नारी तू जगजननी है
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सुता भार्या भगिनी है, नारी तू नर की जननी है!
हर रूप तेरा वंदनीय है, नारी तू जगजननी है !!
सती है, सावित्री, सीता है, गंगा, गायत्री, गीता है !
दुर्गा है, काली, अम्बा है, उर्वशी, मेनका, रंभा है!
सरस्वती बन देती विद्यादान,मीरा बन करती विषपान!
राधा बन प्रीत निभाती है, गंगा बन मोक्ष दिलाती है!
नौ मास गर्भ में धारण कर,दुनिया मे जीव को लाती है!
रक्त से पोषित कर अपने, निर्जीव को जीव बनाती है!
फिर पालन पोषण करती है,धात्री बन दुग्ध पिलाती है!
गुरु बन जीना सिखलाती है,जीवन का पाठ पढ़ाती है!
भार्या बन जीवन में आती,जीवन बगिया को महकाती!
तज मात-पिता को आती है, पतिगृह को अपनाती है!
पति कुल की सेवा ध्येय एक, देह एक कर्तव्य अनेक !
दुःख सुख में साथ निभाती है, वंश की बेल बढ़ाती है !
भगिनी देती स्नेह अपार, इक धागेपर देती जीवन वार!
मां की सह लेती डांट स्वयं, भाई खातिर लड़ जाती है!
सुता रूप में जब आती, कुछ भी कहने को सकुचाती!
प्रेम से जो दें वो पाती, अधिकार कभी ना जतलाती!
हाड़ी रानी, लक्ष्मी बाई बन, कभी राष्ट्र धर्म निभाती है!
मदर टेरेसा सी ममता, पन्नाधाय सा त्याग दिखाती है!
‘घनश्याम’ नमन करता इनको, ये नारी जग जननी है!
सुता भार्या भगिनी है, नारी तू नर की जननी है !!
✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(महिला दिवस – 8 मार्च 2019)