घनश्यामसिंह राजवी चंगोई द्वारा स्वयं रचित पद्य रचनाये 

दोहा चौपाई छंद

 

दोहा छन्द 

 

** दोहा छंद विधान**

 

  1. दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता है। 
  2. इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। पहले चरण को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है। 
  3. विषम चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती है। अर्थात दोहा का एक पद 13-11 की यति पर होता है (यति का अर्थ है विश्राम)। 
  4. दोहा का विषम चरण का प्रारम्भ ऐसे शब्द से नहीं होता जो जगण (लघु गुरु लघु या ।S। या 121) हो (अलबत्ता, देवसूचक संज्ञाएँ जिनका उक्त दोहे के माध्यम में बखान हो, इस नियम से परे हुआ करती हैं। जैसे, गणेश, महेश, सुरेश आदि शब्द। इसके अतिरिक्त भी कुछ अपवाद देखें गये हैं)।
  5. दोहे का आदि चरण यानी विषम चरण विषम शब्दों से यानी त्रिकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत रगण (SIS) या नगण (।।।) होगा।
  6. दोहे का आदि चरण यानी विषम चरण सम शब्दों से यानी द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत पुनः रगण (SIS) या नगण (।।।) ही होगा। (देखा जाय तो नियम-5 में पाँच कलों के विन्यास में चौथा कल त्रिकल है। नियम-6 के चार कलों के विन्यास का तीसरा कल त्रिकल है। उसका रूप अवश्य ऐसा होना चाहिये कि उच्चारण के अनुसार मात्रिकता गुरु लघु या S I या 21 ही बने)।
  1. दोहे के सम चरण का संयोजन 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 के अनुसार होता है. मात्रिक रूप से दोहों के सम चरण का अंत यानि चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 21 से अवश्य होता है।

 

विशेषः-

★ उर्दू शब्दों से बचना चाहिए।

★ कथ्य ज्यादा उलझा हुआ नहीं होना चाहिए।

★ दोहे में जो बात कहीं जाए पूर्ण और सार्थक होनी चाहिए। 

★ चरणों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित होना चाहिए। 

★ अंत में स्वर साम्य (चरणान्त समान वर्ण से होना चाहिए) I

★ दोहे में गेयता प्रमुख होती है अर्थात कल दोष का ध्यान रखना चाहिए। 

 दोहे कई प्रकार के होते हैं। कुल 23 मुख्य दोहों को सूचीबद्ध किया गया है। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्हीं की गणना के आधार पर उनका वर्गीकरण किया गया है। जो निम्न प्रकार है -

क्रम-प्रकार-गुरु-लघु-कुल वर्ण- कुल मात्रा

१. भ्रमर -    २२ - ४ - २६ - ४८

२. सुभ्रमर-  २१ - ६ - २७ - ४८

३. शरभ -   २० - ८ - २८ - ४८

४. श्येन  -  १९ - १० - २९ - ४८

५. मंडूक - १८ - १२ - ३० - ४८

६. मर्कट - १७ - १४ - ३१ - ४८

७. करभ - १६ - १६ - ३२ - ४८

८. नर  -   १५ - १८ - ३३ - ४८

९. हंस -   १४ - २० - ३४ - ४८

१०. गयंद- १३ - २२ - ३५ - ४८

११. पयोधर-१२ -२४ - ३६ - ४८

१२. बल  - ११ - २६ - ३८ - ४८

१३. पान -  १० - २८ - ३८ - ४८

१४. त्रिकल- ९ - ३० - ३९ - ४८

१५. कच्छप- ८ - ३२ - ४० - ४८

१६. मच्छ -  ७ - ३४ - ४२ - ४८

१७. शार्दूल- ६ - ३६ - ४४ - ४८

१८. अहिवर- ५- ३८ - ४३ - ४८

१९. व्याल -  ४ - ४० - ४४ - ४८

२०. विडाल- ३ - ४२ - ४५ - ४८

२१. श्वान -    २ - ४४ - ४६ - ४८

२२. उदर -   १ - ४६ - ४७ - ४८

२३. सर्प   -   ० - ४८ - ४८ - ४८

 

स्वरचित दोहे

 

घटा ऊमटी खितिज सूं, हरखी सुबरण रेत !
करसा बासी बाजरो, झोला देसी खेत !!

काळी कळायण ऊमटी, खेजड़ियां मुसकाय !
पत्ती-पत्ती खिल रयी, बिरखा मिलसी आय !!

भूरा - भूरा धोरिया , बरसैलो जद मेह !
धरती तिरपत होयसी, कर बिरखा सूं नेह !!

घटा ऊमटी देख कर, पंछी कीन्यो शोर !
हरखै कोयल पपीहा, सारस चातक मोर !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई
(25 जुलाई 2020)
*******


हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई,
किसान या मजदूर, मुलाजिम या सौदाई,
हरेक सोचता है मेरी, हो रही न सुनवाई,
'घनश्याम' मर्ज लाईलाज, नहीं कोई दवाई !!

(मुलाजिम=कर्मचारी, सौदाई=व्यापारी)
7 Jun 2019

..........

.एक पड़ूत्तर दूहो

गौरी बोली पीव सूं, अेक मण हुयो धान।
टूटी पड़ी ज झूंपड़ी, छोरी हुई जवान ।।

इंदर बरससी जोर रो, खेतां जबरौ धान।
छोरी नै परणायस्यां, पकौ टणको मकान।।

........

 

मोदी देस लुटा रयो,

            कर मितरां सूं प्यार।

जनता रो धन लुट रयो,

         किण विध करै करार।।

 

लाभ देवै कुमाणसां,

             कर गुजराती हेत ।

अक्ल गुमाई बावलो,

           क्यूं मांडैं रणखेत ।।

 

 ✍️ घनश्यामसिंह चंगोई 

(मित्र पूंजीपतियों को दी गई अनुचित सुविधा के सम्बंध में)

……….

नमाज  वो  पढ़ता  नहीं  रोजा न  रखता है, 

ना ताजिये पर नाचता ना हज को जाता है !

 

चंदा मंदिर का देता ना वो चालीसा पढ़ता है,

ना  देवता  के पैदल चल  सौ मील जाता है !

 

केश , पगड़ी , कड़ा ना वो कृपाण रखता है,

मत्था टेकने  गुरुद्वारे भी  कभी न जाता है !

 

सेकुलर है वो किसी धर्म से उसका न नाता है,

घनश्याम उसको तो बस मानव धर्म भाता है !

*****

.अनुप्रास अलंकार 

 

चतुर चपल चम्पाकली, चंचल-चक्षु चकोर !
चन्द्रमुखी चन्दनबदन, चाल चलै चित चोर !!

****
एक अन्य भेद भी है, जिसमे एक ही शब्द बार-2 आता है। लेकिन उसका अर्थ भिन्न हित है-

पीव-पीव पपिहो करै, म्हानै दीन्या पीव चिताय !
चिनेक कलाळी घालदे, म्हारा पीव पीवसी आय !!
(पीव=पपीहे की बोली, पीव=प्रियतम, पीव=पीना, चिताय=याद, चिनेक=थोड़ी सी)

..... 

 

धोळै धन सू धण दुखी, धीणे धण खुस होय !
धणी खुस धन-धान सूं, सुख धाणी मुट्ठी दोय !!
धोला धन=भेड़, धण=पत्नी, धणी=पति,धन=रुपया पैसा, धाणी=गेहूं भूनकर बनाया गया चबेना
(एक किसान की गृहिणी भेड़ों के रेवड से नहीं बल्कि दुधारू पशु से खुश रहती है। किसान अन्न-धन से खुश होता है। जबकि सच तो ये है कि सुख तो दो मुट्ठी चबेने से भी मिल जाता है। सन्तोषी सदा सुखी)

✍️ घनश्यामसिंह राजवी

...........

 

** चौपाई **

 

गौरी सुत को प्रथम मनाऊं,

मात भवानी शीश नवाऊं !

 

साहित का यह पटल अनोखा, 

सीखन का नित मिलता मौका !

 

बड़े बड़े साहित्य सुजाना,

*काव्य छंद नित रचते नाना !

 

अति ज्ञानी बंधु सब बहना, 

*अच्छा लगे संग में रहना !

 

*बागडोर  सिकरोड़ी  हस्ते,

कर दो जोडूं करूं नमस्ते !

 

मान मऊ  की सादी भाषा,

सबकी करते दूर जिज्ञासा !

 

कालूसीं जी डिंगल रसिया, 

स्वर लय ज्ञाता मन में बसिया !

 

भावुक जी अति भावुक मन के, 

 अनुरागी  हैं अपने पन  के !

 

पीथळजी कवि अति गंभीरा, 

सोढाजी भी हैं अति धीरा !

 

मैनाजी विदुषी अतिभारी, 

सुनिता जी की भक्ती न्यारी !

 

*शैल बायसा छंद बनावें, 

सीमाजी भी खूब सुनावें !

 

सुरू सरोज सुरों की रानी,

बहुत सुनी है इनकी वानी !

 

चांपावत हैं गुरू गजल के,

जो मॉनीटर होंगे कल के !

 

तपन त्वरित ही छंद रचाते,

जो मनमोहक सब को भाते !

 

*दीपसिंघ जी मानपुरा जी, 

विराज अरु मानस सब राजी !

 

बंधू बहना सब कवि ज्ञानी, 

मेरे खातिर अति सम्मानी ! 

 

पटल बना अति सुघड़ सलोना,

महक रहा हर कोना- कोना !

 

कभी कभी कुछ तीखी चर्चा,

 जैसे  सब्जी  मांहीं  मिर्चा !

 

सब साथी मिलजुल कर चलिए,

  जैसे   मार्केट   में   बनिए !

 

मधु जाखलि यह पटल बनाया,

'श्याम' यहां पर सीखन आया !!

 

 ✍️ घनश्यामसिंह चंगोई 

सोरठा

सोरठा

मां सुरसत रो ध्यान, धरूं हाथ दोऊ जोड़!
दे हिरदै मै ग्यान, तव गुण गावै ‘राजवी’ !!

नित-2 री नीं आव, मिनख जूण रै मानवी !
ऊपर होसी न्याव, रख धरमीपण ‘राजवी’ !!

करले हरि सूं हेत, बीतै जीवण जूण नित!
ज्यूं मुट्ठी सूं रेत, छिण-2 छीजै ‘राजवी’ !!

ना समझै अणजाण, ज्यूं बाळक माटी भखै!
पीतळ सोनो जाण, जगत बटोरै ‘राजवी’ !!

माया तेरी नाथ, लख्यो ना लखपत कोय !
कोडी चलै न साथ, भेळी कर भल ‘राजवी’!!

दिन-2 जा री’ बीत, जीवण जूणी रै मिनख !
कर मालक सूं प्रीत, तरज्या सागर ‘राजवी’ !!

कंचन काया देह, माटी मैं मिल ज्यायसी !
कर नारायण नेह, सांचै मन सूं ‘राजवी’ !!

सूरा सिंघ सपूत, छळ करणो जाणै नयीं !
कपटी काग कपूत, पीठ तकै पण ‘राजवी’!!

मिनख पणै री जाण, होंती पैली रै बखत!
पीसो बणी पिछाण, आजकळै तो ‘राजवी’!!

खोटां री है पूछ, सांचां मिनखां पूछ नीं !
निचला चढ़िया ऊंच, बात न जाणै ‘राजवी’!!

दस नम्बरयां री आज, फिरै दुहाई राज मै !
स्याणो सकल समाज, चुप कर बैठ्यो ‘राजवी’!!

सांचा मिंत्तर सुजाण, ओ’ड़ी आडा आंवता !
कळजुग ले ले प्राण, लोभी मिंतर ‘राजवी’!!

धोरां उडती धूळ, रमता गिंडी गेडियो !
आवै याद समूळ, बाळपणो अब ‘राजवी’!!

कुरजां री मनवार, कर कर थाकी गोरड़ी !
तीजां तणो तिंवार, सूको जावै ‘राजवी’ !!

पपीहरै रा बोल, पीव – पीव खारा लगै !
रया काळजो छोल, पीव चितारै ‘राजवी’!!

By - घनश्यामसिंह राजवी 

कुंडलिया छंद

कुंडलिया छंद

 

कुंडलिया जानो लिखो, करो छंद का ध्यान !

दो पंक्ति हों दोहे की, बाकी रोला जान !!

बाकी रोला जान, लिखो कुछ खास अदब से !

रोला की शुरुआत, दोहे के चौथे पद से !!

प्रथम शब्द या युग्म, अंत में वापिस मिलिया !

‘श्याम’ सर्प की पूंछ, छुए फन बन कुंडलिया !!

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गणेश वंदना

“”””””””’’””

वक्रतुण्ड महाकाय त्वम, कोटिक सूर्य समान !

निर्विध्नं मम काज करो, हे गणेश भगवान !! 

हे गणेश भगवान, लम्बोदर एक़दन्ता !

मूषक के असवार, अहंतासुर के हन्ता !! 

नमित ‘श्याम’ कर जोड़, गणपति विनायक गजमुंड!

कृपा करो गणराज, हे धुम्रकेतु वक्रतुण्ड !!

 

(इस कुण्डली में भगवान गणेश के 12 नाम हैं)

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई 

   (13 जनवरी 2018)

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शिव वन्दना
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शिव शंकर कैलाशपति, शंभू डमरुधारी !
महादेव परमेश्वर, हे भोले भंडारी !!
हे भोले भंडारी, कृपा भक्त पर कीजे !
आया हूं तेरे द्वार, शरण में मोहे लीजे !!
त्व नमन करे घनश्याम,पशुपति हे गंगाधर !
काशीपति भोलेनाथ, जटाधर शिव शंकर !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई

(13 फरवरी 2018- शिवरात्रि)

 

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सरस्वती वंदना 

“”””””””’’’’’’

अभिनन्दन मां शारदे, धरूं तिहारो ध्यान ! 

किरपा मो पर कीजिये, दे हिरदै मैं ज्ञान ! 

दे हिरदै मैं ज्ञान, मात शरण मोय लीजे ! 

कलम उठे हित देश, मां मोय वर ये दीजे ! 

नमित ‘श्याम’ कर जोड़, मात की आया शरणन ! 

बसन्तपंचमी पर्व, पर आप का अभिनन्दन !! 

 

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई

(बसन्तपंचमी - 22 जनवरी 2018)

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करणी वन्दना

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शक्ति रूपेण संस्थिता, सर्वभूतेषु मात ! 

कृपा अपनी राखज्यो, मुझ पर करणी मात !! 

मुझ पर करणी मात, बात तुम सुणजो मोरी ! 

सब उपाय कर हार, शरण मैं आयो तोरी !! 

नमित ‘श्याम’ कर जोड़, करूं नित तोहरी भक्ति ! 

कर कष्टन को दूर, वर मोहे दीजे शक्ति  !! 

 

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राधा कृष्ण

श्याम चरावत मधुवन में, ग्वाल बाल सँग धेन !

यमुना तट पर लरि गए, राधाजु संग नैन !!

राधाजु संग नैन, चैन फिर छीन्यो सारो!

ग्वालन सौं अरदास, करत कान्हो बेचारो !! 

‘इक बर मोहि दिखाय, दे राधाजू को धाम !

माखन तोय खिलाय दूं’ करै चिरौरी ‘श्याम’ !! 

 

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गोरखपुर महोत्सव

“‘’’’’’’’’”””””””””’’

बोतल नइ में पेश है, फिर से वही शराब ! 

गोरखपुर में देखिए, सैफई का शबाब !! 

सैफई का शबाब, सुने होंगे तुम चरचे ! 

‘पार्टी विद डिफरेंस’, सवा करोड़ हैं खरचे !! 

नेताओ की भीड़, बुक हुये सारे होटल ! 

कारोबारी खुश, बिक रही महंगी बोतल !! 

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जनता धन की  लूट है, लूट सके तो लूट !
लूट के भाग विदेश को, तुझको पूरी छूट !! 

तुझको पूरी छूट, नहीं अब वापस आना ! 

आये निकट चुनाव, चंदा पूरा भिजवाना !! 

सांच कहे ‘घनश्याम’,बैंक को काहू चिंता !

कर देगी भरपाई, तैयार खड़ी है जनता !!

(15 फरवरी 2018)

बधाई

“””””

प्रफुल्लित अति आज है, इंद्रपुरा परिवार !
राबड़ियाद परिवार में, हो रहा मंगलाचार !!
हो रहा  मंगलाचार, चंगोईगढ़ में भारी !
धन्य हमारे भाग्य, पधारे कृष्ण मुरारी !!
अभिजीत-मनु की जोड़ी, बनी रहे अपरिमित !
घनश्याम हृदय है, आज अति प्रफुल्लित !!

(12 फरवरी 2018)

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नव वर्ष 

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बधाई नववर्ष की खुश रहें सब लोग,

हर्ष भरा जीवन हो, रहे दूर दुख-रोग!

रहे दूर दुख-रोग जग में नाम कमाएं,

प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ते जाएं!

आज बधाई स्वीकारें ‘घनश्याम’ की,

कृपा आप पर बनी रहे प्रभु राम की!

(1 जनवरी 2019)

..........

आंख्यां पाड़ उडीकिया नीं आया करसा याद !

खळा भिजोवण ताँय अब  रोज करै कुचमाद !

रोज करै कुचमाद  आध कर दीनी  पैल्यां ही !

रयो - सयो खोसण नै अब  पड़ग्यो गैल्यां ही !

 बेमौसम रा मेह रामजी  जमां रुळाय नाख़्या !

आय पड़ी 'घनश्याम' अब करसां री आंख्यां !!

 

ठंडी करड़ी ठाकरां नित न्हाणो द्यो छोड,

जीमो गर्म जमावणा  सांठी ओढो सोड़ !

सांठी ओढो सोड़ नितर बुगची बण ज्यास्यो,

सीधी हुसी मरोड़ ठंड मं जद झल ज्यास्यो ! 

जाणो पड़ ज्या बा'र पेरज्यो मोटी बंडी,

ऊपर  पैरो  कोट  पड़ै  है करड़ी ठंडी !!

......

*नौतपै री कुण्डलिया*

 

रोहणी म सूरज बड़्यो, नौतप आयो खास,

लूवां  चाली  जोर  री, पारो चढ्यो पचास!

पारो चढ्यो पचास, जीव जूणी झुळसायी,

पवन  देव  री  दया, रेत सँग ठंड बरसायी!

देखा  देखी  इंद्र करी, जद किरपा सोवणी,

बरस्यो  मेह  घनश्याम, जद गळी रोहणी !!

