मेरे देश की धरती, . . . उगले (By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई) मेरे देश की धरती, . . . माल्या उगले, उगले नीरव मोदी, मेरे देश की धरती ! मेरे देश की धरती !! देश की धरती पर हम जब, स्वच्छता अभियान चलातेहैं! बैंकों का कर के साफ कैश ,…
Continue ReadingAuthor: rajvigarh
एक चंदा नीलगगन मे
एक चंदा नीलगगन मे (घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई) एक चंदा नीलगगन में, एक चांद मेरे आंगन में ! धवल चांदनी मेरे चांद की, छिटक रही जीवन मे !! एक फूल खिला मधुवन में, एक फूल मेरे जीवन में ! भीनी खुशबू मेरे फूल की, महक रही तन-मन मे !! एक कोयल…
Continue Readingआदमी-आदमी
आदमी-आदमी (By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई) लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा ! बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !! मार रहा, काट रहा, फटकार डांट रहा ! आपस मे बांट रहा, आदमी को आदमी !! लूट रहा, कूट रहा, तोड़ रहा, टूट रहा ! रोज कर शूट…
Continue Readingरानी पद्मिनी
रानी पद्मिनी पतिव्रता थी पद्मिनी, देवी दुर्गा रूप। वर पाया वीरांगना, रावल रतनसिंह भूप॥ खिलजी ने ख्याति सुनी, रीझा पद्मिनी रुप। घेरा गढ़ चित्तौड़ को, गर्ज उठे रजपूत॥ “दर्पण में छवि देख लूं” खिलजी का संदेश। “घेरा तोडूं दुर्ग का, जाऊं अपने देश॥” दर्पण देखी पद्मिनी, तन छाई मुर्छान। छल…
Continue Readingकविताएं
बंदे बेशरम : वन्दे मातरम् (By- घनश्यामसिंह राजवी) भारत देश महान, करे यहां बड़ी-2 सब बात जी ! अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !! बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !! चोर यहां के नेता सब, दल अलग-2 बस नाम के ! इक – दूजे को चोर…
Continue Readingकच्छवाहा वंश (शेखावत, नरुका, राजावत आदि)
गांव की सरकार
*गांव की सरकार* “”””””””””””””””””” (By- घनश्यामसिंह चंगोई) युवाशक्ति संकल्प ले, यह मिलकर अबकी बार ! आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !! न शिक्षा पर है ध्यान,चिकित्सा पर न नजर है! सबकी पैसे पर नजर, भर रहे अपना घर हैं ! बढ़ रही आगे दुनिया, गांव तो रहे…
Continue Readingजिंदगी
* जिंदगी * (By- घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई) मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी ! जी लो खुशी के पल हैं ये चार जिंदगी !! गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती ! फिर से न मिलेगी ये, बार-बार जिंदगी !! गर्भ में मां के तो थी, अंधेरा कुआं सी…
Continue Readingघनाक्षरी छंद
घनाक्षरी छंद *जन्माष्टमी* *भादो कृष्ण पक्ष अष्ठ, देवकी प्रसव कष्ट, कंस भय से त्रस्त, वसुदेव घबरात हैं ! कृपा हो जो ईष्ट की, हो पूर्ति अभीष्ट की, आशंका अनिष्ट की, बड़े ही अकुलात हैं ! सहस दीप्त कारागार, हुआ लुप्त अंधकार, भए सुप्त रखवार, सब होश खोय जात हैं !…
Continue Readingद्विअक्षरी छन्द
* द्विअक्षरी छन्द * (By – घनश्यामसिंह चंगोई) यह पूरा छंद सिर्फ दो अक्षर ‘क’ व ‘न’ का प्रयोग कर रचित किया गया है ! कनक का कन नीका, ना कन नीका कनक का ! कनक की नोक नीकी, कानन नीका कनक का ! कान में कनक नीका, कूक नीकी किंकिनी…
Continue Reading