तोमर वंश की उत्पत्ति
तोमर (तंवर वंश)
(By - घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
उत्पत्ति
तोमर या तंवर उत्तर-पश्चिम भारत का एक राजपूत वंश है। इतिहासकारों ने तोमर वंश की उत्पत्ति चन्द्रवंश से मानी है। इसी चन्द्रवंश में हस्तिनापुर के राजा शान्तनु उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के वंशज पाण्डु पुत्र अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित हुए और परिक्षित के वंश में ही तोमर हुए। इस प्रकार भारतीय इतिहास परम्परा में तोमरों का सम्बंध महाभारत काल के द्धापर युग से चन्द्रवंशी शान्तनु और पाण्डव के कुल से जोड़ा गया हें। क्षत्रिय वंश भास्कर, पृथ्वीराज रासो, बीकानेर वंशावली में भी यह वंश चन्द्रवंशी लिखा हुआ है। यही नहीं कर्नल जेम्स टॉड जैसे विदेशी इतिहासकार भी तंवर वंश को पांडव वंश ही मानते हैं। पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास हिमालय के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु 10 वीं शताब्दी तक ये करनाल तक पहुँच चुके थे। थानेश्वर में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।
नामकरण --
तंवर अथवा तोमर वंश के नामकरण की कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि राजा तुंगपाल के नाम पर तंवर वंश का नाम पड़ा। पर इतिहासकार ईश्वर सिंह मडाड अपनी राजपूत वंशावली में लिखते हैं, "पांडव वंशी अर्जुन ने नागवंशी क्षत्रियो को अपना दुश्मन बना लिया था। नागवंशी क्षत्रियो ने पांड्वो को मारने का प्रण ले लिया था, पर पांडवो के राजवैध धन्वन्तरी के होते हुए वे पांड्वो का कुछ न बिगाड़ पाए ! अतः उन्होंने धन्वन्तरी को मार डाला ! इसके बाद अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मार डाला ! परीक्षित के बाद उसका पुत्र जन्मेजय राजा बना ! अपने पिता का बदला लेने के लिए जन्मेजय ने नागवंश के नो कुल समाप्त कर दिए ! नागवंश को समाप्त होता देख उनके गुरु आस्तिक जो की जत्कारू के पुत्र थे, जन्मेजय के दरबार मैं गए व सुझाव दिया की किसी वंश को समूल नष्ट नहीं किया जाना चाहिए व सुझाव दिया की इस हेतु आप यज्ञ करे ! महाराज जन्मेजय के पुरोहित कवष के पुत्र तुर इस यज्ञ के अध्यक्ष बने ! इस यज्ञ में जन्मेजय के पुत्र, पोत्र अदि दीक्षित हुए ! क्योकि इन सभी को तुर ने दीक्षित किया था, इस कारण ये पांडव तुर, तोंर व बाद में तांवर, तंवर या तोमर कहलाने लगे ! ऋषि तुर द्वारा इस यज्ञ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।” शिलालेखों और तत्कालीन संस्कृत ग्रंथों में इन्हें तोमर लिखा गया, जबकि हिंदी ग्रंथो में तोमरो को तूवर, तंवर, तोवर, कहा गया है। तथा कुछ फ़ारसी ग्रंथो में इनको तूनर या तौर भी लिखा गया है। पश्चिम भारत के जैन विद्वानों ने इनको तुंग भी लिखा है।
इतिहास --
बौद्धकाल, मौर्यकाल से गुप्तकाल तक इस वंश के इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। समुद्रगुप्त के शिलालेख से पता चलता है कि उन्होंने मध्य और पश्चिम भारत की यौधेय और अर्जुनायन क्षत्रियों को अपने अधीन किया था। यौधेय वंश युधिष्ठर का वंश माना जा सकता है और इसके वंशज आज भी चन्द्रवंशी जोहिया (यौधेय का अपभ्रंश) राजपूत कहलाते हैं जो अब अधिकतर मुसलमान हो गए हैं। इन्ही के आसपास रहने वाले अर्जुनायन को अर्जुन का वंशज माना जा सकता है और ये उसी क्षेत्रो में पाए जाते थे, जहाँ आज भी तंवरावाटी और तंवरघार है। यानि पांडव वंश ही उस समय तक अर्जुनायन के नाम से जाना जाता था और कुछ समय बाद वही वंश अपने पुरोहित ऋषि तुर द्वारा यज्ञ में दीक्षित होने के कारण तुंवर, तंवर, तूर या तोमर के नाम से जाना गया।
चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासों में राजपूतों के जिन 36 कुलों की कल्पना की गई थी, उनमें तोमरों को दिल्ली के राजा के रूप में स्थान दिया गया था। विक्रम संवत 1688 (सन् 1631 ई0) के रोहिताश्वगढ़ के मित्रसेन के शिलालेख में तोमरों को पाण्डव वंशी तथा सोमवंशी (चंद्रवंशी) कहा गया है। मित्रसेन स्वयं तोमर था ओर ग्वालियर की तोमर राजवंश शाखा का था। खड्गराय को तोमर राजाओं का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है। शाहजहां के राज्यकाल में उसने गोपाचल आख्यान लिखा था। उसने तोमरो की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए लिखा था --
अब सुनियौ तोंबर उत्पत्ति, छत्रिन में सो उत्तम जाति।
कछ कछु कथा हेतु श्रुत भयो, सोमवंश अब वरन न लयो।।
पंडवंस जग तेज निदान, महारज बंसी बरवान।
जो कछ सोमवंश नृप कहे, ते हरिवंस कथा में रहे।।
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
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तोमर वंश के गोत्र-प्रवर
तोमर वंश के गोत्र-प्रवर (वंश चिह्न)
- वंश – चंद्रवंशी
- गोत्र -- अत्रि / कश्यप
- प्रवर -- गागर्य, कौस्तुभ, माडषय
- वेद -- यजुर्वेद
- शाखा – मधुनेक,वाजस्नेयी
- इष्ट देव -- श्रीकृष्ण
- कुल देवता -- शिवजी
- कुलदेवी -- योगेश्वरी माता, चिल्लाय माता
- शिखा – दाहिनी
- भेरू – गौरा
- शस्त्र – खड़ग
- नदी -- गोमती
- ध्वज – पंचरगा
- पुरोहित – भिवाल
- बारहठ – आपत केदार वंशी
- ढोली – रोहतान
- स्थान – पाटा मानस सरोवर
- कुल वॄक्ष – गुल्लर
- प्रणाम – जय गोपाल
- निशान – कपि (चील), चन्द्रमा
- ढोल – भंवर
- नगारा – रणजीत/जय, विजय, अजय
- घोड़ा – श्वते
- निकास – हस्तिनापुर
- प्रमुख गदी – इन्द्रप्रस्थ,दिल्ली
- रंग – हरा
- नाई – क़ाला
- चमार – भारीवाल
- शंख – पिचारक
- नदी – सरस्वति, तुंगभद्रा
- सवारी – रथ
- गुरु – सूर्य
- उपाधि – जावला नरेश. दिल्लीपति
- सिंहासन -- चंदवा
- मंत्र -- गायत्री मंत्र,
- तिलक -- रामनंदी
- माला -- रुद्राक्ष
- मणि – पारसमणि
- हीरा - मदनायक
- यंत्र – श्रीयंत्र
- पर्वत -- द्रोणांचल
- पक्षी -- गरुड़
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
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दिल्ली का तंवर राज्य
दिल्ली का तंवर राज्य
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
चंद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो में अनंगपाल प्रथम को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ‘‘दिल्ली’’ या ‘‘ढिल्लिका’’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ई. निर्धारित किया गया। दिल्ली में तोमरों के शासन की सबसे मजबूत पुष्टि पेहवा से प्राप्त शिलालेख से होती है। महेंद्रसिंह तंवर खेतासर के अनुसार, “उत्तरी भारत की बदलती परिस्थितियों में दिल्ली के तख्त पर पृथ्वीमल बैठे। इस समय तक पाल राजा धर्मपाल अपनी स्थिति मजबूत कर चूका था। उसने लगभग 800 ई. के आस पास उत्तरी भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अपनी विजय पताका फहरायी थी। उसने भोज, मत्स्य, मद्र, कुरु, यदु, यवन, अवन्ती, गांधार और कीर नामक प्रदेशों को जीता।” (तंवर राजवंश का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास - महेंद्र सिंह खेतासर)
मुहणोत नैणसी की ख्यात के अनुसार, “बंगाल के राजा धर्मपाल ने दिल्ली के राजा पृथ्वीमल को पराजित किया तथा उसे अपना सामन्त बना लिया। “दिल्ली की स्थापना से लेकर गंगदेव (773-794) तक दिल्ली स्वतंत्र रह सकी और उसके पश्चात बंगाल के पालों का अधिपत्य हो गया।’’(दिवेदी, हरिहर निवास )! पृथ्वी मल के बाद जयदेव, राजा नरपाल एवं राजा उदयराज लगभग 40 सालों तक पालों के सामंत रहे। बाद में पाल वंश के द्वारा बोद्ध धर्म अपनाने के कारण मौर्य वंश की तरह पाल वंश का भी युद्ध से विरक्ति एवं अहिंसा की बातें करने के कारण पतन हो गया और तोमर फिर से स्वतंत्र शासक बन गये। आप्रच्छ्देव (875-897) दिल्ली के स्वतंत्र राजा थे। लेकिन इनके बाद के तोमर शासकों को इतिहासकार प्रतिहारों का सामंत मानते हैं। जो प्रमाण मिले हैं वो इसी तरफ संकेत देते हैं। वो चाहे 882 का पेहवा से प्राप्त शिलालेख हो या पृथुदक से प्राप्त गोग्ग तोमर का शिलालेख, जो यहां प्रतिहार महेंद्र के शासन का उल्लेख करता है।
हालांकि हरिहर द्विवेदी तथा खेतासर ने प्रयास किया है इन बातों को काटने का। तोमर इतिहास पर शोध करने वाले पंडित हरिहर द्विवेदी ने अन्य इतिहासकारों की राय के विपरीत ये साबित करने का प्रयास किया है कि ना केवल दिल्ली के तोमर स्वतंत्र शासक थे, वरन मोहम्मद गौरी का युद्ध दिल्ली के शासक चाहड़पाल तोमर से हुआ था। जिसने पृथ्वीराज को निमंत्रण देकर युद्ध में बुलाया और अपने दल का नेता चुना। पंडित हरिहर द्विवेदी विग्रहराज चौहान के द्वारा दिल्ली हस्तगत करने को भी नकारते हैं। गोविन्द प्रसाद उपाध्याय भी लिखते हैं “विग्रहराज चतुर्थ (1153-63) असाधारण क्षमता का कुशल शासक था। उसने गुजरात के कुमारपाल को हराकर अपने पिता का बदला लिया। इस शक्तिशाली शासक ने दिल्ली पर पुनः अधिकार करके हांसी को भी जीत लिया। तुर्कों के विरुद्ध भी उसने अनेक युद्ध किये और उन्हें आगे बढ़ने से रोकने में समर्थ रहा। उसके साम्राज्य में पंजाब, राजपुताना तथा वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश भाग शामिल थे। उसने अपनी योग्यता एवं कार्यकुशलता से चौहानों को उत्तरी भारत की महत्वपूर्ण शक्तियों में स्थापित कर दिया था।”
जबकि पंडित विश्वेश्वरनाथ अपनी पुस्तक “भारत के प्राचीन राजवंश” में विग्रहराज (विसलदेव) चौहान चतुर्थ के बारे में लिखते हैं। “यह अर्नोंराज का पुत्र और जगदेव का छोटा भाई था तथा अपने बड़े भाई के जीते जी उससे राज्य छीनकर गद्दी पर बैठा। यह बड़ा प्रतापी, वीर और विद्वान राजा था। बिजोलिया के लेख से ज्ञात होता है कि इसने नाडोल और पाली को नष्ट किया तथा जालोर और दिल्ली पर विजय प्राप्त की।" देहली की प्रसिद्द फिरोजशाह की लाट पर वि.सं. 1220 (1163 ई.) वैशाखशुक्ल 15 का इसका लेख खुदा है। उसमंे लिखा है कि- “इसने तीर्थयात्रा के प्रसंग से विंध्यांचल से हिमालय तक के देशों को विजयकर उनसे कर वसूल किया और आर्यावर्त से मुसलमानों को भागकर एक बार फिर भारत को आर्यभूमि बना दिया। इसने मुसलमानों को तक पर निकाल देने की अपने उत्तराधिकारियों को वसीयत की थी।” यह लेख पूर्वोक्त फिरोजशाह की लाट पर अशोक की धर्मआज्ञा के नीचे खुदा हुआ है।
