गांव की पीड़ा

गांव की पीड़ा
(By- घनश्यामसिंह चंगोई)

चले शहर तुम पैसे खातिर, छोड़ आसरा मेरा!
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

शहर की चाह में तुझको दीखा, यहां भूख का साया !
चाह अमीरी की में मुझ को, असभ्य गंवार बताया !
अशिक्षित कह मेरे बच्चे, गए मोह तज मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

मेरे बच्चे मुझे छोड़ गए, सिसक सिसक मैं रोता था !
आस लिए नैनों में उनके, आन की बाट मैं जोता था!
नहीं रात भर सोता होता, उनकी आस सवेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

गए कमाने-खाने पर तुम, हुए वहां के छोड़ मुझे !
क्यों न मानूं मैं मेरी इस दुर्दशा का जिम्मेदार तुझे!
शहर गए अपने बच्चों से, यही प्रश्न है मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

सबकुछ शहर के हिस्से में है, फिर मेरा हक गया कहां !
शिक्षा चिकित्सा मंडी मार्किट, सुविधाएं क्यों नहीं यहां !
सारी कमाई शहर को देते, कब होगा हक मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

कोरोना के संकट में जब, शहर छोड़ कर सब भागे !
बस ट्रेन बन्द सड़क पर पैदल, बीवी पीछे खुद आगे!
जो कहते क्या रखा गांव में, क्यों मोह जागा मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

है उनको विश्वास अगर कि, गांव में जो पहुंचेंगे ठेठ !
बच जाएंगी जान वहां और, भर जाएगा सबका पेट !
विश्वास न तोडूंगा मेरे बच्चे, पेट भरूँगा तेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

आओ फिर चौपाल सजाओ, आकर सबका साथ निभाओ!
हल जोत कर अन्न उपजाओ, बैठ खेत में तेजा गाओ !
अपना जग का पेट भरो, है यहां अन्न घनेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

बाग खेत गुलजार करो फिर, नदी तलैया पोखर ताल !
बड़े बुजुर्गों का दुख बांटो, राम बनो या फिर गोपाल !
शहर की भागमभाग भूल, गांव में करो बसेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

मुझे भान है जो मेरे हैं वे , तो अवश्य ही आ जाएंगे !
खो गए जो शहरों की चमक में, वे वहीं बस जाएंगे !
होली दीवाली आ जाते, दिल ठंडा होता मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

चाहे समझो खुदगर्जी इसे , या समझो तुम मेरे उद्गार !
गांवका ढांचा पुनः बनाओ, मिले यहीं सबको रोजगार!
न पड़े भागना फिर कोई, कोरोना डाले डेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

पत्तल कुल्हड़ खानापीना, फ्रिज को छोड़ घड़ेका पानी!
मोची दर्जी मिलें कुम्हार से , पालें गाय करें बागवानी !
गोद मेरी में आजा खुश, होगा दिल तेरा मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

प्रकृति की गोद मे जीना, आओ तुमको सिखलाता हूं!
रोजी रोटी संस्कारी , शिक्षा से तुम को मिलवाता हूं !
चाह यही घनश्याम की, बीच प्रकृति करूं बसेरा !
जन्मा पला क ख ग सीखा, गांव यही वो मेंरा !!

चले शहर तुम पैसे खातिर, छोड़ आसरा मेरा!
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

✍️ *घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*
1 May 2020

 


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