(शब्दार्थ:- ब्यौहार= व्यवहार, कुरळा रयी= चीख रही, खोटा=बुरे काम, किरसा= किसान, अपघात= आत्महत्या, माइत= मां बाप, काची कलियां= अबोध बच्चियां)
* धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
बाबा बण खोटा करै रोज मचावै हंच,
भोळी जनता ठग रिया रच नुंवा-नुवां प्रपंच !
धर्मीपण मैं आंधो हुग्यो नहीं समझै संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
डाक्टर तो भगवान कहिजता देता सही दवाई,
अब तो उल्टी छूरी काटै आं सूं भला कसाई !
रोगी नै कस्टमर समजै अस्पताळ व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
लोकतंत्र रो राज हुयो नित-नुवां राजा जामै,
रया रुखाळा लूट खजानों देखो सगळां सामै !
जनता नै खुद चूस रिया ऐ क्यां रा पालणहार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
बडै बजट सूं ठेकेदार पुळ ओर बांध बणावै,
अफसर नै कमीशन देवै कोरी रेत मिलावै !
अधबिच मैं टुट ज्याय मरणियां रा रुलज्या परवार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
बिजनेसमैन कमाई करता ‘आटो लूण समाई’,
अब तो पोवै निरै लूण री जनता री करड़ाई !
पांच बरस मैं चढज्या अरबां-खरबां मैं व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
लू ओर बर्फ मैं पहरो देवै सीमा पर जवान,
दाळ मिलै पाणी सी, बोल्यां VRS फरमान !
पेंशन हूगी बन्द जवानां री हुयो बुढ़ापो भार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
इण धरतीमां रा बेटा किरसा भरै देस रो पेट,
खाली खुदरो पेट रेवै पण नित उठ बोवै खेत !
मर्रया कर अपघात घाल गळ मैं करजै रो हार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
कोर्ट-कचेड़ी घणा होयग्या हाकिम जज-वकील,
तारीखां पर तारिख देवै पड़ी न्याय मैं ढील !
दादा री पोतां तक पेशी मेँ बिक ज्या घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
मेहनत कर मां-बाप पूत नै साहब-सेठ बणावै,
बण के साहब-सेठ पूत तो माइत नै भुल ज्यावै!
अंत बुढ़ापो नरक बणादे छुटवा दे घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
काची कळियां बाग री फूल-फळां रै बीच,
खुद कुकर्मी माळी ही मसळ रया है नीच !
चुप खड्यो ‘घनश्याम’ देख रयो मूरत ज्यूं संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!
✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(12 मई 2018, बैंग्लोर)