'मुँहनोत नेणसी री ख्यात' के अनुसार भी विग्रहराज चतुर्थ ने दिल्ली को जीता था। “विसलदेव चौथा, चौहानों में यह बड़ा प्रतापी पर विद्वान हुआ। सं. 1208 वि. में तंवरों की दिल्ली का राज लिया और मुसलमानों से कई लडाइयां लड़ कर उन्हें देश से निकाल दिया। दिल्ली की लाट पर इसका एक लेख सं. 1220 वि. वैशाख सुदी 15 का है।“ रायबहादुर महामहोपाध्याय डॉ. गोरीशंकर हीराचंद ओझा ने विग्रहराज चतुर्थ द्वारा दिल्ली जीतने का संवत भी 1208 (सन 1151 ई.) निर्धारत किया है। कुल मिलाकर सभी प्रमुख इतिहासकार इस बात पर एक मत हैं कि चौहान तंवर संघर्ष काफी पुराना था, जिसे अंततः चौहान विग्रहराज चतुर्थ ने तंवरों को हराकर समाप्त किया।
दिल्ली की स्थापना और अनंगपाल तोमर
अनंगपाल प्रथम का असली नाम विल्हण देव (बीलनदेव) था। उसे राणा जाजू या ‘जाऊल’ भी कहा जाता था। इतिहासकार का मत है कि कुरुक्षेत्र इस समय तक किसी भी राज्य के अंतर्गत नहीं आता था। इसलिए उसे अनंग प्रदेश कहा जाता था। इस अनंग प्रदेश पर अधिकार कर राज्य स्थापना के कारण ही उसका नाम ‘अनंगपाल’ पड़ा। कुछ इतिहासकार का मानना है कि अनंगपल नाम नहीं बल्कि विरुद है, जिसे उनके बाद के राजाओं ने भी धारण किया (जैसे कि अनगपाल तृतीय का भी असली नाम मदनपाल था, लेकिन वह भी अनंगपाल नाम से जाना गया) ! अनंगपाल प्रथम ने अनेक भवनों एवं महलों का निर्माण किया। महेंद्रसिंह खेतासर अपनी पुस्तक “तंवर (तोमर) राजवंश का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास’’ में लिखते हैं- “अनंगपाल के समय में दिल्ली में अनैक निर्माण कार्य करवाए गए होंगे, जिनके अवशेष आज दिल्ली में खोजना असंभव हैं। लेकिन कुछ आधारों पर उनकी कल्पना को साकार किया जा सकता है। पेहवा के शिलालेख से अनंगपाल के समय हुये निर्माण के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त होती है।“
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि दिल्ली की संस्थापना दिल्ली के प्रथम शासक विल्हण देव (अनंगपाल प्रथम) ने 736 ई. में की थी। कुछ इतिहासकार अन्य तिथि भी निर्धारित करते हैं, लेकिन अधिकांश इतिहासकार 736 ई. में दिल्ली, ढिल्ली या दिल्लिका की स्थापना अनंगपाल के द्वारा किया जाने पर सहमत हैं। अबुल फजल ने दिल्ली तोमर राज्य की स्थापना का वर्ष बल्लभी संवत के अनुसार 416 दिया है जो ई. 736 होता है। जोगीदास बारहट प्रकाशित तंवर वंश का संक्षिप्त इतिहास के अनुसार भी 736 ई. ही मानी है। कनिंघम भी 736 ई. को ही मान्यता देता है और राजस्थानी शोध संस्थान चौपासिनी से प्राप्त दिल्ली के तोमरों की वंशावली भी 736 ई. ही को प्रमाणिक मानती है। सैयद अहमद और बीकानेर के कागजात व ग्वालियर के भाट की पोथी से भी ज्ञात होता है कि अनंगपाल प्रथम ने 736 ई. में दिल्ली की स्थापना कर तोमर राजवंश की नींव रखी तथा 754 ई. तक अनंगपाल का शासन रहा।
अनंगपाल तंवर के 20 पुत्र हुए, जिन्होंने अपने पिता की सहायता से अनेक नगरों को बसाया। अनंगपाल के बाद कई तोमर शासक हुये। जिन्होंने दिल्ली पर शासन किया। इनमंे प्रमुख हैं राजा वासुदेव, गंगदेव, पृथ्वीमल, जयदेव, राजा नरपाल, उदयराज, आप्रछ्देव, कुमारपाल देव, अनंगपाल द्वितीय, तेजपाल प्रथम, महिपाल विजयपाल आदि। इन लोगों ने कई सौ वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया। यधपि तोमरों ने दिल्ली पर लम्बे समय तक शासन किया लेकिन उनकी स्थिति कभी भी साफ नहीं रही। इतिहास में कभी उन्हें प्रतिहारों का, तो कभी पालों का, तो कभी गहड़वालों का, तो कभी चौहानों का सामंत माना गया। बीच बीच में शायद यदा कदा उनका स्वतंत्र शासन भी रहा है। लेकिन निश्चिन्त रूप से या तो तोमर वंश कभी भी राष्ट्रीय परिपेक्ष में बहुत शक्तिशाली नहीं रहा या कीन्हीं भी अज्ञात कारणों की वजह से इतिहास में अपना अस्तित्व साबित नहीं कर पाया। फलस्वरूप इतिहासकार बहुधा तोमर इतिहास को लेकर उदासीन ही बने रहे।
प्रचलित इतिहास के अनुसार 736 ई. में अनंगपाल तोमर ने अनंग प्रदेश की नींव डाली और ढिल्ली या ढिल्लीका उसकी राजधानी थी। दिल्ली के तोमर शासको के अधीन दिल्ली के अलावा वर्तमान पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी था। इनके छोटे राज्य पिहोवा, सूरजकुंड, हांसी, थानेश्वर में होने के भी अभिलेखों में उल्लेख मिलते हैं। इस वंश ने बड़ी वीरता के साथ तुर्कों का सामना किया और कई सदी तक उन्हें अपने क्षेत्र में अतिक्रमण करने नहीं दिया। अनंगपाल तथा उसके बाद के कुछ वंशजों ने जरुर स्वतंत्र शासन किया, लेकिन जल्द ही पाल वंश (गौड़) एवं बाद में शक्तिशाली प्रतिहार वंश ने इन्हें अपना सामन्त बना लिया।
दिल्ली के तंवर राजा -
1.विल्हण देव उर्फ़ अनगपाल तोमर प्रथम (736-754 ई) -- दिल्ली के संस्थापक राजा थे जिनके अनेक नाम मिलते हैं। जैसे बीलनदेव, जाऊल इत्यादि।
2.राजा वासुदेव (754-773)
3.राजा गंगदेव (773-794)
4.राजा पृथ्वीमल (794-814) -- बंगाल के राजा धर्म पाल के साथ युद्ध किया।
5.जयदेव (814-834)
6.राजा नरपाल (834-849)
7.राजा उदयपाल (849-875)
8.राजा आपृच्छदेव (875-897)
9.राजा पीपलराजदेव (897-919)
10.राज रघुपाल (919-940)
11.राजा तिल्हणपाल (940-961)
12.राजा गोपाल देव (961-979) -- इनके समय साम्भर के राजा सिहराज और लवणखेडा के तोमर सामंत सलवण के मध्य युद्ध हुआ जिसमें सलवण मारा गया तथा उसके पश्चात दिल्ली के राजा गोपाल देव ने सिंहराज पर आक्रमण करके उन्हें युद्ध में मारा।
12.सुलक्षणपाल तोमर (979-1005) -- महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया।
13.जयपालदेव (1005-1021) -- महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया, महमूद ने थानेश्वसर ओर मथुरा को लूटा।
14.कुमारपाल (1021-1051) 1021-1051) -- मसूद के साथ युद्ध किया और 1038 में हाँसी के गढ का पतन हुआ, पाच वर्ष बाद कुमारपाल ने हासी, थानेश्वसर के साथ साथ कांगडा भी जीत लिया।
16.अनगपाल द्वितीय (1051-1081) -- लालकोट का निर्माण करवाया और लोह स्तंभ की स्थापना की, अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मन्दिर बनवाये थे। दिल्ली सम्राट अनगपाल द्वितीय ने तुर्क इबराहीम को पराजित किया।
17.तेजपाल प्रथम (1081-1105) --
18.महिपाल(1105-1130) -- महिलापुर बसाया और शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
19.विजयपाल (1130-1151) -- मथुरा में केशवदेव का मंदिर।
20.मदनपाल उर्फ़ अनंगपाल तृतीय (1151-1167) -- मदनपाल ने बीसलदेव चौहान के साथ मिलकर तुर्कों के हमलो के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें मार भगाया। मदनपाल तोमर ने अपनी दो पुत्रियों की शादी एक कन्नौज के जयचंद के पिता विजयपाल के साथ और दूसरी कमला देवी का विवाह पृथ्वीराज के पिता सोमेशवर चौहान के साथ की, जिससे पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ। (कुछ कुछ इतिहासकार जहां अनंगपाल तृतीय के बाद दिल्ली पर चौहानों का अधिकार हो जाना बताते हैं। वहीं अन्य अनंगपाल तृतीय के बाद भी तीन अन्य तंवर राजाओं के नाम लिखते हैं )
21.पृथ्वीराज तोमर (1167-1189) -- अजमेर के राजा सोमेश्वर और पृथ्वीराज चव्हाण इनके समकालीन थे।
22.चाहाडपाल उर्फ़ गोविंदराज (1189-1192) -- पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गोरी के साथ युद्ध किया, तराईन दुसरे युद्ध मे मारा गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार तराईन के पहले युद्ध में मौहम्मद गौरी और गोविन्दराज तोमर का आमना सामना हुआ था, जिसमे दोनों घायल हुए थे और गौरी भाग रहा था। भागते हुए गौरी को धीरसिंह पुंडीर ने पकडकर बंदी बना लिया था। जिसे उदारता दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान ने छोड़ दिया। हालाँकि गौरी के मुस्लिम इतिहासकार इस घटना को छिपाते हैं।
23.तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई) -- दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा , जिन्होंने स्वतन्त्र 15 दिन तक शासन किया, फिर कुतुबुद्दीन (गौरी का सूबेदार) ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। क्योंकि कुछ इतिहासकार जहां अनंगपाल तृतीय के बाद भी तीन अन्य तंवर राजाओं के नाम लिखते हैं वहीं अन्य अनंगपाल तृतीय के बाद दिल्ली पर चौहानों का अधिकार हो जाना बताते हैं। हालाँकि इसमें भी दो मत हैं, पृथ्वीराज रासो में जहां अनंगपाल तृतीय के बाद उसके दोहिते पृथ्वीराज चौहान को राज्य मिलना बताया जाता है, वहीं अधिकांश इतिहासकारों के मतानुसार अनंगपाल तृतीय से अजमेर के चौहान विग्रहराज चतुर्थ द्वारा दिल्ली जीतने का उल्लेख है। संभव है कि अजमेर के विग्रहराज चतुर्थ द्वारा दिल्ली जीतने के बाद उनके सामंत के रूप में तंवर दिल्ली के शासक रहे हों, इसी कारण गौरी के आक्रमण के समय विग्रहराज के वंशज अजमेर के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने दिल्ली के चाहड़पाल तंवर के साथ मिलकर गौरी का मुकाबला किया।
किंतु विक्रम की 10वीं और 11वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र, चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था। तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् 1038 ईo (संo 1095) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए बल्कि काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।
तोमरों की इस विजय के बाद तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् 1189 (सन् 1132) में रचित श्रीधर कवि के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) ने सन् 1151 ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ।
