके वंशज *खींची चौहान* कहलाए। 
अजैराव जी के वंशक्रम में क्रमशः चंद्रराव, लखणराव, गोयंदराव, संग्रामराव, पृथ्वीराव, सावंतराव व गूदलराव हुए। गुदलराव जायल में पृथ्वीराज चौहान द्वितीय की सेवा में था। किंतु पृथ्वीराज से मनमुटाव हो जाने से यह जायल छोड़कर मालवा में आया। गुदलराव (गोगासिंह) खींची ने गढ़ गागरोन बसाया व इसे अपनी राजधानी बनाया। राजस्थान व मध्य प्रदेश के बीच का क्षैत्र जो हाड़ोती से मिलता है, आज भी खींचीवाड़ा कहलाता है। इतिहास प्रसिद्ध पन्नाधाय इसी वंश में जन्मी थी, जिसने चित्तौड़ में महाराणा उदयसिंह की रक्षा के लिए अपने इकलौते पुत्र चंदन की बलि दी थी। सन् 1423 ईस्वी में गागरोन नरेश अचलदास जी खींची के समय मालवा के सुल्तान होशंगशाह द्वारा गागरोन पर आक्रमण हुआ व पराजय होने पर यहां की क्षत्राणियों ने जौहर किया। गागरोन के राजा पीपाजी प्रसिद्ध संत हुए हैं। सोनगढ़, राधौगढ़, खिलचीपुर, ददरेवा के ठिकाने व राज्य के अलावा और कई ठिकाने खींची चौहानों के हैं। यह मालवा, मेवाड़, मारवाड़, हाड़ोती, झालावाड़, टोंक आदि जिलों में स्थित है।

(7) हाड़ा :--  लक्ष्मण नाडोल के वंशक्रम मे हरा (हड़ा) के वंशज हाड़ा कहलाये। 

(8) देवड़ा :-- नाडोल नरेश लाखन के पुत्र अश्वराज की रानी बाचाछल देवी के पुत्र देवीरा या देवड़ा कहलाये। 

(9) चाहिल :-- चौहान वंश मे मुनि के वंशज कान्ह के पुत्र अजरा के वंशज चाहिल के वंशज चाहिल कहलाये। 

(10) मोहिल :-- कान्ह के पुत्र बच्छराज के वंशज मोहिल के वंशज मोहिल कहलाये।

(11) जोड़ :-- कान्ह के पुत्र सिंध के किसी वंशज के जोड़ले पुत्रों के वंशज जोड़ चौहान कहलाये।

(12) सांभरिया :-- सांभर क्षेत्र से निकास के कारण सांभरिया कहलाये।

(13) रायजादे :-- विग्रहराज चतुर्थ के वंशज रायमन सहदेव के वंशज रायजादे कहलाये। 

(14) चाहड़दे :-- पृथ्वीराज चौहान के भाई चाहड़दे के वंशज। 

(15) नाडोलिया :-- नाडोल से निकास के कारण नाडोलिया कहलाये। 

(16) मद्रेचा :-- वीरविनोद मे किसी लालसिंह नामक चौहान के मद्र देश मे जानै के कारण इनकै वंशजों को मद्रेचा लिखा है।

(17) नार :-- लाखण के वंशज मारवाड़ मे। 

(18) धुंधेटे :-- माणकराव सांभर के पुत्र धुंधेट के वंशज धुंधेटे चौहान कहलाये।

(19) सूरा और गोयलवाल :-- कहकलंग के वंशजों से इन दोनो खाँपों का निकास हुआ।

(20) पावेचा :-- लक्ष्मण नाडोल के वंशज जैसलमेर मे।

(21) बालेचा :-- नाडोल से जो चौहान बाली परगने मे जाकर रहे वे बालेचा चौहान कहलाये।

(22) बालोत :-- जालोर के समरसिंह के पुत्र बाला से बालोत चौहान कहलाये।

(23) कांपलिया :-- सांचोर के विजयसिंह के वंशज कांपलिया गाँव मे निवास से कांपलिया चौहान कहलाये।

(24) भदौरिया :-- नीमराना के लाखनराव के पुत्र भादर ने भदावर पर राज किया। इनके वंशज (भदावरिया) भदौरिया चौहान कहलाये।

