चोड़ो माथो आंटी मूंछ्यां, चंगोई रा किंग।
पीलो साफो सोंवतो, राजा बृजलालसिंग॥

राजाजी बृजलालसिंह जी का जन्म चंगोईगढ़ में राजाजी रघुनाथसिंह जी की राणीसा गोपालकुंवर सोनगरीजी के प्रथम पुत्र के रूप में विक्रम सम्वत 1967 फ़ाल्गुन सुदी द्वादशी को हुआ।
उस समय राजाजी गोविंदसिंह जी चंगोई ठिकाना के मालिक थे। राजाजी गोविंदसिंह जी की निस्संतान मृत्यु हो जाने के बाद, उनके राणीसा बालकुंवर जी भटियाणीसा ने बृजलालसिंहजी को गोद लिया। दिनांक 24 . 5 . 1924  को मात्र 13 वर्ष की आयु में बृजलालसिंह जी को बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी द्वारा चंगोई ठिकाने के ताजीमदार के रूप में पट्टा दिया गया।
राजाजी बृजलालसिंह जी अत्यंत ही सहृदय, गरीबहितैषी एव प्रजापालक जागीरदार थे। सभी परिवार जनों के साथ साम्य एवं सहयोग से उन्होंने जागीरदारी प्रथा की समाप्ति तक जागीर का काम बखूबी संभाला।
जागीरदारी समाप्ति के बाद भी गांव की जनता के साथ उनके सम्बंध अत्यंत आत्मीय रहे एवं बाद में भी उन्होंने स्वयं को गांव की जनता का अभिभावक समझकर अपनी जिम्मेदारी निभाई। वे अत्यंत ही धार्मिक, शिक्षा प्रेमी एवं सर्वजन हितकारी थे। गांव व समाज के विकास को ही उन्होंने अपना अंतिम ध्येय बनाया व जीवन पर्यंत इस हेतु प्रयत्नशील रहे।
77 वर्ष की आयु में अच्छे स्वास्थ्य की स्थिति में ही सम्वत 2044 श्रावन सुदी सप्तमी को (2 अगस्त 1987) को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उनका देहावसान हुआ।
 
विवाह व सन्तति-
 राजाजी बृजलालसिंह जी का प्रथम विवाह तत्कालीन जयपुर रियासत के जागीरी ठिकाने दूजोद के टिकाई ठाकुर महताबसिंह जी मेलका की पोती एव बलसिहजी की पुत्री सूरजकुंवर जी के साथ हुआ। विवाह के  काफी वर्षों पश्चात भी संतान नही होने पर दूसरा विवाह तत्कालीन जैसलमेर रियासत के ठिकाने बरसलपुर के राव साहब रणजीत सिंह जी (खिंया भाटी) की पड़पोती (धनेसिंह जी की पोती) व मेघसिंह जी की पुत्री लालकुंवर जी के साथ हुआ। लेकिन विधात का लेख ! फिर भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई।
 तब राजाजी बृजलालसिंह जी ने 50 वर्ष की आयु हो जाने पर विधाता के लेख को स्वीकार करते हुए, अपने सगे छोटे भाई श्री सुरजनसिह के एक वर्षीय बालक घनश्यामसिंह को गोद लिया व स्नेहपूर्वक उसका पालन पोषण किया।

 

Ghanshyam Singh Rajvi

अच्छी शिक्षा दीक्षा दिलाने के बाद उन्होंने अपने दत्तक पुत्र घनश्याम सिंह का विवाह अलसीसर के भैरुजीका शेखावत सुरजनसिंह जी की पुत्री दुर्गाकंवर से किया।

