(राजवी घनश्यामसिंह चंगोई)
बीकाजी के वंशज ‘बीका राठौड़’ की उपशाखाएं व गांव
- घड़सियोत बीका (राव बीकाजी के पुत्र घडीसी जी से) — घड़सीसर, अड़सिसर, गारब, हरियासर, बेजासर, पाटमदेसर, मैनासर व अन्य.
- राजसिंगोत बीका (राव बीकाजी के पुत्र राजसिंह जी से) — सेला, सातड़ा, फदलपुरा, मोलीसर छोटा आदि.
- अमरावत बीका — (राव बीका के पुत्र अमरा के वंशज) मोकलसर, कांकड़वाळा आदि.
- बिसावत बीका — (बीका के पुत्र बिसा के वंशज) देईदास, भगवान, बांय, जसाणा, किशनपुरा (हनुमानगढ़) आदि.
- केलणोत बीका — (बीका के पुत्र केलण के वंशज)
- रतनसिंगोत बीका (राव लूणकरण जी के पुत्र रतनसिहजी से) — महाजन, मनेरा, बिलोचिया, कुमाणा व अन्य. इन्ही की एक उपशाखा- अभय सिंह महाजन के पुत्र भायसिंह के वंशज भायसिहोत बीका भी कहलाते है । (सोनापालसर, पाण्डुसर आदि में हैं)
- निम्बावत बीका (राव लूणकरणजी के पुत्र रूपा के पुत्र निम्बा से) — हामुसर, पाबूसर, भाड़ीन्दा व अन्य.
- प्रतापसिंगोत बीका (राव लूणकरण जी के पुत्र प्रतापसिंह से) — सारसर, तालवा आदि .
- रामसिंहोत बीका (राव लूणकरण के पुत्र रामसिंह से) — मालासर, धीरासर, कीकासर .
- तेजसिंहोत बीका (राव लूणकरण के पुत्र तेजसिंहजी से) — जेगनिया, जैतासर .
- श्रृंगोंत (सिणगोत) बीका (राव जेतसीजी के पुत्र श्रीरंगजी से) — भुकरका, जसाणा, सिधमुख, बांय, अजीतपुरा, श्रंगसर, आपुवाला, बीरकाली, रसलाना, शिमला, राजासर बीकान, थिराणा, जबरासर, रणसिसर, कानसर, सुरजनसर, मुनसरी, पुनसीसर, बालासर, साडासर, बारजांगसर, कालवास, लुडनिया आदि.
- नारणोत बीका (राव लूणकरण के पौत्र नारण से) — मगरासर, मैणसर, तेहनदेसर, कातर आदि.
- भीमराजोत बीका (राव जेतसीजी के पुत्र भीमराजजी से) — राजपुरा, अमरपुरा, भुवाड़ी, ढिंगी, ढाणा, हडियाल, ब्रह्मनगर, ढाणी मोतीसिंह, चलकोई, पुनरास, बिलियां, मूंदी, कांजण व कसूम्बी आदि.
- बाघावत बीका (राव जेतसीजी के पुत्र ठाकरसी से) — मेघाणा, भोगराणा, बुकनसर, जीवण देसर, गोगटिया बाघावतान, चाहरवाला आदि.
- मानसिहोत बीका (राव जेतसीजी के पुत्र मानसिंह जी से) – पारवा, गुंदूसर, बेरासर .
- पृथ्वीराजोत बीका (राव कल्याणमलजी के पुत्र पृथ्वीराज जी से) — ददरेवा, महलाना, धोलिया, सेउवा, पाबासी, मानपुरा, न्यांगली, जिगसाना, लाखलान, झूंगली, गगोर, लम्बोर (छींपीयान, ठाकरान) खेडी, चांदगोठी, घुमणसर, बड़ाऊ, बुंगी, मिठड़ी, जिगसाना (टिब्बा, ताल), जोरजी का बास आदि.
- अमरसिंहोत बीका (राव कल्याणमलजी के पुत्र अमरसिंह जी से) — हरदेसर, अलायला, ख्याली, सोढ़वाली, बिंजरवाली आदि.
- गोपालदासोत बीका (राव कल्याणमलजी के पुत्र गोपालदासजी से) — फोगां-भरथरी बास.
- किशनसिंहोत बीका (राजा रायसिंह जी के पुत्र किशनसिंहजी से) — सांखू, नीमा, रावतसर कुंजला, जालेउ, बछरारा, मेलूसर, जैसलसर, सुरजड़ा, दुलमेरा, राणासर, मेघसर (तारानगर), ठुकरियासर, सरदारगढ़, करणीसर, दंदेऊ, भरिन्डा, बिराण, भोजाण, किरताण, जाटूवास, थिरपाली छोटी, बड़ी, नून्द, सुलखनिया छोटा, जसवंतपुरा व अन्य.