शाकम्भरी व अजमेर राज्य


  शाकम्भरी (सांभर) का चौहान राज्य 


चौहानों का क्रमबद्ध इतिहास वसुदेव से आरम्भ होता है। इसके बाद सामन्त का स्थान सपादलक्ष (जांगल प्रदेश) था, जिसकी राजधानी अहिछत्रपुर (वर्तमान नागौर) थी। इसी क्षेत्र मे सांभर था। सामंत का समय विक्रम की 8 वी शताब्दी था। इनके वंशज दुर्लभराज प्रथम ने गौड़ देश पर अधिकार किया। इसका पुत्र गुहक प्रथम, प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम का सामंत था। इसके वंशज चन्द्रराज की रानी रुद्राणी प्रतिदिन पुष्करराज मे 1000 दीपक अपने इष्ट महादेव को लगाती थी। इसके पुत्र वाक्पति प्रथम ने महराज की उपाधि धारण की। इसके पुत्र सिंहराज ने तोमरों को पराजित किया। 


सिंहराज के पुत्र विग्रहराज द्वितीय ने चालुक्य मुलराज को पराजित किया। इसके पुत्र प्रतापी राजा दुर्लभराज द्वितीय ने नाडोल के शासक महेन्द्र को पराजित किया। इसके उत्तराधिकारी गोविन्द तृतीय ने गजनी शासकों को आगे नही बढ़ने दिया। इनके वंशज पृथ्वीराज प्रथम ने पुष्कर मे 700 चालुक्यों का वध किया जो ब्राह्मणों को लूटने आये थे।


  अजमेर राज्य 


 पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज ने उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के शासक नरवर्मन को पराजित किया व अपनी सुरक्षा के लिए इस्वी सन् 1113 मे अजयमेरु (अजमेर) की स्थापना की। अजयराज के पुत्र अर्णोराज ने तुर्कों को पराजित किया, अजमेर मे अन्नासागर झील व पुष्कर मे वराह मन्दिर का निर्माण करवाया।


इसके बाद राजा विग्रहराज चतुर्थ (विसलदेव) का शासनकाल इस वंश का *स्वर्णयुग* रहा। इन्होंने दिल्ली के तोमरों को पराजित किया, मुसलमानों से पंजाब हिसार आदि जीते। चालुक्य कुमारपाल से पाली जालौर नागौर आदि छीन लिया। यह साहित्य व कला प्रेमी थे। इन्होंने संस्कृत विद्यालय का निर्माण करवाया, जिसे मुसलमानों ने बाद में खंडित कर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम दिया। इनके दरबारी कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज नाटक लिखा और इन्होंने स्वयं हरकेली नाटक लिखा, इनके पश्चात पृथ्वीराज द्वितीय का भी मुसलमानों से संघर्ष चलता रहा।


पृथ्वीराज द्वितीय के कोई पुत्र न होने पर अर्णोराज के सबसे छोटे पुत्र सोमेश्वर राजा बने। इनकी माता कांचनदेवी, गुजरात नरेश जयसिंह सिद्धराज सोलंकी की पुत्री थी। सोमेश्वर का विवाह त्रिपुरी के शासक अचल की पुत्री कर्पूर देवी से हुआ था। इनसे दो पुत्र पृथ्वीराज व हरीराज हुए। पृथ्वीराज तृतीय सोमेश्वर के बाद वि स 1236 में गद्दी पर बैठे, उनका जन्म वि स 1223 में हुआ था। पृथ्वीराज रासो के अनुसार दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर ने अपने दोहिते पृथ्वीराज को राज्य दिया था। कुछ इतिहासकार इसे ऐतिहासिक रूप से गलत मानते है। चूँकि अनंगपाल तोमर की मृत्यु काफी पहले हो गई थी। उनकी बेटी की शादी के बारे में दावा बाद की तारीख में किया गया है।


पृथ्वीराज चौहान ने गुजरात के सोलंकियों से संघर्ष किया और अंत में शांति समझौता हुआ। कन्नौज के राजा जयचंद से उनका निरंतर संघर्ष चलता रहा। मुसलमानों के साथ उन्होंने कई युद्ध किए। वि सं 1248 में तराइन के मैदान में मोहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित किया, परंतु वि सं 1249 के तराइन के मैदान में मोहम्मद गौरी की विजय हुई पृथ्वीराज पकड़ लिए गए और मार दिए गए। 


पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर राज्य वापस मिला, जिसके बदले मे उन्हें बहुमूल्य उपहार भेंट करने पढ़े। पृथ्वीराज के भाई हराराज ने गोविन्दराज से राज्य छीन लिया जो कुतुबुद्यीन की सेना से जेवर युद्ध मे मारे गये। इस प्रकार अजमेर से चौहान राज्य नष्ट हो