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ऐसाह गढ़ी व ग्वालियर का तोमर राज्य
ऐसाह गढ़ी, ग्वालियर व रायसेन का तोमर राज्य
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
दिल्ली छूटने के बाद वीर सिंह तंवर ने चम्बल घाटी के ऐसाह गढ़ी में अपना राज स्थापित किया जो इससे पहले भी अर्जुनायन तंवर वंश के समय से उनके अधिकार में था। बाद में इस वंश ने ग्वालियर पर भी अधिकार कर मध्य भारत में एक बड़े राज्य की स्थापना की। यह शाखा ग्वालियर स्थापना के कारण ग्वालेरा कहलाती है। माना जाता है कि ग्वालियर का विश्वप्रसिद्ध किला भी तोमर शासको ने बनवाया था। यह क्षेत्र आज भी तंवरघार कहा जाता है और इस क्षेत्र में तोमर राजपूतो के 1400 गाँव कहे जाते हैं। वीरसिंह के बाद उद्दरण, वीरम, गणपति, डूंगरसिंह, कीर्तिसिंह, कल्याणमल और राजा मानसिंह ग्वालियर के शासक हुए।
ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर युद्ध हुए। उनकी नो रानियाँ राजपूत थी, पर एक दीनहींन गुज्जर जाति की लडकी मृगनयनी पर मुग्ध होकर उससे भी विवाह कर लिया। जिसे नीची जाति की मानकर रानियों ने महल में स्थान देने से मना कर दिया, जिसके कारण मानसिंह ने छोटी जाति की होते हुए भी मृगनयनी गूजरी के लिए अलग से ग्वालियर में गूजरी महल बनवाया। इस गूजरी रानी पर राजपूत राजा मानसिंह इतने आसक्त थे कि गूजरी महल तक जाने के लिए उन्होंने एक सुरंग भी बनवाई थी, जो अभी भी मौजूद है पर इसे अब बंद कर दिया गया है। मानसिंह के बाद विक्रमादित्य राजा हुए, उन्होंने पानीपत की लड़ाई में अपना बलिदान दिया। उनके बाद रामशाह तोमर राजा हुए, उनका राज्य 1567 ईस्वी में अकबर ने जीत लिया। इसके बाद राजा रामशाह तोमर ने मुगलों से कोई संधि नहीं की और अपने परिवार के साथ महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के पास आ गए। हल्दीघाटी के युद्ध में राजा रामशाह तोमर ने अपने पुत्र शालिवाहन तोमर के साथ वीरता का असाधारण प्रदर्शन कर अपने परिवारजनों समेत महान बलिदान दिया। उनके बलिदान को आज भी मेवाड़ राजपरिवार द्वारा आदरपूर्वक याद किया जाता है।
मालवा में रायसेन में भी तंवर राजपूतो का शासन था। यहाँ के शासक सिलहदी उर्फ़ शिलादित्य तंवर राणा सांगा के दामाद थे और खानवा के युद्ध में राणा सांगा की और से लडे थे। सिल्ह्दी पर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने 1532 इसवी में हमला किया, इस हमले में सिलहदी तंवर की पत्नी जो राणा सांगा की पुत्री थी उन्होंने 700 राजपूतानियो और अपने दो छोटे बच्चों के साथ जौहर किया और सिल्हदी तंवर अपने भाई के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में रायसेन को पूरनमल को दे दिया गया। कुछ वर्षो बाद 1543 इसवी में शेरशाह सूरी ने इसके राज्य पर हमला किया और पूरणमल की रानियों ने जौहर कर लिया और पूरणमल मारे गये। इस प्रकार इस राज्य की समाप्ति हुई।
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
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पठानिया वंश व पठानकोट राज्य
पठानिया वंश व पठानकोट राज्य
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
पठानिया वंश
श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाडी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 270-271 व 373 के अनुसार पठानिया राजपूत तंवर वंश की शाखा है, नूरपुर के तंवर वंशी राजा बासु (1580-1613) ने अपने पुरोहित व्यास के साथ महाराणा मेवाड़ अमर सिंह से मुलाकात की थी,इसी व्यास का वंशज सुखानंद सम्वत 1941 वि० को उदयपुर आया था,बासु के समय के ताम्र पत्र के आधार पर सुखानंद के रिकॉर्ड में लिखा था कि "दिल्ली का राज छूटने के बाद राजा दिलीप के पुत्र जैतमल ने नूरपुर को अपनी राजधानी बनाया. (वीर विनोदभाग-2 पृष्ठ संख्या 228)
निष्कर्ष--- सभी वंशावलियों के रिकार्ड्स से भी यह वंश तंवर वंश की शाखा ही प्रमाणित होता है,,पंजाब में पठानकोट में रहने के कारण तंवर वंश की यह शाखा पठानिया के नाम से प्रसिद्ध हुई. यह वंश ईस्वी 1849 तक विदेशी आक्रमणकारियों के विरुध अपने संघर्षों के लिए जाना जाता है आक्रमणकारी चाहे मुसलमान हो या अंग्रेज। इस वंश के राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए विख्यात हैं.यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने सेना में 3 महावीर चक्र प्राप्त किये.
पठानकोट एवं नूरपुर राज्य का इतिहास
श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाडी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 270-271 व 373 के अनुसार पठानिया राजपूत तंवर वंश की शाखा है . पठानिया राजपूत तंवर राजा अनंगपाल तंवर के अनुज राजा जैतपाल के वंशज है जिन्होंने उत्तर भारत में धमेरी नाम के राज्य की स्थापना की और पठानकोट नामक शहर बसाया। पंजाब में पठानकोट में रहने के कारण तंवर वंश की यह शाखा पठानिया के नाम से प्रसिद्ध हुई. धमेरी राज्य का नाम बाद में जा कर नूरपुर पड़ा। नूरपुर के तंवर वंशी राजा बासु (1580-1613) ने अपने पुरोहित व्यास के साथ महाराणा मेवाड़ अमर सिंह से मुलाकात की थी,इसी व्यास का वंशज सुखानंद सम्वत 1941 वि० को उदयपुर आया था,बासु के समय के ताम्र पत्र के आधार पर सुखानंद के रिकॉर्ड में लिखा था कि "दिल्ली का राज छूटने के बाद राजा दिलीप के पुत्र जैतमल ने नूरपुर को अपनी राजधानी बनाया. (वीर विनोदभाग-2 पृष्ठ संख्या 228)
इस राज्य कि स्थापना 11 वी सदी में (1095 ईस्वी) में दिल्ली के राजा अनंगपाल तंवर द्वित्य के छोटे भाई जैतपाल द्वारा की गई थी, जिन्होंने खुद को पठानकोट में स्थापित किया,उन्होंने यहाँ गजनवी काल से स्थापित मुस्लिम गवर्नर कुजबक खान को पराजित कर उसे मार भगाया और पठानकोट किला और राज्य पर अधिकार जमाया, इसके बाद जैतपाल तंवर और उनके वंशज पठानिया राजपूत कहलाने लगे,उनके बाद क्रमश: खेत्रपाल, सुखीनपाल, जगतपाल, रामपाल, गोपाल, अर्जुनपाल, वर्शपाल, जतनपाल, विदुरथपाल, किरतपाल, काखोपाल पठानकोट के राजा हुए . उनके बाद की वंशावली निम्नवत है------
राजा जसपाल (1313-1353) - इनके नो पुत्र हुए जिनसे अलग-अलग शाखाएँ चल.
राजा कैलाश पाल (1353-1397)
राजा नागपाल (1397-1438)
राजा पृथीपाल (1438-1473)
राजा भीलपाल (1473-1513)
राजा बख्त्मल (1513-1558) ये अकबर के विरुद्ध शेरशाह सूरी के पुत्र सिकन्दर सूर के विरुद्ध लडे और 1558 ईस्वी में इनकी मृत्यु हुई.
राजा पहाड़ी मल (1558-1580)
राजा बासु देव(1580/1613) -- राजा बासु देव के समय उनसे पठानकोट का परगना छिन गया और राजधानी धमेरी स्थान्तरित हो गई, किन्तु बाद में राजा बासु ने अपनी स्थिति को मजबूत किया और अकबर के समय उन्हें 1500 का मंसब मिला जो जहाँगीर के समय बढ़कर 3500 हो गया. हालाँकि राजा बासु पर जहाँगीर को पूरा विश्वास नहीं था जिसका जिक्र तुजुक ए जहाँगीरी में मिलता है, राजा बासु ने नूरपुर धामेरी में बड़ा दुर्ग बनवाया जो आज भी स्थित है, शाहबाद के थाने में राजा बासु की ईस्वी 1613 में मृत्यु हो गई.
राजा सूरजमल(1613-1618) -- राजा बासु ने अपने बड़े पुत्र जगत सिंह को राजा बनाया पर जहाँगीर ने उसके छोटे पुत्र सूरजमल को धमेरी का राजा बनाकर तीन हजार जात और दो हजार सवार का मनसबदार बना दिया,उनकी ईस्वी 1618 में चंबा में मृत्यु हो गई. मियां माधो सिंह को जहागीर ने राजा का ख़िताब दिया उनकी ईस्वी 1623 में मृत्यु हो गई.
राजा जगत सिंह (1618-1646) -- शाहजहाँ के समय राजा जगत सिंह फिर से धामेरी के राजा बन गये. इन्हें पहले 300 का मनसब मिला बाद में बढ़कर 1000 आदमी और 500 घोड़े का हो गया, ईस्वी 1626 में यह बढ़कर 3000 आदमी और 2 हजार घोड़ो का हो गया, ईस्वी 1641 में यह बढ़कर 5 हजार का मनसब हो गया. ईस्वी 1622 में धमेरी का नाम मल्लिका नूरजहाँ के नाम पर बदलकर नूरपुर हो गया, नूरजहाँ यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से बहुत प्रभावित थी. शाहजहाँ ने इन्हें बंगश का मुख्याधिकारी बना दिया, ईस्वी 1640 में जगत सिंह ने शाहजहाँ के खिलाफ विद्रोह किया, शाहजहाँ ने इनके विरुद्ध सेना भेजी, जिसके बाद कड़े संघर्ष के बाद उन्होंने ईस्वी 1642 में आत्मसमर्पण किया और जहाँगीर के दरबार में पेश हुए, उनका मनसब बहाल कर दिया गया. ईस्वी 1646 में पेशावर में उनकी मृत्यु हो गई.
राजा राजरूप सिंह(1646–1661) -- राजा जगतसिंह के पुत्र राजरूप सिंह को शाहजहाँ ने कांगड़ा घाटी की फौजदारी दी थी. वे दो हजार जात और दो हजार सवार के मनसबदार थे, बाद में इसे बढ़कर 3500 कर दिया गया,ईस्वी 1661 में इन्हें गजनी का थानेदार भी बनाया गया. ईस्वी 1661 में इनकी मृत्यु हो गई.
राजा मान्धाता सिंह(1661–1700)
राजा दयाद्त्त सिंह (1700–1735)
राजा फ़तेह सिंह (1735–1770)
राजा पृथ्वीसिंह (1770–1805)
राजा वीरसिंह (1805–1846) -- नूरपुर के अंतिम शासक राजा, इनके समय में सिख महाराजा रणजीत सिंह ने इस राज्य पर हमला किया जिसका वीरसिंह ने वीरतापूर्वक प्रतिरोध किया किन्तु शत्रु की कई गुनी सेना होने के कारण सिखों ने इनका काफी क्षेत्र छीन लिया, इसके बाद इनके वंशजो पर काफी कम जागीर रह गई. ईस्वी 1846 में एक युद्ध में इनका निधन हो गया.
राजा जसवंत सिंह(1846–1898)--- इनके समय में अंग्रेजो ने इस रियासत को अपने क्षेत्र में मिला लिया और विक्रम संवत 1914 में किले को तोड़ कर इसका आधा भाग जसवंत सिंह को दे दिया,अंग्रेजो ने इन्हें मुवाअजे के रूप में बड़ी सम्पत्ति दी. इन्ही के समय वीर वजीर राम सिंह पठानिया ने अंग्रेजो के विरुद्ध बगावत कर उनके दांत खट्टे कर दिए थे.
राजा गगन सिंह(1898–1952)---इनका जन्म ईस्वी 1882 में हुआ था. मार्च 1909 को वायसरॉय ने इन्हें राजा का खिताब दिया, सन 1952 ईस्वी में इनका निधन हो गया.
राजा देवेन्द्र सिंह(1952-1960)
इनके अतिरिक्त राजा भाऊ सिंह को सन 1650 में शाहपुर स्टेट मिली पर उन्होंने सन 1686 ईस्वी में इस्लाम धर्म गृहण कर लिया, उनके वंशज आज मुस्लिम पठानिया राजपूत हैं.
