मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं, ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार-बार जिंदगी !!
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गर्भ में मां के तो थी, अंधेरा कुआं सी !
बाहर आया तो लगी, उजीयार जिंदगी !!
गोद में रहना तो बस, बन्धन सा लगा था !
चल पड़ा तो गिराती थी, बार-बार जिंदगी !!
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लोरी सुनने की उमर, जल्दी निकल गई !
थी स्कूल मे बस्ते का, लगी भार जिंदगी !!
हर साल अब चढ़ना था, इक नई सीढ़ी पर !
लेती थी परीक्षा ये, बार-बार जिंदगी !!
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टिफ्फिन, बस्ता, स्कूल-बस, और होमवर्क के !
बस घूमती रहती थी, चहूं ओर जिंदगी !!
मार्कशीट ग्रेडिंग के, जब फेर में पड़ कर !
ट्यूशन को हो गई थी, बस लाचार जिंदगी !!
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जब स्कूल से निकला, यकायक हो गया बड़ा !
अच्छी लगी तब कॉलेज, का द्वार जिंदगी !!
सपने बढ़े मां-बाप के, पॉकेट मनी बढ़ी !
कैंटीन में होने लगी, गुलजार जिंदगी !!
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स्मार्ट फोन भी नया, लेपटॉप भी मिला !
बाइक से बन गई, फर्राटेदार जिंदगी !!
जब दोस्त मिले नए-नए, माहौल भी नया !
दिखने लगी थी इक, नया संसार जिंदगी !!
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पर कैरियर का भी था, इक दबाव साथ मे !
अब दिखने लगी थी बड़ा, बाजार जिंदगी !!
बनूं डॉक्टर-अफसर या, जज वकील कोर्ट में !
या करादे कोई बड़ा, व्यापार जिंदगी !!
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सही मिली गाईडेंस, और हार्डवर्क किया !
तो रास्ते पे चढ़ गइ, आखिरकार जिंदगी !!
था तैरने को खुला, समंदर जो सामने !
पकड़ने लगी थी अब, यूं रफ्तार जिंदगी !!
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जीवन फिर भी अभी, तक कुछ अधूरा था !
तो शादी के लिए अब, थी तैयार जिंदगी !!
नई दुनिया नए रिश्ते, नया संसार इक बना !
लगने लगा बस बीवी, का प्यार जिंदगी !!
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प्यार के उपहार फिर, जो खिलने लगे फूल !
तो गूंज उठी बनके, फिर किलकार जिंदगी !!
देखकर बच्चों को, हूक मन मे एक उठी !
‘घनश्याम’ फिर दे बचपन, इक बार जिंदगी !!
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मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं, ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार बार जिंदगी !!
✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई
(18 Jan 2018)