नाडोल व भीनमाल राज्य 

 

नाडोल राज्य

 

सांभर के चौहान वाक्पतिराज (प्रथम) के बड़े पुत्र सिंहराज पिता के उतराधिकारी हुए और छोटे पुत्र लाखन (लक्ष्मण) ने नाडोल (वर्तमान जिला पाली) पर अधिकार कर अलग राज्य की स्थापना की। जिसके समय के दो शिलालेख १०१४ वि. व १०३६ वि.के नाडोल में मिले है। लाखन के यों तो 24 पुत्र माने गए है | कहा जाता है उनसे 24 शाखाएं उतपन्न हुयी पर इनका कोई वृतांत उपलब्ध नहीं है | लाखन (लक्ष्मण) के बाद उसके बड़ा पुत्र शोभित धारानगरी (भीनमाल) का शासक हुआ| शोभित से भीनमाल की अलग शाखा चली | नाडोल में लक्ष्मण का उतराधिकारी उसका पुत्र बलिराज हुआ | 


बलिराज का उतराधिकारी इसके चाचा विग्रहपाल का पुत्र महेंद्र हुआ | महेन्द्रपाल का उतराधिकारी लाखन के पुत्र अश्वपाल का पुत्र अहिल हुआ | इसके बाद अहिल से गद्धी महेंद्रराज के पुत्र अणहिल को मिली | इसने वि.१०८२ में गजनवी से भी टक्कर ली | आणहिल के दो पुत्र बालाप्रसाद व् जेन्द्रराज नाडोल के शासक हुए | आसराज के पुत्र जाजलदेव का वि.११४७, जेन्द्रराज के समय का वि.सं, ११२४ का शिलालेख है | जेन्द्र्राज के तीन पुत्र प्रथ्विपाल, जोजलदेव व् अश्वराज ( द्वितीय) थे | ये तीन भाई क्रमशः नाडोल के शासक हुए |


अश्वराज के समय का ११६७ वि.का सेवाड़ी शिलालेख है, जिसमे अश्वराज को महाराजाधिराज कहा गया है | अश्वराज का आखिरी अभिलेख वि.११७२ का है।  | अश्वराज से नाडोल की गद्धी प्रथ्विपाल के पुत्र रतनपाल ने छीन ली | और उसके बाद कटुकराज राजा बन गया | पर शीघ्र हि रतनपाल का पुत्र रायपाल गद्धी पर बैठा | ११८४ वि.से १२०२ शिलालेख है जिससे मालूम पड़ता है की यह भी प्रसिद्ध शासक था | कई वर्षों बाद अश्वराज (द्वितीय) के पुत्र आल्हण ने फिर नाडोल पर अधिकार कर लिया | शिलालेखों में आल्हण के दो पुत्र केल्हण और कीर्तिपाल के नाम मिलते है | आल्हण के बाद उसका बड़ा पुत्र केल्हण नाडोल का शासक बना और कीर्तिपाल ने जालोर पर अधिकार किया | केल्ह्ण के तीन पुत्र जयत्सी ,चामुंडराज व् सोढलदेव थे | केल्हण के बाद जयत्सी नाडोल का शासक बना और इसके बाद उसका पुत्र सामंतसिंह | सामंतसिंह से जालोर के चौहानों ने नाडोल छीन लिया और इसके साथ हि वि.की १२ वी , शती के उतरार्ध में नाडोल से चौहानों का राज्य समाप्त हुआ | 


भीनमाल राज्य 


नाडौल शासक लक्ष्मण के पुत्र शोभित ने भीनमाल में राज्य कायम किया | शोभित का उत्तराधिकारी लक्ष्मण के पुत्र आसराज (अश्वराज) का पुत्र महेंद्र हुआ | महेंद्र के बाद क्रमशः सिंधुराज (मछरीक) प्रताप (आल्हन) आसराज जेन्द्रराज, कीर्तिपाल, समरसी, प्रताप, शसयनन्दन बिजड़ व लूम्भा हुए | लूम्भा ने परमारों से 1368 के करीब चन्द्रावती व आबू छीना तथा 1377 वि. में अचलेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया | लूम्भा की मृत्यु 1378 वि. के करीब हुई । इनके बाद तेजसिंह, कान्हड़दे, सामंतसिंह, सलखा व रायमल हुए (चौहान कुल द्रुम पृ. 209) !