 

1 June 20

 

लूवां  लपटां  ले  रयी, तपै  तावड़ो  तेज,

जीव रुल रिया रामजी, बेगी बिरखा भेज !

बेगी बिरखा भेज, तावड़ा सया न जार्या,

मिनख जिनावर पेड़, पखेरू सै मुरझार्या !

'घनश्याम' अणूति बळत, सूकियो पाणी कूवां,

पेड़ बळै ज्यूं लाय, चालरी कोजी लूवां !!

 

28 may 2020

………...

 

*आखातीज री  खीच*

 

चोखी छुळको बाजरी, छड़-छड़ नान्ही कूट!

हारै हांडी चाढनै, सीजण री द्यो छूट !!

सीजण री द्यो छूट, मतैई मसकै मसकै !

खदबद करतो खीच, भैंस ज्यूं धाई टसकै !!

सीज्यां फेरूं ठार, थाळ रै देवो टोखी !

ठोको घी री नाळ, गळगच करल्यो चोखी !!

                        

देसी रयी न बाजरी, मोठ हुवै ह साठी !

उंखल मूसल ना रया, न ही हारा हांडी !!

न ही हारा हांडी, कियां सीजै अब मसकै !

न हिम्मत कूटण री, गोरड़ी पैली टसकै !!

पैली री कर होड, खाय लेवै जे बेसी !

कर देवै ओचाट, रयो नीं घी भी देसी !!

........

लिछमी  नै  बुलांवता, घी रा दीपक चास,

अब बिजळी री लड़ चसै, पट्टाखां री बांस !

पट्टाखां  री  बांस, सांस काठी  घुट ज्यावै, 

बाजै धूम-धड़ाम, लिछमी डर पाछी जावै !

दस दिन तांई लाग, सफाई करी ही आछी,

कर दीनी 'घनश्याम’, पटाखां गंदगी पाछी !!

………

नारी तू नारायणी नर की पालक मात,

जननी धर्म निभा रही अर्धनग्न है गात !

अर्धनग्न है गात बाल दुधपान कराती,

जंगल लकड़ी बीन गाड़ी घर की चलाती !

संघर्षों की राह मगर है हिम्मत भारी,

जीवन पथ है कठिन मगर ना हारी नारी !!

*****

संविधान का बन रहा, पल-2 बड़ा मजाक !*

*पूरब से पच्छिम तलक, बस ईडी की धाक !*

*बस ईडी की धाक, मगर जनता है भोली !*

*घोड़ों  का  व्यापार , लग रही ऊंची बोली !*

*बस कुर्सी की भूख,नहीं है ख्याल मान का !*

*नित-नित देखो रेप, हो रहा संविधान का !!*

.........

वंदे  भारत  ट्रेन से  भिड़ गइ  काली भैंस,

बहुत बजाई बीन पर उसको ना था सैंस !

उसको ना था सैंस बिगड़ा रेल का हुलिया,

कर गई भीतरमार जाम हुआ फिर पहिया!

नींबू  मिर्ची  टांग  कराओ  कहीं  जियारत, 

(या)बुलवा योगी नाम बदल दो वंदे भारत !!

........

महंगाई की कुंडलियां….

 

महंगाई क डंक सूं जनता सारी त्रस्त,

सत्ता छीनाझपट मं नेता सारा व्यस्त !

नेता सारा व्यस्त पकड़ सत्ता गी सीढ़ी,

मित्र भाई भतीज तर रयी सातूं पीढ़ी !

मीडिया हुयो मस्त बँट रयी खूब मलाई,

जनता गै ही 'श्याम' भाग लिखी महंगाई !! 

.........

बीता फागुन बावरा, आया ज्यों मधुमास,

नव कोंपल फूटन लगी, छाई बास सुवास!

छाई बास सुवास, भ्रमर गूंजे बगियन में, 

पंछी करते शोर, फुदकते वन उपवन में ! 

चढ़ा अचानक पारा, जल अंखियन का रीता,

'श्याम' लगत मधुमास, आन से पहले बीता ! 

 ........

जाति है कि जाती नहीं, भेद रही उपजाय !

नेताओं को चुनाव में, करती बहुत सहाय !!

करती बहुत सहाय, अजब है इसकी माया !

फैल देश पर रहा, जाति का काला साया !!

घनश्याम विकास से, अधिक इसीकी है ख्याति

महामहिम जी से भी बड़ी पहचान है जाति !!

********

अब द्हेज-दिखावा-दारु क्षत्रिय दीमक तीन,

झूठी मूंछ मरोड़ में हो रहे दिन-दिन हीन !

हो रहे दिन-2 हीन जा रहे और पिछड़ते,

बना नाक का प्रश्न रोज आपस मे लड़ते !

गर लड़ना ही है तो लड़ो कुरीतियों से सब,

बचा नहीं घनश्याम कोई जीने का रस्ता अब !!

.......

भ्राता कहूं या मित्र कहूं, या दूजा दूं कोई नाम ,

इस शुभ दिन पर आपको, मेरा मधुर प्रणाम !

मेरा  मधुर  प्रणाम, आज  वय  हुई  साठ  है, 

पुरखों का आशीर्वाद, आज सब ठाठ-बाठ है !

षष्ठिपूर्ति  दिवस  आज, यह  याद  दिलाता,

वरिष्ठ नागरिक हुए आज, मेरे अग्रज भ्राता !!

......

कोरोना की कुण्डलिया* 

 

*मानव* ने निज दम्भ में, किया प्रकृति का नाश,

अपने हाथों ही स्वयं,  अपना किया विनाश !

अपना किया विनाश, आज बोले सिर चढ़कर 

मकड़ी ज्यूं मर रहा, स्वयं के जाल में फँस कर !

देव वृति  को  छोड़, बन  गया  कैसे  दानव,

ना समझे घनश्याम, अबोध अभी भी *मानव* !!

 

संकट  वेला  है  बड़ी, रखदो सिर पर हाथ,

नमन करूँ कर जोड़ हे, देशाणा की मात !

देशाणा  की  मात, आज है  विपदा भारी,

भयग्रस्त  है  देश, करो  तुम सिंह सवारी !

कोरोना को मिटा, करो तुम पथ निष्कंटक,

अर्ज करे घनश्याम, मिटाओ देश का संकट !!

20 April 2020

 

करोना की काट का लॉक डाउन है मंत्र,

पालन करवाने इसे  लगा हुआ सब तंत्र,

लगा हुआ सब तंत्र हमारा हित समझाए,

होय नियंत्रण गर सब अनुशासन अपनाएं,

इकोनॉमि, बिजनस छोड़ो सब रोना धोना,

पड़ा  रहेगा  ठाठ  सभी गर बढ़ा करोना !!

15 april 2020

 

सवैया छंद

 

*मदिरा सवैया छंद* {7 भगण(२११) + 1 गुरु, कुल 22 वर्ण} 

 

मानव देख अरे जुलमी 

    धरती अपनी न बिगाड़ भला,

काट रहा वन जंगल ही सब 

          और पहाड़न खोद चला,

स्याह सभी करतूत करे अरु 

          ओढ़ रहा कपड़ा उजला,

है 'घनश्याम' उदास खड़ा बस 

          देख रहा यह लूट कला !

******

*मालती (मत्तगयन्द) सवैया छंद* {7 भगण(२११) + 2 गुरु, कुल 23 वर्ण} 

 

*बाल सखा अरु मीत युवा सब* 

            *छूट गए घर और घराने,* 

*वैभव की जब चाह लगी सब* 

         *भाग पड़े धन और कमाने,* 

*मात पिता व पितामह भी सगरे* 

            *तब आज भये अनजाने,*

*चाह रही जिन को धन की समझे* 

          *खुद को बस मात्र सयाने !!*

……….

 

आज दहेज बना अति दाहक दाह रही ललना दुखियारी !

जो नकदी नह लेवन की करते जन आज दिखावट सारी !

लेय रहे गहना सब साधन वाहन भी अति कीमत वारी !

केशव आय सहाय करो अब औरत कौम दुखी अति भारी !!

………

आज किसान विलाप रहा बरबाद हुई फसलें अब सारी,

खेत  गये  मुरझाय  सभी बरसे पर नांय कछू जलधारी,

सूरज भी अब कोप भयो चतुमास मझार तपे अति भारी,

राघव आय सहाय करो हलवाहक कौम दुखी अति भारी !

…….

*किरीट सवैया छंद* {8 भगण(२११) 24 वर्ण} 

 

पाप बढ़ो धरनी पर बेढब मानव ना कछु ध्यान धरो जब ?

गाय पुकार रही तुझ को सगरी तुम मानव कान धरो अब !

हाय अचानक कैसन संकट, आय पड़ो घन श्याम यहां सब !

गौधन सार बिमार भयो कछु तो भगवान सहाय करो अब !! 

…..

दुर्मिल सवैया छंद में सिंहावलोकन...

 

तज काम विषै अरु लोभ सदा,

          मनवा समझा कछु ले मन को !

मन को वश में कर ले अपने, 

           मत ना कर लालच तू धन को !

धन को मत मान बड़ा इतना, 

          कछु ध्यान धरो अपने तन को !

तन को न बिगाड़ अरे इतना, 

          घनश्याम गला मत यौवन को !! 

………

*किरीट सवैया छंद* {8 भगण(२११) 24 वर्ण} 

 

*राम कहूं रघुनाथ कहूं तव,*

     *नाम बहू विधि लेय सबै जन!*

*आंखन में बस जाय छवी तव,*

     *कानन में तव नामहि गुंजन !*

*जागत सोवत ध्यान धरूं तव,*

   *होय प्रफुल्लित ध्यावत ही तन!*

*नाम तिहार बसे मन अंदर,*

     *याद करुं तब मोद भरे मन !!* 

……….

गौमाता के कष्ट में शामिल होते हुए एक *किरीट सवैया छंद* {8 भगण(२११) 24 वर्ण} के माध्यम से अपनी भावनाएं प्रकट करने का प्रयास किया है…

 

पाप बढ़ो धरनी पर बेढब मानव ना कछु ध्यान धरो जब ?

गाय पुकार रही तुझ को सगरी तुम मानव कान धरो अब !

हाय अचानक कैसन संकट, आय पड़ो घन श्याम यहां सब !

गौधन सार बिमार भयो कछु तो भगवान सहाय करो अब !!

 

✍️ *घनश्याम सिंह चंगोई* 

………

घनाक्षरी छन्द

*घनाक्षरी छंद*

भादो कृष्ण पक्ष अष्ठ, देवकी प्रसव कष्ट,
कंस भय से त्रस्त, वसुदेव घबरात हैं !
कृपा हो जो ईष्ट की, हो पूर्ति अभीष्ट की,
आशंका अनिष्ट की, बड़े ही अकुलात हैं !
सहस दीप्त कारागार, हुआ लुप्त अंधकार,
भए सुप्त रखवार, सब होश खोय जात हैं !
रात्रि आई मध्य याम, तब प्रकट भये श्याम,
बार- बार परनाम, *घनश्याम* गुन गात है !!

🙏श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएं 🙏
……...

जीत जाता जग में जो, दोष सारे धुल जाते,
बिन पानी साबुन हो, जाते सब साफ हैं !
'हारचंद' नाम कोई, रखता ना बच्चे का भी,
हारना है बड़ा दोष, उसको नहीं माफ है !
जीतते ही ज्ञानी बन, देते सब प्रवचन,
पास कोई जा न पाता, बढ़ जाता ताप है !
हारे के ज्यों गुब्बारे से, हवा है निकल जाती,
घनश्याम ‘हारे के तो हरिनाम’ पास है !!
17 may 2019
…..

प्रकृति का प्रहार 

चीर के धरा का वक्ष, उलीच के नीर रस,
काट सारे वन वृक्ष, धरन बांझ किए हैं !
सारे वृक्षों को उखाड़, किए जंगल उजाड़,
नग्न करके पहाड़, विकास नाम दिए हैं !
रसायन की बौछार, मित्र जीवों पे प्रहार,
भू की उर्वरा को मार, बंजर खेत किए हैं !
घनश्याम की पुकार, ये प्रकृति का प्रहार,
कोरोना कहो या जार, सचेत कर दिए हैं !!

✍️ *घनश्यामसिंह चंगोई*
25 April 2020

………

मृत्युभोज

पिता  परलोक  गए , रोते पुत्र छोड़ गए !

किसको सुनाएं दुःख,विधना के लेख हैं !!

चार पांच खानेवाले,कोई न कमाने वाले !

बेबस अबला नारी , रोती देख - देख हैं !!

समाज  के  ठेकेदार , खेत के खरीददार !

आतुर मृत्यु भोज को, इरादे नहीं नेक हैं !!

चटखारे ले ले भाई , सब खा रहे मिठाई 

'घनश्याम' शास्त्र में, लिखा कहां लेख है !!

......

*लीक*

 

“सिंघ सपूत शायर, चले लीक छोड़ कर, 

कूट कपूत कायर, पीटते जो लीक हैं।”

ये जो बात पढ़ी भाई, समझ में यही आई,

दुनिया में सबसे ही, बुरी बात 'लीक' है।

थानेदार कभी रीट, पटवारी कभी नीट,

छोटे बड़े पेपर भी, होय रहे लीक हैं।

हनिट्रेप फंस कर, कई नेता अफसर,

सुरक्षा के नक्शे पत्र, कर देते लीक हैं।

पूंजीपति बड़े बड़े, विदेश में जाय बड़े,

इंडिया के बैंकों में से, पैसा कर लीक हैं।

विकास वास्ते जो पैसे, पहुंचे जमीं पे कैसे, 

नेता-बाबू बीच में ही, कर रहे लीक हैं।

दफ्तर एयरपोर्ट, अस्पताल हो या कोर्ट,

जहाज व रेल की भी, छत होवे लीक है।

खर्चे बारह अरब, बनाई संसद जब,

राममंदिर साथ मे, वो भी छत लीक है।

इत्ते सारे लीक बीच, इंडिया में एक चीज,

सिर्फ है जो आजकल, हो रही 'बेलीक' है।

चौदह दिनो के मांय, आठ हादसे कराय,

'श्याम' रेलगाड़ी चल, रही छोड़ लीक है।


✍️ *घनश्यामसिंह चंगोई 'श्याम'*

 

त्रिभंगी छन्द

*त्रिभंगी छंद*  

 

हे नाथ सुनो मम,

मैं मूरख सम,

दूर करो तम,

बिन बिसरे !

 

मै चाकर तेरा,

चित्त बसेरा,

तू हरि मेरा,

दुःख हरे ! 

 

तेरे गुण गाऊं,

आशिष पाऊं,

गाय रिझाऊं,

आज तुझे !

 

है 'श्याम' तिहारो,

पूजन वारो,

मती बिसारो,

नाथ मुझे !!

*******

 

घन घिर घिर आवै,

मन ललचावै,

ना बरसावै,

तरसावै ! 

 

है ऊमस भारी, 

ताप मझारी, 

जियरो भारी, 

घबरावै !

 

करसा दुख पावै, 

 देव  मनावै,

इंद्र रिझावै,

बिड़दावै !

 

सुण किसन मुरारी,

 अरजी  म्हारी,

'श्याम' रियाया

दुख पावै !!

 

✍️ *घनश्यामसिंह चंगोई 'श्याम'*

*******

 

अमृत ध्वनि छन्द 

अमृत ध्वनि छन्द

 

अमृत ध्वनि छन्द  प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु अभ्यांतर समतुकांतता यदि तीनों यति में निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। पदान्त तुकांतता दो दो पद की आवश्यक है।

……

दुनिया मीठी काव्य की, छंद विधा भरपूर !

अमृत ध्वनि छंदों से, जैसे बरसे नूर !!

 

मात्रिक छंद, लय अति सुमंद, मन में लाओ !

आठ आठ पर, यती राख कर, चरण बनाओ !!

 

पहला पद तो, दोहा बस हो, बात काम की !

दूजा तीजा, चतुविंश मात्रा, अरज ‘श्याम’ की !!

द्विअक्षरी छन्द

द्विअक्षरी छन्द

कनक का कन नीका, ना कन नीका कनक का !
कनक की नोक नीकी, कानन नीका कनक का !
कान में कनक नीका, कूक नीकी किंकिनी !
कंकन कुनकाना नीका, नैन नीके कंक के !
कीकान के कान नीके, न नाक नीकी कंक की !
कोकी की कूक नीकी, न कीक नीकी काक की !!

*शब्दार्थ* …
कनक = गेहूं, धतूरा, नागचंपा, पलाश, सोना !
कन = भिक्षा, कन = प्रसाद, नीका = अच्छा, नीकी = अच्छी, नोक = नुकीलापन, कानन = बाग, कूक = सुरीली ध्वनि, किंकिनी = करघनी में लगी छोटी घण्टियां, कंकन = कंगन, कुनकाना = खनकाना, कंक = सफेद चील, कोकी = कोकिला (कोयल), कीक = चिल्लाहट, काक = कौआ, कीकान = केकाण प्रदेश का घोड़ा, कंक = बगुला !

*सरलार्थ* …
गेहूं (अन्न) का दान (भिक्षा) सबसे अच्छा है,
धतूरा प्रसाद के रूप में भी अच्छा नहीं है।
नागचम्पा की पत्तियां सुंदर नुकीली होती हैं,
पलाश का बाग बहुत ही अच्छा (सुरम्य) होता है।
कंगन की खनक अच्छी लगती है,
करघनी की घण्टियों की सुमधुर ध्वनि अच्छी लगती है।
कान में स्वर्ण (आभूषण) अच्छा लगता है,
सफेद चील की आंखे अच्छी (बहुत तेज) होती हैं।
कीकान घोड़े के कान (कनौती) अच्छे होते हैं,
बगुले की नाक (चोंच) सुंदर नहीं होती।
कोयल की कूक सबको अच्छी लगती है,
पर कौवे की चिल्लाहट अच्छी नहीं लगती।

✍️ *घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*

गजल

गजल

 

बहर - मुतकारिब मुसमन सालिम 

मापनी - 122 122 122 122

काफिया - आ , रदीफ - दे

 

1 

खता क्या हमारी हमें तू बता दे,

जमाना कहे जो उसे ना हवा दे !

करूं एक अर्जी तुम्हे मीत मेरे,

मुझे आज तू ना वफा की सजा दे !

तुम्हारी वफा है हमारा सहारा,

हमें बेवफाई न शायर बना दे !!

गए छोड़ के तुम हुई नींद गायब, 

हमें आज कोई तू लोरी सुना दे !

जरा 'श्याम' ठहरो अभी तो न जाओ, 

तुम्हारी विदाई हमें ना रुला दे !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई 'श्याम'

……..