उनके जीवनकाल मे ही उनकी तीनो पौत्रियों अनिता, सविता व कविता का जन्म हो गया था। सामाजिक रूढ़िवादियों के विपरीत उन्होंने कभी भी अपनी पौत्रियों को लड़कों से कम नही समझा व पुत्रवत उनका लालन पालन किया। शिक्षा के प्रति उनके अनुराग के कारण उनकी इच्छा रही कि उनकी तीनो पौत्रियों को अच्छी शिक्षा व संस्कार मिले।
ईश्वर कृपा से उनकी इच्छा फलीभूत भी हुई, और उनकी बड़ी पोती अनिता ने आज स्वयं यह वेबसाईट बनाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है।
 
गत दिनों राजाजी बृजलालसिंह जी की 30 वी पूण्य तिथि पर श्रद्धांजलि स्वरूप लिखी गई, नीचे दी गई कविता उनके जीवन से रूबरू कराती है–

 

राजवी घनश्याम सिंह जी द्वारा राजाजी बृजलाल सिंह जी की स्मृति में रचित कविता

गांव चंगोई घणों पुराणों, पण सब गया पुराणा लोग।
नित उठ बां नै नमन करां, बै सगळा आदरजोग॥
 
बैठ दरवाजै सामनै, हो जेठ चाहे आसोज।
आरामकुर्सी-मूढ़ेै ऊपर, हुक्को पिता रोज॥
  
चोड़ो माथो आंटी मूंछ्यां, चंगोई रा किंग।
पीलो साफो सोंवतो, राजा बृजलालसिंग॥
और बडेरा-बूढ़ा कई, करता बैठ हथाई।
खेत-खळां री बात पूछता, लेता सबगी राय॥
पीपळ दरखत नीम लगाता, करता बां रो पालन।
खुद भी रखता, बच्चा नै भी, सिखलाता अनुशासन॥
गामाऊ कामां गी खातर, पार्टी-बाजी छोड़।
राजाई-ठुकराई गी भी, करता नही मरोड़॥
ब्राह्मण-बणिया, जाट-ठाकरां, हरिजन, स्यामी-साध।
सार्वजनिक कामां गी खातर, सबगो लेता साथ॥
धर्मशाल, मंदिर अर गट्टा, प्याऊ-कूई-कुंड।
इस्कूल खातर झोळी मांडी, करयो नहीं घमण्ड॥
देस-दिसावर फिरया, चंदे खातर छोडी लाज नै।
सेठां स्यूं इस्कूल चिणाई, खुलवाई जा राज मै॥
चेजो होतो कठै गांव मैं, कींगै ही घर चाये नै।
बेरो पडतां पाण ही बै, जरूर देखता जाय नै॥
बडै कोड स्यूं देखता-कहता, आछी देता राय।
“बार-बार नहीं बणै बावळा, थोड़ो ओर बधा”॥
तारानगर तहसील वास्ते, राजपूत सभा चलाई।
तारासिहजी ट्रस्ट बणायो, दुकानां खुलवाई॥
बीकानेर क्षत्रिय सभा मैं, खूब जुड़ाया लोग।
राजपूत धर्मशाला खातर, खूब करयो सहयोग॥
सार्वजनिक कामां गी खातर, हाजर तन-मन-धन।
धरम-करम अर कथा-भागवत, घणों राखता मन॥
चमालीस की साल काळ की, इंद्रदेव नहीँ बरस्या।
मिनख-जिनावर-पेड़-पंखेरू, पाणी खातर तरस्या॥
सावण सुदी 2 मंदिर मैं, कीर्तन शुरू करायो।
चंगोई-मिखाला गांव को, सब जन सुणनै आयो॥
छठ कै दिन जद हवन हुयो, तो लीन्यो बीं मैं भाग।
सात्यू प्रातः ब्रह्म मुहूर्त मैं, दियो संसार नै त्याग॥
नहीं दुखायो मन गरीब को, या ही करी कमाई।
राम नाम नै चित्त मैं राख्यो, सोरी मृत्यु पाई॥
कित्ता ही जे जतन करां, पण होड नहीं कर पावां म्हे।
है थांस्यु अरदास राम, बांरो नाम नहीं गमावां म्हे॥
पुनः शत-शत नमन !!
– राजवी घनश्याम सिंह चंगोई 


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