लक्ष्मी
(By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
मां, बहिन, बेटी, बहू, पत्नी लक्ष्मी सब हैं घर पर,
मृग की कस्तूरी ज्यों मानव खोज रहा धन बाहर !!
जीवित लक्ष्मी का मान नहीं लक्ष्मी की फोटो पूजरहा,
भाग-2 धन किया इकट्ठा पर सुख खातिर जूझ रहा !
जन्मदायिनी माता की नहीं करता पूछ बुढ़ापे में,
समझावन की बात कहे वो तो नहीं रहता आपे में !
संस्कारी पत्नी घर में सुख खातिर बाहर दौड़ रहा,
दौलत के नशे में चूर नैतिकता का दामन छोड़ रहा!
बेटी की गर्भ में कर हत्या भ्रूण हत्या का पाप करे,
पर धन-दौलत की चाहत में लक्ष्मीजी का जाप करे !
हुई पराई ब्याहते ही फिर सुध नहीं लेता बहनों की,
प्यार के बोल उन्हें चाहिए चाह नहीं उन्हें गहनों की !
लक्ष्मी रूपा बहू घर आये देखे नहीं उसके गुण मानव,
गहने गाड़ी में कीमत उसकी आंक रहा दहेज दानव !
कितने ही चौघड़िए देखो, चाहे करो लक्ष्मी का पूजन,
गृहलक्ष्मीयां खुश रहेंगी तो, घनश्याम सुखीहोगा जीवन !
मां, बहिन, बहू, बेटी, पत्नी लक्ष्मी सब हैं घर पर,
मृग की कस्तूरी ज्यों मानव खोज रहा धन बाहर !!
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