हमें आज तू शायरी तो सिखा दे !

कताबंद दीवान मक्ता बता दे !

बता काफिया और अशआर क्या है,

रदीफो बहर की रवायत सिखा दे !

सिखा दे हमें भी हुनर आज तू जो,

जहां को हमारा दिवाना बना दे !

बनूं आज शायर लिखूं नज्म ऐसी,

कि दुनिया मुझे आसमां पे चढ़ा दे !

कहूं 'श्याम' ऐसी गजल मैं कि साथी,

सभी आज मुझको दिलों से दुआ दे !!

........... 

3 

हुआ भी नहीं है अभी कोई पैदा, 

जहां से हमारी जो हस्ती मिटा दे !

क्षत्री के कटे धर्म हित रोज माथे,

नए जो बने हैं अभी वो कटा दे !

तुम्हे वोट के जो लिए बरगलाते,

कहीं ये न हो वो तुमको भुला दे !

इतिहास चोरों सुनो ध्यान से तुम,

कहीं रब तुम्हारी न हस्ती मिटा दे !!

घनश्यामसिंह चंगोई 'श्याम'

………

 

कहमुकरी

कह मुकरी*

 

*दो घड़ी उस बिन रह नहीं पाऊं,

घड़ी घड़ी उसे गले रमाऊं !

उस बिन प्यास न बुझे शरीर,

का सखि साजन? ना सखि नीर !!

 

*तन मन उस पर वारी जाऊं,

प्रेम से उसको  गले लगाऊं,

लिपटे चिपटे बड़ा निठल्ला,

का सखि साजन? ना सखि लल्ला !!

 

*उसके संग नित गुजरे रैन,

रात को ता बिन नाहीं चैन !

एक दिन भी न रहे परहेज,

का सखि साजन? ना सखि सेज !!

 

*बदन से उसको मैं लिपटाऊं,

एक घड़ी न जुदा कर पाऊं !

सुंदरता पर जाऊं मैं वारी,

का सखि साजन? ना सखि सारी !!

 

*बदन को मेरे चूमे रोज,

गले से लिपटे छुए उरोज !

हरखूँ निरखूँ जो बारम्बार,

का सखि साजन? ना सखि हार !!

 

*मेरे दिल में बसे दिन रैन,

दर्शन को तरसे हैं नैन,

कर कर विनती मैं तो हारी,

का सखि साजन ? न सखि मुरारी !!

 

*सावन जोऊं उसकी बाट,

उसके आने से सब ठाठ, 

उसके आवन से मन हरखा, 

का सखि साजन ? ना सखि बरखा !! 

 

*भरी दुपहरी में वो आया,

घंटी बजाकर मुझे बुलाया,

झट दौड़ी आलस ना किया, 

का सखि साजन ? ना डाकिया !!

 

भरी दुपहरी में वो आया,

घंटी बजाकर मुझे बुलाया,

प्यासी दौड़ी नीर ना पिया, 

का सखि साजन ? नहीं डाकिया !!

 

*भरी दुपहरी में वो आये,

जो चाहूं सब चीजें लाये,

डिब्बा लादे बड़ा कैरियर, 

का सखि साजन ? नहीं कुरियर !!

 

*जाऊं उस घर बिना बुलाए,

हाथ पकड़ सब बात बताए,

ताहि मानूं सुख मिले असीम

का सखि साजन ? नहीं हकीम !!

 

*कभी आए कभी तरसाए,

आए तो तन मन हरसाए,

उसको नैन तके दिन रात,

का सखि साजन ? ना बरसात !!

 

*जब वो आए होऊं निहाल,

उसके बिना जीवन बेहाल,

काम करे जो भी हो जैसा,

का सखि साजन ? ना सखि पैसा !!

 

*होठ छुए कभी छूवे गाल,

झट से मेरी  बदले  चाल, 

छिल छिल जाते अधर मखमली, 

का सखि साजन ? ना सखि नथली !!

 

*श्याम सलोनी उसकी काया,

बोले  जैसे  रस  बरसाया, 

चाहूं मुझको लगे सुकोमल,

का सखि साजन ? ना सखि कोयल !!

 

*जीवन में उसका उजियारा,

उसके बिन जग सूना सारा,

जीवन बगिया उस बिन पतझर,

का सखि साजन ? ना सखि दिनकर !!

 

*तेल लगाय संवारे बाल,

मालिश करे दबाए भाल,

पर पीछे से  बोले डायन,

का सखि साजन ? ना सखि नायन !!

 

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई 'श्याम' 

 

शुभकामनाएं

दीपावली की बधाई

धन तेरस पर धन की वर्षा हो आपके  घर पे !
रूपचौदस रूप की देवी दिल खोलकर बरसे !
दीपोत्सव पे हो उजियारा खुशियों का चहुंओर!
 गोवर्धन धारी  का आशीर्वाद  मिले घनघोर !
भाई दूज बढ़ाये घर-घर भाई बहन का प्यार !
बधाई घनश्याम की शुभ दीपावली त्योंहार !!

घनश्यामसिंह राजवी चंगोई 

******

होली की बधाई

रंग अबीर गुलाल उड़ें अरु, 
पानी  की बौछार है आई ! 
ब्रज में ग्वाल-बाल राधा सँग, 
होली खेले कृष्ण कन्हाई !!

शहर ‘बीकाणा’ के पाटों पर, 
रम्मत की रंगत है छाई ! 
गांव ‘चंगोई’ के रसियों में, 
गींदड़ की मस्ती है अाई !!

‘घनश्याम’ कहे होली के संग,
दहन करें हम सभी बुराई ! 
प्रेम - प्रीत  बढ़े  भाईचारा, 
होली पर्व की तुम्हे  बधाई !!

घनश्यामसिंह राजवी चंगोई 
.(20 मार्च 2020)

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

(तर्ज- आओ बच्चो तुम्हे दिखाएं झांकी हिदुस्तान की, इस …. वन्दे मातरम-2)

(घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)

आओ बच्चो बात सुनाऊं, त्याग ओर बलिदान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

इस धरती पर भारत भूमि, मुल्क एक महान है !
जिसमें है सिरमौर सभी मैं, अपना राजस्थान ये !!
सूर वीर त्यागी तपसी अरु, दानवीर की खान है !
प्राणो से भी प्यारी इस की, आन-बान अरु शान है !!
मान बढ़ाने को इसका, वीरों ने देदी जान भी !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

‘गुहिल’ नाम एक बालवीर, जो शेरों के संग पला बढ़ा !
राज किया मेवाड़ धरा, गहलोत वंश को जन्म दिया !!
जिस के वंशज बप्पा रावळ, रतनसिंग, हम्मीर हुये !
कीर्ति पुरूष कुम्भा और चूंडा, राणा सांगा वीर हुये !!
अस्सी घाव लगे, बाबर संग, करी लड़ाई मान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

पन्द्रह सो सत्तानवे जब, विक्रम संवत वर्ष हुआ !
जेष्ठ मास की तिथि तृतीया, गुरुवार शुभ लग्न बड़ा !!
सांगा पुत्र उदयसिंह राणा, की पटरानी जयवंता !
कुम्भलगढ़ के नवल किले में, जेष्ठपुत्र को जन्म दिया !!
मेवाड़ी जनता को खुशियां, मानो मिली जहान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

नाम प्यार से ‘कीका’ कहते, बड़ा हुआ ‘प्रताप’ हुआ !
बाल समय से ही प्रजा संग, रहा कुंवर का प्रेम बड़ा !!
पिता की इच्छा पालन की, व लघु भ्रात को राज दिया !
प्रजा सारी हुई एकमत, राजतिलक प्रताप किया !!
लाज रखी राणा ने अक्षुण्ण, मेवाड़ी सम्मान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

दिल्ली में बाबर का पोता, अकबर था जब शाह हुआ !
जीते मुल्क अनेकों उसने, और राज विस्तार किया !!
सब राजाओं महाराजाओ, को जब उसने झुका दिया !
मेवाड़ी धरती पर उसकी, गिद्ध दृष्टि का पात हुआ !!
तब राणा प्रताप ने रोकी, राह विजय अभियान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

अकबर लेकर सैन्य बड़ी, मेवाड़ धरा पर चढ़ आया !
बारम्बार किये हमले पर, राणा को न झुका पाया !!
चितोड़ उदयपुर छूट गए, तब गोगुन्दा को अपनाया !
रसद ओर शस्त्रों की खातिर, धन का संकट मंडराया !!
अपना धन दे लाज रखी, तब भामाशाह ने मान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

अन्न बचा न खाने को तब, घास की रोटी खाई थी !
बाल अमरसिंह से ले भागी, रोटी छीन बिलाई थी !!
राणा का मोह जाग उठा, तब दुख में कलम उठाई थी !
पाती लिख अकबर को इच्छा, सन्धि की जताई थी !!
पर ‘पीथल’ की पाती से, जल उठी ज्योत सम्मान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

हल्दीघाटी युद्ध हुआ, घनघोर रक्त की धार बही !

झाला मान, सूरी हकीम खां, राणा पूंजा लड़े वहीं !!
वीर शक्तिसिंह की भी प्रीति, फिर राणा के संग हुई !
चेतक की स्वामिभक्ति से, सारी दुनिया तब दंग हुई !!
भीलों ने राणा संग लिखदी, गाथा तब बलिदान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

गांव ‘चंगोई’ मे सीखी है, हमने सच्ची सीख यही !
नमन करे ‘घनश्याम’ सदा व, मांगे रब से भीख यही !!
उन वीरों की राह चलें, उनका सच्चा सम्मान यही !
कितने कांटे मग में आये, नहीं मगर वो झुके कभी !!
अकबर भी रो पड़ा, हुई जब मृत्यु उस इंसान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

आओ बच्चो बात सुनाऊं, त्याग ओर बलिदान की !
हिंदवी सूरज शेर बबर, राणा प्रताप महान की !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!
जय जय राण प्रताप, जय जय राण प्रताप !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई

(नव संवत्सर 2075 चैत्र शुक्ला प्रतिपदा- अहमदाबाद)

रानी पद्मिनी

  • रानी पद्मिनी

पतिव्रता थी पद्मिनी, देवी दुर्गा रूप।
वर पाया वीरांगना, रावल रतनसिंह भूप॥

खिलजी ने ख्याति सुनी, रीझा पद्मिनी रुप।
घेरा गढ़ चित्तौड़ को, गर्ज उठे रजपूत॥

“दर्पण में छवि देख लूं” खिलजी का संदेश।
“घेरा तोडूं दुर्ग का, जाऊं अपने देश॥”

दर्पण देखी पद्मिनी, तन छाई मुर्छान।
छल से भूप बुलाविये, कैद किये तुर्कान॥

“जीवित चाहे रतनसिंह, तो बेगम बन जाव“
सन्देशा पद्मिनी सुना, लगा कलेजे घाव॥

गोरा-बादल चढ़ चले, चमकाने समशीर।
संग पालकी सातसौ, जिन में क्षत्रिय वीर॥

खिलजी को मतिभ्रम हुआ, ताड़ सका ना बात।
समझा पद्मिनी आ रही, लेकर सखियां साथ॥

“पद्मिनी रावल से मिले, फिर जाएगी रनिवास”
कूटचाल गोरा चली, खिलजी सका न भांप।

रावल की बेड़ी कटी, बादल लियो चढ़ाय।
अश्व उड़ा फर्राट से, दिया दुर्ग पहुंचाय॥

गोरा के संग जुट पड़े , पालकियों के वीर।
तुर्क फ़ौज से भिड़ गए, चमक रही समशीर॥

गोरा का सिर कट पड़ा, थमी नहीं तलवार।
धड़ फिर भी लड़ता रहा, कर तुर्कों पर वार॥

खिलजी फिरसे चढ़ चला, मन में लिये मरोड़।
दुगुनी सेना संग ले, घेरा गढ़ चित्तौड़॥

रसद ना रही दुर्ग मैं, अन्न रहा ना नीर।
क्षत्रिय केसरिया पहन, निकले ले समशीर॥

साका किया सिसोदिया, जमकर हुई लड़ाई।
सखियों के संग पद्मिनी, जौहर अगन समाई॥

पद्मिनी सती महान तू, भली निभाई रीत।
जग के संग ‘घनश्याम’ भी गाए तेरे गीत॥

✍ राजवी घनश्यामसिंह चंगोई

(25 जनवरी 2018)

राणी पदमणी (मारवाड़ी)

राणी पदमणी

पतिव्रता ही पदमणी, देवी दुर्गा रूप।
बर पायो बीरांगना, रावळ रतनसिंग भूप॥

खिलजी ख्याति सुण लई, रीझयो पदमण रुप।
कड़ो कोट रै नाखियो, गढ़ चित्तौड़ा चोकूंट॥

सन्देसै सरतां लिखी, ‘दरपण देओ दिखाय।
निरखुं राणी रुप नै, लश्कर लेऊं उठाय॥’

दर्पण देखी पदमणी, तन छाई मुर्छान।
छळ सूं भूप बुलावियो, कैद कियो तुर्कान॥

“जीवित चावै रतनसी, तो हरम हमारे आव”।
सन्देसो पदमण सुण्यो, हिरदै लाग्यो घाव॥

गोरा-बादल चढ़ चल्या, चमकावण समशीर।
संग पालकी सातसौ, ज्यां मैं रजवट वीर॥

कूटचाल गोरा चली, खिलजी सक्यो न भांप।
समझयो पदमण आ रयी, ले सखियां नै साथ॥

“ रावळ मिलसी पदमणी, फेर हरम मैं जाय।”
खिलजी लख्यो न बात नै, मंजूर करी आ’ राय॥

रावळ री बेड़ी कटी, बादळ लियो चढ़ाय।
अश्व उडयो फर्राट सूं, झट सूं कोट पुगाय॥

गोरा सागै जुट पड्या, पालकियां रा वीर।
तुर्क फ़ौज सूं भिड़ रया, चमक रयी समशीर॥

गोरा रो सिर कट पड़्यो, थमी नयीं तलवार।
धड़ फिर भी लड़तो रयो, कर तुरकां पर वार॥

खिलजी फेर रिसाणीयो, दूणी फ़ौजां जोर।
चित्तोड़ै गढ़ आ चढ्यो, घेर लियो चहुं ओर॥

रसदां खूटी दुर्ग मैं, खूटयो अन्न ओर नीर।
छत्री कसूमल पैर नै, निकल्या ले समशीर॥

साको करियो रजवटां, तुरकां मार मचाई।
पदमण सखियां संग मैं, जौहर अगन समाई॥

पदमण तूं लूंठी सती, घणी निभाई रीत।
रजवट सुत ‘घनश्याम‘ भी, गावै थारा गीत॥

By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(24 जनवरी 2018)

श्रद्धांजलि

राव शेखाजी व महाराजा गंगासिंह जी को जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि
****************
विजयादशमी पर्व आज दिन, जन्मे थे दो वीर सुजाना!
क्षत्रिय वंश के कुल गौरव थे, गर्व कर रहा राजपूताना !!
कच्छप वंश आमेर भूप, उदयकरण सुत बालाजी!
उनके सुत थे मोकलजी, जिनके घर थी संतान नहीं !!
गोसेवा करते जंगल में, मिले शेख बुरहान फकीर !
संत की सेवा, मिलता मेवा, तप से जन्मे शेखा वीर !!
गढ़ अमरसर बनी रजधानी, फिरी दुहाई चारों ओर !
सौ-सौ कोस मे राज किया, शेखावाटी बनी सिरमौर !!

मरु भूमि में कमधज बीका, बीकाणा में राज किया !
पन्द्रहवी पीढ़ी, लालसिंह घर, गंग भूप ने जन्म लिया !!
मरुभूमि धोरों की धरती, अन्न-जल का बड़ा अभाव !
दूरदृष्टा वे बने भागीरथ, हुआ गंगनहर का प्रादुर्भाव !!
रेल चिकित्सा शिक्षा चहुँदिश, बीकाणा को चमकाया!
गोलमेज सम्मेलन जाकर, इंग्लैंड में भी मान बढ़ाया !!

नतमस्तक हो याद कर रहा, आज आपको है घनश्याम!
जन्मदिवस पर युगपुरुषों को, है मेरा शत-2 प्रणाम !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई
(विजयादशमी, 19 अक्टूबर 2018)

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श्रद्धांजलि (शहीद रविन्द्रसिंह राठौड़ धोलिया)

 

धन्य है वो पिता माएं, जिनने सत्पुत्र जाए !
दिए अच्छे हैं संस्कार, परिवार वो धन्य है !!

धन्य हैं वो गुरूजन, देश भक्ति गढ़ी मन !
सद्शिक्षा संचार किया, पाठशाला धन्य है !!

धन्य हैं वो भामिनि, इनकी बनी अर्धांगिनी !
सुहाग जो बलिदान, हुआ देश हित धन्य है !!

धन्य जन्मभूमि ग्राम, रविन्द्र से बढ़ा मान !
राष्ट्र हित लाल दिया, धोलिया भी धन्य है !!

धन्य क्षत्रिय समाज, सपूत पर करे नाज !
वीर भोग्या मरुधरा, की माटी आज धन्य है !!

दिल को नहीं करार, बह रही अश्रु धार !
कर सहस्र प्रणाम, घनश्याम भी धन्य है !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई 

(1 जुलाई 2020) 

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जिंदगी अटल है मौत भी अटल है

(श्रद्धांजलि अटलबिहारी वाजपेयी

 

जो जिंदगी अटल है, तो मौत भी अटल है !
सबके दिलमें जल रही, वो जोत भी अटल है !!

राष्ट्रवाद का निनाद, कविताओं के साथ !
गूंजेगा युगों – युगों, जो गीत वो अटल है !
बार-बार का प्रयास, मिटती ना कभी आस !
हार कर फिर जीत हो, तो जीत वो अटल है !!

जो जिंदगी अटल है, तो मौत भी अटल है !
सबके दिलमें जल रही, वो जोत भी अटल है !!

चाह एक बार की, पर जीवन भर प्यार की !
एक बार बन गए जो, मीत वो अटल है !
प्रणय का निवेदन तो, होता है एक बार !
संबंध चाहे न जुड़ें, पर प्रीत तो अटल है !!

जो जिंदगी अटल है, तो मौत भी अटल है !
सबके दिलमें जल रही, वो जोत भी अटल है !!

देश हो या विदेश, मानवता का संदेश !
फैलेगा युगों-युगों, सन्देश वो अटल है !
स्तब्ध है पूर्ण देश, स्मृति रही है शेष !
‘घनश्याम’ कर रहा नमन, देश वो अटल है !!