- राजवी गजसिंहोत — बीकानेर राज परिवार, हवेली वाले राजवी, बणीसर, नाभासर, आलसर, साईंसर, सलुंडिया, कुरजड़ी, बिलनियासर, धरणोक, जाम्भा .
- राजवी अमरसिंहोत — फोगां, असपालसर, बोघेरा, भाड़ंग, ढींगसरी.
- राजवी तारासिंहोत — चंगोई, मिखाला, बीघराण, खरतवास, मितासर, गाटां .
- राजवी गूदड़सिंहोत — मेहरी, कोहिणा, डालमाण, मालसर, बादड़िया .
राजवी
बीकानेर महाराजा के निकटवर्ती भाईबंद राजवी कहलाते थे। रियासतकाल में पांव में सोने का कड़ा या अन्य गहना पहनने का अधिकार सिर्फ ताजीमी सरदारों को ही होता था, जबकि सभी राजवीयों को यह सम्मान प्राप्त था।
बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी की सातवीं वीं पीढ़ी में राजा कर्णसिंह जी हुए जोकि बीकानेर के 9वें राजा हुए। राजा कर्णसिंह जी द्वारा बादशाह औरंगजेब की नाव तोड़कर सभी हिन्दू राजाओं को मुस्लिम बनाने का षडयंत्र विफल करने पर सभी हिन्दू राजाओं द्वारा उन्हें *जय जंगलधर बादशाह की उपाधि दी गई। राजा कर्णसिंह जी के चार पुत्र अनूपसिंह, केशरीसिंह, पदमसिंह व मोहनसिंह हुए।
अनूपसिंह जी सन 1667 में बीकानेर के दसवें राजा हुए। अनूपसिंह जी के चार पुत्र हुए – स्वरुपसिंह, सुजानसिंह, आनंद सिंह व रुद्रसिंह। अनूपसिंह जी के बड़े पुत्र व 11वे राजा स्वरुपसिंह के निःसंतान स्वर्गवास के बाद दूसरे पुत्र सुजानसिंह सन 1709 में बीकानेर के राजा हुए।
महाराजा सुजानसिंह जी ने अपने भाई आनंदसिंह जी को सन 1715 में *रिणी* (वर्तमान तारानगर) का ठिकाना जागीर में दिया। आनंदसिंह जी ने संवत 1792 (सन 1735) में रिणी (तारानगर) में गढ़ बनवाया। आनंदसिंह के पांच राणीसा थे…
1- पुगलिया भटियाणी मानकंवर (एक पुत्र गूदड़सिंह)
2- श्रीनगर पंवार रत्नकंवर (एक पुत्र अमरसिंह)
3- खण्डेला के शेखावत लाडकंवर (ब्रजकुंवर) (दो पुत्र तारासिंह व गजसिंह)
4- देरावरी जी भटियाणी बिजेकंवर
5- जैसलमेरी जी भटियाणी सूरजकंवर
इनके अलावा एक पुत्र मानसिंह {बचपन में मृत्यु} व एक बाईसा रूपकुंवर हुए (इनकी माता का नाम ज्ञात नहीं है) !