जालौर राज्य (सोनगरा)

 

जालौर राज्य 

(संकलन- घनश्यामसिंह चंगोई)


जालौर के सोनगरा चौहानवंश का संस्थापक कीर्तिपाल चौहान था । कीर्तिपाल नाडोल की चौहान शाखा के अल्हण का पुत्र था। कीर्तिपाल का समकालीन मेवाड़ का शासक सामंत सिंह था । कीर्तिपाल ने 1181 ई ॰ में जालौर पर अधिकार कर चौहान शाखा की नींव रखी। कीर्तिपाल चौहान ने सोनगढ़ पहाडी पर सुवर्णगिरी (सोनगिरि) दुर्ग का निर्माण करवाया। जिससे उसके वंशजसोनगरा कहलाये। पहले यहाँ परमार वंश का शासन था । कीर्तिपाल ने अपने बाहुबल से परमारों को परास्त कर जालौर और सिवाना दुर्ग पर विजय पताका फहराई| जहाँ उसके वीर वंशजों का एक शताब्दी तक वैभवशाली राज्य रहा| यही नहीं चौहान वंश के इस प्रतापी राजा से चौहानों की प्रसिद्ध शाखा सोनगरा का प्रादुर्भाव हुआ| जिसमें चाचिगदे, उदयसिंह, कान्हडदे जैसे प्रख्यात शासक हुए|

यही नहीं कीर्तिपाल ने मेवाड़ के सामंतसिंह को सत्ताच्युत कर मेवाड़ भी हस्तगत कर लिया, जिसे बाद में वि.सं. 1230 में कुमारसिंह ने वापस कीर्तिपाल से ले लिया| “मारवाड़ रा परगना री विगत” में कीर्तिपाल द्वारा आबू पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख हुआ है| वि.सं. 1235 (1135 ई.) में शहाबुद्दीन गौरी ने अणहिलवाड़े पर आक्रमण किया| आबू पर्वत के नीचे कायद्रों गांव में गौरी की गुजरात के सोलंकी, कीर्तिपाल के बड़े भाई केलण व कीर्तिपाल चौहान के साथ भयंकर लड़ाई हुई| जिसमें गौरी घायल हुआ और हार कर उसे पलायन करना पड़ा| सूंधा अभिलेख से पता चलता है कि कीर्तिपाल ने केसाहरदा की लड़ाई में तुर्कों को परास्त किया|


कीर्तिपाल चौहान का देहांत वि.सं. 1239 के लगभग होने का अनुमान है| एक कवित्त से पाता चलता है कि वे मुसलमानों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए-
सुरताण सबल सामहा आप प्राण अवर जीयो,
कीतू कंधार मछरिक कुल गहएव वड़े गरजीयो||

सिरोही राज्य (देवड़ा)

सिरोही राज्य (देवड़ा चौहान)

(संकलन- घनश्यामसिंह चंगोई)

 नाडोल राज्य के संस्थापक राजा लाखन (सन् 943 से 982) से सहसमल जी सिरोही तक का वंशक्रम इस प्रकार है :- लाखन अश्वराज महेन्द्रराज सिंधराज प्रतापमल्ल (आल्हण) आसराज जेन्द्रराज (जिंदराव) कितू (किर्तीपाल) सांवतसी (समरसी) महणसी (मानसी) प्रतापमल्ल (देवराज) बीजड़ लूम्भा तेजसिंह कान्हड़देव सामन्तसिंह सलखा रायमल शिवभाण सहसमल (सिरोही)

 

नाडोल नरेश लाखन के पुत्र अश्वराज जी की रानी बाचाछल जी देवी स्वरुपा थी, यानी एक तरह से देवी थी। इस कारण देवी के पुत्र देवीरा देवरा या देवड़ा कहलाये। चन्द्रावती और आबू के शासक रायमल देवड़ा के पुत्र  शिवभाण ने सन् 1405 ईस्वी मे शिवपुरी नगर बसाया। शिवभाण के पुत्र सहसमल ने सन् 1425 ईस्वी मे *सिरोही* नगर बसाया इस प्रकार नवीन सिरोही राज्य की स्थापना हुई। 

 