जो जिंदगी अटल है, तो मौत भी अटल है !
सबके दिलमें जल रही, वो जोत भी अटल है !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(17 अगस्त 2018) 

 

क्षत्रिय धर्म

क्षत्रिय धर्म
(By- घनश्यामसिंह चंगोई)

क्षत्रिय को धर्म सिखाते हो,
तूने क्षात्र-धर्म ना जाना है!
हर एक धर्म निभाया जब,
क्षत्रिय ने मन मे ठाना है !!

बन राम निभाई मर्यादा,
केशव बन कर्म सिखाया था!
बलि बनके वामन भिक्षु को,
अपना सर्वस्व लुटाया था !!
गो रक्षा हित, पाबू राठौड़,
जो आधे फेरे छोड़ चले !
राणा प्रताप ने कष्ट सहे,
*क्षत्रिय* कुल मान बढ़ाया था !!

क्षत्रिय सुत नृप विश्वामित्र,
राज तजा बने *ब्रह्मऋषि* !
स्वमंत्र बल से सदेह स्वर्ग,
त्रिशंकु को पहुंचाया था !!
इंद्र विरोध के कारण जब,
बीच अधर में लटक गया !
तब स्वयं तपोबल से अपने,
एक नया स्वर्ग बनाया था !!

ले हाथ तराजू *वैश्य* बना,
नृप शिवी क्षत्रिय जाया था!
जब धर्म परीक्षा लेने इंद्र ने,
बाज का रूप बनाया था !!
शरणागत चिड़िया की रक्षार्थ,
किंचित ना वो सकुचाया था!
इक पलड़े में चिड़िया दूजे में,
देह का मांस चढ़ाया था !!

वचन निभाने *शूद्र* बना जो,
हरिश्चंद्र वह सत्यवादी !
बाजार बीच खुद को बेचा,
ऋषि का भार चुकाया था !!
रानी बेच, पुत्र को बेचा,
रखा कलेजे पर पत्थर !
मरघट का चौकीदार बना,
किंचित भी ना सकुचाया था !!

है रक्त वही , है वंश वही,
‘घनश्याम’ जगत का रक्षक तू!
दूजों से लेने की चाह न कर,
तुझे दाता धर्म निभाना है !!
क्षत्रिय को धर्म सिखाते हो,
तूने क्षात्र-धर्म ना जाना है!
हर एक धर्म निभाया जब,
क्षत्रिय ने मन मे ठाना है !!

*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*
(दिनांक- 25 मई 2019)

अभिनंदन_हे_अभिनंदन

🙏अभिनंदन_हे_अभिनंदन 🙏

अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

भारत के माथे के हो मुकुट,तुम इस माटी के हो चंदन!
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

जिस माता ने जाया तुमको,वोभी हिन्द की ‘शोभा’ हैं!
मानवता के हित मे उसने, अपने जीवन को सौंपा है !!
सेवा भावी ममता मूरत, ना बंधी देश की सीमा में !
युद्धों से पीड़ित मानवता , की लगी रही वो सेवा में !!
कैम्पेन चलाकर दुनिया को,बच्चों का सुनवाया क्रंदन!
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

जीवनसाथी ‘तन्वी’ ने भी, तन्मय हो देश की सेवा की!
वायुसेना में शामिल हो, स्क्वाड्रन लीडर आप बनी !!
आधा अंग पति का बनकर, सच्चा साथ निभाया है!
भारत मां की सेवा हेतु, निज रक्त – स्वेद बहाया है !!
अभिनन्दन नंदन को पाल रही,निभा रही है गठबंधन !
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

थे पिता भी सेना के गौरव,जिन प्लेन मिराज उड़ाए थे!
किया पाक को लस्त-पस्त,करगिल में बम बरसाए थे!
अतिविशिष्ट सेवा मेडल व, एयर मार्शल मिला ओहदा!
दादाजी ने भी महा युद्ध में , शत्रु की सेना को रौंदा !!
राष्ट्र गौरव कुल ‘वर्थमान’,को राष्ट्र कररहा आज नमन!
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

F 16 को मिग से गिराया, US को आईना दिखाया है !
कूद पड़े तुम शत्रुभूमि में,किंचित भी डर न समाया है !!
नापाक पाक का वक्ष रौंद, लौटे तुम अपना वक्ष तान!
सवा अरब जन हैं कृतज्ञ, भारत माता का बढ़ा मान !!
हे शूरवीर तेरे शौर्य को,‘#घनश्याम’ कर रहा है वंदन !
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

भारत के माथे के हो मुकुट,तुम इस माटी के हो चंदन!
अभिनंदन हे अभिनंदन, हम करें आपका अभिनंदन !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई

नारी तू जगजननी है

नारी तू जगजननी है
“”’’’’’’’’’’’’’’””’’’”””
सुता भार्या भगिनी है, नारी तू नर की जननी है!
हर रूप तेरा वंदनीय है, नारी तू जगजननी है !!

सती है, सावित्री, सीता है, गंगा, गायत्री, गीता है !
दुर्गा है, काली, अम्बा है, उर्वशी, मेनका, रंभा है!
सरस्वती बन देती विद्यादान,मीरा बन करती विषपान!
राधा बन प्रीत निभाती है, गंगा बन मोक्ष दिलाती है!

नौ मास गर्भ में धारण कर,दुनिया मे जीव को लाती है!
रक्त से पोषित कर अपने, निर्जीव को जीव बनाती है!
फिर पालन पोषण करती है,धात्री बन दुग्ध पिलाती है!
गुरु बन जीना सिखलाती है,जीवन का पाठ पढ़ाती है!

भार्या बन जीवन में आती,जीवन बगिया को महकाती!
तज मात-पिता को आती है, पतिगृह को अपनाती है!
पति कुल की सेवा ध्येय एक, देह एक कर्तव्य अनेक !
दुःख सुख में साथ निभाती है, वंश की बेल बढ़ाती है !

भगिनी देती स्नेह अपार, इक धागेपर देती जीवन वार!
मां की सह लेती डांट स्वयं, भाई खातिर लड़ जाती है!
सुता रूप में जब आती, कुछ भी कहने को सकुचाती!
प्रेम से जो दें वो पाती, अधिकार कभी ना जतलाती!

हाड़ी रानी, लक्ष्मी बाई बन, कभी राष्ट्र धर्म निभाती है!
मदर टेरेसा सी ममता, पन्नाधाय सा त्याग दिखाती है!
‘घनश्याम’ नमन करता इनको, ये नारी जग जननी है!
सुता भार्या भगिनी है, नारी तू नर की जननी है !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(महिला दिवस – 8 मार्च 2019)

बंदे बेशरम : वन्दे मातरम्

बंदे बेशरम : वन्दे मातरम्

भारत देश महान, करे यहां बड़ी-2 सब बात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

चोर यहां के नेता सब, दल अलग-2 बस नाम के !
इक – दूजे को चोर बताएं, लोभी हैं सब दाम के !!
आदत सब को पड़ी हुई है, सत्ता के बस स्वाद की !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

पुलिस प्रशासन का शासन, जनता के होते रक्षक !
रक्षा जिनकी जिम्मेदारी, वे ही आज बने भक्षक !!
साहूकार को धमकाते और, चोर का देते साथ जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

काला कोट वकील पहनके, न्याय के प्रहरी कहलाते !
नहीं गरीब की करें सुनाई, न्याय कभी ना दिलवाते !!
न्याय बिक रहा पैसे में, कह देते दिन को रात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

डॉक्टर थे आदर्श कभी, कहलाते थे दूजा भगवान !
फीस-कमीशन के आगे, हुई मरीज की सस्ती जान !!
पहनें कोट सफेद मगर, है काली इनकी जात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

भामाशाह थे सेठ यहां के, जनहित धन लुटाते थे !
कुएं – बावड़ी, शिक्षा मंदिर, सदाव्रत चलवाते थे !!
जनता का धन लूट-2 अब, रहे विदेश में भाग जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

शिक्षक थे आदर्श यहां, सिखलाते थे संस्कार वही !
अब नहीं वास्ता शिक्षा से, करते हैं बस खानापूरी !!
ट्यूशन-कोचिंग में फंसकर, बच्चे हो रहे बर्बाद जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

सरकारी बाबू तनखा को, तो अधिकार समझते हैं !
ऊपर वाली आय को ही, अब मेहनताना कहते हैं !!
तोड़ निकाले हरेक बात का, ये बाबू की जात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

मीडिया सत्ता का प्रहरी, होता था सच लिखा हुआ !
जनता की आवाज उठाता वोही अबहै बिका हुआ !!
अब भोम्पू सत्ता का है, ना करता जन की बात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

मेहनतकश भूखे मरते हैं, नहीं सुन रहा है भगवान !
पिस रहीहै भोली जनता, आज देख रहा ‘घनश्याम’ !
चोर-लुटेरे मिलजुल करते, खड़ी देश की खाट जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

भारत देश महान करे यहां बड़ी-2 सब बात जी !
अंगुली उठाये औरों पर, करे बातें आदर्शवाद की !!
बन्दे हैं बेशरम ! वन्दे मातरम् !!

✍️घनश्यामसिंह राजवी

पैली हाळा काम रया नी पैली हाळी बाणी

पैली हाळा काम रया नी पैली हाळी बाणी

पैली हाळा काम रया नी पैली हाळी बाणी,
बदळ गई जिंदगाणी सारी,रयी न बात पुराणी।
बदळ गई जिंदगाणी सारी, रयी न बात पुराणी॥

पैली हाळी कोई बात बाकी न रयी,
च्यार बजे उठ झोवंती बै ‘चाकी’ न रयी।
आठ सेर पीसती बै काकी न रयी,
डांगरा गी ‘फाटक’ कठैई बाकी न रयी ।।
डांगरा गी फाटक कठैई बाकी न रयी॥1॥

झांझरकै उठ करती बो ‘बिलोणो’ न रयो,
‘गूदड़ै’ गो अब तो बिछोणो न रयो ।
दोपारी मै रुखा तळे सोणो न रयो,
‘बारी-बँटै’ टाबरां गो रोणो न रयो॥
बारिबँटै टाबरां गो रोणो न रयो॥2॥

‘ऊंखळी अर मूसल’ गा धमाका न रया,
‘हारै’ पकती खीचड़ी खदाका न रया।
रामलीला, नकली गा ठहाका न रया,
बूडल्यां गी गाळ्यां गा सड़ाका न रया ।।
बूडल्यां गी गाळ्यां गा सड़ाका न रया॥3॥

‘रोटी ऊपर’ घलती सक्कर-खांड न रयी,
बडा-2 ‘झाकरा’ अर हांड न रयी ।
‘झोक’ गै माँ ब्यांवती बै सांड न रयी,
गिंडी मंडगे खेलता बा ‘डाँड’ न रयी ।।
गिंडी मंडगे खेलता बा डाँड न रयी॥4॥

सियाळै मै तप्या करता धूंयां न रयी,
‘टाडै’ गै माँ होया करती कूयाँ न रयी ।
‘बखियो’ लगावंती बै सूयां न रयी,
काडती लुगायाँ ‘ढेरा-जुंवा’ न रयी ।।
काडती लुगायाँ ढेरा-जूंयां न रयी॥5॥

पैली सी लुगायाँ अब चातर न रयी,
डिस्पोजल चालगी अब पातळ न रयी।
मीठी होती ‘काळती’ बा गाजर न रयी,
‘किली-लाव-चड़स-डोली-पांजर’ न रयी ।।
किली-लाव-चड़स-डोली-पांजर न रयी॥6॥

सुहागण गो सूण ‘बोरलो-रखड़ी’ कठै,
खेतां गी तो गेली अब संकड़ी कठै।
सेठां गी पिछाण होती ‘पागड़ी’ कठै,
छोटा-बडा सैं गै होती ‘तागड़ी’ कठै ।।
छोटा-बडा सैं गै होती तागड़ी कठै॥7॥

होया करती पैली अब ‘पांव’ न रयी,
गायटो ग़ाया करताा ‘दांय’ न रयी।
भाई-२ करता बैठ राय न रयी,
पाटै उतर ज्याता गांव ‘लाय’ न रयी।।
पाटै उतर ज्याता गांव लाय न रयी॥8॥

रिपिया जो घालता बा ‘न्योळी’ न रयी,
भाभियां जो करती बा ठिठोळी न रयी।
अब तो कोई ‘जात’ भोळी न रयी,
घर मै बड़तां होया करती ‘पोळी’ न रयी।।
घर मै बड़तां होया करती पोळी न रयी॥9॥

‘झूपड़ा-चंवरा-पड़वा-छान’ न रया,
‘अठ-सोळी’ ईंटा गा मकान न रया।
नाई जका राखता रछानी न रया,
‘मांग गे’ कमीज चढ़ता जानी न रया।।
मांग गे कमीज चढ़ता जानी न रया॥10॥

हारै मै गुंवार रन्दतो ‘बांटो’ न रयो,
साबण-तेल गो कठैई घाटो न रयो।
घड़ै पर गुंथेड़ो मूंज-‘डाटो’ न रयो,
आटो-नाज घालता बो ‘ठाटो’ न रयो।।
आटो-नाज घालता बो ठाटो न रयो॥11॥

घालता तमाखू बो ‘गट्टो’ न रयो,
पैरता पजामो बो ‘पट्टो’ न रयो।
‘मिठो-चूनो, खोर’ गो भट्टो न रयो,
‘सापतोड़ैे’ लूण गो कट्टो न रयो।।
सापतोड़े लूण गो कट्टो न रयो॥12॥

‘सिण-मूंज-अंकोळैे’ गा मांचा न रया,
‘सींगड़ी’ काढता बै टांचा न रया।
माणस अब झूठा होग्या साँचा न रया,
भाठो ढोंवता जका ‘ढांचा’ न रया।।
भाठो ढोंवता जका ढांचा न रया॥13॥

चढ़ण खातर ऊँटा गा ‘पलाण’ न रया,
नीरण खातर ‘ल्हास’ हाळा ठाण न रया।
सुसरै और जेठ गी अब काण न रयी,
टाबरां नै ‘सरड़कै’ गी बांण न रयी ।।
टाबरां नै सरड़कै गी बांण न रयी॥14॥

कुवै ऊपर होंवता बै ‘भूण’ न रया,
बडा-बूडा लेया करता ‘सूण’ न रया।
गांठ जो लगाया करता ‘जूण’ न रयी,
पाणी ‘चोखड़’ ल्याया करता ‘मूण’ न रयी।।
पाणी चोखड़ ल्याया करता मूण न रयी॥15॥

जट गा ‘सलीता’ और बोरा न रया,
‘घुत्ता-गिंडी’ खेलता बै टोरा न रया ।
कोटवाळ पीटता ढिंढोरा न रया,
‘माल्ला’ लगाता जका छोरा न रया ।।
माल्ला लगाता जका छोरा न रया॥16॥

ऊँटा गा ‘भिंटेरा-लद-लादा’ न रया,
‘बेड़-जेवड़ा-भूणिया’ आदा न रया ।
करगे निभांवता बै वादा न रया,
‘ल्हस’ उमट मेह आंवता उतरादा न रया॥
ल्हस उमट मेह आंवता उतरादा न रया॥17॥

पैली हाळी कोई बात खास न रयी,
पैली हाळी भूआं अर सास न रयी ।
कड़बी काटण खातर करता ‘ल्हास’ न रयी,
‘बरु-घँटील-सेवण’ घास न रयी ।।
बरु, घँटील, सेवण घास न रयी॥18॥

‘ल्हासू-घिंटाळ’ गी अब चार न रयी,
घर-२ मै टाबरां गी डार न रयी ।।
इसकुलां मै बणता ‘मुरगा,’ मार न रयी,
खेलता ‘धरसुंडो’ जीत-हार न रयी।।
खेलता धरसुंडो जीत-हार न रयी॥19॥

डांगर ‘बिरांता’ पाणी खारो न रयो,
घर गै धणी गो, घर मै सारो न रयो।
लेया-देया करता बो उधारो न रयो,
एकली खेती स्यू अब गुजारो न रयो ।।
एकली खेती स्यू अब गुजारो न रयो॥20॥

पैली सा जंवाई गा अब ‘कोड’ न रया,
आंवता बै पैली साधू-‘मोड’ न रया ।
माणस अब कोई सागी ठोड न रयो,
‘गुन्दी-पील-बरबंटी’ गो कोड न रयो ।।
गुन्दी-पील-बरबंटी गो कोड न रयो॥21॥

पाणी जो ले ज्याया करता ‘लोट’ न रयी,
भाखलै मै सिट्टीयाँ गी ‘पोट’ न रयी ।
‘भोबर’ मै जो सेकता बै रोट न रया,
लंबा-चोड़ा होता ‘धरकोट’ न रया ।।
लंबा-चोड़ा होता धरकोट न रया॥22॥

पलाण मै लगांवता बो ‘पागड़ो’ कठै,
हळ गै माँई ठोकता बो ‘बागड़ो’ कठै।
‘चऊ-फाडी-नेकस’ अर ‘पाछिन्तो’ न रयो,
लुखासणै मै हो ज्यातो ‘रातींदो’ न रयो॥
लुखासणै मै हो ज्यातो रातींदो न रयो॥23॥

‘बागर-कराई-छीवर-कीड़ा’ न रया,
थेपड़ी जो थापता ‘बटोड़ा’ न रया ।
बूढ़ा जो कराया करता ‘हीड़ा’ न रया,
जूती ढीली करता बै ‘खबीड़ा’ न रया ।।
जूती ढीली करता बै खबीड़ा न रया॥24॥

सासरै जाती ‘रोंवती’ बै छोरी न रयी,
टाबर नै सुवांवता बै लोरी न रयी ।
छोरां गी सगाई अब सोरी न रयी,
पाड़ोसी घर खुल्या करती ‘मोरी’ न रयी ।।
पाड़ोसी घर खुल्या करती मोरी न रयी॥25॥

‘फिटोड़ो’-निजर-टपकार न रयी,
होवण लागी पार्टी, ‘बढार’ न रयी ।
ऊँटा गी जो लदती ‘कतार’ न रयी,
बडी-बूडी सूंगती ‘नसवार’ न रयी ।।
बडी-बूडी सूंगती नसवार न रयी॥26॥

‘पोस्काट-अन्तरदेसी’ डाक न रयी,
ठाँव-कासण मांजता राख़ न रयी ।
पैली जिसी मीठै गी खुराक न रयी,
गांवा गै माँ सरपंचां गी ‘धाक’ न रयी ।।
गांवा गै माँ सरपंचां गी धाक न रयी॥27॥

देस बदल्यो तो “चंगोई” भी बदळी,
खेती करण हाळा गी अब हालत ‘पतळी’ ।
मजूरी तो करण हाळा करै मस्ती,
घी लागै मूंगों बांनै ‘दारू’ सस्ती ।।
घी लागै मूंगों बांनै दारू सस्ती॥28॥

नाम राम-घनश्याम जपै ना बोलै मीठी बाणी।
बदळ गई जिंदगाणी सारी, रयी न बात पुराणी॥
पैली हाळा काम रया नी पैली हाळी बाणी,
बदळ गई जिंदगाणी सारी,रयी न बात पुराणी॥
बदळ गई जिंदगाणी सारी, रयी न बात पुराणी॥

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(अप्रैल 2017)

फूट बिकै बेभाव भायला

फूट बिकै बेभाव भायला

मत ना खावै भाव भायला,
थोड़ो नैड़ो आव भायला !
पैली बात समझ तूं म्हारी,
पछ खाजे तूं ताव भायला !!