इस प्रकार हम देखते हैं कि पंजाब , हिमाचल,जम्मू के पठानिया राजपूत चंद्रवंशी तंवर राजपूतो की ही शाखा हैं और इन्होने लम्बे समय तक पठानकोट, नूरपुर (धमेरी) आदि राज्यों पर राज किया है ! इनमे वजीर राम सिंह पठानिया बहुत प्रसिद्ध यौद्धा हुए हैं, जिन्होंने अंग्रेजो को नाको चने चबवा दिए थे। यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने 3 महावीर चक्र प्राप्त किये। आज पठानिया राजपूत उत्तर पंजाब व हिमाचल में फैले हुए है। सेना में आज भी बड़ी संख्या में पठानिया राजपूत मिलते हैं जिनमे बड़े बड़े आर्मी ऑफिसर भी शामिल हैं !!
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
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तोमर राजाओं का तुर्कों के साथ संघर्ष
तोमर राजाओं का तुर्कों के साथ संघर्ष
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
मध्य एशिया से तुर्क नामक एक नई शक्ति आई जिसने कुछ समय पूर्व ही बौद्ध धर्म छोडकर इस्लाम धर्म ग्रहण किया था ! अल्पतगीन नाम के तुर्क सरदार ने गजनी में राज्य स्थापित किया, फिर उसके दामाद सुबुक्तगीन ने काबुल और जाबुल के हिन्दू शाही जंजुआ राजपूत राजा जयपाल पर हमला किया ! जंजुआ राजपूत वंश भी तोमर वंश की शाखा है और अब अधिकतर पाकिस्तान के पंजाब में मिलते हैं और अब मुस्लिम हैं ! कुछ थोड़े से हिन्दू जंजुआ राजपूत भारतीय पंजाब में भी मिलते हैं। उस समय अधिकांश अफगानिस्तान (उपगणस्तान),और समूचे पंजाब पर जंजुआ शाही राजपूतो का शासन था। सुबुक्तगीन के बाद उसके पुत्र महमूद गजनवी ने इस्लाम के प्रचार और धन लूटने के उद्देश्य से भारत पर सन 1000 ईस्वी से लेकर 1026 ईस्वी तक कुल 17 हमले किये, जिनमे पंजाब का शाही जंजुआ राजपूत राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया और उसने सोमनाथ मन्दिर गुजरात, कन्नौज, मथुरा, कालिंजर, नगरकोट(कटोच), थानेश्वर तक हमले किये और लाखो हिन्दुओं की हत्याएं,बलात धर्मपरिवर्तन,लूटपाट हुई ! ऐसे में दिल्ली के तंवर/तोमर राजपूत वंश ने अन्य राजपूतो के साथ मिलकर इसका सामना करने का निश्चय किया।
दिल्लीपति राजा जयपालदेव तोमर(1005-1021)—– गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।महमूद गजनवी ने जब सुना कि थानेश्वर में बहुत से हिन्दू मंदिर हैं और उनमे खूब सारा सोना है तो उन्हें लूटने की लालसा लिए उसने थानेश्वर की और कूच किया,थानेश्वर के मंदिरों की रक्षा के लिए दिल्ली के राजा जयपालदेव तोमर ने उससे कड़ा संघर्ष किया,किन्तु दुश्मन की अधिक संख्या होने के कारण उसकी हार हुई,तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली।और महमूद ने थानेश्वर में जमकर रक्तपात और लूटपाट की.
दिल्लीपति राजा कुमार देव तोमर(1021-1051)—- सन् 1038 ईo (संo १०९५) महमूद के भानजे मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। और थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे।किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। गजनी के सुल्तान को मार भगाने वाले कुमारपाल तोमर ने दुसरे राजपूत राजाओं के साथ मिलकर हांसी और आसपास से मुसलमानों को मार भगाया. अब भारत के वीरो ने आगे बढकर पहाड़ो में स्थित कांगड़ा का किला जा घेरा जो तुर्कों के कब्जे में चला गया था,चार माह के घेरे के बाद नगरकोट(कांगड़ा)का किला जिसे भीमनगर भी कहा जाता है को राजपूत वीरो ने तुर्कों से मुक्त करा लिया और वहां पुन:मंदिरों की स्थापना की.
नगरकोट कांगड़ा का द्वितीय घेरा(1051 ईस्वी)—– गजनी के सुल्तान अब्दुलरशीद ने पंजाब के सूबेदार हाजिब को कांगड़ा का किला दोबारा जीतने का निर्देश दिया,मुसलमानों ने दुर्ग का घेरा डाला और छठे दिन दुर्ग की दीवार टूटी,विकट युद्ध हुआ और इतिहासकार हरिहर दिवेदी के अनुसार कुमारपाल देव तोमर बहादुरी से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ.अब रावी नदी गजनी और भारत के मध्य की सीमा बन गई. मुस्लिम इतिहासकार बैहाकी के अनुसार “राजपूतो ने इस युद्ध में प्राणप्रण से युद्ध किया,यह युद्ध उनकी वीरता के अनुरूप था,अंत में पांच सुरंग लगाकर किले की दीवारों को गिराया गया,जिसके बाद हुए युद्ध में तुर्कों की जीत हुई और उनका किले पर अधिकार हो गया.”
लाहौर का घेरा—— इसके बाद कुमारपाल देव तोमर की सेना ने लाहौर का घेरा डाल दिया,वो भारत से तुर्कों को पूरी तरह बाहर निकालने के लिए कटिबद्ध था.इतिहासकार गांगुली का अनुमान है कि इस अभियान में राजा भोज परमार,कर्ण कलचुरी,राजा अनहिल चौहान ने भी कुमारपाल तोमर की सहायता की थी.किन्तु गजनी से अतिरिक्त सेना आ जाने के कारण यह घेरा सफल नहीं रहा. इस प्रकार हम देखते हैं कि दिल्लीपति कुमारपाल देव तोमर एक महान नायक था उसकी सेना ने न केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।
दिल्लीपती राजाअनंगपाल-II ( 1051-1081 )—– उनके समय तुर्क इबराहीम ने हमला किया जिसमें अनगपाल द्वितीय खुद युद्ध लड़ने गये,,,, युद्ध में एक समय आया कि तुर्क इबराहीम ओर अनगपाल कि आमना सामना हो गया। अनंगपाल ने अपनी तलवार से इबराहीम की गर्दन ऊडा दि थी। एक राजा द्वारा किसी तुर्क बादशाह की युद्ध में गर्दन उडाना भी एक महान उपलब्धि है तभी तो अनंगपाल की तलवार पर कई कहावत प्रचलित हैं।
जहिं असिवर तोडिय रिउ कवालु, णरणाहु पसिद्धउ अणंगवालु ||
वलभर कम्पाविउ णायरायु, माणिणियण मणसंजनीय ||
तुर्क हमलावर मौहम्मद गौरी के विरुद्ध तराइन के युद्ध में तोमर राजपूतो की वीरता—
दिल्लीपति राजा चाहाडपाल/गोविंदराज तोमर (1189-1192)—– गोविन्दराज तोमर पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर तराइन के दोनों युद्धों में लड़ें, पृथ्वीराज रासो के अनुसार तराईन के पहले युद्ध में मौहम्मद गौरी और गोविन्दराज तोमर का आमना सामना हुआ था,जिसमे दोनों घायल हुए थे और गौरी हारकर भाग रहा था। भागते हुए गौरी को धीरसिंह पुंडीर ने पकडकर बंदी बना लिया था। जिसे उदारता दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान ने छोड़ दिया। हालाँकि गौरी के मुस्लिम इतिहासकार इस घटना को छिपाते हैं।
पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गोरी के साथ युद्ध किया, तराईन दुसरे युद्ध मे मारे गए.
तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई)——- दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा,जिन्होंने स्वतन्त्र 15 दिन तक शासन किया,इन्ही के पास पृथ्वीराज चौहान की रानी(पुंडीर राजा चन्द्र पुंडीर की पुत्री) से उत्पन्न पुत्र रैणसी उर्फ़ रणजीत सिंह था,तेजपाल ने बची हुई सेना की मदद से गौरी का सामना करने की गोपनीय रणनीति बनाई,युद्ध से बची हुई कुछ सेना भी उसके पास आ गई थी. मगर तुर्कों को इसका पता चल गया और कुतुबुद्दीन ने दिल्ली पर आक्रमण कर हमेशा के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया।इस हमले में रैणसी मारे गए.
इसके बाद भी हांसी में और हरियाणा में अचल ब्रह्म के नेत्रत्व में तुर्कों से युद्ध किया गया,इस युद्ध में मुस्लिम इतिहासकार हसन निजामी किसी जाटवान नाम के व्यक्ति का उल्लेख करता है जिसे आजकल हरियाणा के जाट बताते हैं जबकि वो राजपूत थे और संभवत इस क्षेत्र में आज भी पाए जाने वाले तंवर/तोमर राजपूतो की जाटू शाखा से थे,
इस प्रकार हम देखते हैं कि दिल्ली के तोमर राजवंश ने तुर्कों के विरुद्ध बार बार युद्ध करके महान बलिदान दिए किन्तु खेद का विषय है कि संभवत: कोई तोमर राजपूत भी दिल्लीपति कुमारपाल देव तोमर जैसे वीर नायक के बारे में नहीं जानता होगा जिसने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए अपने राज्य से आगे बढकर कांगड़ा,लाहौर तक जाकर तुर्कों को मार लगाई और अपना जीवन धर्मरक्षा के लिए न्योछावर कर दिया.
इस प्रकार हम देखते हैं कि चन्द्रवंशी पांडव वंश तोमर/तंवर राजपूतो का इतिहास बहुत शानदार रहा है ! ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर युद्ध हुए। राजा रामशाह तोमर ने अपने पुत्र शालिवाहन तोमर के साथ हल्दीघाटी में राणा प्रताप की सेना में वीरता का असाधारण प्रदर्शन कर अपने परिवारजनों समेत महान बलिदान दिया। वर्तमान में भी तोमर राजपूत राजनीति, सेना, प्रशासन में अपना दबदबा कायम किये हुए है। पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह भिवानी हरियाणा के तंवर राजपूत हैं और आज केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। मध्य प्रदेश के नरेंद्र सिंह तोमर भी केंद्र सरकार में मंत्री हैं। प्रसिद्ध एथलीट और बाद में मशहूर बागी पान सिंह तोमर के बारे में सभी जानते ही हैं। स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल भी तोमर राजपूत थे। तोमर क्षत्रिय राजपूतो के बारे में कहा गया है -
"अर्जुन के सुत सो अभिमन्यु नाम उदार.
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार."
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तंवर वंश की शाखायें व मुख्य ठिकाने
तंवर वंश की शाखायें व मुख्य ठिकाने
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
तंवर वंश की शाखाएँ------
- जावला तंवर -- राजा अनंगपाल प्रथम को ‘जाउल’ भी कहते हैं, उसी से उनके वंशज जावला तंवर कहलाए ! तंवरों की अधिकाँश शाखाएं इसी की उपशाखाएँ हैं !
- जाटू तंवर -- तंवराटी पाटन के राव जयरथ जी के पुत्र राव जाटू जी (जटमाल जी) के वंशज ! मुख्यतः हरियाणा (भिवानी, हिसार, महेंद्रगढ़) में हैं, कहीं-2 राजस्थान में भी हैं। भिवानी हरियाणा में 1440 गाँव की रियासत थी।
- कलिया तंवर -- पाटन के राव जयरथ जी के पुत्र राव कालोजी - इनके वंशज, हिम्मतासर, सरसुवास (डूंगरगढ़ बीकानेर) में हैं।
- रघु (राघो) तंवर -- पाटन के राव जयरथ जी के पुत्र राव राघोजी के वंशज, हरियाणा में रतेरा और खनक में हैं।
- जयरावता तंवर -- पाटन के राव जयरथ जी के पुत्र राव जयरावत जी के वंशज, भैरू का बांस और अहरोद में ।
- सतरावत तंवर -- पाटन के राव जयरथ जी के पुत्र राव सत्रावत जी के वंशज, पेटवाड़ (हिसार) !
- बत्तीसी के तँवर -- पाटन के राव बहादुर सिंह जी के 32 पुत्रों को 32 गाँव दिये गये जिसको बत्तीसी बोलते हैं !
