चंगोई गांव राजवी राजपूत सिरदारों के अधीन रहा है। राजाजी श्री बृजलालसिंह जी इसके अंतिम जागीरदार रहे हैं जिनको बीकानेर रियासत के द्वारा इस ठिकाने की ताजीम प्रदान की गयी थी। इस जागीर के अंतर्गत 14 गाँव आते थे, जिन्हे उनके पूर्वज राजा भवानीसिंह जी को बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा सूरतसिंह जी ने 1787 में प्रदान किया था।
- भौगोलिक स्थिति
चंगोई गांव राजस्थान के चूरू जिले की तारानगर तहसील में, तारानगर कस्बे से 8 किमी पूर्व में तारानगर से बांय होते हुये भादरा जाने वाले सड़क मार्ग पर स्थित है। चंगोई-मिखाला दोनो संयुक्त गांव एक ही जगह पर स्थित हैं। यहां लगभग 1,000 परिवार (चंगोई में 700 + मिखाला में 300) रहते हैं, जिनकी जनसंख्या करीब 5,000 है।
- शिक्षण एवं अन्य संस्थान
- प्रमुख व्यवसाय
- पुरातात्विक महत्व
चंगोई गांव में वर्षों पूर्व, गांव के समीप एक खेत में किये गए उत्खनन से यह अंदाज़ा होता है की यह एक पुराना गांव रहा है। उस समय किये गए उत्खनन में एक घर की दीवारें, कुएं के अवशेष, कुछ मिटटी के बर्तन तथा एक अनाज पीसने की चक्की आदि मिले थे।
- चंगोई गांव का इतिहास में प्रथम उल्लेख
राजा कर्णसिंह जी के बाद अनूपसिंह बीकानेर के राजा हुये। कर्णसिंह के अनोरस पुत्र बनमलीदास को सम्राट औरंगजेब ने मुसलमान बनने की शर्त पर बीकानेर का आधे राज्य का पट्टा लिखकर दे दिया। महाराजा अनूपसिंह को जब अपने गुप्तचरों से सूचना मिली तो उन्होंने अपने दो विश्वस्त जनों ‘राजपुरा के ठाकुर प्रतापसिंह व बाय के लक्ष्मी दास सोनगरा’ को भेजा। वे दोनों दिल्ली से बीकानेर आ रहे बनमालीदास से चंगोई में मिले व षडयंत्र रचकर उसको विवाह के लिए राजी किया। विवाह की रात ही उसे खाने में जहर देकर मार डाला। उसकी नवविवाहिता पत्नी उसके साथ सती हुई। चंगोई में अभी भी बनमालीदासजी की छतरी मौजूद है, जहां स्थानीय लोग सती की पूजा करते हैं।
- धार्मिक व जनहिताय
गांव के लोगों की धार्मिक व लोकोपयोगी कार्यो में भी काफी रुचि है। गांव में कई पुराने व नए मन्दिरो के अतिरिक्त गोशाला, धर्मशालायें, प्याऊ, चुग्गा घर व वृक्षारोपण के साथ साथ पीपल आदि वृक्षों के नीचे गट्टे बनाने की भी परंपरा रही है।
चंगोई गांव में श्री भभूता सिद्ध महाराज का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पर लोग सांप काटने के उपचार के लिए आते हैं। गांव में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सुदी सप्तमी को भभूता सिद्ध महाराज का बड़ा मेला लगता है। जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु निकटवर्ती अन्य गांवों-शहरों के साथ ही राजस्थान के बाहर से भी लोग आते हैं।