राजाजी बृजलालसिंह जी

तीसवीं पुण्यतिथि पर शत-शत नमन !

(स्वर्गवास- सावण सुदी 7, संवत 2044)
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गांव चंगोई घणों पुराणों, पण गया पुराणा लोग।
नित उठ बां नै नमन करां, बै सगळा आदरजोग॥

बैठ दरवाजै सामनै, हो जेठ चाहे आसोज।
आरामकुर्सी-मूढ़ेै ऊपर, हुक्को पीता रोज॥

चोड़ो माथो, आंटी मूंछ्यां, चंगोई रा किंग।
पीलो साफो सोंवतो, राजा बृजलालसिंग॥

और बडेरा-बूढ़ा कई, करता बैठ हथाई।
खेत-खळां री बात पूछता, लेता सबगी राय॥

पीपळ दरखत नीम लगाता, करता बां रो पालन।
खुद भी रखता, बच्चा नै भी, सिखलाता अनुशासन॥

गामाऊ कामां गी खातर, पार्टी-बाजी छोड़।
राजाई-ठुकराई गी भी, करता नही मरोड़॥

ब्राह्मण-बणिया, जाट-ठाकरां, हरिजन, स्यामी-साध।
सार्वजनिक कामां गी खातर, सबगो लेता साथ॥

धर्मशाल, मंदिर अर गट्टा, प्याऊ-कूई-कुंड।
इस्कूल खातर झोळी मांडी, करयो नहीं घमण्ड॥

देस-दिसावर फिरया, चंदे खातर छोडी लाज नै।
सेठां स्यूं इस्कूल चिणाई, खुलवाई जा राज मै॥

चेजो होतो कठै गांव मैं, कींगै ही घर चाये नै।
बेरो पडतां पाण ही बै, जरूर देखता जाय नै॥

बडै कोड स्यूं देखता-कहता, आछी देता राय।
“बार-बार नहीं बणै बावळा, थोड़ो ओर बधा”॥

तारानगर तहसील वास्ते, राजपूत सभा चलाई।
तारासिहजी ट्रस्ट बणायो, दुकानां खुलवाई॥

बीकानेर क्षत्रिय सभा मैं, खूब जुड़ाया लोग।
राजपूत धर्मशाला खातर, खूब करयो सहयोग॥

सार्वजनिक कामां गी खातर, हाजर तन-मन-धन।
धरम-करम अर कथा-भागवत, घणों राखता मन॥

चमालीस की साल काळ की, इंद्रदेव नहीँ बरस्या।
मिनख-जिनावर-पेड़-पंखेरू, पाणी खातर तरस्या॥

सावण सुदी 2 मंदिर मैं, कीर्तन शुरू करायो।
चंगोई-मिखाला गांव को, सब जन सुणनै आयो॥

छठ कै दिन जद हवन हुयो, तो लीन्यो बीं मैं भाग।
सात्यू प्रातः ब्रह्म मुहूर्त मैं, दियो संसार नै त्याग॥

नहीं दुखायो मन गरीब को, आ’ ही करी कमाई।
राम नाम नै चित्त मैं राख्यो, सोरी मृत्यु पाई॥

कित्ता ही जे जतन करां, पण होड नहीं कर पावां म्हे।
है थांस्यु अरदास राम, बांरो नाम नहीं गमावां म्हे॥

पुनः शत-शत नमन !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई

(15 जुलाई 2017)


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