काछ दृढ़ा कर बरसणा, मन चंगा मुख मिट्ठ। रण सूरा जग वल्लभा, सो रजपूतां दिट्ठ ।।
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राव बीकाजी
सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़। साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥
Continue Readingठिकाना चंगोई
ब्रज देशा, चन्दन वना, मेरु पहाडा मोड़ ! गरुड़ खगां, लंका गढां, राजकुलां राठौड़ !!
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