पूरी बातां सुणले म्हारी,
पछ चाहे तूं जाव भायला !
भाई-भाई रळमिळ रैणो,
क्यां रो है अळगाव भायला !!

रीस – रोस नै दूर फैंक दे,
राजी हो बतळाय भायला !
घर री बात सलट ले घर मैं,
दूजां मती सुणाय भायला !!

लोग सुणैला तो हांसैला,
मत बर्तण खड़काय भायला !
पाड़ौसी तो मौको ताकै,
देसी घणा लड़ाय भायला !!

कोर्ट-कचेड़याँ जावोला तो,
बै देसी लटकाय भायला !
आपसरी मैं धोखो करस्यो,
ऊपर होसी न्याय भायला !!

घनश्याम’ कैवै झूठ कोनी,
आ’ है सांची-साव भायला !
भाई – भाई राजी रैणो ,
फूट बिकै बे-भाव भायला !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई
(14 जनवरी 2018)

स्व. राजाजी बृजलालसिंह जी 

स्व. राजाजी बृजलालसिंह जी 

गांव चंगोई घणों पुराणों, पण गया पुराणा लोग।
नित उठ बां नै नमन करां, बै सगळा आदरजोग॥

बैठ दरवाजै सामनै, हो जेठ चाहे आसोज।
आरामकुर्सी-मूढ़ेै ऊपर, हुक्को पीता रोज॥
चोड़ो माथो, आंटी मूंछ्यां, चंगोई रा किंग।
पीलो साफो सोंवतो, राजा बृजलालसिंग॥

और बडेरा-बूढ़ा कई, करता बैठ हथाई।
खेत-खळां री बात पूछता, लेता सबगी राय॥
पीपळ दरखत नीम लगाता, करता बां रो पालन।
खुद भी रखता, बच्चा नै भी, सिखलाता अनुशासन॥

गामाऊ कामां गी खातर, पार्टी-बाजी छोड़।
राजाई-ठुकराई गी भी, करता नही मरोड़॥
ब्राह्मण-बणिया, जाट-ठाकरां, हरिजन, स्यामी-साध।
सार्वजनिक कामां गी खातर, सबगो लेता साथ॥

धर्मशाल, मंदिर अर गट्टा, प्याऊ-कूई-कुंड।
इस्कूल खातर झोळी मांडी, करयो नहीं घमण्ड॥
देस-दिसावर फिरया, चंदे खातर छोडी लाज नै।
सेठां स्यूं इस्कूल चिणाई, खुलवाई जा राज मै॥

चेजो होतो कठै गांव मैं, कींगै ही घर चाये नै।
बेरो पडतां पाण ही बै, जरूर देखता जाय नै॥
बडै कोड स्यूं देखता-कहता, आछी देता राय।
“बार-बार नहीं बणै बावळा, थोड़ो ओर बधा”॥

तारानगर तहसील वास्ते, राजपूत सभा चलाई।
तारासिहजी ट्रस्ट बणायो, दुकानां खुलवाई॥
बीकानेर क्षत्रिय सभा मैं, खूब जुड़ाया लोग।
राजपूत धर्मशाला खातर, खूब करयो सहयोग॥

सार्वजनिक कामां गी खातर, हाजर तन-मन-धन।
धरम-करम अर कथा-भागवत, घणों राखता मन॥
चमालीस की साल काळ की, इंद्रदेव नहीँ बरस्या।
मिनख-जिनावर-पेड़-पंखेरू, पाणी खातर तरस्या॥

सावण सुदी 2 मंदिर मैं, कीर्तन शुरू करायो।
चंगोई-मिखाला गांव को, सब जन सुणनै आयो॥
छठ कै दिन जद हवन हुयो, तो लीन्यो बीं मैं भाग।
सात्यू प्रातः ब्रह्म मुहूर्त मैं, दियो संसार नै त्याग॥

नहीं दुखायो मन गरीब को, आ’ ही करी कमाई।
राम नाम नै चित्त मैं राख्यो, सोरी मृत्यु पाई॥
कित्ता ही जे जतन करां, पण होड नहीं कर पावां म्हे।
है थांस्यु अरदास राम, बांरो नाम नहीं गमावां म्हे॥

 शत-शत नमन !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई
(15 जुलाई 2017)

श्रद्धांजलि रा सोरठा 

🙏 श्रद्धांजलि रा सोरठा 🙏

नमन करुं जगन्नाथ, दीनी मानुष देह मम !
नित उठ जोडूं हाथ, गुण ना भूलूं राजवी !!

सिरै बिकाणो नाम, ऊजळ भारत देस मंह !
बसै चंगोई गाम, राजा श्री रघुनाथसीं !!

रयो विधाता रीझ, छः बेटा एक धीवड़ी !
मोय जनक ज्यां बीच, पंचमसुत सुरजानसीं !!

अग्रज तीन उदार, म्हैं सूं पैली जन्मिया !
लगतै चौथी वार, म्हनै विधाता भेजियो !!

संवत दोय हजार, अट्ठारा री रामनमी !
जन्म मिळयो संसार, मां शेखाणी मात सूं !!

ढाई बरस उपरांत, डसियो काळो नाग पितु !
बाळक हुया अनाथ, न याद छवि मो तात री !!

बड्यो विधाता अंग, सबनै छाती चेपिया !
राजा बृजलालसिंग , चंगोई गढ़ पाटवी !!

दो राणीसा संग, शेखाणी-भटियाणी इक !
पण बिधना रा रंग, कुंवर कुंवरी एक नीं !!

भटियाणी जी नेह कर सुत छाती चेपियो !
ईश्वर कृपा अथेह, नन्द जशोदा मो मिल्या !!

दोयेक बरसां बाद, भाई-सैण भेळा किया,
पुत्र वत अपणाय, नाम दियो मो आप रो !

पालण पोषण चाव, संस्कारी शिक्षा दिवी !
कोई नयीं अभाव , देख्यो वां रै राज मं !!

गढ़ी विधाता रीत, आया सो जाणों पड़ै !
तोड़ गया सब प्रीत, छोड गया सब रोंवता !!

नमन करै घनश्याम, बैकुण्ठां बैठ्या थकां !
हिरदै वां रो नाम , कदे न उतरै राजवी !!

घनश्यामसिंह राजवी चंगोई

धर्म धरा पर घट रयो

धर्म धरा पर घट रयो

धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बाबा बण खोटा करै रोज मचावै हंच,
भोळी जनता ठग रिया रच नुंवा-नुवां प्रपंच !
धर्मीपण मैं आंधो हुग्यो नहीं समझै संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

डाक्टर तो भगवान कहिजता देता सही दवाई,
अब तो उल्टी छूरी काटै आं सूं भला कसाई !
रोगी नै कस्टमर समजै अस्पताळ व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

लोकतंत्र रो राज हुयो नित-नुवां राजा जामै,
रया रुखाळा लूट खजानों देखो सगळां सामै !
जनता नै खुद चूस रिया ऐ क्यां रा पालणहार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बडै बजट सूं ठेकेदार पुळ ओर बांध बणावै,
अफसर नै कमीशन देवै कोरी रेत मिलावै !
अधबिच मैं टुट ज्याय मरणियां रा रुलज्या परवार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बिजनेसमैन कमाई करता ‘आटो लूण समाई’,
अब तो पोवै निरै लूण री जनता री करड़ाई !
पांच बरस मैं चढज्या अरबां-खरबां मैं व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

लू ओर बर्फ मैं पहरो देवै सीमा पर जवान,
दाळ मिलै पाणी सी, बोल्यां VRS फरमान !
पेंशन हूगी बन्द जवानां री हुयो बुढ़ापो भार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

इण धरतीमां रा बेटा किरसा भरै देस रो पेट,
खाली खुदरो पेट रेवै पण नित उठ बोवै खेत !
मर्रया कर अपघात घाल गळ मैं करजै रो हार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

कोर्ट-कचेड़ी घणा होयग्या हाकिम जज-वकील,
तारीखां पर तारिख देवै पड़ी न्याय मैं ढील !
दादा री पोतां तक पेशी मेँ बिक ज्या घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

मेहनत कर मां-बाप पूत नै साहब-सेठ बणावै,
बण के साहब-सेठ पूत तो माइत नै भुल ज्यावै!
अंत बुढ़ापो नरक बणादे छुटवा दे घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

काची कळियां बाग री फूल-फळां रै बीच,
खुद कुकर्मी माळी ही मसळ रया है नीच !
चुप खड्यो ‘घनश्याम’ देख रयो मूरत ज्यूं संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(12 मई 2018, बैंग्लोर)

धरती मां रो दर्द

धरती मां रो दर्द

(शब्दार्थ:- ब्यौहार= व्यवहार, कुरळा रयी= चीख रही, खोटा=बुरे काम, किरसा= किसान, अपघात= आत्महत्या, माइत= मां बाप, काची कलियां= अबोध बच्चियां)

धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बाबा बण खोटा करै रोज मचावै हंच,
भोळी जनता ठग रिया रच नुंवा-नुवां प्रपंच !
धर्मीपण मैं आंधो हुग्यो नहीं समझै संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

डाक्टर तो भगवान कहिजता देता सही दवाई,
अब तो उल्टी छूरी काटै आं सूं भला कसाई !
रोगी नै कस्टमर समजै अस्पताळ व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

लोकतंत्र रो राज हुयो नित-नुवां राजा जामै,
रया रुखाळा लूट खजानों देखो सगळां सामै !
जनता नै खुद चूस रिया ऐ क्यां रा पालणहार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बडै बजट सूं ठेकेदार पुळ ओर बांध बणावै,
अफसर नै कमीशन देवै कोरी रेत मिलावै !
अधबिच मैं टुट ज्याय मरणियां रा रुलज्या परवार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

बिजनेसमैन कमाई करता ‘आटो लूण समाई’,
अब तो पोवै निरै लूण री जनता री करड़ाई !
पांच बरस मैं चढज्या अरबां-खरबां मैं व्यापार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

लू ओर बर्फ मैं पहरो देवै सीमा पर जवान,
दाळ मिलै पाणी सी, बोल्यां VRS फरमान !
पेंशन हूगी बन्द जवानां री हुयो बुढ़ापो भार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

इण धरतीमां रा बेटा किरसा भरै देस रो पेट,
खाली खुदरो पेट रेवै पण नित उठ बोवै खेत !
मर्रया कर अपघात घाल गळ मैं करजै रो हार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

कोर्ट-कचेड़ी घणा होयग्या हाकिम जज-वकील,
तारीखां पर तारिख देवै पड़ी न्याय मैं ढील !
दादा री पोतां तक पेशी मेँ बिक ज्या घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

मेहनत कर मां-बाप पूत नै साहब-सेठ बणावै,
बण के साहब-सेठ पूत तो माइत नै भुल ज्यावै!
अंत बुढ़ापो नरक बणादे छुटवा दे घर-बार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

काची कळियां बाग री फूल-फळां रै बीच,
खुद कुकर्मी माळी ही मसळ रया है नीच !
चुप खड्यो ‘घनश्याम’ देख रयो मूरत ज्यूं संसार,
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

धर्म धरा पर घट रयो बढ्यो पाप ब्यौहार !
धरती मां कुरळा रयी अब नहीं सह्यो जा भार !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(12 मई 2018, बैंग्लोर)

 

पैली जबरी होळी होंती

पैली जबरी होळी होंती

पैली जबरी होळी होंती
प्रेम प्रीत भी बोळी होंती,
छोटा बडा टाबर बूढ़ा
सगळां संग ठिठोळी होंती !

कोई दोरप नयीं मानतो
इसी पैली होळी होंती,
डंफ धमाळ, हंसी मजाकां
हुड़दंग्या गी टोळी होंती !

एकर हुयो इस्यो फताळ
दादो चाल्यो सुणन धमाळ,
छोरां करी मनवार चिलम गी
दादो फेर करै क्यूं टाळ !

लम्बी सुट्ट लगाई दादो
छोरा बोल्या काड दियो कादो,
दो सुट्टा मं चिलम बाळ गे
घर नै बीर हूयग्यो दादो !

घर जागे फैताळ मचायो
घरगां गै कीं समझ नीं आयो,
घर मं बड़तां दिख्यो बाछो
दादो डरतो भाज्यो पाछो !

बोल्यो सांड मारणो हूग्यो
घर गो कियां बारणो भूंग्यो,
हाथ जोड़ बहू नै बोल्यो
माताजी थे फळसो खोलो !

बहू तो पड़गी चक्करां मं
तुरत दौड़ गई छप्परा मं,
दादी नै सा बात बताई
सुण गे दादी बारै आयी !

बारै आगे दादी देखी
दादो बड़ग्यो खोल गे ताख़ी,
दादी बोली होग्यो कांई
बोल्यो लार पड़ी एक माखी !

सब घर कां कै हुगी चिंत्या
पाड़ोसी भी चढग्या भिंत्या,
चाण चकै के हुगी बात
दादी गै तो मिलगी रात !

कोई बोल्यो बैद बुलाओ
पागल हुग्यो देवो दवायां,
कोई बतावै स्याणा भोपा
बड़गी दीसै ओपरी छायां !

खड्या गळी मं छोरा हँसै
गांजो आपगो असर दिखायो,
कै घनश्याम त्युंवार होळी रो
दादै गै तो चोखो आयो !!

By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(7 मार्च 2020)

गांव की पीड़ा

गांव की पीड़ा

चले शहर तुम पैसे खातिर, छोड़ आसरा मेरा!
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

शहर की चाह में तुझको दीखा, यहां भूख का साया !
चाह अमीरी की में मुझ को, असभ्य गंवार बताया !
अशिक्षित कह मेरे बच्चे, गए मोह तज मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

मेरे बच्चे मुझे छोड़ गए, सिसक सिसक मैं रोता था !
आस लिए नैनों में उनके, आन की बाट मैं जोता था!
नहीं रात भर सोता होता, उनकी आस सवेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

गए कमाने-खाने पर तुम, हुए वहां के छोड़ मुझे !
क्यों न मानूं मैं मेरी इस दुर्दशा का जिम्मेदार तुझे!
शहर गए अपने बच्चों से, यही प्रश्न है मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

सबकुछ शहर के हिस्से में है, फिर मेरा हक गया कहां !
शिक्षा चिकित्सा मंडी मार्किट, सुविधाएं क्यों नहीं यहां !
सारी कमाई शहर को देते, कब होगा हक मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

कोरोना के संकट में जब, शहर छोड़ कर सब भागे !
बस ट्रेन बन्द सड़क पर पैदल, बीवी पीछे खुद आगे!
जो कहते क्या रखा गांव में, क्यों मोह जागा मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

है उनको विश्वास अगर कि, गांव में जो पहुंचेंगे ठेठ !
बच जाएंगी जान वहां और, भर जाएगा सबका पेट !
विश्वास न तोडूंगा मेरे बच्चे, पेट भरूँगा तेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

आओ फिर चौपाल सजाओ, आकर सबका साथ निभाओ!
हल जोत कर अन्न उपजाओ, बैठ खेत में तेजा गाओ !
अपना जग का पेट भरो, है यहां अन्न घनेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

बाग खेत गुलजार करो फिर, नदी तलैया पोखर ताल !
बड़े बुजुर्गों का दुख बांटो, राम बनो या फिर गोपाल !
शहर की भागमभाग भूल, गांव में करो बसेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

मुझे भान है जो मेरे हैं वे , तो अवश्य ही आ जाएंगे !
खो गए जो शहरों की चमक में, वे वहीं बस जाएंगे !
होली दीवाली आ जाते, दिल ठंडा होता मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

चाहे समझो खुदगर्जी इसे , या समझो तुम मेरे उद्गार !
गांवका ढांचा पुनः बनाओ, मिले यहीं सबको रोजगार!
न पड़े भागना फिर कोई, कोरोना डाले डेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

पत्तल कुल्हड़ खानापीना, फ्रिज को छोड़ घड़ेका पानी!
मोची दर्जी मिलें कुम्हार से , पालें गाय करें बागवानी !
गोद मेरी में आजा खुश, होगा दिल तेरा मेरा !
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

प्रकृति की गोद मे जीना, आओ तुमको सिखलाता हूं!
रोजी रोटी संस्कारी , शिक्षा से तुम को मिलवाता हूं !
चाह यही घनश्याम की, बीच प्रकृति करूं बसेरा !
जन्मा पला क ख ग सीखा, गांव यही वो मेंरा !!

चले शहर तुम पैसे खातिर, छोड़ आसरा मेरा!
जन्मे पले क ख ग सीखा, गांव वही मैं तेरा !!

✍️ *घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*
1 May 2020

ईश्वर अल्लाह तेरे घर से दया कहां पर चली गई ?

ईश्वर अल्लाह तेरे घर से
दया कहां पर चली गई ?

ईश्वर अल्लाह तेरे घर से
दया कहां पर चली गई ?
दुनिया वालो तुम सबकी
हया कहां पर चली गई ?

पेट मे बच्चा गोद मे बच्चा
सिर बोझ लिए भारत माता,
भूखे पेट पांव में छाले बस
याद जन्मभूमि का नाता !

चार साल चुनाव में बाकी
नेता अभी करें क्यों चिंता,
मुद्दे फिर से बहुत मिलेंगे
जाति धर्म भाषा परनिंदा !

टीवी वाले भांडों के लिए
ये खबरें मनोरंजक खोज,
चटखारे ले ‘श्याम’ देख रहे
हम भी घर पर बैठे रोज !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई

एक चंदा नीलगगन मे

एक चंदा नीलगगन मे

एक चंदा नीलगगन में, एक चांद मेरे आंगन में !
धवल चांदनी मेरे चांद की, छिटक रही जीवन मे !!

