मालिक का दिया हुआ, है वरदान बेटियां !
क्यों सह रही हैं फिर, भी अपमान बेटियां !!
बताये कोई बेटों से कहां हैं कम, फिर भी !
छटपटाती साबित होने, को इंसान बेटियां !!
गर्भ में आते ही भ्रूण, लिंग-जांच हो गई !
हुई डॉक्टर के चाकू से, लहुलुहान बेटियां !!
सिर्फ बेटों से अगर, बस जाता ये जहां !
फिर क्यों भेजता, जग में भगवान बेटियां !!
लेके जनम अगर वो, धरती पर आ गई !
मां के लिए बनी सबब, अपमान बेटियां !!
बेटी जनी तो सास के, सुनने पड़े ताने !
फिर भी मां को लगती, अपनी जान बेटियां !!
चहचहाट उसकी घर, आंगन गुंजा रही !
है दीप्त हो रही ज्यों, नभ में भान बेटियां !!
दुख बड़ा ही होता है, जब एक ही घर मे !
नहीं लाड़ पाती बेटों, के समान बेटियां !!
“पढ़ के भी फूंकना तुम्हे, तो चूल्हा-चौका”!
इसलिए न पढ़ पाती हैं, विज्ञान बेटियां !!
शिक्षा के नाम पर, सिर्फ औपचारिकता !
न पाती बेटों सम, तकनीकी ज्ञान बेटियां !!
दिल से न मानते उसे, हम घर का हिस्सा !
समझी जाती अपने, घर मे मेहमान बेटियां !!
सिर्फ प्यार की चाहत, उन्हें न धन चाहिए !
स्वयं दिल से होती हैं, बड़ी धनवान बेटिया !!
बांध दी जाती किसी, अन्जान पल्लू से !
बता न पाती अपनी चाहत, बेजुबान बेटियां !!
कद्र उसके गुणों की, जमाने को कहां !
बनादी जाती हैं दहेज, का सामान बेटियां !!
जिस घर मे गयी, सदा उसी की हो गयी !
मां-बाप का घर कर, चली वीरान बेटियां !!
उस अंजान घर को भी, वो बना देती है स्वर्ग !
उस पर वार देती अपना, दिलो-जान बेटियां !!
कभी बहू, कभी पत्नी, कभी बन जाती है मां !
और खो देती है अपनी, सब पहचान बेटियां !!
मां बाप की यादों को भी, भुला न पाती है !
ससुराल में मायके का, रखती मान बेटियां !!
है वो भाग्यशाली घर, जहां पलती है बेटियां !
कल देखना बनेगी, राष्ट्र का सम्मान बेटियां !!
‘घनश्याम’ की अर्जी अगर, सुन रहे हो हे दाता !
अगले जन्म मोहे देना फिर, ये ही संतान बेटियां !!
मालिक का दिया हुआ, है वरदान बेटियां !
क्यों सह रही हैं फिर, भी अपमान बेटियां !!
बताये कोई बेटों से कहां हैं कम, फिर भी !
छटपटाती साबित होने, को इंसान बेटियां !!*
✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
( 7 मई 2018, बैंगलोर)