क्षत्रिय धर्म
(By- घनश्यामसिंह चंगोई)
क्षत्रिय को धर्म सिखाते हो,
तूने क्षात्र-धर्म ना जाना है!
हर एक धर्म निभाया जब,
क्षत्रिय ने मन मे ठाना है !!
बन राम निभाई मर्यादा,
केशव बन कर्म सिखाया था!
बलि बनके वामन भिक्षु को,
अपना सर्वस्व लुटाया था !!
गो रक्षा हित, पाबू राठौड़,
जो आधे फेरे छोड़ चले !
राणा प्रताप ने कष्ट सहे,
*क्षत्रिय* कुल मान बढ़ाया था !!
क्षत्रिय सुत नृप विश्वामित्र,
राज तजा बने *ब्रह्मऋषि* !
स्वमंत्र बल से सदेह स्वर्ग,
त्रिशंकु को पहुंचाया था !!
इंद्र विरोध के कारण जब,
बीच अधर में लटक गया !
तब स्वयं तपोबल से अपने,
एक नया स्वर्ग बनाया था !!
ले हाथ तराजू *वैश्य* बना,
नृप शिवी क्षत्रिय जाया था!
जब धर्म परीक्षा लेने इंद्र ने,
बाज का रूप बनाया था !!
शरणागत चिड़िया की रक्षार्थ,
किंचित ना वो सकुचाया था!
इक पलड़े में चिड़िया दूजे में,
देह का मांस चढ़ाया था !!
वचन निभाने *शूद्र* बना जो,
हरिश्चंद्र वह सत्यवादी !
बाजार बीच खुद को बेचा,
ऋषि का भार चुकाया था !!
रानी बेच, पुत्र को बेचा,
रखा कलेजे पर पत्थर !
मरघट का चौकीदार बना,
किंचित भी ना सकुचाया था !!
है रक्त वही , है वंश वही,
‘घनश्याम’ जगत का रक्षक तू!
दूजों से लेने की चाह न कर,
तुझे दाता धर्म निभाना है !!
क्षत्रिय को धर्म सिखाते हो,
तूने क्षात्र-धर्म ना जाना है!
हर एक धर्म निभाया जब,
क्षत्रिय ने मन मे ठाना है !!
*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*
(दिनांक- 25 मई 2019)