एक फूल खिला मधुवन में, एक फूल मेरे जीवन में !
भीनी खुशबू मेरे फूल की, महक रही तन-मन मे !!

एक कोयल कूके वन में, एक मेरे आंगन में !
मेरी कोकिला के मधु स्वर, गूंज रहे कर्णन में !!

एक दामिनी चमके नभ में, एक मेरे जीवन में !
नभ की दामिनी से डर, ये सिमट रही आंचल में !!

एक बदरी है नभ में, है एक बदरी जीवन में !
मेरी बदरी उमड़-घुमड़, बरसे मन-आंगन में !!

एक हिरनी दौड़े वन में, एक मेरे आंगन में !
मेरी हिरनी रही कुलांचे, मार मेरे जीवन मे !!

एक तितली उपवन में, एक मेरे जीवन में !
मेरी तितली फुदक रही, खुशियों के आंगन में !!

एक नाचे मयूरी वन में, एक मेरे जीवन में !
मेरी मयूरी झूम-झूम, नाच रही आंगन मे !!

एक इंद्रधनुष तना नभ में, एक मेरे आंगन में !
छटा मेरे इंद्रधनुष की, बिखर रही जीवन में !!

एक नदिया गिरी-गह्वर की, एक मेरे आंगन की !
मेरी नदिया सींच रही, वसुधा मेरे जीवन की !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई
(27जनवरी 2018)

आदमी-आदमी

आदमी-आदमी

लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!
मार रहा, काट रहा, फटकार डांट रहा !
आपस मे बांट रहा, आदमी को आदमी !!

लूट रहा, कूट रहा, तोड़ रहा, टूट रहा !
रोज कर शूट रहा, आदमी को आदमी !!
राह जा रहा, आ रहा, कमा रहा, खा रहा !
वो भी नहीं सुहा रहा, आदमी को आदमी !!

झटक रहा, पटक रहा, पास ना फटक रहा !
दिल में खटक रहा, आदमी के आदमी !!
तोड़ रहा, मरोड़ रहा, रिश्ता नहीं जोड़ रहा !
रोज मुंह मोड़ रहा, आदमी से आदमी !!

बस झींक रहा छींक रहा, फालतू ही चीख रहा !
ना देख – देख सीख रहा, आदमी से आदमी !!
बन रहा, ठन रहा, स्वयं ही तन रहा !
समझ नहीं मन रहा, आदमी का आदमी !!

खट रहा, डट रहा, सब कर फटाफट रहा !
सीढी बना के चढ़ रहा, आदमी पर आदमी !!
उछल रहा, मचल रहा, नहीं बस संभल रहा !
दूजे को निगल रहा, आदमी को आदमी !!

झपट रहा, डपट रहा, माल पर चिपट रहा !
रोज कर कपट रहा, आदमी से आदमी !!
घाल रहा, निकाल रहा, खुद का तो संभाल रहा !
कर दूजे का पार माल रहा, आदमी का आदमी !!

जोड़ रहा, तोड़ रहा, नहीं कसर छोड़ रहा !
बांह भी मरोड़ रहा, आदमी की आदमी !!
न सुन रहा, न गुन रहा, नशे में हो टुन रहा !
बिन बात धुन रहा, आदमी को आदमी !!

हट रहा, पलट रहा, पास नही सट रहा !
घनश्याम’ कट रहा, आदमी से आदमी !!
लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
. (बैंगलोर, 24 अप्रेल 2018)

किसान उठ

किसान उठ

किसान उठ !
किसान उठ खेत जा !
हल चला अन्न उगा !
अन्नदाता कहला, खुश होजा !!

किसान उठ !
किसान उठ बाजार जा !
बीज ला खाद ला !
स्प्रे ला, फसल पका !!

किसान उठ !
गाय पाल बछड़ा पाल !
बछड़े को छोड़ दे !
बछड़ा उठ सांड बन !
खेत मे घुस जा, फसल खा !

किसान उठ !
किसान उठ बाजार जा !
80 रू किलो बीज ला !
फसल उगा फसल पका !
30 रू किलो बेच दे !!

किसान उठ !
किसान उठ प्याज बो !
मेहनत कर फसल पका !
मंडी जाकर बेच दे !
नहीं बिके तो,
सड़क पर डाल दे !
खाली हाथ वापस आ !!

किसान उठ !
किसान उठ बैंक जा !
ऋण उठा कुआं बना !
पानी लगा !
ऋण उठा ट्रैक्टर ला !
फसल उगा !!

किसान उठ !
किसान उठ बैंक जा !
प्रीमियम भर बीमा करा !
सूखे से फसल जला !
पाले से फसल गला !
क्लेम में ठगा जा !
घर आकर बैठ जा !!

किसान उठ !
किसान उठ फसल उगा !
फसल पका काट ले !
थ्रेसर ला निकाल ले !
मंडी जा बेच दे !
बेचकर पैसा ले !
पैसा भर !!

किसान उठ !
किसान उठ बाजार जा !
बीज का खाद का पैसा भर !
डीजल का बिजली का पैसा भर !
स्प्रे का थ्रेसर का पैसा भर !
खाली जेब घर आ !
भूखे पेट सो जा !!

किसान उठ !
खाली जेब बैंक जा !
हाथ जोड़ गिड़गिड़ा !
डांट सुन फटकार सुन !
बैंक का नोटिस ले !
कोर्ट का सम्मन ले !
कोर्ट जा पेशी भुगत !
जेल जा !!

किसान उठ !
किसान उठ बाजार जा !
बाजार जा रस्सी ला !
रस्सी का फंदा बना !
पेड़ पर लटक जा !!
😢 😢 😢

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई

नेता उठ

नेता उठ

नेता उठ !
नेता उठ पार्टी बना !
चुनाव लड़ विधायक बन !
सांसद बन मंत्री बन !!

नेता उठ !
नेता उठ भाषण दे !
जनता से वादे कर !
धन्नासेठो से चंदा ले !
चुनाव में जीत जा !!

नेता उठ !
नेता उठ मंत्री बन !
सेठों का बदला चुका !
किसान से जमीन ले !
धन्नासेठों को सस्ती दे !
टैक्स में छूट दे !
बैंक से लोन दे !
खा-पी कर भागने दे !!

नेता उठ !
नेता उठ मंत्री बन !
सुअर बचा गाय बचा !
आदमी को मरने दे !
मस्जिद बना मन्दिर बना !
स्कूल-कॉलेज भूल जा !!

नेता उठ !
नेता उठ मंत्री बन !
अपनो को रेवड़ियां दे !
खानों में बंदरबांट !
वनों में बंदरबांट !
जमीनों में बंदरबांट !
ठेकों में बंदरबांट !!

नेता उठ !
नेता उठ मंत्री बन !
विकास कर सड़क बना !
सड़क पर टोल लगा !
पुल पर टोल लगा !
जनता को लुटने दे !
लूट में हिस्सा ले !!

नेता उठ !
नेता उठ टोपी पहन !
लाल पहन हरी पहन !
काली पहन भगवा पहन !
नीली पहन पीली पहन !
पर तिरंगी मत पहन !!

नेता उठ !
नेता उठ मंत्री बन !
वादों को भूल जा !
जनता को रोने दे !
मीडिया को पैसा दे !
पैसा देकर चुप कर !
पांच साल मौज कर !!

मौज कर मौज कर !
जिंदगी भर मौज कर !
पीढ़ियों तक मौज कर !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई

हम  हैं  राही  सत्ता  के

हम  हैं  राही  सत्ता  के

(तर्ज- हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ ना बोलिए जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए)

हम  हैं  राही  सत्ता  के, हमसे कुछ न बोलिए,
जिसने कुर्सी ऑफर की, हम उसी के हो लिए !
हम उसी के हो लिए,
जिसने कुर्सी ऑफर की हम उसी के हो लिए !!

वो थे जब सत्ता मे तब, उस का लिया मजा,
अब सत्ता से बाहर रहना, सबसे बड़ी सजा, 
इनकी सत्ता आई तो हम, इनके साथ हो लिए !
जिसने कुर्सी ऑफर की, हम उसी के हो लिए !!
हम उसी के हो लिए !! 

बेइज्जती कुबूल हमें, जिल्लत हमें कुबूल,
न कोई यहां कायदा है, ना कोई यहां उसूल, 
जहां दिखा माल मत्ता, हमने हाथ धो लिए !
जिसने कुर्सी ऑफर की, हम उसी के हो लिए !! 
हम उसी के हो लिए !!

जनता तो है भोली यहां, चाहो जिधर मोड़ लो,
वोट खातिर जाति धर्म, कोई रिश्ता जोड़ लो, 
कुर्सी पा, पैसा कमा कर , सारे पाप धो लिए,
जिसने कुर्सी ऑफर की, हम उसी के हो लिए !! 
हम उसी के हो लिए !! 

हम  हैं  राही  सत्ता  के, हमसे कुछ न बोलिए,
जिसने कुर्सी ऑफर की, हम उसी के हो लिए !
हम उसी के हो लिए,
जिसने कुर्सी ऑफर की हम उसी के हो लिए !!

✍️ *घनश्यामसिंह चंगोई*

मेरे देश की धरती, . . . उगले

मेरे देश की धरती, . . . उगले

मेरे देश की धरती, . . . माल्या उगले,
उगले नीरव मोदी, मेरे देश की धरती !
मेरे देश की धरती !!

देश की धरती पर हम जब,
स्वच्छता अभियान चलातेहैं!
बैंकों का कर के साफ कैश ,
‘मेहुल भाई’ हाथ बंटाते हैं !!
सुन कर नेताजी के जुमले,
यूं लगेकि राज किसान काहै!
पर सच मे लूट के भाग रहे,
उन साथी बेईमान का है !!
मेरे देश की धरती, . . . माल्या उगले,
उगले नीरव मोदी, मेरे देश की धरती !
मेरे देश की धरती !!

बैंकों के खजाने में जब,
मेहुल-मोदी सेंध लगाते हैं!
हम बेबस होकर बंधुआ से
‘रोदी’-’रोदी’ चिल्लाते हैं !!
सब तरफ अब हैं टैक्स बढ़े
तब राष्ट्र खजाना बढ़ता है !
बस खड़ा गरीब बेबस देखे,
सेठों पे खजाना लुटता है !!
मेरे देश की धरती, . . . माल्या उगले,
उगले नीरव मोदी, मेरे देश की धरती !
मेरे देश की धरती !!

ये माल है गौतम अडानी का,
जिसके हम चौकीदार यहां !
‘अनिल-मुकेश’ संग याराना,
‘राफेल’ बना पतवार जहां !!
रंग नीला निशाल मोदी से है,
रंग है ‘आदर्श’ मुकेश मोदी !
रंग बना ‘अमिट’ है जयशाह,
रंग लाल बना ललित मोदी !!
मेरे देश की धरती, . . . माल्या उगले,
उगले नीरव मोदी, मेरे देश की धरती !
मेरे देश की धरती !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(15 अगस्त 2018)

दामोदरजी घर गिगो जाम्यो

दामोदरजी घर गिगो जाम्यो

दामोदरजी घर गीगो जायो, साबत थाळी फोड़ी!
मांजी दूजां घर ठाम मांज-2, हुगी बापड़ी खोड़ी!

बापूजी कप धोय – धोय नै, इस्कुल पढण मेल्यो!
पण लालो तो भायला संग, गिल्ली डंडों खेल्यो!

दसमीं गा पेपर आया सामीं,स्कूल छोड छिटकाई!
बापूजी हा भोळा ढाळा, बांनै झूठी स्टोरी सुणाई!

बापूजी चाय बेच – बेच, घड़वाया गैणा गांठा!
सपूतजी गा हाथ पड्या, ताळा तोड़ ले न्हाठ्या!

सदमै सूं बापू गी आत्मा, दुनिया छोड़ सिधारी!
तो ई भाईड़ा तो बापड़ा, ढूंढी कन्या कुंवारी!

जसोदा बेन तो राजी हुई, गबरू मिल्यो मारू!
हीराबेनजी भी मुंडो धोयो, पोती – पोता सारू!

एक बरस तो बिरथ गमायो, न गोर्यो न गाज्यो!
आखर मं 56 इंची गबरू, घर छोडगे भाज्यो!

ना ब्याही, ना रयी कुंवारी, ना ही मिल्यो तलाक!
जसोदा बेन गो रुल्यो जमारो, हुई जिंदगी खाक!

घनश्यामसिंह चंगोई
(26 मार्च 2019)

पातल और पीथळ (नई कविता)

अरे रबड़-स्टाम्प रो पद ही जद, अदनो सो कोविंद ले भाग्यो।
भीतर सूं हिवड़ो ऊजळ पड़्यो, लौहपुरुष रो दुःख जाग्यो॥

‘मैं खस्यो घणो, मैं घस्यो घणो, पार्टी नै ऊंची ल्यावण नै।
मैं पुरो जोर लगायो हो, 2 स्यू 200 पूँचावण मैं॥

मैं रथयात्रावां घणी करी, मिंदर रो फिड़को उड़ावण नै।
मैं बाबरी मस्जिद तुड़वाई, हिंदू-मुस्लिम लड़वावण नै॥

गुजरात मैं दंगा घणा हुया, तो जींवती माखी मैं गिटग्यो।
जीं तांई अटल नै नाराज करयो, बो चेलो ही मंनै नटग्यो॥

जद PM री बारी आई, मेरी पुरस्योड़ी थाळी खींची।
नहीं मेरो कोई बस चाल्यो, मजबूरी मैं आंख्यां मींची॥

जद याद करूं मैं बीर अटल री, नैणां मैं नीर भरयो आवै।
सुख-दुख मैं देतो साथ मेरो, चाहे सारी दुनिया नट ज्यावै॥

आ’ सोच हुई जद तार-2, भीष्म पितामह री लौह छाती।
मार्गदर्शक रो अब के धीणो, लिखस्यू इस्तीफै री पाती॥

संसद स्यू इस्तीफो मैं देस्यूं, पार्टी राजनीति सब छोड़ूं।
अब कुछ मिलणै री आस नही, शाह-मोदी रो भांडो फोड़ू॥

उड़ती सी खबर हुई वायरल, कुछ खुश हुया कुछ हुया उदास।
बुडळिया साथी दौड़ पड़्या, ओ’ करसी आपां सगळां रो नास॥

जोशी, सिन्हा, शांता, शौरी, जसवन्त स्यू भी करी बात।
शत्रुघ्न, कोश्यारी भी आया, सब मिल समझाया रातो-रात॥

“बावळ छोडो, थ्यावस राखो, मोदी नै ओजूं समझावा।
भारत रत्न थांनै देवै , और पद्म विभूषण म्हे पावां ॥”

‘भारतरत्न’ रो नाम सुण्यो, बूढ़ी आंख्यां हुई चमकदार।
“आ’ पार्टी म्हारी माता है”, कह इस्तीफे नै दियो फाड़॥

मीडिया रै हाथां आयोड़ी, एक धांसू सी खबर खुसगी।
घनश्याम’ पटाखो फूटण स्यूं, पैली ही बत्ती फुसगी॥

घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(31 जुलाई 2017)

बेटियों की कुर्बानी

बेटियों की कुर्बानी
(तर्ज- ऐ मेरे वतन के लोगो)

ऐ क्षत्री समाज के लोगो .... तुम खूब उमेठो मूंछें,
बेटों की लगा कर बोली… कैसे तुम सबसे ऊंचे !
बेटी की आंख में आंसू …. जब आए धरती रोए,
हर आह हमें कहती है …. कैसे ये स्वप्न संजोए !
कैसे ये स्वप्न संजोए !!

ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी !
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

थी फूल सी कोमल बिटिया,जब मां के गर्भ में आई,
मां को लगी जान से प्यारी, औरों को नहीं सुहाई !
दहेज के डर से पिता ने , उसे गर्भ में ही मरवाई,
खुद बाप बना हत्यारा, दुनिया से ये बात छुपाई !
दुनिया मे आने से पहले, हुई उसकी खतम कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

गर घर - आंगन में गूंजी , उसकी प्यारी किलकारी,
मां को तो हुई खुशी पर, दिए समाज ने ताने भारी !
वो चन्द्र कला सी बढ़ रही, पर बाप को चिंता भारी,
हम जिस समाज का हिस्सा, है दहेज बड़ी लाचारी !
दहेज जुटाने पिता ने, तब खाक परदेस की छानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

हो जाती है जवां जब, एक बेटी बाप के घर पर,
झुकती है बाप की पगड़ी, बेटे वालों के दर पर !
लड़की की भले हो चाहे, लड़के से अधिक पढ़ाई,
फिर भी दहेज की चाहत, ना हो धेला एक कमाई !
आवारा को कहते अफसर, नित गढ़ते झूठ कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

गहना टीका फर्नीचर AC, गाड़ी की फरमाईश,
खाने में बकरा मुर्गा, वाईन भी अपनी च्वाईस !
संचित धन सब खरचा, और खरचा कर्जा ले कर,
पुरखों की बेची धरती, या घर को गिरवी रख कर !
घर ओर दिल को खाली कर, आंखों में दे गई पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

कर बाप के घर को खाली, बेटी ससुराल में आई,
बेटे वालों की नीयत में, आ गई फिर और बुराई !
कभी बाईक-गाड़ी चाहिए, कभी चेन कभी ब्रेसलेट,
ओर भिखमंगों ने जला दी, फिर डाल उसे घासलेट !
'घनश्याम' कहे बेटी की , बस सच्ची यही कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*

स्कूल की यादें

स्कूल की यादें

वो दिन अब याद आते हैं, वो लम्हे याद हैं आते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरु जन याद हैं आते !!

उम्र थी मात्र 12 की जब इस स्कूल में आया !
तिहत्तर की जुलाई में एडमिशन नवीं में पाया !
रहना पड़ा शहर में, गांव सिर्फ सन्डे को जाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

नवीं कक्षा से होती तब, शुरु कॉमर्स की शिक्षा !
लगती थी नार्थ ब्लॉक में, हमारी नवीं की कक्षा !
डिसिप्लिन वाले हैडमास्टर लाटाजी यादहैं आते!
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

क्लास टीचर एम ए खान पढ़ाते थे अकाउंटिंग !
बड़े ही स्मार्ट टीचर थे सिखाते वे ही टाइपिंग !
परिश्रमी सोहनसिंहजी व्यापारपद्धति थे पढ़ाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

हमें हिंदी पढ़ाने के लिए गुरुदयाल जी जूझे !
गणित-विज्ञान के टीचर एम ए खान थे दूजे !
सिलाई वाले पोकर जी की हैं याद सब बातें !
वे साथी याद आते हैं वे गुरुजन याद हैं आते !!