सहसमल जी ने सोलंकियों का कुछ क्षैत्र जीतकर राज्य विस्तार किया इस पर मेवाड़ महाराणा कुम्भा की सेना ने आबू व बसन्तगढ़ पर अधिकार कर लिया। महाराणा कुम्भा की मृत्यु के पश्चात सहसमल के पुत्र लाखा ने पुनः आबू पर अधिकार किया। लाखा का पुत्र जगमाल भी योग्य शासक हुआ। इस वंश मे सुरतान सिरोही के प्रतापी नरेश हुए। इन्होने अकबर की अधीनता स्वीकर नही की। सन् 1581 मे सिरोही छिन जाने पर सुरतान ने सन् 1583 शाही सेना को हराकर सिरोही पर पुनः अधिकार कर लिया। अकबर फिर सिरोही न जीत सका। सुरतान ने चन्द्रसेन राठौड़ व महाराणा प्रताप को अपने पास पहाड़ों मे रखकर उनकी सहायता की। सिरोही के राजा अखैराज द्वितीय की पुत्री जोधपुर महाराजा जसवन्त सिंह जी को ब्याही थी जिनके पुत्र अजीत सिंह की बचपन मे सुरक्षा व परवरिश वीर दूर्गादास राठौड़ ने सिरोही मे की थी। सिरोही के वर्तमान महाराजा रघुवीर सिंह जी है जो प्रसिद्ध इतिहासकार है।

 

 *देवड़ा की शाखाएँ* 

(1) बालोत :-- सांवतसी के पुत्र  महणसी (मानसिंह) के पुत्र बाला के वंशज
(2) हाथियोत :-- बाला के पुत्र हाथी के वंशज 
(3) चीबा :-- महणसी के पुत्र चीबा के वंशज 
(4) आभा :-- महणसी के पुत्र आभा के वंशज 
(5) मामावल :-- महणसी के पुत्र प्रतापमल्ल (देवराज) के पुत्र बरसिंह के वंशज ठि मामावली
(6) बावनगरा :-- प्रतापमल्ल (देवराज) के पुत्र बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्षमण के वंशज ठि बावनगर मे रहने से बावनगरा देवड़ा कहलाये। इनके वंशज मेवाड़ मे तथा मालवा मे बरामा व बेहपुर मे है। 
(7) बड़गामा :-- बीजड़ के बाद क्रमशः लूणा तिहुणक रामसिंह व देवीसिंह हुए। इन्हे ठि बड़गाम जागीर मे मिला। 
(8) बागड़िया :--  बीजड़ के बाद क्रमशः लूणा तिहुणक व सबलसिंह हुए। इनके वंशज बड़गाँव से बागड़िया कहलाये। 
(9) बस्सी देवड़ा :-- बीजड़ के पाँचवे पुत्र लुणा के दो पुत्र माणक और मोकल मालवा मे बसई मे रहे। इनके वंशज बस्सी देवड़ा कहलाये 
(10) कीतावत :-- लुम्भा के पुत्र दूदा के वंशज कीता से कीतावत कहलाये। 
(11) गोसलावत :-- लुम्भा के पुत्र चाहड़ के पुत्र गोसल के वंशज। 
(12) डूंगरोत :-- सलखा के बाद क्रमशः रायमल गजसिंह व डूंगर हुए। 
(13) शिवसिंहोत :-- रायमल के पुत्र सिरोही राज्य के संस्थापक शिशभाण के वंशज। 

(14) लखावत :-- शिशभाण के पुत्र सहसमल के पुत्र राजा लाखा जी के वंशज।

बूंदी व कोटा राज्य (हाडा)

बूंदी राज्य 

नाडोल राज्य के संस्थापक राजा लाखन (ईस्वी 943 से 982) के पुत्र अश्वराज हुए। अश्वराज के एक पुत्र आहिल तो नाडोल के राजा हुए व दूसरे पुत्र माणकराव थे। माणकराव के वंशक्रम में संभरण (भाणुवर्धन, जेतराव, अनंगराव, कुंतसी, विजयपाल व हरराज (हरा) हुए। इन्हीं हरा के वंशज *हाड़ा* कहलाए। हरराज के पुत्र बंगदेव (बांगा) व बांगा के पुत्र देवाहाडा हुए। देवा ने मीणों के बम्बावदे स्थान को जीतकर सन 1342 ईस्वी में *बूंदी राज्य* की स्थापना की। इनके पुत्र समर सिंह हुए। समर सिंह के बाद नरपाल, हमीर, वीरसिंह व वेरीशाल हुए। मांडू के सुल्तान महमूद ने बूंदी पर आक्रमण किया। इस युद्ध में वेरीसाल जी काम आए। वेरी साल के पुत्र भाणदेव ने पुनः बूंदी पर अधिकार किया व उनके पुत्र नारायण दास ने मांडू सुल्तान के सैन्य प्रबंधक को मारकर बूंदी पर पूर्ण अधिकार किया। 

