सोरठा

“”””””””’”””(अनुप्रास अलंकार)

रणबंका रजपूत, ज्यान गमाता जुद्ध मैं !
पण उण रा ही पूत, मरै मोत मद पीव नै !!

रणबंका रजपूत, ठकराई ठरकै करी !
पत्त गमावै पूत, पी ठर्रो ठेकै पड्या !!

रणबंका रजपूत, मरता कुळ हित कारनै !
पण बां रा ही पूत, आपस मैं लड़-2 मरै !!

रणबंका रजपूत, रैयत री रक्षा करी
आज राज रा पूत, खोस-2 खुंजा भरै !

(रैयत=प्रजा, खुंजा=जेब)

मन मांहीं मोदक मथै, करै न कारज कांइ!
भाग भरोसै भूख मरै, जीवण जूण गमाई !!

मिनखजूण रै मनुज, आ नित-2 री नी आव !
धरमीपण मत छोडजे, नींतर होसी न्याव !!

कंचन काया देख कर, करे जु हेत हमेस !
सूरत पर सीरत नहीं, कामिनि करै कलेस !!

धरम धरा पर घट रयो, पाप बढ्यो परपंच !
बाबा बण खोटा करै, हररोज मचावै हंच !!

दारू दुसमण देह री, मद मत पीज्यो कोय !
जीव जळावे आपरो, घर रा सकै न सोय !!

धोळै धन सू धण दुखी, धीणै धण सुखी होय!
धणी सुखी धन-धान सूं, सुख धाणी मुट्ठी दोय !

(धोळो धन=रेवड़, धण=गृहिणी, धणी=गृहस्थ, धाणी=गेहूं का भुना चबेना)

पीव-पीव पपिहो करै, दीन्या पीव चिताय !
चिनुक कलाळी घालदे, पीव पीवसी आय !!
(पीव=पपीहे की बोली, पीव=प्रियतम, पीव=पीना)

चापलूस चुगली करै, करै चतर चतराइ!
(भर) चमड़पोस चंपी करै, नीं करै भजन भगताइ!!
(चमड़पोस=हुक्का, चंपी=मालिश)
(चापलूस सेवक अपने मालिक को दूसरों की चुगली करके खुश करते हैं। चतुर अपनी चतुराई से खुश करते हैं। कुछ सेवा करके खुश करते हैं। लेकिन जो सबसे बड़ा मालिक (ईश्वर) है, उसकी भक्ति व भजन कोई नहीं करता। वरना किसी अन्य को खुश करने की जरूरत ही नहीं है।)

चतुर चपल चम्पाकली, चंचल-चक्षु चकोर !
चन्द्रमुखि चन्दनबदन, चाल चलै चित चोर !!

(इस छंद में अलंकार विशेष का प्रयोग किया गया है, जिसमे सभी शब्द ‘च’ अक्षर से शुरू होने वाले हैं)


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चंगोई गढ़

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