संस्कृत के कन्हैयाजी से लाइब्रेरी बुक लेते थे !
अंग्रेजी के बुजुर्ग मोहम्मद अली उपदेश देते थे!
पीटीआई बाघसिंह जी थे पीटी परेड करवाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

श्री कात्यायनी दत्त जी शिक्षक थे बड़े विद्वान !
श्री डालूराम जी का सब करते थे बड़ा सम्मान !
बुजुर्ग छोटूदान-शिवबख्शजी भी मान थे पाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

इंग्लिश के जरनैलसिंह को गुस्सा बहुत आता!
विद्वान मोती लाल जी संगीत के बड़े ज्ञाता !
शिक्षक अंग्रेजी के अच्छे बुद्धमलजी थे कहाते!
वे साथी याद आते हैं वे गुरुजन याद हैं आते !!

अगले साल नवीं पास कर दसवीं में जो आये !
भाटी पीरबख्श जी ने सबसे ठहाके लगवाए !
नए हेड मास्टर केदार शर्मा जी अंग्रेजी पढ़ाते !
वे साथी याद आते हैं वे गुरुजन याद हैं आते !!

गणपत जी सदा रखते पीने के पानी का ध्यान !
साफ-सफाई का विलास जी रखते पूरा ध्यान !
बुजुर्ग बालूराम जी कालांश की घण्टी बजाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

आधी छुट्टी में कुछ साथी अपने घर चले जाते !
कुछ बैठ कर कोठी के आगे छाया में बतियाते !
एक बुजुर्ग थे घर की बनी आइसक्रीम खिलाते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

प्रहलाद सिंह जी थे मेरे साथी बेंचमेट - रूममेट !
ओमजी गुसाईं किशन खाती चाचाण विजेंद्रसेठ!
कंदोई अंजनी सुभाष, सरावगी सुरेश की बातें !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

शर्मा श्याम सुंदर, पदमसिंह बिरमेचा व सुराना !
सैनी ओम, हनुमान, बृजलाल व सुबोध चोरडिय़ा!
स्वामी विनोद, हनुमान याद है नेमीचन्द की बातें !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

बावलिया चंद्रशेखर और शिवरतन भी साथ थे !
शंकरलाल बाबूलाल एक ओमप्रकाश जाट थे !
मेरे अग्रज सुरेंद्रसिंह जी गौरीशंकर संग आते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरुजन याद हैं आते !!

गोयल राजू और गोविंद, रतन थे धीरवासिया !
मैं कुछ के भूल रहा नाम बोथरा और लूणिया !
कुछ के चेहरे याद हैं पर नाम याद नहीं आते !
वे साथी याद आते हैं वे गुरुजन याद हैं आते !!

छिहत्तर में छूटा स्कूल किया ग्यारहवीं जो पास!
इस स्कूल ने जगाई आगे फिर कॉलेज की आस!
साथी छूटे सब, *घनश्याम* छूटी पीछे वह बातें !
वे साथी याद आते हैं वे गुरुजन याद हैं आते !!

वो दिन अब याद आते हैं, वो लम्हे याद हैं आते !
वे साथी याद आते हैं, वे गुरु जन याद हैं आते !!

*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*

 स्वागत नववर्ष

 स्वागत नववर्ष

बीत गया अब वर्ष पुराना, आया है नव वर्ष सुहाना !
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

थी जिनमे कटुता सब भूलें, बीते वर्ष की बीती बातें, 
याद रहे बस धवल चांदनी, भूल जाएं सब काली रातें!
भूल घृणा को आज बुनें हम, नवसौहार्द्र का ताना-बाना,
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

जाति धर्म और भाषाओं की, नहीं पनपनें दें दीवारें,
क्षेत्रवाद व नस्लभेद तज, हर वैचारिकता को स्वीकारें!
सम्मान करें सबके भावों का, राष्ट्र धर्म का गाएं गाना,
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

वसुधैव कुटुम्बकम् की यहां, पुरखों ने थी रीत चलाई,
जीव मात्र पर दया करो, यह हमको थी सीख सिखाई!
मानव-मानव में भेद नहीं, दुनिया को है हमें सिखाना,
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

भाग्यवाद के न रहें भरोसे, अंधविश्वास की बेड़ी तोड़ें,
विश्वगुरु फिर देश बने ये, नव विज्ञान से नाता जोड़ें !
घनश्याम कहे है कर्मवाद तो गीता का उपदेश पुराना,
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

बीत गया अब वर्ष पुराना, आया है नव वर्ष सुहाना !
छोड़ पुरानी कुंठा गायें, नव प्रभात का नया तराना !!

सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं 🙏

*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*

लक्ष्मी

लक्ष्मी

मां, बहिन, बहू, बेटी, पत्नी लक्ष्मी सब हैं घर पर,
मृग की कस्तूरी ज्यों मानव खोज रहा धन बाहर !!

जीवित लक्ष्मी का मान नहीं लक्ष्मी की फोटो पूजरहा,
भाग-2 धन किया इकट्ठा पर सुख खातिर जूझ रहा !

जन्मदायिनी माता की नहीं करता पूछ बुढ़ापे में, 
समझावन की बात कहे वो तो नहीं रहता आपे में !

संस्कारी पत्नी घर में सुख खातिर बाहर दौड़ रहा,
दौलत के नशे में चूर नैतिकता का दामन छोड़ रहा!

बेटी की गर्भ में कर हत्या भ्रूण हत्या का पाप करे,
धन-दौलत की चाह में पर लक्ष्मीजी का जाप करे !

हुई पराई ब्याहते ही फिर सुध नहीं लेता बहनों की,
प्यार के बोल उन्हें चाहिए चाह नहीं उन्हें गहनों की !

लक्ष्मी रूपा बहू घर आये देखे नहीं उसके गुण मानव,
गहने गाड़ी में कीमत उसकी आंक रहा दहेज दानव !

कितने ही चौघड़िए देखो, चाहे करो लक्ष्मी का पूजन,
गृहलक्ष्मीयां खुश रहेंगी तो, घनश्याम सुखीहोगा जीवन !

मां, बहिन, बहू, बेटी, पत्नी लक्ष्मी सब हैं घर पर,
मृग की कस्तूरी ज्यों मानव खोज रहा धन बाहर !!

✍️ *घनश्यामसिंह चंगोई*

दिवाली रोज़ होती है

दिवाली रोज़ होती है

जीवन सुख से बसर हो, दिवाली रोज होती है ! 
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

पिता का साया हो सर पे, दिवाली रोज होती है,
मां के हाथ खाना हो घर पे, दिवाली रोज होती है !
 खुश किस्मत दुनिया  में, हैं सब लोग वे जिनके
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

 भाई  साथ  हो  अपना, दिवाली  रोज  होती है,
नित करे याद जो बहना, दिवाली रोज होती है !
परिजन संग रहते हों, सब मिलजुल जिस घर मे
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

सुलक्षणा घर मे हो नारी, दिवाली रोज होती है,
 संतान हों आज्ञाकारी, दिवाली  रोज  होती है !
मिले इतनी सी खुशियां, फिर क्या चाह जीवनमे
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

 कर्म  हो  ईमानदारी, दिवाली रोज होती है,
जीवन मे हो खुद्दारी, दिवाली रोज होती है !
अर्ज ‘घनश्याम’ की मेरे, तो सभी चाहनेवालों के
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

जीवन सुख से बसर हो, दिवाली रोज होती है ! 
प्रभु का हाथ सिर पर हो, दिवाली रोज होती है !!

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई
(दीपावली : 7 नवम्बर 2018)

जिंदगी

*जिंदगी*

मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं, ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार-बार जिंदगी !!
.
गर्भ में मां के तो थी, अंधेरा कुआं सी !
बाहर आया तो लगी, उजियार जिंदगी !!
गोद में रहना तो बस, बन्धन सा लगा था !
चल पड़ा तो गिराती थी, बार-बार जिंदगी !!
.
लोरी सुनने की उम्र, जल्दी निकल गई !
थी स्कूल मे बस्ते का, लगी भार जिंदगी !!
हर साल अब चढ़ना था, इक नई सीढ़ी पर !
लेती थी परीक्षा अब , बार - बार जिंदगी !!
.
टिफिन, बस्ता, स्कूल-बस, और होमवर्क के!
बस घूमती रहती थी, चहूं ओर जिंदगी !!
मार्कशीट ग्रेडिंग के, जब फेर में पड़ कर !
ट्यूशन को हो गई थी, बस लाचार जिंदगी !!
.
जो स्कूल से निकला, यकायक हो गया बड़ा!
अच्छी लगी तब कॉलेज, का द्वार जिंदगी !!
सपने बढ़े मां - बाप के, पॉकेट मनी बढ़ी !
कैंटीन में होने लगी , गुलजार जिंदगी !!
.
स्मार्ट फोन भी नया, लेपटॉप भी मिला !
बाइक से बन गई, फर्राटेदार जिंदगी !!
जब दोस्त मिले नए-2, माहौल भी नया !
दिखने लगी थी इक, नया संसार जिंदगी !!
.
पर कैरियर का भी था, इक दबाव साथ मे !
अब दिखने लगी थी बड़ा, बाजार जिंदगी !!
डॉक्टर बनूं अफसर या, जज वकील कोर्ट में!
या करादे फिर कोई , बड़ा व्यापार जिंदगी !!
.
सही मिली गाईडेंस, और हार्डवर्क किया !
तो रास्ते पे चढ़ गई, आखिरकार जिंदगी !!
था तैरने को खुला, समंदर जो सामने !
पकड़ने लगी थी अब, यूं रफ्तार जिंदगी !!
.
जीवन फिर भी अभी, तक कुछ अधूरा था !
तो शादी के लिए थी, अब तैयार जिंदगी !!
नई दुनिया नए रिश्ते, नया संसार इक बना !
लगने लगा बस बीवी, का प्यार जिंदगी !!
.
प्यार के उपहार फिर, जो खिलने लगे फूल !
तो गूंज उठी बनके, फिर किलकार जिंदगी !!
देख कर बच्चों को, हूक मन मे एक उठी !
‘घनश्याम’ फिर दे बचपन, इक बार जिंदगी!!
.
मालिक ने हमको दिया, उपहार जिंदगी !
जी लो खुशी के पल हैं, ये चार जिंदगी !!
गंवा ना देना गफलत, में पल हैं कीमती !
फिर से न मिलेगी ये, बार बार जिंदगी !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई
(18 Jan 2018)

गांव की सरकार

*गांव की सरकार*

युवाशक्ति संकल्प ले, यह मिलकर अबकी बार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

न शिक्षा पर है ध्यान,चिकित्सा पर न नजर है!
सबकी पैसे पर नजर, भर रहे अपना घर हैं !
बढ़ रही आगे दुनिया, गांव तो रहे पिछड़ हैं !
भ्रष्टाचार ही आज, सभी झगड़े की जड़ है !!
बढ़ नहीं पाएंगे कभी , जब तक है भ्रष्टाचार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

पेयजल के लाले पड़े, करें घर-2 टूंटी आस !
गन्दगी के हैं ढेर , कीचड़ से घुट रही सांस !
नही पार्क बच्चों का, खेल मैदान ना अच्छा !
वाहन बढ़े बेशुमार, नहीं बाईपास की चर्चा !!
तीन नंबरी ईंट, *विकास बस खड़ंजा-चारदीवार*!
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

सरपंचों के हो रहे हैं , अब तो अच्छे ठाठ !
अफसर-कर्मचारी संग मिले, करते बंदरबांट !
हो गए कितने साल, मिला ना कोई सच्चा !
अबतो गांवों के नाम,बजट भी आरहा अच्छा !!
अपना ही पैसा है जो , वापस दे रही सरकार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

होगा सरपंच भ्रष्ट, घर अपना ही भरेगा !
भ्रष्टाचारी भला गांव का, न कभी करेगा !
गरीब को रोजगार, सहारा कोई न देगा !
जेसीबी से काम, कागजों में होगी नरेगा !!
मिट रही गरीबी क्यों नहीं, जब बजट है बेशुमार!
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

गर हो ईमानदार सरपंच, गांव का भला करेगा !
जाति-पांति सब भूल, सभी संग न्याय करेगा !
चुनिए ऐसा ऊर्जावान, कि डंका बजे काम का!
हो विकास में अग्रिम, नाम हो अपने गांव का !!
नाव डूब रही गांव की, मिल कर थामो पतवार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

बने जाट, ठाकुर, अहीर या स्वामी, पंडित !
हरिजन, खाती, सोनी, सेठ न कोई दिक्कत!
मिखाला-चंगोई नाम की, न कोई दरार हो !
एक मात्र हो शर्त कि, *बस ईमानदार हो* !!
जातिवाद से कर रहे हम, खुद अपना बंटाधार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

ना रुकेगा भ्रष्टाचार , जो होगा लाखों खर्चा !
बिन खरचे होवे चुनाव, करो कोई ऐसी चर्चा !
या सामूहिक खर्चे से, लड़ायें उम्मीदवार को !
या बना दें *निर्विरोध*, किसी ईमानदार को !!
एक प्रयास तो सच्चे मन से, कर देखो इस बार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

नहीं आसमान में छेद, भी करना मुश्किल यारो !
एक पत्थर तो तबियत से,उछालके देखो प्यारो!
हार के बैठेंगे हिम्मत तो , फिर कुछ नहीं होगा !
हिम्मत जो करेगा मर्द , खुदा भी मदद करेगा !!
भ्रष्टाचार पर चोट करो, आगे बढ़कर इस बार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

नई पीढ़ी है आज , गांव की हो रही शिक्षित !
करेंगे अगर प्रयास, विकास भी होगा निश्चित !
इस मिट्टी में पले पढ़े, इसका है हम पर कर्ज !
आगे बढ़ कर उसे उतारें , ये है अपना फर्ज !!
'घनश्याम' कहे है सबको, आगे आने की दरकार!
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

युवाशक्ति संकल्प ले, यह मिलकर अबकी बार !
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!
आओ चुन लें गांव की, एक ईमानदार सरकार !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
15 अगस्त 12019

मालिक का दिया हुआ वरदान बेटियां

🙏 बेटियां 🙏

मालिक का दिया हुआ, है वरदान बेटियां !
क्यों सह रही हैं फिर, भी अपमान बेटियां !!
बताये कोई बेटों से कहां हैं कम, फिर भी !
छटपटाती साबित होने, को इंसान बेटियां !!

गर्भ में आते ही भ्रूण, लिंग-जांच हो गई !
हुई डॉक्टर के चाकू से, लहुलुहान बेटियां !!
सिर्फ बेटों से अगर, बस जाता ये जहां !
फिर क्यों भेजता, जग में भगवान बेटियां !!

लेके जनम अगर वो, धरती पर आ गई !
मां के लिए बनी सबब, अपमान बेटियां !!
बेटी जनी तो सास के, सुनने पड़े ताने !
फिर भी मां को लगती, अपनी जान बेटियां !!

चहचहाट उसकी घर, आंगन गुंजा रही !
है दीप्त हो रही ज्यों, नभ में भान बेटियां !!
दुख बड़ा ही होता है, जब एक ही घर मे !
नहीं लाड़ पाती बेटों, के समान बेटियां !!

“पढ़ के भी फूंकना तुम्हे, तो चूल्हा-चौका”!
इसलिए न पढ़ पाती हैं, विज्ञान बेटियां !!
शिक्षा के नाम पर, सिर्फ औपचारिकता !
न पाती बेटों सम, तकनीकी ज्ञान बेटियां !!

दिल से न मानते उसे, हम घर का हिस्सा !
समझी जाती अपने, घर मे मेहमान बेटियां !!
सिर्फ प्यार की चाहत, उन्हें न धन चाहिए !
स्वयं दिल से होती हैं, बड़ी धनवान बेटिया !!

बांध दी जाती किसी, अन्जान पल्लू से !
बता न पाती अपनी चाहत, बेजुबान बेटियां !!
कद्र उसके गुणों की, जमाने को कहां !
बनादी जाती हैं दहेज, का सामान बेटियां !!

जिस घर मे गयी, सदा उसी की हो गयी !
मां-बाप का घर कर, चली वीरान बेटियां !!
उस अंजान घर को भी, वो बना देती है स्वर्ग !
उस पर वार देती अपना, दिलो-जान बेटियां !!

कभी बहू, कभी पत्नी, कभी बन जाती है मां !
और खो देती है अपनी, सब पहचान बेटियां !!
मां बाप की यादों को भी, भुला न पाती है !
ससुराल में मायके का, रखती मान बेटियां !!

है वो भाग्यशाली घर, जहां पलती है बेटियां !
कल देखना बनेगी, राष्ट्र का सम्मान बेटियां !!
‘घनश्याम’ की अर्जी अगर, हो सुन रहे दाता !
फिर अगले जन्म देना, मुझे ये ही संतान बेटियां !!

मालिक का दिया हुआ, है वरदान बेटियां !
क्यों सह रही हैं फिर, भी अपमान बेटियां !!
बताये कोई बेटों से कहां हैं कम, फिर भी !
छटपटाती साबित होने, को इंसान बेटियां !!*

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
( 7 मई 2018, बैंगलोर)

आदमी - आदमी

.आदमी - आदमी

लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!
मार रहा, काट रहा, फटकार डांट रहा !
आपस मे बांट रहा, आदमी को आदमी !!

लूट रहा, कूट रहा, तोड़ रहा, टूट रहा !
रोज कर शूट रहा, आदमी को आदमी !!
राह जा रहा, आ रहा, कमा रहा, खा रहा !
वो भी नहीं सुहा रहा, आदमी को आदमी !!

झटक रहा, पटक रहा, पास ना फटक रहा !
दिल में खटक रहा, आदमी के आदमी !!
तोड़ रहा, मरोड़ रहा, रिश्ता नहीं जोड़ रहा !
रोज मुंह मोड़ रहा, आदमी से आदमी !!

बस झींक रहा छींक रहा, फालतू ही चीख रहा !
ना देख - देख सीख रहा, आदमी से आदमी !!
बन रहा, ठन रहा, स्वयं ही तन रहा !
समझ नहीं मन रहा, आदमी का आदमी !!

खट रहा, डट रहा, सब कर फटाफट रहा !
सीढी बना के चढ़ रहा, आदमी पर आदमी !!
उछल रहा, मचल रहा, नहीं बस संभल रहा !
दूजे को निगल रहा, आदमी को आदमी !!