 

नारायणदास के पुत्र सूरजमल हुए। सूरजमल की चचेरी बहन कर्मवती राणा सांगा को ब्याही थी। जिससे राणा विक्रमादित्य व राणा उदयसिंह हुए। सूरजमल के पुत्र सुरतान के कोई पुत्र न होने से नारायणदास के भाई नरबद के पुत्र अर्जुन के पुत्र सूर्जन गोद आए। सूर्जन बहुत वीर थे। अकबर ने रणथंबोर पर आक्रमण किया किंतु वह जीत नहीं सका। सन 1569 में राजा मानसिंह ने संधि करवाई और सूर्जन अकबर के 5000 मनसबदारी बने। यह बड़ा दान शील राजा था। 

सूर्जन के भोज व रतन सिंह हुए। रतन सिंह के एक पुत्र गोपीनाथ व दूसरे पुत्र माधव सिंह थे। रतनसिंह के बाद गोपीनाथ के पुत्र छत्रसाल राजा बने। राजा छत्रसाल के बाद क्रमशः भावसिंह, अनिरुद्धसिंह, बुद्धसिंह, दलेलसिंह, उमेदसिंह, अजीतसिंह, विष्णुसिंह व रामसिंह राजा हुए। महाकवि सूर्यमल मिश्रण रामसिंह जी के दरबारी कवि थे। इन्हीं के आश्रय में वंशभास्कर तथा वीरसतसई ग्रंथ लिखे गए। इनके बाद रघुवीरसिंह, ईश्वरसिंह व बहादुरसिंह अंतिम राजा हुए। आजादी के बाद बूंदीराज्य का भारत सरकार में विलय हुआ। 

 

कोटा राज्य

कोटिया नामक भीलों की एक जाति से इस शहर का *कोटा* नामकरण हुआ। बूंदी के राजा समरसिंह के समय से ही कोटा बूंदी राज्य के अधीन चला आ रहा था। बूंदी के राजा रतनसिंह के बड़े पुत्र गोपीनाथ के पुत्र छत्रसाल जी बूंदी के राजा बने व रतनसिंह जी के दूसरे पुत्र माधवसिंह जी के शौर्यपूर्ण कार्य करने से शाहजहां ने सन् 1631 में कोटा को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया। 

 

माधव सिंह के पुत्र मुकंद सिंह धर्मत युद्ध में काम आए। इनके वंशज राजा भीमसिंह जी के काल में कोटा की काफी प्रगति हुई। इनके वंशज किशोरसिंह जी अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध थे। किशोर सिंह जी ने मांगरोल की रणभूमि में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया। इनके हाथों लेफ्टिनेंट क्लॉक और लेफ्टिनेंट रोड मारे गए।  किशोर सिंह के बाद रामसिंह द्वितीय, शत्रुसाल द्वितीय, उमेदसिंह द्वितीय व भीमसिंह द्वितीय कोटा के अंतिम शासक रहे। 

*हाड़ा चौहानों की खाँपें*

(1) धुन्धलोत
(2) मोहणोत 
(3) हत्थावत
(4) हलूपोता
(5) लोहराज
(6) हरपालपोता
(7) जैतावत
(8) खिजुरी का
(9) नवरंगपोता
(10) थारुड़
(11) लालावत
(12) जाबदू :--    (।) सांवत का (।।) मेवावत
(13) अखावत
(14) चूड़ावत
(15) उदावत
(16) नरबदपोता
(17) भीमोत
(18) हमीर का
(19) मोकलोत
(20) अर्जुनोत (।) अखैपोता (।।) रामका 
               (।।।) जसा (।v)दूदा (v)रावमलोत
(21) सुरतानोत
(22) हरदाउत
(23) भोजावत
(24) इन्द्रशालोत
(25) बैरीशालोत
(26) मोहकमसिंहोत
(27) मोहसिंहोत
(28) दीपसिंहोत
(29) बहादुरसिंहोत
(30) सरदारसिंहोत
(31) माधाणी
(।) मोहनसिंहोत माधाणी
(।।) जुझारसिंहोत माधाणी
(।।।) प्रेमसिंहोत माधाणी
(।v)किशोरसिंहोत माधाणी

