* जिंदगी *
(By- घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई)
मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार-बार जिंदगी !!
गर्भ में मां के तो थी, अंधेरा कुआं सी !
बाहर आया तो लगी, उजियार जिंदगी !!
गोद में रहना तो बस, बन्धन सा लगा था !
चल पड़ा तो गिराती थी, बार-बार जिंदगी !!
लोरी सुनने की उम्र, जल्दी निकल गई !
थी स्कूल मे बस्ते का, लगी भार जिंदगी !!
हर साल अब चढ़ना था, इक नई सीढ़ी पर !
लेती थी परीक्षा अब , बार – बार जिंदगी !!
टिफिन, बस्ता, स्कूल-बस, और होमवर्क के!
बस घूमती रहती थी, चहूं ओर जिंदगी !!
मार्कशीट ग्रेडिंग के, जब फेर में पड़ कर !
ट्यूशन को हो गई थी, बस लाचार जिंदगी !!
जो स्कूल से निकला, यकायक हो गया बड़ा!
अच्छी लगी तब कॉलेज, का द्वार जिंदगी !!
सपने बढ़े मां – बाप के, पॉकेट मनी बढ़ी !
कैंटीन में होने लगी , गुलजार जिंदगी !!
स्मार्ट फोन भी नया, लेपटॉप भी मिला !
बाइक से बन गई, फर्राटेदार जिंदगी !!
जब दोस्त मिले नए-2, माहौल भी नया !
दिखने लगी थी इक, नया संसार जिंदगी !!
पर कैरियर का भी था, इक दबाव साथ मे !
अब दिखने लगी थी बड़ा, बाजार जिंदगी !!
डॉक्टर बनूं अफसर या, जज वकील कोर्ट में!
या करादे फिर कोई , बड़ा व्यापार जिंदगी !!
सही मिली गाईडेंस, और हार्डवर्क किया !
तो रास्ते पे चढ़ गई, आखिरकार जिंदगी !!
था तैरने को खुला, समंदर जो सामने !
पकड़ने लगी थी अब, यूं रफ्तार जिंदगी !!
जीवन फिर भी अभी, तक कुछ अधूरा था !
तो शादी के लिए थी, अब तैयार जिंदगी !!
नई दुनिया नए रिश्ते, नया संसार इक बना !
लगने लगा बस बीवी, का प्यार जिंदगी !!
प्यार के उपहार फिर, जो खिलने लगे फूल !
तो गूंज उठी बनके, फिर किलकार जिंदगी !!
देख कर बच्चों को, हूक मन मे एक उठी !
‘घनश्याम’ फिर दे बचपन, इक बार जिंदगी!!
मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं, ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार बार जिंदगी !!
✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई
(18 Jan 2018)