झपट रहा, डपट रहा, माल पर चिपट रहा !
रोज कर कपट रहा, आदमी से आदमी !!
घाल रहा, निकाल रहा, खुद का तो संभाल रहा !
कर दूजे का पार माल रहा, आदमी का आदमी !!

जोड़ रहा, तोड़ रहा, नहीं कसर छोड़ रहा !
बांह भी मरोड़ रहा, आदमी की आदमी !!
न सुन रहा, न गुन रहा, नशे में हो टुन रहा !
बिन बात धुन रहा, आदमी को आदमी !!

हट रहा, पलट रहा, पास नही सट रहा !
‘घनश्याम’ कट रहा, आदमी से आदमी !!
लड़ रहा झगड़ रहा, पकड़ रहा जकड़ रहा !
बिन बात अकड़ रहा, आदमी से आदमी !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
. (बैंगलोर, 24 अप्रेल 2018)

जागृति आई है

जागृति आई है

जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !
बड़े दिनों के बाद, इस सोये हुए समाज,
ने ली अंगड़ाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !!

गौरवमय इतिहास हमारा, पुरखों ने था जिसे संवारा !
आई जो इस पर काली छाया, अपना लहू दे इसे बचाया !!
आज हिल रही इसकी चूलें, हम अपने इतिहास को भूले !
अब दारू और मांस, को समझ रहे इतिहास,
ये कैसी सोच बनाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !

दारू अम्मल की मनवारें, खोखली कर रही हैं दीवारें !
मोसर व पहरावनी छोड़ो, बेस जुहारी से नाता तोड़ो !
दहेज दिखावा टीका सोना, बेटीयों के लिए बन रहा रोना !
कुरीतियों को आज, छोड़े सकल समाज,
संघ ने ज्योत जलाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !

भूस्वामी जो कौम थी कभी, भूमिहीन हो रही है अभी !
कर्ज जाल में जकड़ रही हैं, शिक्षा में भी पिछड़ रही हैं !
आपस में है टांग खिंचाई, नहीं सुहाता भाई को भाई !
बिन संगठित हुए समाज, नहीं कोई रस्ता आज,
ये ही सच्चाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !

बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी है, आज समस्या सबसे बड़ी है !
नोकरी नहीं सरकारी आज, बना आरक्षण कोढ़ में खाज !
नहीं नोकरी फ़ौज की छोटी, हाथ हुनर से कमाओ रोटी !
करे अर्ज घनश्याम, गुरुकुल का शुरू हो काम,
समय की ये ही दुहाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !

जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !!
बड़े दिनों के बाद, इस सोये हुए समाज,
ने ली अंगड़ाई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !!
जागृति आई है, आई है, जागृति आई है !!

 घनश्यामसिंह राजवी

क्षत्रिय अब तो जागो रे

क्षत्रिय अब तो जागो रे
(तर्ज- लीलै घोड़े र असवार, म्हारा मेवाड़ी सरदार ..)

बेट्यां पर दहेज री मार, बेटा बैठ्या बेरोजगार,
ऊपर आरक्षण रो वार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

कूवा - कोठी नहीं रह्या, थारै रही ना जागीरदारी !
काश्तकारां रै नांव चढग्या, खेत रह्या ना क्यारी !!
बंची - खुची दहेज रै वार, या बेची दारू-अम्मल लार,
पड़ रयी कुरीतियां री मार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

पैल्यां राज री नोकरी करता, अब आरक्षण बेड़ी !
सारी कौम बढ़ी शिक्षा मं, कौम आज पिछड़ेड़ी !!
बन्ना बुल्लेट होय सवार, सेल्फी लेवै संग हथियार,
राखै मूंछ्यां आंटीदार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

हाथ हुनर रो काम करणीया, खूब मजूरी पावै !
समझै छोटो काम, करै नयीं, शर्म बन्ना नै आवै !!
पापा कद तायीं घालै कमार, करां नीं बिणज ओर व्यापार,
इण मं समझा रिस्क अपार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

फौज मं भर्ती होणो लड़नो, क्षत्री रो काम कुहावै !
भर्ती खुलै फ़ौज री, नम्बर बन्ना रो नीं आवै !!
या तो दौड़ हुवै नहीं पार, या पेपर देवै अडवार,
तो अब कैयां पड़सी पार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

दहेज विरोधी संघ आज, सोयोड़ो समाज जगायो !
क्षत्रिय गुरुकुल आश्रम, प्रशिक्षण सारू संघ बणायो !!
सब मिलजुल उठाओ भार, तो ही होसी बेड़ो पार,
करै घनश्याम आज मनवार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

बेट्यां पर दहेज री मार, बेटा बैठ्या बेरोजगार,
ऊपर आरक्षण रो वार, क्षत्रिय अब तो जागो रे !
ओ बन्ना अब तो जागो रे !!

✍️By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई

बेरोजगारी की बलि चढ़ रहा क्षत्रिय युवा

बेरोजगारी की बलि चढ़ रहा क्षत्रिय युवा

क्षत्रियकुल का सूर्य जग में फिर चमकना चाहिए,
घिस रहा सिक्का पुराना फिर से चलना चाहिए !
बेरोजगारी की बलि पर  चढ़  रहा  क्षत्रिय  युवा,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

है घट रही खेती की भूमि बढ़ रहे परिवार से,
बिक रही ठाकुर की भूमि दहेज की मार से !
कुरीतियों को छोड़ रस्ता अब बदलना चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

भोमिया  भूमि  के  मालिक  भूमिहीन हो रहे,
अपनी ही बेची जमीन बंटाई पे लेकर बो रहे !
खेती अब घाटे का सौदा विकल्प दूजा चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

मिल रही ना नोकरी भी अब उसे सरकार से,
पिछड़ रहा क्षत्रिय युवा आरक्षण की मार से !
बहुत लापरवाह रहे  अब तो संभलना चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

वाणिज्य व्यापार से हम रहते आए दूर हैं,
कुम्हार माली जाट आज हो रहे मशहूर हैं !
दूसरे  समाज से कुछ  सीख  लेनी  चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

स्वरोजगार में वे लोग हाथ का हुनर जो जानते,
हम रजपूती की ऐंठ में उसे छोटा काम मानते !
इस पुरानी भ्रांति से भी अब निकलना चाहिए
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

सेना में जाना काम क्षत्रिय का रहा मशहूर है,
जाने क्यों हम आज इससे हो रहे अब दूर हैं !
सेनामें रजपुती का डंका फिर से बजना चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

दहेज रोधी  टीम  ने  बीड़ा ये अब उठाया है,
क्षत्रिय युवा के मन मे स्वप्न फिर जगाया है !
सपना युवा का 'घनश्याम' साकार होना चाहिए,
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!
अब रोजगार का कोई रस्ता निकलना चाहिए !!

✍️ #घनश्यामसिंह_राजवी_चंगोई

दहेज पर कुर्बान बेटियां

दहेज पर कुर्बान बेटियां
(तर्ज- ऐ मेरे वतन के लोगो)

ऐ क्षत्रिय समाज के लोगो, चाहे खूब उमेठो मूंछें !
बेटों की लगाकर बोली, कैसे तुम सबसे ऊंचे !!

ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी !
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

थी फूल सी कोमल बिटिया, जब मां के गर्भ में आई,
मां को लगी जान से प्यारी, औरों को नहीं सुहाई !
दहेज के डर से पिता ने, उसे गर्भ में ही मरवाई,
खुद बाप बना हत्यारा, दुनिया से ये बात छुपाई !
दुनिया मे आने से पहले, हुई उसकी खतम कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

गर घर-आंगन में गूंजी, उसकी प्यारी किलकारी,
मां को तो हुई खुशी पर, दिए सास ने ताने भारी !
वो चन्द्रकला सी बढ़ रही, पर बाप को चिंता भारी,
वो जिस समाज का हिस्सा, है दहेज बड़ी लाचारी !
दहेज जुटाने पिता ने, तब खाक परदेस की छानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

जवान जो हो जाती है, एक बेटी बाप के घर पर,
है बाप की पगड़ी झुकती, बेटे वालों के दर पर !
लड़की की हो चाहे ही, लड़के से अधिक पढ़ाई,
फिर भी दहेज की चाहत, ना हो धेला एक कमाई !
आवारा को बताते अफसर, नित गढ़ते झूठ कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

टीका गहने और कपड़ा, फर्नीचर नकद जुहारी,
खाना भी बढ़िया चाहिए, ब्रांडेड दारू भी न्यारी !
संचित धन सब खरचा, और खरचा कर्जा ले कर,
पुरखों की बेची धरती, या घर को गिरवी रख कर !
घर और दिल को खाली कर, आंखों में दे गई पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

कर बाप के घर को खाली, बेटी ससुराल में आई,
बेटे वालों की नीयत में, आ गई फिर और बुराई !
कभी बाईक-गाड़ी चाहिए, कभी चेन कभी ब्रेसलेट,
फिर भिखमंगों ने जला दी, डालके उसको घासलेट !
बेटी के जीवन की बस, ये ही है सच्ची कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

घनश्यामसिंह चंगोई

केसरिया बालम दारूड़ी नै . . . .

*केसरिया बालम*

केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

मारू थारा देश में, निपजंता तीन रतन !
ढोलो पी ठेकै पड्यो, अब मरवण रा कांई ढंग !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

आमां रसभरी आमली, महलां नवजोबन नार !
दोनूं बिरथा जा रया, मिल्यो मदछकियो भरतार !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

दारू दुसमण देह री, तो मद मत पीज्यो कोय !
जीव जळावे आपरो, अर घर रा सकै न सोय !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

साजन साजन मैं करूँ, तो साजन जीवजड़ी !
मद पी गलियां मं पड़्या, मैं देखूं खड़ी-2 !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

ज्यान गमाता जुद्ध मं, तो बै रणबंका रजपूत !
पीव-2 मद मर रया, पण अब वां रा ही पूत !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !
मतवाळा बन्नासा जीवन सूं मुख मत मोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !

ऊंचे पाये ढोलियो, तो ढीली पड़ी निवार !
ढ़ोलो मद मं मत्त पड़्यो, तो सांसां मारै नार !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !
मृगा नैणी रा ढोला सबर करो अब तो थोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोड़ो सा !

ठुकराई ठरकै करी, तो बै रणबंका रजपूत !
ठर्रो पी नाळी मं पड़्या, अब पत्त गमावै पूत !!
मदछकिया बालम, बड़कां री आण मत तोड़ो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !!

लड़ता कुळ हित कारणै, तो रणबंका रजपूत !
मद पीपी आपस मं लड़ै, अब बां रा ही पूत !!
म्हारा प्यारा बन्ना, पुरखां री लीक मत छोडो सा !
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !
पिया प्यारी रा ढोला, कहणो म्हारो मानो थोड़ो सा !!
केसरिया बालम दारूड़ी नै अब तो छोडो सा !!

(By- घनश्यामसिंह चंगोई)

म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां

.म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां

म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो सहर को सिस्टम नी जाणा।
म्हारी रीत पुराणी देख्योेड़ी, 
थारा नुंवा कस्टम नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो सहर को सिस्टम नी जाणा॥

कूवां-कुंड रो पाणी पियो, 
म्हे बिस्लरी वाटर नी जाणा।
कडडी-खीचड़ खायोड़ो, 
म्हे पिज्जा-बर्गर नी जाणा॥ .
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

म्हारी घाट-राबड़ी खायोड़ी, 
म्हे मैंगो शेक नी जाणा।
ठंडी ल्हासी पियोड़ी म्हारी, 
कोला-पेप्सी नी जाणा ।।
म्हे गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो …

म्हे धोती कुड़तो पेरणीया, 
थारा जीन्स-टीशर्ट नी जाणा।
धोड़ी जूती पैरयोड़ी म्हारी, 
एडिडास-नाइके नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

म्हे गांव मैं पैदल घुम्योड़ा,
थारा होंडा-बुल्लेट नी जाणा।
बलदागाडी-ऊंट चड्या, 
फॉरच्यूनर-डस्टर नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर को ….

कोरी मटकी पाणी पीता, 
एक्वा-फिल्टर नी जाणा।
सिल-लोडा पर मिर्च बांटता, 
मिक्सर-ग्राइंडर नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

भोभर मांई रोट सेकता, 
माइक्रोवेव ओवन नी जाणा।
हांडी मैं म्हे दाळ बनाता, 
नॉन-स्टिक कुकर नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

नरम खुरमला खायोड़ा, 
कैडबरी चॉकलेट नी जाणा।
म्हे ठंडो रोट कलेवो करता, 
ब्रेड-आमलेट नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….


काकड़ी-मतीरा खायोड़ा म्हे,
ऑरेंज-एप्पल नी जाणा।
गुड़-धाणी ओर होळा खाता, 
म्हे चिप्स-कुरकरा नी जाणा॥
म्हे तो  गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

घोट ठंडाई पिया करता, 
चिल्ड बीयर नई जाणा।
देसी ठर्रो चाले करतो, 
बेकार्ड आर-सी नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….


होको-चीलम पीवणिया, 
म्हे चुरर्ट-सिगरेट नी जाणा॥
छाछ मेट स्यूं बाळ धोवता, 
शेम्पू कंडीशनर नी जाणा॥
म्हेतो  गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

दू एका दू सीखयोड़ी, 
थारा टू-वंजा-टू नी जाणा॥
“कको कोडको” रटियो म्हे तो,
ए फोर एप्पल नी जाणा।।
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….


म्हे मांचा-मूढा बेठणिया, 
थारा सोफा-काउच नी जाणा।
अखराड़े ही सो ज्याता म्हे, 
स्लीपवेल मैट्रेस नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

चर-भर टिंटी खेलणिया, 
म्हे कैरम बोर्ड नी जाणा।
चोपड़-पासा खेलणिया म्हे, 
रम्मी-पपलू नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….


घुत्ता-गिंडी खेल्योड़ी, 
T-20 क्रिकेट नी जाणा।
गिंडी मारयां डांड उछलती, 
विकेट बोल्ड नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

गांव “चंगोई” रैयोड़ा म्हे, 
सहर बीकाणो नी जाणा।
राम-राम घनश्याम केंवता,
म्हे गुड़ मोर्निंग नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो शहर ….

म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां,
थारो सहर को सिस्टम नी जाणा।
म्हारी रीत पुराणी देखेड़ी, 
थारा नुंवा कस्टम नी जाणा॥
म्हे तो गांव का रैवण हाळा हां, 
थारो सहर को सिस्टम नी जाणा॥

✍️ घनश्यामसिंह राजवी, चंगोई 

(24 जून 2017)

देश का क्षत्रिय सोया है

 देश का क्षत्रिय सोया है

 

‘सतियों की इज्जत’ दांव लगा...

गहरी नींद में खोया है ...!!

'धीरे' हॉर्न बजा रे पगले....  

देश का क्षत्रिय सोया है...!!

 

‘आत्मसुख’ से आराम मिला है...

'पूरी' नींद से सोने दे...!!

जगह मिले वहाँ 'साइड' ले ले...

हो 'दुर्घटना' तो होने दे...!!

किसे 'बचाने' की चिंता में...

तू इतना जो 'खोया' है...!!

'धीरे' हॉर्न बजा रे पगले ...

 देश का क्षत्रिय सोया है....!!!

 

ईज्जत के सब 'नियम' पड़े हैं...

कब से 'बंद' किताबों में...!!

'जिम्मेदार' है वोटों वाले...

सारे लगे 'हिसाबों' में...!!

हाड़ी रानी पद्मिनी का मन..

स्वर्ग में बैठे रोया है…!!

धीरे हॉर्न बजा रे पगले...

देश का क्षत्रिय सोया है...!!!

 

'राजनीति' की इन सड़कों पर...

सभी 'हवा' में चलते हैं...!!

क्षत्रिय को जो ‘भींत पे मांडे’ ...

वो 'शुभकरण' निकलते हैं...!!

आकाओं की लचर नीति से...

'भला' जाट का होया है...!!

धीरे हॉर्न बजा रे पगले....

देश का क्षत्रिय सोया है....!!!

 

क्षत्रिय तो है 'सिंह' सरीखा...

सोये तब तक सोने दे...!!

'राजनीति' की इन सड़कों पर...

नित 'दुर्घटना' होने दे...!!

तू भी चाट मलाई की जूठन ...

क्यों 'ईमान' में खोया है..??

धीरे हॉर्न बजा रे पगले..

देश का क्षत्रिय सोया है....!!!

 

अगर क्षत्रिय 'जाग' गया तो..

सब 'सीधे' हो जाएगे....!!

शर्मा - जाट भी 'चुप' होंगे....

और 'रूपाला' रो जायेगे...!!

इस चुप्पी से 'शर्मसार' हो ....

'मां बहनों का मन' रोया है..!!

धीरे हॉर्न बजा रे पगले...

देश का क्षत्रिय सोया है...!!!

धीरे हॉर्न बजा रे पगले...

देश का क्षत्रिय सोया है...!!!

 

✍️ घनश्याम सिंह चंगोई

कुर्सी मेरी बच जाए

कुर्सी मेरी बच जाए

 

राम को बेचूं, श्याम को बेचूं,

और किस-2 के नाम को बेचूं,

मित्तरों ने जो देश को खाया,

उनका खाया पच जाए,

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

अपनी पिछड़ी जात को बेचूं, 

काशी विश्वनाथ को बेचूं,

देश लूट कर हुए भगोड़े, 

सब मित्तर बाहर बस जाएं,

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

मां गंगा की पुकार को बेचूं,

या पटेल सरदार को बेचूं,

नेहरू सा फेमस होने के,

सारे सपने हों सच जाएं,

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

केदारनाथ की गुफा को बेचूं, 

धर्मपत्नी की वफ़ा को बेचूं, 

जात धर्म का विष जनता की, 

रग रग में चाहे रच जाए, 

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

हीरा बा के नाम को बेचूं,

दामोदर जी के काम को बेचूं,

जनता चाहे ओर गरीब हो,

अरबपति खरबपति बन जाए, 

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

पुलवामा की शहादत बेचूं,

या कोरोना की राहत बेचूं,

‘घनश्याम’ काठ की हांडी, 

फिर से एक बार बस चढ़ जाए, 

कुर्सी मेरी बच जाए !

 

राम को बेचूं, श्याम को बेचूं,

और किस-2 के नाम को बेचूं,

मित्तरों ने जो देश को खाया, 

उनका खाया पच जाए,

कुर्सी मेरी बच जाए !!

 

✍️ घनश्यामसिंह चंगोई

 


मेनू
चंगोई गढ़

चंगोई गढ़