आनंदसिंह जी का स्वर्गवास विक्रम संवत 1805 (शाके 1670) तदनुसार 1 मार्च 1749 शनिवार को हुआ था। उनके साथ उनकी तीन रानियां शेखावतजी श्री बृजकुंवरजी, देरावरीजी श्री विजेकुंवरजी, जैसलमेरी श्री सूरजकुंवरजी तथा एक खवास (दासी) प्राणराय सती हुई थी। इसके करीब 93 वर्ष पश्चात बीकानेर के तत्कालीन महाराजा रतनसिंह जी द्वारा विक्रम संवत 1899 (शाके 1764) तद्नुसार 24 नवम्बर 1842 बुधवार को उनकी याद में एक स्मारक (छत्री) का निर्माण कराया जोकि तारानगर में गुसाईयों के मोहल्ले में स्थित है।
आनंदसिंह जी के पुत्रों– अमरसिंह जी, गूदड़सिंह जी, तारासिंह जी व गजसिंह जी के नाम पर राजवियों की चार एल (शाखाएं) है। बीकानेर के राजा सुजानसिंह जी की मृत्यु के बाद राजा बने उनके पुत्र जोरावरसिंह जी की भी निःसंतान मृत्यु हो जाने पर, आनंदसिंह जी के छोटे पुत्र गजसिंह जी बीकानेर के 14वें राजा हुए।
महाराजा गजसिंह जी के वंशज ‘ड्योढ़ी वाले राजवी’ व ‘हवेली वाले राजवी’ कहलाते हैं। गजसिंह जी ने अपने तीनो भाइयों अमरसिंह जी, गुदड़सिंह जी व तारासिंह जी के मृत्यु के पश्चात इन तीनो के पुत्रों यथा- श्री अमरसिंह जी के पुत्रों सरदारसिंह को फोगां, अमानीसिंह को ढिंगसरी, दलथंभनसिंह को आसपालसर की, श्री गुदड़सिंह जी के पुत्र जगतसिंह को मेहरी की व श्री तारासिंह जी के पुत्र भवानीसिंह को चंगोई के ठिकानों की जागीर ताजीम सहित दी।
आमतौर पर ठिकाने का मालिक ठाकुर कहलाता था। लेकिन गजसिंह जी ने इन को भी अपने सगे भतीजे होने के कारण *राजवी* की उपाधि प्रदान की। आमतौर पर किसी भी ठिकाने का मालिक यानी टिकाई ही ठाकुर कहलाता था। उसके अन्य परिवार जन छुटभाई कहलाते थे। लेकिन राजवियो में ये व्यवस्था थी कि महाराजा आनन्दसिंह जी के चारों पुत्रों के सभी वंशज राजवी कहलाते थे। राजवी कोई surname नही बल्कि उपाधि है। इसे किसी के भी नाम के बाद मे नही बल्कि नाम से पहले लगाया जाता था।
उदाहरण के लिए जैसे- राजवी बृजलालसिंह जी। (नीचे बीकानेर के इतिहास के एक पृष्ठ की फ़ोटो दी गई है, इससे ये स्पष्ट हो जाएगा) आजकल राजवियो के नाम से पहले राजा या राजाजी का सम्बोधन करते हैं। राजाओ के निकट सम्बन्धी होने के कारण राजवियो को बड़प्पन के तौर पर राजाजी का सम्बोधन करते हैं।
ड्योढी वाले राजवी ..
1. अनूपगढ़ (पूर्व में छतरगढ़)- बीकानेर के 14वें महाराजा गजसिंह के पुत्र छत्रसिंह के पुत्र दलेलसिंह को 1800 में छतरगढ़ ठिकाना दिया गया व 1914 में उनके वंशज को अनूपगढ़ दिया गया। महाराजा गंगासिंह जी के पिता लालसिंह छतरगढ़ के मालिक थे। बाद में गंगासिंह जी के पुत्र बिजेसिंह जी अनूपगढ़ के मालिक हुए। इनकी उपाधि महाराजा ……… जी बहादुर ऑफ अनूपगढ़ थी। 2. खारड़ा– उपरोक्त दलेलसिंह के पुत्र मदनसिंह के पुत्र खेतसिंह को 1848 में यह ठिकाना दिया गया। इनकी उपाधि महाराजा ……… जी बहादुर थी। 3. रिड़ी– उपरोक्त दलेलसिंह के पुत्र खंगसिंह के पोत्र जगमालसिंह को यह ठिकाना दिया गया। इनकी उपाधि महाराजा …….. जी साहिब थी।
हवेली वाले राजवी ..
ये सभी महाराजा गजसिंह के वंशज थे। इनकी उपाधि ‘राजवी श्री ………. हवेली वाला’ थी।
- बणीसर
- नाभासर
- आलसर
- साईंसर
- सलुंडिया
- कुरजड़ी
- बिलनियासर
- धरणोक
इनके अलावा महाराज गजसिंह के तीनों भाईयों अमरसिंह, गूदरसिंह व तारासिंह के वंशज की उपाधि भी राजवी थी।
- अमरसिंह के वंशज (अमरसिंहोत राजवी )- ठिकाना – फोगां व आसपालसर (गांव – फोगां, आसपालसर, बोघेरा, भाड़ंग व ढींगसरी में हैं )
- तारासिंह के वंशज (तारासिंहोत राजवी )- ठिकाना – चंगोई (गांव- चंगोई, मिखाला, मितासर, बीघराण, खरतवास व गाटा में हैं )
- गूदरसिंह के वंशज (गुदरसिंहोत राजवी )- ठिकाना – मेहरी (गांव- मेहरी, कोहिणा, डालमाण, मालसर, बादड़िया में हैं )
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