- बाईसी के तंवर/ किलोडजी के तंवर -- पाटन के राव कंवलजी के पुत्र किलोडजी के वंशज। तंवराटी में इनके 22 गाँव थे, जिसके कारण इन्हें बाईसी के तंवर भी कहा जाता है।
- चौबीसी के तंवर/कर्णोजी के तंवर -- पाटन के राव कमलजी के पुत्र पजानजी के वंशज कर्णोजी तंवर हुए, जिनके वंशज "कर्णोजी के तंवर" कहलाते हैं। तंवराटी में इनके 24 गाँव थे, जिसके कारण इन्हें "चौबीसी के तंवर" भी कहते हैं !
- ऊदोजी के तंवर -- पाटन के राणा कंवल जी के पुत्र राव ऊदोजी के वंशज, तंवराटी में कई गांव हैं !
- आसलजी के तंवर -- पाटन के राणा कंवल जी के पुत्र राणा आसलजी के वंशज ! तंवराटी में कई गांव हैं, पाटन ठिकाना इनका ही है !
- परसराम जी के तंवर -- पाटन राव बीकोजी के पुत्र परसरामजी के वंशज, तंवराटी में कई गांव हैं !
- बोराणा तंवर -- निकास गदबोर (राजसमन्द) से, मारवाड़ व मेवाड़ में कई गांव हैं !
- देवत तंवर -- निकास देवीकोट, बाड़मेर व जैसलमेर में हैं !
- सेड़ा तंवर --
- धनु तंवर -- जैसलमेर में हैं !
- रघु तंवर -- रघु तंवर जाटू तंवर के भाई माने जाते है और भिवानी के आस पास आज बसे हुए है।
- ग्वेलेरा -- ग्वालियर के राजा मानसिंह तंवर के वंशज,चम्बल क्षेत्र में काफी गांव हैं ! बीकानेर व जोधपुर रियासतों में भी कई बड़े ठिकाने थे !
- बेरुआर -- यूपी बिहार सीमा पर !
- बिलदारिया -- कानपूर व उन्नाव के पास !
- इन्दोरिया -- मथुरा, बुलन्दशहर, आगरा में मिलते हैं।
- सोमाल -- मेरठ, मुजफरनगर।
- जंघारा तंवर -- जंघारा तंवरों की वंशावली अंगपाल के पोत्र राव जगपाल से होती है। यूपी के अलीगढ, बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर आदि जिलो में मिलते हैं। ये बहुत वीर यौद्धा माने जाते हैं। इन्होने रुहेले पठानों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया और अहिरो को भगाकर अपना राज स्थापित किया।
- लडूवा/इन्दा तंवर -- यह खाप आज के मध्य प्रदेश के ग्वालियर के आस पास के इलाके में बसी हुई है।
- खाती तंवर -- इनका निकास आगरा मुरेना के तोमरधार से माना गया है। आज यह शाख गढ़वाल में बस्ती है।
- कोड्यां तंवर -- अनंगपाल के पुत्र पर ही इस खाप का नाम पड़ा। आज राजस्थान के सीकर जिले में डाबला के आस पास इनके गाँव पड़ते है।
- निहाल तंवर -- ये भी दिल्ली पति अनंगपाल उर्फ़ जावल के वंश से है आज मध्यप्रदेश में पाए जाते है।
- सेलेरिया तंवर -- ये भी दिल्ली पति जावल के वंश से है। इन्हे सुनियार भी कहा जाता है ये मध्य प्रदेश के विदिशा में बस्ते है।
- तिलोता तंवर -- बिहार के आरा शाहबाद भोजपुर और यूपी के झाँसी जालौन जिले में निवास करते है।
- कटियार तंवर -- धर्मपुर राज्य जिला हरदोई उत्तर प्रदेश कटियार तंवर राजपूतों का है।
- द्वार तंवर -- यु पी के जालौन झाँसी व हमीरपुर जिलों में पाए जाते है
- जरोलिया तंवर -- यु पी के बुलंद शहर के आस पास के तंवर जरोलिया कह लाते है।कुछ जगह इन्हें गौड़ वंश की शाखा भी लिखा है।
- अन्य तंवर शाखाये -- रैक्वाल तिलोता किसनातिल चंदेरिया रिटालिया मोहाल जोधाण अनवार बिलोड़िया अंगडिया मगरोठिया पन्ना बोधयाणा कोढयाना बेबत भैपा तुनिहान आदि !
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- पठानिया वंश -- पठानिया वंश भी पांडव वंश ही माना जाता है, इसका प्रसिद्ध राज्य नूरपुर है। इसमें वजीर राम सिंह पठानिया बहुत प्रसिद्ध यौद्धा हुए हैं, जिन्होंने अंग्रेजो को नाको चने चबवा दिए थे।
- जनवार वंश -- पूर्वी उत्तर प्रदेश का जनवार राजपूत वंश भी पांडववंशी जन्मेजय का वंशज माना जाता है। इस वंश की बलरामपुर समेत कई बड़ी स्टेट पूर्वी यूपी में हैं।
- जंजुआ -- जंजुआ राजपूत भी पांडव वंशी कहे जाते हैं। जंजुआ वंश ही वह शाही वंश था जिसमे जयपाल, आनंदपाल जैसे वीर हुए, जिन्होंने तुर्क महमूद गजनवी का मुकाबला बड़ी वीरता से किया था। पाकिस्तान में मुस्लिम जंजुआ राजपूत बड़े वीर होते हैं और पाकिस्तान की सेना में इनकी बडी संख्या में भर्ती होती है।
- जर्राल वंश -- पाकिस्तान का जर्राल वंश भी खुद को पांडव वंशी मानता है .
- तावडे -- मराठो में भी एक वंश तंवरवंशी है जो तावरे या तावडे कहलाता है। महादजी सिंधिया का एक सेनापति फाल्किया खुद को तंवर वंशी मानता था।
जाट, गूजर और अहीर में तोमर गोत्र --
कुछ तोमर राजपूत अवनत होकर या तोमर राजपूतो के दूसरी जाती की स्त्रियों से सम्बन्ध होने से तोमर वंश जाट, गूजर और अहीर जैसी जातियो में भी चला गया। जाटों में कई गोत्र है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है। ये लोग पहले तोमर या तंवर उपनाम नहीँ लगाते थे लेकिन इनमे से कई गोत्र अब तोमर या तंवर लगाने लगे है। उत्तर प्रदेश के बड़ौत क्षेत्र के सलखलेन् जाट भी अपने को किसी सलखलेन् का वंशज बताते है जिसे ये अनंगपाल तोमर का धेवता बताते है और इस आधार पर अपने को तोमर बताने लगे है। गूँजरो में भी तोमर राजपूतो के अवशेष मिलते है। खटाना गूजर अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है। ग्वालियर के पास तोंगर गूजर मिलते है जो ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर की गूजरी रानी मृगनयनी के वंशज है जिन्हें गूजरी माँ की औलाद होने के कारण राजपूतों ने स्वीकार नहीँ किया। दक्षिणी दिल्ली में भी तँवर गूजरों के गाँव मिलते है। मुस्लिम शाशनकाल में जब तोमर राजपूत दिल्ली से निष्काषित होकर बाकी जगहों पर राज करने चले गए तो उनमे से कुछ ने गूजर में शादी ब्याह कर मुस्लिम शासकों के अधीन रहना स्वीकार किया।इसके अलावा सहारनपुर में छुटकन गुर्जर भी खुद को तंवर वंश से निकला मानते हैं और करनाल,पानीपत ,सोहना के पास भी कुछ गुज्जर इसी तरह तंवर सरनेम लिखने लगे हैं। हरयाणा के अहिरो में भी दयार गोत्र मिलती है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है।
तंवरावाटी और अन्य तंवर ठिकाने-
देहली में तोमरो के पतन के बाद तोमर राजपूत विभिन्न दिशाओ में फ़ैल गए। एक शाखा ने उत्तरी राजस्थान के पाटन में जाकर अपना राज स्थापित किया था। ये अब 'तँवरवाटी' (तोराटी) कहलाता है और वहाँ तँवरों के ठिकाने हैं --
- तँवरवाटी में मुख्य ठिकाना पाटण के अलावा ठिकाना मावंडा, टोडा, खेतासर, मंढोली जागीर भी है।
- जयपुर राज्य में खातीपुरा, डालनिया, छिंछास (सीकर) !
- मेवाड़ के सलुम्बर में भी तंवर राजपूतो के कई ठिकाने हैं जिनमे बोरज एक ठिकाना है।
- कोटा राज्य में खेरली, गोपालपुरा व् श्रीनाल।
- बीकानेर में लखासर, सांवतसर, दाउदसर, ऊँचाईड़ा ठिकाना थे।
- जोधपुर में केलवा, मुकंदगढ़ भी तंवर राजपूतो के ठिकाने थे।
- धौलपुर में कायस्थपाड़ा तंवर राजपूतो का ठिकाना है।
- जैसलमेर के पोखरण में भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं। बाबा रामदेव तंवर वंश से ही थे, जो बहुत बड़े संत माने जाते हैं,आज भी वो पीर के रूप में पूजे जाते हैं।
- हिमाचल प्रदेश में बेजा ठिकाना और कोटि जेलदारी थी।
तोमर/तंवर राजपूतो की वर्तमान स्थिति
चम्बल क्षेत्र में ही तोमर राजपूतो के 1400 गाँव हैं। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिलखुआ के पास तोमरो के 84 गाँव हैं, मेरठ में गढ़ रोड पर 12 गाँव जिनमे सिसोली और बढ्ला बड़े गाँव हैं, बुलन्दशहर में 24 गाँव, खुर्जा के पास 5 गाँव तोमर राजपूतो के हैं। हरियाणा में भिवानी में 84 गाँव जिनमे बापोड़ा प्रमुख है, कुरुक्षेत्र में 12 गाँव, गढ़मुक्तेश्वर में 42 गाँव हैं जिनमे भदस्याना और भैना प्रसिद्ध हैं। मेवात के नूह के पास 24 गाँव हैं जिनमे बिघवाली प्रमुख है। अगर इनकी सभी प्रदेशो और पाकिस्तान में हर शाखाओ की संख्या जोड़ दी जाये तो इनके कुल गाँव की संख्या कम से कम 6000 होगी।
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(नोट- वेबसाईट का updation जारी है, अपने सुझाव व संशोधन whatsapp no. 9460000581 पर भेज सकते हैं) .
