एक चंदा नीलगगन में

एक चांद नीलगगन में, इक चांद मेरे आंगन में !
धवल चांदनी मेरे चांद की, छिटक रही जीवन मे !!

इक फूल खिला मधुवन में, इक फूल मेरे जीवन में !
भीनी खुशबू मेरे फूल की, महक रही तन-मन मे !!

इक कोयल कूके वन में, इक मेरे आंगन में !
मेरी कोकिला के मधु स्वर, गूंज रहे कर्णन में !!

एक दामिनी चमके नभ में, इक मेरे जीवन में !
नभ की दामिनी से डर, ये सिमट रही आंगन में !!

एक बदरी है नभ में, है इक बदरी जीवन में !
मेरी बदरी उमड़-घुमड़, बरसे मन-आंगन में !!

एक हिरनी दौड़े वन में, एक मेरे आंगन में !
मेरी हिरनी रही कुलांचे, मार मेरे जीवन मे !!

एक तितली उपवन में, एक मेरे जीवन में !
मेरी तितली फुदक रही, खुशियों के आंगन में !!

इक नाचे मयूरी वन में, इक मेरे जीवन में !
मेरी मयूरी झूम-झूम, नाच रही आंगन मे !!

इक इंद्रधनुष तना नभ में, इक मेरे आंगन में !
छटा मेरे इंद्रधनुष की, बिखर रही जीवन में !!

इक नदिया गिरी-गह्वर की, इक मेरे आंगन की !
मेरी नदिया सींच रही, वसुधा मेरे जीवन की !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई

(27जनवरी 2018)


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