चंगोई गांव राजवी राजपूत सिरदारों के अधीन रहा है। राजाजी श्री बृजलालसिंह जी इसके अंतिम जागीरदार रहे हैं जिनको बीकानेर रियासत के द्वारा इस ठिकाने की ताजीम प्रदान की गयी थी। इस जागीर के अंतर्गत 14 गाँव आते थे, जिन्हे उनके पूर्वज राजा भवानीसिंह जी को बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा सूरतसिंह जी ने 1787 में प्रदान किया था।

  • भौगोलिक स्थिति
दादीसा का कुआँ

चंगोई गांव राजस्थान के चूरू जिले की तारानगर तहसील में, तारानगर कस्बे से 8 किमी पूर्व में तारानगर से बांय होते हुये भादरा जाने वाले सड़क मार्ग पर स्थित है। चंगोई-मिखाला दोनो संयुक्त गांव एक ही जगह पर स्थित हैं। यहां लगभग 1,000 परिवार (चंगोई में 700 + मिखाला में 300) रहते हैं, जिनकी जनसंख्या करीब 5,000 है।

चंगोई गांव सड़क मार्ग से तारानगर व भादरा के अलावा पूर्व दिशा में स्थित घासला गांव से भी जुड़ा है। इन तीनो ही मार्गो पर नियमित बस सेवा तारानगर, भादरा व राजगढ़ कस्बों के लिए दिनभर उपलब्ध रहती है। कुछ बसे चूरू व जयपुर तक भी जाती है।

 

  • शिक्षण एवं अन्य संस्थान
यहां पंचायत कार्यालय व उसमे स्थित IT केन्द्र के अतिरिक्त PHC स्तर का सरकारी अस्पताल, ग्रामीण बैंक शाखा, पोस्ट ऑफिस, पशु चिकित्सा उप केंद्र आदि सभी बुनियादी सेवायें उपलब्ध हैं। शिक्षा के क्षेत्र में एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, एक राजकीय बालिका विद्यालय के अतिरिक्त एक आदर्श विद्या मंदिर व एक सेकंडरी स्तर का निजी विद्यालय है। इसके अतिरिक्त तारानगर कस्बा पास ही होने से तारानगर के लगभग सभी बड़े स्कूलों की बसें आती हैं, जिससे बहुतायत में बच्चे तारानगर पढ़ने हेतु जाते हैं।

 

  • प्रमुख व्यवसाय
गांव में लोगों का मुख्य पेशा कृषि व पशुपालन ही रहा है। लेकिन पिछले कई सालों से सरकारी नौकरी की ओर भी रुझान बढ़ा है। जहां सैंकड़ों नवयुवक रक्षा सेवाओं में हैं वहीँ पुलिस, चिकित्सा, शिक्षा व अन्य सिविल सर्विस में भी इतने ही नवयुवक कार्यरत हैं। इनमे से कुछ उच्च पदों पर भी हैं।
इनके अलावा निजी क्षेत्र में भी काफी लोग दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, बेंगलुरु, काठमांडू, सूरत, जयपुर व अन्य बड़े शहरों में कार्यरत हैं। साथ ही कुछ लोग गांव में व कुछ तारानगर में अपना छोटा मोटा व्यवसाय करते हैं। गांव के दो नवयुवक आर्मी में लेफ्टिनेंट के रूप में चयनित होकर Commissioned Officer के तौर पर कार्यरत हैं।
पुराने समय मे यहां वैश्य समुदाय के काफी परिवार रहते थे। लेकिन समय के साथ साथ उनमें से अधिकांश व्यवसाय हेतु अन्यत्र (कलकत्ता, मुंबई, सिलिगुड़ी, सूरत, काठमांडू, कानपुर, पटना आदि) स्थानों पर चले गए। आज भी वे लोग वहां पर ‘चंगोईवाला’ के नाम से अपनी पहचान कायम रखे हुए हैं।

 

  • पुरातात्विक महत्व

चंगोई गांव में वर्षों पूर्व, गांव के समीप एक खेत में किये गए उत्खनन से यह अंदाज़ा होता है की यह एक पुराना गांव रहा है। उस समय किये गए उत्खनन में एक घर की दीवारें, कुएं के अवशेष, कुछ मिटटी के बर्तन तथा एक अनाज पीसने की चक्की आदि मिले थे।

  • चंगोई गांव का इतिहास में प्रथम उल्लेख
Chhatri – Banmalidas ji, Fateh SinghJi Changoi, Nahar Singhji Mikhala

राजा कर्णसिंह जी के बाद अनूपसिंह बीकानेर के राजा हुये। कर्णसिंह के अनोरस पुत्र बनमलीदास को सम्राट औरंगजेब ने मुसलमान बनने की शर्त पर बीकानेर का आधे राज्य का पट्टा लिखकर दे दिया। महाराजा अनूपसिंह को जब अपने गुप्तचरों से सूचना मिली तो उन्होंने अपने दो विश्वस्त जनों ‘राजपुरा के ठाकुर प्रतापसिंह व बाय के लक्ष्मी दास सोनगरा’ को भेजा। वे दोनों दिल्ली से बीकानेर आ रहे बनमालीदास से चंगोई में मिले व षडयंत्र रचकर उसको विवाह के लिए राजी किया। विवाह की रात ही उसे खाने में जहर देकर मार डाला। उसकी नवविवाहिता पत्नी उसके साथ सती हुई। चंगोई में अभी भी बनमालीदासजी की छतरी मौजूद है, जहां स्थानीय लोग सती की पूजा करते हैं।

  • धार्मिक व जनहिताय

गांव के लोगों की धार्मिक व लोकोपयोगी कार्यो में भी काफी रुचि है। गांव में कई पुराने व नए मन्दिरो के अतिरिक्त गोशाला, धर्मशालायें, प्याऊ, चुग्गा घर व वृक्षारोपण के साथ साथ पीपल आदि वृक्षों के नीचे गट्टे बनाने की भी परंपरा रही है।

चंगोई गांव में श्री भभूता सिद्ध महाराज का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पर लोग सांप काटने के उपचार के लिए आते हैं। गांव में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सुदी सप्तमी को भभूता सिद्ध महाराज का बड़ा मेला लगता है। जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु निकटवर्ती अन्य गांवों-शहरों के साथ ही राजस्थान के बाहर से भी लोग आते हैं।


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चंगोई गढ़

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