आदमी-आदमी
(By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!
मार रहा, काट रहा, फटकार डांट रहा !
आपस मे बांट रहा, आदमी को आदमी !!
लूट रहा, कूट रहा, तोड़ रहा, टूट रहा !
रोज कर शूट रहा, आदमी को आदमी !!
राह जा रहा, आ रहा, कमा रहा, खा रहा !
वो भी नहीं सुहा रहा, आदमी को आदमी !!
झटक रहा, पटक रहा, पास ना फटक रहा !
दिल में खटक रहा, आदमी के आदमी !!
तोड़ रहा, मरोड़ रहा, रिश्ता नहीं जोड़ रहा !
रोज मुंह मोड़ रहा, आदमी से आदमी !!
बस झींक रहा छींक रहा, फालतू ही चीख रहा !
ना देख – देख सीख रहा, आदमी से आदमी !!
बन रहा, ठन रहा, स्वयं ही तन रहा !
समझ नहीं मन रहा, आदमी का आदमी !!
खट रहा, डट रहा, सब कर फटाफट रहा !
सीढी बना के चढ़ रहा, आदमी पर आदमी !!
उछल रहा, मचल रहा, नहीं बस संभल रहा !
दूजे को निगल रहा, आदमी को आदमी !!
झपट रहा, डपट रहा, माल पर चिपट रहा !
रोज कर कपट रहा, आदमी से आदमी !!
घाल रहा, निकाल रहा, खुद का तो संभाल रहा !
कर दूजे का पार माल रहा, आदमी का आदमी !!
जोड़ रहा, तोड़ रहा, नहीं कसर छोड़ रहा !
बांह भी मरोड़ रहा, आदमी की आदमी !!
न सुन रहा, न गुन रहा, नशे में हो टुन रहा !
बिन बात धुन रहा, आदमी को आदमी !!
हट रहा, पलट रहा, पास नही सट रहा !
‘घनश्याम’ कट रहा, आदमी से आदमी !!
लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!
✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
. (बैंगलोर, 24 अप्रेल 2018)