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तंवराटी के तंवर (बत्तीसी, बाईसी, चौबीसी)
तंवराटी के तंवर (बत्तीसी, बाईसी, चौबीसी, उदोजीके, आसलजीके)
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई )
बत्तीसी के तँवर
पाटन के राव बहादुर सिंह जी के 32 पुत्रों को 32 गाँव दिये गये जिसको बत्तीसी बोलते हैं, जो निम्न प्रकार है--
पृथ्वीराज को "पाटन" गाँव
रणसी और भोनजी को "डोकन" गाँव
सोढजी को "जीलो" गाँव
भोमा, सुरजन और धामदेव को "माँवडा" गाँव
आरोडजी और केलूधीरजी को "भादवाडी" गाँव
धीरसिंह को "बेलू" गाँव
सीहोजी को "गाँवडी" गाँव
झुझा को "भुदोली" गाँव
धीरसिंह को "टोडा, गणेश्वर एवम कोण्डला" गाँव
धागलजी को "चीपलाटा एवम घाटा" गाँव
मेढराज जी को "मेढ व बैराठ" गाँव
अखेराज को "जखाडा एवम् खिरोड़ी " गाँव
आशादिप* को "नीमोद" गाँव,,,,,
नानगदास को "नानगवास" गाँव
मेलराज को "इमलोहा" गाँव
अंजन को "अजमेरी व रायपुर जागीर" गाँव,,,,
गोविंद जी को "मौखता" गाँव
पीथोजी और भैरूजी को "प्रीतमपुरी" गाँव
भीखमसिंह को "बुखारा" गाँव
तेजसिंह को "कुण्डाली/इंडाली" गाँव,,,
दूदाजी को "सीरोही" गाँव
झाडसी को "झाडली" गाँव
गजसिह को "खोरोटी" गाँव
हालो को "चुडला" गाँव
दरजन व बालोजी को "माण्डोली" गाँव मिले
आसादिनजी को "हाथीदेह" गाँव मिले।
बत्तीसी के अन्य ठिकाने-
गणैश्वर नाला- राव रायसलजी ने बसाया।
भीतरली गांवड़ी- राव थालोजी ने बसाया।
इमलोटा- राव पुरणमलजी के पुत्र राव अडहरजी को मिला।
गगताने- राव पुरणमलजी के पुत्र राव खेत को मिला।
कालुखोर- राव पुरणमलजी के पुत्रों राव नोलजी और राव सागरजी का मिला।
कुंडाला- राव पुरणमलजी के पुत्र राव धीरदेहजी को मिला।
सांथल- राव लुणकरण जी के पुत्र राव सांथलजी को मिला।
ढाणी रावता- राव बिगमजी और राव पीपोजी को मिला।
बायल- राव बायलजी को मिला।
पाटन के राव कंवल जी के पांच पुत्र हुए। 1. राव आसलजी के वंशज आसलजी के तंवर 2. राव ऊदोजी से ऊदोजीके तंवर 3. किलोड़जी से किलोड़जीके तँवर (बाईसी के तँवर) 4. पजानजी के वंशज कर्णोजीके तंवर हुए (चौबीसी के तंवर) कहलाए।
आसलजीके तँवर -
पाटन के राणा कंवल जी के पुत्र राणा आसलजी के वंशज आसलजी के तंवर कहलाते हैं। पाटन के राव भी आसलजी(आसोजी) की खाप के ही हैं।
आसलजी की खांप के बडे ठिकाने-
पाटन - पाटन राव
टोडा- पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर चतूरभुज जी को 12 गांव के साथ टोडा की जागीर मिली।
जीलो- पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर पुरणमलजी को 12 गांव के साथ जीलो की जागीर मिली।
इमलोहा- पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर जयदेव सिंह को 7 गांव के साथ इमलोहा कि जागीर मिली।
डोकन- पाटन राव आसलजी के पुत्रों (राव रणमल और राव धगारहे) को मिला।
रायपुर-पाटन - पाटन राव केसरी के कंवर जुझार सिंह को रायपुर कि जागीर संवत् 1730(1673 ई.) में मिली।
किशोरपुरा-(3 गांव और 13 ढाणी के ठाकुर), राव फतेहसिंह पाटन के दुसरे पुत्र ठाकुर पृथ्वीसिंह ने किशोरपुरा सन् 1688ई.(वि.स.1745) में बसाया, इनके चार पुत्र हुए-(1)ठा.बाघसिंह-पहला पाना (2)ठा.खडगसिंह-दुसरा पाना (3)ठा.दौलतसिंह और (4)ठा.करमसेन
सिहोड-पाटन राव बक्शीरामजी के पुत्र कंवर रणजीतसिंह तंवर को सिहोड की जांगीर मिली, इन्ही के वंशज राव उदयसिंह जी पाटन राव मुकुंद सिंह जी के गोद गये थे।
कचरेडा-राव फतेहसिंह पाटन के तीसरे पुत्र ठा.स्वरुपसिंह के वंशजो को कचरेडा मिला, इनके 2 गांव हैं।
रायलो पगनवास- पाटन राव आसलजी के पुत्रों(राव मोकल और राव जामोजी) को मिला।
नयाराणा - पाटन राव कर्पुरजी के पुत्र राव ऊत्तोजी को मिला।
हासमपुर- पाटन राव कर्पुरजी के पुत्रों राव भोजजी,राव अखोजी, राव चांदजी और राव होमोजी को मिला, इस गांव में परसराम जी के तंवर भी है।
जाटवास-दोलतपुरा - पाटन राव कर्पुरजी के पुत्र राव महेशदासजी को मिला।
मण्डा- टोडा ठाकुर तेजसिंह जी के पुत्र हरवल्लभ सिंह को मण्डा की जागीर मिली।
किशनपुरा- टोडा ठाकुर तेजसिंह जी के पुत्र हरिकिशन सिंह को किशनपुरा की जागीर मिली।
छेतराम का पलासवाला- टोडा ठाकुर तेजसिंह के पुत्र हरछेतराम सिंह को पलासवाल मिला।
दरीबा[हिम्मतसिंह का दरीबा]- टोडा से कल्याणदास जी के पुत्र हिम्मत सिंह को दरीबा कि जागीर मिली।
छारावली - टोडा से कल्याणदास जी के पुत्र कुशाल सिंह को छारावली मिला।
कंवर का नागल- पाटन राव केसरी सिंह के पुत्रों को मिला।
डाबला
कोला की नांगल
आसोजी की खांप के अन्य ठिकाने -
जयराम सिंह का टोडा, मण्डाका, रावतानी, जाटाला, बरियाली, दुबडा, रामचन्द्र सिंह का टोडा, उपलावाद, बिन्दाला, चान्दोली, तेलीवाला, रामल्यास, , टोडा साहबसिह का, दीपावास, बूजा, लुहारावास, दयाल की नागल, बिहारीदास की ढाणी, नाथा की नागल, बिहारीपुर, झालरा, श्यामपुरा, राम सिंह की ढाणी और चिमन सिंह की ढाणी।
ऊदोजीके तंवर --
पाटन के राणा कंवल जी के पुत्र राव ऊदोजी के वंशज "ऊदोजी के तंवर " कहलाते हैं। उदोजीके तंवरों कि दो मुख्य शाखाएंहैं - 1. लाखावत तंवर 2. सांगावत तंवर ! ऊदोजीके तँवरो के ठिकाने --
गांवडी- पाटन के राणा कंवलजी के बड़े पुत्र राव उदोजी ने गांवड़ी की स्थापना 1427ई. में की थी।
भगेगा
भगोट
बुचारा
प्रथमपुरी
मोही
गणेसर
मंडोली- गांवडी ठाकुर लाखाजी ने जाटों से मंडोली जीता और इन्दरपालजी को मांडोली दिया।
मांवडा- 12 गांव की जागीर) गांवडी से निकलकर दो भाई श्यामदासजी और सुन्दरदासजी ने मावंडा कलां बसाया।
नीमकाथाना
महावा- गांवडी के ठाकुर भीमराज जी के पुत्र सुरजनसिंह जी ने बसाया।
हीरावली
बलराम की ढाणी
राणासर
कोटडा
गोविन्दपुरा
मांकडी
भूदोली- गांवडी ठाकुर डूंगरसिंह के पुत्र महाराज उदयसिंहजी ने भूदोली गांव संवत् 1627(1570ई.) में बसाया।
चीपलाटा- गांवडी ठाकुर भीवराजजी के पुत्र भगवानदास जी ने चीपलाटा बसाया।
दांतिल- मावंडा से सुन्दरदासजी के पुत्र ने दांतिल बसाया।
कर्णोजीके तँवर (चौबीसी के तँवर)
कर्णोजी के तँवर- पाटन के राव कमलजी के पुत्र पालनसी(पजान जी) को जागीर में पानेडा मिला। पजानजी के वंशज कर्णोजी तंवर हुए, जो पानेडा से बडबर चले गये। जिनके वंशज "कर्णोजी के तंवर" कहलाते हैं। इनके 24 गाँव थे, जिसके कारण इन्हें "चौबीसी के तंवर" भी कहते हैं। ये 24 गाँव इस प्रकार थे --
1 बडबर
2 बुहाना
3 धिगडिया
4 नरान्त
5 आसलवास
6 धुलवा
7 रायली
8 ढाणी सम्पतसिंह
9 गादली
10 नुहानिया
11 निम्बास
12 बेरला
13 कासणी
14 लौटिया
15 फतेहपुर
16 काकोडा
17 चौराडी
18 अगवाणा
19 भुढनपुरा
20 ढोढवाल/ठोठवाल
21 लाम्बी
22 अडीचा
23 काजला
24 बालजी
किलोड़जीके तँवर (बाईसी के तँवर)
पाटन के राव कंवलजी के तीसरे पुत्र किलोडजी हुए, जिनके वंशजो को किलोडजी के तंवर कहा गया। किलोरजी के पुत्रो के 22 गाँव थे, जिसके कारण इन्हें बाईसी के तंवर भी कहा जाता है। ये 22 गाँव इस प्रकार है --
1 कुजोता
2 महरपुर
3 जिणगोर
4 भालोजी (मुसलमान बन गए)
5 पाथरेडी
6 भैसलाना
7 पवाला राजपुताना
8 महरीन
9 बेरी
10 केशवाना राजपुताना
11 चेचिका
12 खडब
13 तिहाड
14 बनार
15 पंचाणी/पिचाणी
16 खेडा
17 सरूण्ड
18 चान्दवास
19 भोजवास
20 किरपुरा
21 नारहेडा
22 बनेठी
नारहेडा- राव किलोड जी के वंशज "नाहर सिंह तंवर" ने नारहेडा बसाया।
बनेठी- राव किलोड जी के वंशज "पृथु सिंह तंवर" ने वि.स. 1535 में बनेठी बसाया। पिथुसिंह तंवर ने यह गांव गुर्जरों से छीना था। बनेठी में मशहूर डाकू बख्तावर सिंह हुए जिनका स्मारक भी बना हुआ है। डाकू बख्तावर सिंह के सम्बन्ध में अनेक कवियों ने रचनाएँ की है कि वो गरीब विधवाओं ओर अनाथो के हमदर्द, सहायक ओर नाथ थे।
परसरामजीके तँवर
पाटन राव बीकोजी के पुत्र परसरामजी हुए, जिनके वंशज "परसराम जी के तंवर" कहलाते हैं। परसराम जी के तँवरो के ठिकाने--
हसामपुर
सुदरपुरा
ढाढा
पवाना
कल्याणपुरा कलां
पुरूषोत्तमपुरा
नागल चौधरी
सुरा की ढाणी
पाटन राव के निकटतम सम्बन्धी-
पाटन राव के निकटतम सम्बन्धी (भाईयो) के आठ गाँव है, जोकि पाटन राव केसरीसिंह, राव फतेहसिंह और राव बक्सीराम जी के वंशज है। ये आठ थाम्बो के गाँव कहलाते हैं --
#पाटन - पाटन राव
#किशोरपुरा- (3 गांव और 13 ढाणी के ठाकुर), राव फतेहसिंह पाटन के दुसरे पुत्र ठाकुर पृथ्वीसिंह तँवर ने किशोरपुरा सन् 1688ई. में बसाया, इनके चार पुत्र हुए- (1)ठा.बाघसिंह-पहला पाना (2)ठा.खडगसिंह-दुसरा पाना (3)ठा.दौलतसिंह और (4)ठा.करमसेन
#काचरेडा- इन्दरसिंह जी तँवर को मिला।
#कंवर की नांगल- पाटन राव केसरी सिंह तँवर के पुत्र कुंवर राम सिंह तँवर को कवंर की नांगल मिला।
#रायपुर- पाटन राव केसरी के कंवर जुझार सिंह तँवर को रायपुर कि जागीर संवत् 1730(1673 ई.) में मिली।
#कोला की नांगल- पाटन राव केसरी सिंह तँवर के पुत्रों को मिला।
#डोकन
#सिहोड- पाटन के सबसे निकटतम भाई, पाटन राव बक्शीरामजी तँवर के पुत्र कंवर रणजीतसिंह तँवर को खेेतडी में सिहोड की जांगीर मिली, इन्ही के वंशज राव उदयसिंह जी पाटन राव मुकुंद सिंह जी के गोद गये थे।
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(नोट- वेबसाईट का updation जारी है, अपने सुझाव व संशोधन whatsapp no. 9460000581 पर भेज सकते हैं) .
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भारत में तंवर राजपूतों के गांव एवं ठिकाने
भारत में तंवर राजपूतों के गांव एवं ठिकाने
(संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई )
राजस्थान में तंवर राजपूतों के गांव
SIKAR
पाटन - तंवराटी में तंवरों का मुख्य ठिकाना ! दिल्ली के शासक राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय के वंशज द्वारा 12वीं शताब्दी में स्थापित। राव जयरथ जी के पुत्रों --
- राव जाटू जी (जटमाल जी) - इनके वंशज जाटू तंवर कहलाये, मुख्यतः हरियाणा (भिवानी, हिसार, महेंद्रगढ़) में हैं।
- राव कालोजी - इनके वंशज कलिया तंवर, हिम्मतासर, सरसुवास (डूंगरगढ़ बीकानेर) में हैं।
- राव राघोजी - इनके वंशज रघु (राघो) तंवर, रतेरा और खनक में पाए जाते हैं।
- राव जयरावत जी - इनके वंशज जयरावता तंवर, भैरू का बांस और अहरोद में ।
- राव सत्रावत जी - इनके वंशज सतरावत तंवर, पेटवाड़ (हिसार) !