चौहान वंश के गोत्र-प्रवरादि

चौहान वंश के गोत्र-प्रवरादि

वंश – अग्निवंश
वेद – सामवेद
गोत्र – वत्स
वॄक्ष – आशापाल
नदी – सरस्वती
पोलपात – द्सोदी
इष्टदेव – अचलेश्वर महादेव
कुल देवी – आशापुरा
नगारा – रणजीत
निशान – पीला
झंडा – सूरज, चांद, कटारी
शाखा – कौथुनी
पुरोहित – सनादय(चन्दोरिया)
भाट – राजोरा
धुणी – सांभर
भेरू – काला भेरव
गढ़ – रणथम्भोर
गुरु – वशिष्ठ
तीर्थ – भॄगु क्षेत्र
पक्षी – कपोत
ऋषि – शांडिल्य
नोबत – कालिका
पितृ – लोटजी
प्रणाम – जय आशापुरी
विरद – समरी नरेश

रणथंभोर राज्य

रणथंभोर राज्य 

११९२ में तहराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर को अपनी राजधानी बनाया। गोविन्द राज के दो पीढ़ी बाद जैत्रसिंह का १२४९ ईस्वी के लगभग राज्यारोहण हुआ था। इन्होंने रणथम्भौर साम्राज्य पर ३२ साल तक शासन किया और रणथम्भौर साम्राज्य का विस्तार किया। महाराजा जैत्रसिंह चौहान की पत्नी का नाम हीरा देवी था, इन्हीं के गर्भ से महाराजा हम्मीरदेव चौहान का जन्म हुआ, जो भारत के इतिहास में 'हठी महाराजा' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जैत्रसिंह चौहान ने अपने योग्य पुत्र हम्मीरदेव चौहान को १२८२ में रणथम्भौर साम्राज्य का राजा घोषित किया। 

हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग था। हम्मीर देव चौहान ने 17 युद्ध किए जिनमे 13 युद्धो में उसे विजय प्राप्त हुई। चौहान राजा हम्मीर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उसकी समाधि पर लाल पत्थरों से 432 विशाल खंभों वाली 50 फुट ऊँची छतरी बनवाई, जिस पर बैठकर हम्मीर देव न्याय करता था, अत: इस छतरी को न्याय की छतरी' भी कहते हैं। इसी छतरी के नीचे गर्भगृह में काले भूरे रंग के पत्थर से निर्मित एक शिवलिंग है। 

यहाँ पर राजस्थान का पहला शाका हुआ सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका माना जाता है।

इसके साथ इस चौहान राज्य का अंत हो गया। 

 

निर्बाण, खींची व सांचोरा चौहानों के राज्य

खंडेला राज्य (निर्बाण चौहान)

 

नाडोल के राजा अश्वराज के पुत्र नरदेव ने 1141 वि. में कुंवरसी डाहलिया से किरोडी ,खंडेला (शेखावटी) का क्षेत्र जीता और निर्बाण राज्य की नींव डाली। निर्वानो ने इस क्षेत्र पर लगभग 500 वर्षों तक शासन किया | निर्वाण वीर व् स्वतंत्रता प्रेमी रहे | इन्होने राजस्थान में अनेक युद्ध में भाग लिया। राव जोधराज ,विसलदेव ,दलपत ,पिथोरा ,राजमल ,न्रासिंदेव व् रणमल आदी खंडेडेला के प्रसिद्द शासक हुए। खंडेला राजा पीपा से रायसल शेखावत ने वि. सं. 1625 में छीन लिया। फिर भी 1638 वि. तक वे बराबर आपने राज्य के लिए लड़ते रहे | पीपाजी के वंशजों ने उप्र में छोटा सा राज्य स्थापित किया। आज भी गाजियाबाद के आसपास कई गाँव निर्वाण चौहानों के हे। शेखावटी (राजस्थान) के बहुत से गाँवो में निर्वाण चौहान निवास करते हे। खेतड़ी ,बबाई, पपुरना का क्षेत्र निर्वाण पट्टी के नाम से जाना जाता हे।

 

सांचोर राज्य (सांचोरा चौहान)

नाडोल के अश्वराज के पुत्र आल्हंण के पुत्र विजय सिंह ने 1184 ईस्वी में सांचोर जीता। सांचोर से इसके वंशज सांचोरा चौहान कहलाये। विजयसी के बाद पदमसी, शोभित, साल्हा, विक्रमसी सांचोर के शासक हुए। इनके वंशज महकरण, सांवतसी व राव बल्लू सांचोर के शासक हुए। राव बल्लू के ज्येष्ठ भ्राता शार्दूल के वंशज सांचोरा चौहान मालवा मे है। शार्दूल के बड़े पुत्र अमरदास के वंशज मालवा मे ठिकाना महुवा, दीपाखैड़ा, मोरखैड़ा, करनपुरा, मामटखैड़ा, जाकली सांसरी, पिपल्या व नकेड़िया मे है। शार्दूल के द्वितीय पुत्र भगवानदास के वंशज ठि पंचेड़ व ताजपुरिया मे है। शार्दूल के तृतीय पुत्र भोजराज के वंशज ठि टीमाइची मे व चतुर्थ पुत्र जगन्नाथ के वंशज ठि गडगारा मे है।