- राव हनुमानजी - वे धौलपुर सिकंदरी में बस गए।
टोडा- बत्तीसी के तंवर (धीरसिंहजी का, रायसलजी का और आसलजी का तंवर) पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर चतूरभुज जी को 12 गांव के साथ टोडा की जागीर मिली।
जीलो - बत्तीसी के तंवर (सोजी का, रतोजी का, हाथोजी का, कलोंजी का, पीतोजी का) और आसलजी का तंवर, पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर पुरणमलजी को 12 गांव के साथ जीलो की जागीर मिली।
इमलोहा -- बत्तीसी के तंवर (मेलराजजी का, बनबीरजी का, भादसीजी का, भीवोजी का) और आसलजी का तंवर, पाटन राव छोटा आसलजी के कंवर जयदेव सिंह को 7 गांव के साथ इमलोहा कि जागीर मिली।
डोकन -- बत्तीसी के तंवर (रणसीजी का, भोनजी का, खैरतजी का) और आसलजी का तंवर, पाटन राव आसलजी के पुत्रों (राव रणमल और राव धगारहे) को मिला।
रायपुर-पाटन - आसलजी का तंवर, पाटन राव केसरी के कंवर जुझार सिंह को रायपुर कि जागीर संवत् 1730(1673 ई. में मिली।
किशोरपुरा - आसलजी का तंवर , (3 गांव और 13 ढाणी के ठाकुर), राव फतेहसिंह पाटन के दुसरे पुत्र ठाकुर पृथ्वीसिंह ने किशोरपुरा सन् 1688ई.) में बसाया, इनके चार पुत्र हुए- (1)ठा.बाघसिंह-पहला पाना (2)ठा.खडगसिंह-दुसरा पाना (3)ठा.दौलतसिंह और (4)ठा.करमसेन
कंवर का नागल - आसलजी के तंवर, पाटन राव केसरी सिंह तँवर के पुत्र कुंवर राम सिंह तँवर को कवंर की नांगल मिला।
कचरेडा - आसलजी के तंवर, राव फतेहसिंह पाटन के तीसरे पुत्र ठा.स्वरुपसिंह के वंशजो को कचरेडा मिला, इनके 2 गांव हैं।
दरीबा - आसलजी के तंवर, ठाकुर हिम्मत सिंह ने बसाया।
किशनपुरा - आसलजी के तंवर, ठा. हरिकिशन सिंह ने बसाया।
इनके आलावा डाबला, कोला की नांगल, भल्लभदासपुरा, हिम्मतसिंह का दरीबा, जयरामसिंह का टोडा, जाटाला, रामचंद्रसिंह का टोडा, टोडा साहबसिह का, दीपावास, लुहारावास, दयाल की नागल, बिहारीदास की ढाणी, नाथा की नागल, बिहारीपुर, दुबडा, तेलीवाला, रामल्यावास, झालरा, श्यामपुरा, रामसिंह की ढाणी, चिमनसिंह की ढाणी तथा छिंछास आदि।
जाटवास-दोलतपुरा - आसलजी के तंवर, पाटन राव कर्पुरजी के पुत्र राव महेशदासजी ने बसाया।
नयाराणा - आसलजी का तंवर, पाटन राव कर्पुरजी के पुत्र राव ऊत्तोजी ने बसाया।
हसामपुर - परसरामजी का तंवर और आसलजी का तंवर (भोजोजी का, अखोजी का, चांदोली का, होमोजी का)
छेतराम का पलासवाला - आसलजी के तंवर, ठाकुर हरछेतराम ने बसाया।
रायलो फगनवास - आसलजी के तंवर, पाटन राव आसल के पुत्र राव मोकल ने बसाया।
मंडा - असलजीके तंवर, टोडा से हरवल्लभ जी को मिला।
छारावली - आसलजी के तंवर, ठाकुर कुशाल सिंह ने बसाया।
सांवलपुरा तंवरान, साकराय, जुगलपुरा, किशोरपुरा -- जुगलपुरा से आकर ठा. केशुसिंह ने बसाया।
खिरोटी --बत्तीसी के तंवर (भोमोजी का),
झाड़ली --बत्तीसी के तंवर (झाडसीजी का, हाडोजी का),
कोण्डला - बत्तीसी के तंवर (धीरदेहजी का,रायसलजी का), पाटन राव लूणकरणजी के पुत्र राव धीरदेहजी ने बसाया। घाटा - बत्तीसी के तंवर(धागलजी का, दलावजी का)
नीमोद - बत्तीसी के तंवर, पाटन राव बहादुर सिंह के पुत्र राव आसादीनजी ने बसाया।
हाथीदेह - बत्तीसी के तंवर, राव बहादुर सिंह के पुत्र राव आसादीनजी ने बसाया।
(नानगवास - बत्तीसी के तंवर, पाटन राव बहादुर सिंह के पुत्र राव नानगजी ने बसाया।
अजमेरी - बत्तीसी के तंवर( अजानजी का, वीरलजी का), भादवाड़ी -बत्तीसी के तंवर
रायपुर जागीर -- बत्तीसी के तंवर, पाटन राव बहादुर सिंह के पुत्र राव अजानजी ने बसाया।
रामपुरिया - बत्तीसी के तंवर
सीरोही - बत्तीसी के तंवर, पाटन राव बहादुर सिंह के पुत्र राव दुदाजी ने बसाया।
चुडला - बत्तीसी के तंवर (हालाजी का, भानोजी का)
मौखुता - बत्तीसी के तंवर (गोविंदजी का, खैरतजी का)
मोठूका, भीतरली गांवड़ी - बत्तीसी के तंवर, राव थालोजी ने बसाया।
गणैश्वर नाला - बत्तीसी के तंवर, राव रायसलजी ने बसाया।
गांवडी - बत्तीसी के तंवर (सीहोजी का) और ऊदोजी के तंवर, पाटन के राणा कंवलजी के बड़े पुत्र राव उदोजी ने गांवड़ी की स्थापना 1427ई. में की थी।
पीथमपुरी - ऊदोजी के तंवर और बत्तीसी के तंवर (पीपोजी का, भैरूजी का)
मांवडा - बत्तीसी के तंवर (भोमजी का, सुराजी का, धामदेवजी का) 12 गांव की जागीर। गांवडी से निकलकर दो भाई श्यामदासजी और सुन्दरदासजी ने मावंडा कलां बसाया।
महावा - (ऊदोजी के तंवर) गांवडी के ठाकुर भीमराज जी के पुत्र सुरजनसिंह जी ने बसाया।
भूदोली - बत्तीसी के तंवर (जूझोजी का, भोमोजी का) और ऊदोजी के तंवर, गांवड़ी ठाकुर डूंगरसिंह के पुत्र महाराज उदयसिंहजी ने भूदोली गांव संवत् 1627(1570ई.) में बसाया।
चीपलाटा - बत्तीसी के तंवर(धाकलजी का, दलावजी का) और ऊदोजी के तंवर (भागवानदासजी का), गांवडी ठाकुर भीवराजजी के पुत्र भगवानदास जी ने चीपलाटा बसाया।
नीमकाथाना, हीरावली, ढाणी बलराम की, माही, भागेगा, भगोट, गणेसर, राणासर, कोटडा, गोविन्दपुरा, मांकडी
(सभी ऊदोजी के तंवर) !
JAIPUR
सुदरपुरा, ढाढा, कल्याणपुरा कलां, पुरूषोत्तमपुरा, नागल चौधरी, सुरा की ढाणी, पवाना राजपुतान (सभी परसरामजी का तंवर) !
कुजोता, जिणगोर, पाथरेडी, भैसलाना, बेरी, केशवाना, खडब, बनार, पिचाणी, सरूण्ड, चान्दवास, भोजवास, किरपुरा, नारहेडा, बनेठी, महरामपुर, खेडा, तिहाड, चेचिका, महरीन (ये सभी गांव में केलोडजी के तंवर (बाईसी के तंवर हैं)
दांतिल - ऊदोजी के तंवर, मावंडा से सुन्दरदासजी के पुत्र ने दांतिल बसाया।
बुचारा - बत्तीसी तंवर और ऊदोजी के तंवर
टांडा खातोलाई - बत्तीसी तंवर, टोडा से आए।
गुलाबगढ़ - बत्तीसी के तंवर, मावंडा से आए।
मेढ़- बत्तीसी के तंवर, राव मेढराज जी को मिला।
बैराठ - बत्तीसी के तंवर, राव मेढराज जी को मिला।
खातीपुरा, डुलानिया।
JHUNJHUNU
सिंहोड - आसलजी के तंवर, पाटन राव बक्शीरामजी के पुत्र कंवर रणजीतसिंह तंवर को खेेतडी में सिहोड की जांगीर मिली। इन्ही के वंशज राव उदयसिंह जी, पाटन राव मुकुंद सिंह जी के गोद गये थे।
बडबार, बुहाना, नरात, धुलवा, रायली, ढाणी सम्मपतसिंह, गादली, निम्बास, काजला, आसलवास, बेरला, कासणी, लौटिया, काकोडा, चौराडी, अगवाना, बालजी, भुढ़नपुरा, धिगडिया, लाम्बी, फतेहपुरा, ढोठवाल, अडीचा, नुहानिया (ये सभी गांव कर्णोजी के तंवर (चौबीसी के तंवर हैं )
कालोठडा (जाटू तंवर) !
ALWAR
मुंडिया - लखासर (बीकानेर) के ठाकुर केसरीसिंह तंवर के पोत्र ठाकुर मोहनसिंह को सन् 1813 ई. में मुंडिया की जागीर (गढ़ी सवाईराम के पास) मिली और किलेदारी मिली। इनके बाद ठाकुर शम्भूसिंह किलेदार हूए। ठाकुर शम्भुसिह के वंशज ठाकुर चिमनसिंह मुंडिया की पुत्री का विवाह (1866) करोली के महाराजा भोमपालजी से हूआ था।
ठेठर बासना।
JODHPUR
केलवा कलां, खेतासर, भवाद, जोगियासन(बोराना तंवर), ढूंढ़ारा(बोराना तंवर), लूणी(जावला तंवर, विरमदेवरा से निकास) !
BIKANER
लखासर, दाउदसर, सावंत्सर, लिखमादेसर, झंझेऊ, ऊँचाएड़ा, बालसर, सरसुवास, हिमतासर(कलिया तंवर), नाडा(जाटू तंवर) !
CHURU
रूपलीसर- लखासर से चमेलसिंह आए।
भाड़ंग, ढाढर, बालरासर तंवरान (तीनों जाटू तंवर) !
JAISALMER
रामदेवरा, वीरमदेवरा, सादा (रामदेवजी के पुत्र राव सादोजी के वंशज, जावला तंवर) !
बोड़ाना(बोराना तंवर), कोहरा(बोराना तंवर) !
अरजुना, सुल्ताना, डीगा (तीनों देवत तंवर, निकास देवीकोट से) !
माँढा, मोहनगढ़, नारसिंह की ढाणी (तीनों धनु तंवर) !
BARMER
बोला, जाजवा, पिण्डारण, खारिया रामसरा (सभी बोराना तंवर, बिशाला(बाड़मेर) से निकास) !
जसाई (देवत तंवर)
बाखासर (सेड़ा तंवर)
KOTA
खेड़ली तंवरान, गोकुलपुरा, गेंटा(ग्वालेरा तंवर), बारां, श्रीनाल !
UDAIPUR
बोराज तंवरान, भानपुरा (बोराना तंवर, बिशाला(बाड़मेर) से निकास)
RAJSAMAND
मियाला - महाराणा मोकल के समय 12 गांव की जांगीर थी, निकास- राजा अजमल जी के छोटे भाई राव धनराज जी के वंशज। यहां से कई गांव निकल कर मेवाड़ में बसे हैं। मालवा के दिवल में भी मियाला के तंवरो के ठिकाने है।
बोराणा का गुड़ा, जोज, ढेलाना, फरारा, मादरा, नाहरसिंह का गुड़ा (बोराना तंवर, निकास- गदबोर) !
चांवडीया - निकास-लाडकी से
देवली - निकास-लाडकी से
लोढियाना - निकास-मियाला से
CHITTORGARH
गजसिंहजी कि भागल - यह गांव ठा.गजसिंह तंवर ने बसाया, निकास-पाटन (बत्तीसी के तंवर), 12 गांव के भोमीया ठाकुर, 2 परिवार यहां से बांसी गये।
चित्तोडी खेड़ा - निकास-ग्वालियर
सतपुड़ा, भादसोड़ा, गोराजी कि नीमेडा (तीनों निकास-मियाला से) !
विजयपुर - बोराना तंवर, निकास-जेसलमेर
सांडीया, दोलजी का खेडा, बिजापुर।
BHILWARA
लाडकी - महाराणा उदय सिंह के समय 40 गांव की जांगीर थी। निकास- सान्डीया (15वी शताब्दी में), यहां से कई गांव निकल कर मेवाड़ में बसे हैं।
चिलेश्वर करेरा - निकास-लाडकी से, यहां से पलायन कर गए।
गुजरिया खेड़ा - निकास-लाडकी से
लखोला - 350 बीघा भोम दरबार द्वारा मिली।
बनेडा, बावरी, दोलतगढ - निकास-मियाला से
गरवाय, जलामाली।
DHOLPUR
कायस्थपाडा, दिवान का पुरा, सुंदरपुर, चीलपुरा, पहाडगढ ।
BANSWARA
सूरपुर - सुनेलिया तंवर, निकास-मध्यप्रदेश
PALI
चानोड ठिकाना - ये राठोड़ो के फौजदार थे। निकास- गदबोर से जालमसिंह के वंशज राजसिंह महूवा गये। महूवा से राजसिंह के पौत्र सुरतान सिंह, भोजराज जी और मालमसिंह चानोड आये।
BUNDI
धगारिया और डूंगरी !
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हरियाणा में तंवर राजपूतों के गांव
हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ और हिसार में अधिकतर जाटू खाप के तंवर हैं, पेटवाड गांव में सतरावला तंवर, रतेरा और खनक गांव में रघु तंवर, भैरू का बास, ढाणी जरावता और अहरोड गांव में जरावता खाप के तंवर हैं।
BHIWANI
भिवानी- राजा नीमपाल सिंह तँवर ने संवत 1404 मे भिवानी की स्थापना की थी।
बवानी खेड़ा - राजा वासुदेव तंवर ने सवंत 1303 मे बवानी खेड़ा बसाया।
पालूवास - संवत् 1654(1597ई) मे ठाकुर पालुसिंह तंवर ने बसाया।
इनके आलावा बापोड़ा, देवसर, कोहाड, गूजरनी, दिनोद, तिगड़ाना, हालूवास, कैरू,लूहारी जाटू, रतेरा, सिवाड़ा, दांग खुर्द, धिराना कलां, जितवान बांस, लूहानी, गोविन्दपुरा, छपार, बजीना, रिवासा, लेघा, भानगढ़, भैणी कुंगर, ढाणी जंगा, जताई, खनक, कसुम्भी, रामुपुरा, बलियाली, इंदिवाली,किरावाड, सुंगरपुर, ढाणी माहू, ढाणा, हेतमपुरा, बड़वा, धुलकोट, नवा राजगढ़, सुन्दरपर, खेड़ा, खारियावास।
MAHENDRAGARH
खुडाना - राजा हरपाल सिंह तंवर ने बसाया।
झगडोली - खुडाना से आकर झगडु सिंह (1502 ई.) में बसाया।
बुचावास - खुडाना से आकर बच्चुसिंह (1500 ई.) ने बसाया।
पाथेरा - खुडाना से आकर पृथ्वीसिंह (1500 ई) ने बसाया।
खेड़ी तलवाना - खुडाना से आकर धौलासिंह (1500 ई.) ने बसाया।
गंगुताणा (तंवराटी पाटन के राव पुरणमल के पुत्र राव खेतसिंह को मिला)
बसाई, निंबी, निम्बिडा, बिरसिंहवास, नांवां, गढ़ी, भुरजट, डिगरोता, धोली, जाट, पाली, चितलांग, भांडोर ऊंची,
सिगड़ी, भोजावास, कैमला, गुजरवास, धनोंदा, पोता, आदलपुर, बायल (पाटन से गये), डंचोली, नगल चौधरी,
ढाणी ठाकरान, रावता की ढाणी (पाटन से गये), महासर, जैनपुर, खुडाना बांस।
KURUKSHETRA
जल भेड़ा, भूसथला, बीबीपुर, चनाल हेडी, गोलपुरा, कलसना, कठवा, अजराना, लूखी, सूढपुर, तंगोर, माजरी।
KAITHAL
बरोट, नरवाल, फरल. दमाडा।
MEWAT
आटा, राठीवास, उजीना,
HISSAR
बास आजम शाहपुर (जाटू तंवर, बवानी खेड़ा से निकास), चरनोद, चौधरीबास, तलवंडी बादशाहपुर, तलवंडी रूक्का, चिडोद, रावत खेडा , सरसाना, सिवानी बोलन, पेटवाड़, बालावास।
JHAJJAR
बाबरा
SONIPAT
गोरार
PALWAL
भंडोली, बिघावली, छायंसा, लिखी, करना, स्वामीका।
REWARI
पाड़ला :- पाटन-तोरावाटी क्षेत्र से आकर पृथूपालसिंह ने बसाया।
गांवड़ी, भैरू का बांस, ढाणी जरावता, अहरोड ।
ROHTAK
काहनी, घरावठी, चमारिया, सराई अहमद, नसिरपुर।
YAMUNANAGAR
माहेश्वरी
PANCHKULA
शेरला
मध्यप्रदेश में तोमर राजपूतों के गांव एवं ठिकाने
MORENA
अम्बाह, ऐसाहगढ, सांगोली, सिहोनिया, पुरावास, खडियाहार, पाली, तरेनी, किर्रायच, सिंगपुरा, लेपा, पोरसा, बरवाई (क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का पुस्तेनी गांव), रूहर, भिदोसा (पानसिंह तोमर का गांव), बिण्डवा, धरमगढ, साठो, सिलावली, नगरा, पोरसा, कुरैठा। कोंथर, खुर्द, परीक्षा, सिंगरौली, श्योपुर कलां, रजौधा, महूआ, जौटई, नावली, बड़ागांव, औरेठी, नावली, मिरघान, उसैथ, घुसगवां, भिखारी पुरा, रिठौना, रछेड, श्यामपूर, दिमनी, रूढवाली, बडापुरा।
KHARGON
पुनासा (राणा साहेब), बड़वाह (राणा साहेब), मिठावल (राणा साहेब), गुज़र खेड़ी, अटूट खास, पिपलिया, रिछफल, मोहना, खुटला कलां, महम्मदपुर, रतनपुर, आभापूरी, छेड़ीया।
SHIVPURI
खाडी, ककरोआ, बुडधा, गोवर्धन, गुरीछा, हर्रई।
BHIND
राइ कि पाली, देहरा, चंदोखर, पाली, टुकड़ा, अडोरी, सरवा, छीमका, इसरपुर।
DEWAS
नेमावर, अमेली, पिपल्या, नानकार, खुबगांव।
INDORE
सांवेर, मांगलिया।
UJJAIN
खर्सोद खुर्द, मालपुरा।
NARSINGHPUR
पिपरिया कलां
MANDSAUR
चिपलाना, तिसाई।
उत्तर प्रदेश में तोमर राजपूतों के गांव
उत्तर प्रदेश के धर्मपुर व हरदोई में कटियार तंवर, मेरठ में सोमवाल तंवर, इन्दोलिया तंवर, सुमाल तंवर। गाजियाबाद और मुजफ्फरनगर में सोमवाल तंवर और इन्दोलिया तंवर। अयोध्या में खाती तंवर,, अलिगढ, बदायूं, बरैली, शाहजहांपुर में जंघारा तंवर,, बुलंदशहर में जरोला तंवर और जरावता तंवर,, आगरा और शाहबाद में तिलोता तंवर,, जालौन, हमीरपुर और झांसी में तिलोता तंवर और द्वार तंवर,, गोरखपुर और फैजाबाद में पालीवाल तंवर,, फैजाबाद और बनारस में बडूआर तंवर मिलते हैं, इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बिलदारिया और रैकवाल तंवर भी मिलते हैं।
GAZIYABAD-HAPUR
गालंद, लाखन, हिंडालपुर, मसौता, खेड़ा, सिखेड़ा, रघुनाथ पुर, मुकीमपुर गढ़ी, धौलपुर, निजामपुर, भदस्याना, कनौर, फरीदपुर, देहरा, जखेडा, चित्तोडा, पलवाडा, अनवरपुर, बड़ोदा हिन्दुवान, डूहरी, कांवी, कस्तला, खैरपुर, पिलखुवा, परतापुर, जोया, शामली, चंदपुरा, मीरापुर, हरसिहपुर, सदरपुर, भैना, आकलपुर, दतेडी, बडायला, अतरौली, पावला, भटियाना, अचपलगढी, पिपला बांदपुर।
MEERUT
बढला, जिठौली, मऊ खास, नंगलामल, पाचगांव, समयपुर, सिसोली, मानपुर, बदरुद्दीन नगर, नानू, बापरसी, भूनी, भलसोना, मुल्हैड़ा, सरोली, मेहरमती, गणेशपुर, रतौली, सुरपुर खुर्द, खेड़ी कलां, हरड़, कुशावली, सलावा, खेरा, भमोरी, फरीदपुर, अखेपुर, कलांदी, नवादा, पाली, जवालागढ़, दौलतपुर, अटेरना, नाहली, कपसाढ़, राधना आदि ।
MUZAFFARNAGAR
भुपखेडी, मुजाहिदपुर, रतनपुरी, चंदसिना।
BULANDSHAHR
धरपा चौहरपुर, पितोवास, बराल, बिसाईच, छपरावत, खलसीया चौहरपुर, दीनौल, किरा, दुदुपूर, बरौली बसदेवपुर।
ALIGARH
अलीगढ़ में तोमर राजपूतों के 42 गांव हैं।
पिसावा, सुमेरपुर, कोठियां, करसुआ, परसेरा, सहारनपुर, पलाऐसी, सहरी मदनगढी़, शाहपुर मडराक, चिकौरा, मुकुट गढ़ी, नौहटी, समस्तपुरकीरत, सुखरावली।
SAHARANPUR
साधारण सिर (लुहारी - भिवानी से ठाकुर घाटमसिंह आए), रसुलपुर व कातला।
BAREILLY
सिम्रा बोरीपुर, लोंगपुर।
RAMPUR
नारायणपुर, ददियाल।
LAKHIMPUR KHERI
मितौली
AZAMGARH
धन्चुला
DEORIA
अकुबा, सुकाई परसिआ।
HARDOI
चैनखेडा
KANNAUJ
नादेमऊ
MAHOBA
काशीपुरा
BANDA
तेंदुरा
AGRA
धरेरा
ETAH
पिवारी, बागवाला
HATHRAS
सिकंदर राव, बांदीपुर (ऐसाहगढ-मोरेना से ठा.गजसिंह तोमर ने आकर बसाया), सुसायत खुर्द, सुसायत कलां।
BALIA
हलपुर, नारायणपुर, बसंतपुर, कैथौली, जिगिरसंद, अपायल, करामेर।
BUDAUN
बदायूँ में भी तोमर राजपूतों के 80 गांव हैं।
NOIDA
छलेरा, सदरपुर, रायपुर, अक्सपुर व आधा गिघोर ! इनके पूर्वज जीतपालजी 1726 में हालुवास (भिवानी) से आये थे। उनके चार पुत्रों उमरसहाय ने छलेरा, दोमल ने रायपुर, परसराम ने सदरपुर व लाखनसिंह ने अक्सपुर व आधा गिझोड़ बसाया।
DELHI
नंगल राया, नारायणा, बसाई, दारापुर, पल्ला, रिठाला (सुमाल/सोम तोमर) !
गुजरात-कच्छ में तवर राजपूतों के गांव
जुरा, कुरान, फरदी, भाद्रा, उजेटी।
साभार ---
ईश्वर सिंह मडाड; राजपूत वंशावली
महेंद्र सिंह खेतासर जी की तोमर राजवंश का राजनितिक और सांस्कृतिक इतिहास
करणसिंह तंवर, ठिकाना बोराज तंवरान
एवं अन्य सन्दर्भ ग्रन्थ
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
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