सांचोरा चौहानों की अन्य खापे हे - बणीदासोत , सहसमलोत, नरसिंहदासोत ,तेजमालोत ,सखरावत, हरथावत आदी| सांचोर (जालोर) क्षेत्र में सान्चोरा चौहानों के बड़े छोटे कई ठिकाने हे |

 

जायल का खींची राज्य

जायल खींचियों का मूल केंद्र था। उन्होने यहाँ 1000 वर्ष तक राज किया। सांभर के चौहान शासक सिंहराज के अनुज लक्ष्मण ने 960 ई. में नाडोल राज्य की स्थापना की थी। लक्ष्मण के वंशज आसराज का पुत्र माणकराव, खींची शाखा का प्रवर्तक था। वह 1111 ई. में जायल आया था। उनकी पीढ़ियाँ – 1. माणकराव, 2. अजयराव, 3. चन्द्र राव, 4. लाखण 5. गोविंदराव, 6. रामदेव 7. मानराव 8. गून्दलराव, 9. सोमेश्वर 10. लाखन राव, 11. लालसिंह 12. लक्ष्मी चंद 13. भोम चंद 14. बेंण राव, 15. जोधराज। इनके ही वशंज में एक जींद राव खींची जायल के शासक हुए, जिनका विवाह कोलूमंड के शासक लोकदेवता पाबूजी राठौड़ की बहन से हुआ था और कालांतर में केसर कालमी घोड़ी को लेकर दोनों में विवाद हो गया था।

 

गागरोन का खींची राज्य 

‘चौहान कुल कल्पद्रुम’ के अनुसार गागरोण के खींची राजवंश का संस्थापक देवनसिंह उर्फ धारू था, जिसने अपने बहनोई बीजलदेव डोड राजा को मार कर धूलरगढ़ पै अधिकार कर लिया। तब से ही गढ़ गागरोण कहलाया। ये घटना 12वीं  सदी की बताई जाती है।

गागरोण के खींची वंश में एक से बढ़कर एक वीर राजा हुए। सन् 1303 में सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने इस किला पर हमला किया। उस समय जैतसिंह ने हमले का जबरदस्त विरोध किया। जैतसिंह के शासनकाल में खरासाण से सूफी संत हमीद्दीन चिश्ती गागरोण आया जिसकी छतरी आज भी दुर्ग में मौजूद है। ये सूफी संत ‘मिट्ठे साहब’ के नाम से पूजे जाते है। गागरोण खींची राजवंश में तीन पीढ़ि बाद पीपाराव नाम के एक भक्ति परायण शासक हुए। वे दिल्ली सुलतान फिरोजशाह तुगलक के समकालीन थे। पीपाजीने अपने जीवन के उत्तरार्ध में राज वैभव छोड़ कर संत रामानन्द का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। गागरोण किला में संत पीपाजी की समाधि बणी है, जहां हर साल मेला भरता है।

गागरोण के पराक्रमी और प्रभावशाली राजा भोज का पुत्र अचलदास हुआ, जिसके शासनकाल में गागरोण में पहला शाका हुआ। अचलदास मेवाड़ महाराणा मोकल का दामाद था। सन् 1423 में मांडू का सुलतान अलपखां गौरी उर्फ होशंग शाह गागरोण पै जोरदार हमला किया। जिसमें अचलदास अपने शूरवीरओं के साथ वीरगति प्राप्त हुआ। सन् 1444 में गढ़ गागरोण पर मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने एक और आक्रमण किया और दूसरा साका हुआ। गागरोण का इस विशद साका का वर्णन ‘महासिरे महमूदशाही’ में देखने को मिलता है। 29 हाथियां और लंबा-चौड़ा लाव-लश्कर से सज्जित सुलतान खलजी की फौज के आगे सात दिन की लड़ाई में अचलदास के पुत्र पालहणसी की सेना टिक न सकी। इसके साथ ही इस राज्य से खींची वंश का अधिपत्य समाप्त हुआ। 

(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)


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