पातल और पीथळ (नई कविता)
(घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)
अरे रबड़-स्टाम्प रो पद ही जद, अदनो सो कोविंद ले भाग्यो।
भीतर सूं हिवड़ो ऊजळ पड़्यो, लौहपुरुष रो दुःख जाग्यो॥
‘मैं खस्यो घणो, मैं घस्यो घणो, पार्टी नै ऊंची ल्यावण नै।
मैं पुरो जोर लगायो हो, 2 स्यू 200 पूँचावण मैं॥
मैं रथयात्रावां घणी करी, मिंदर रो फिड़को उड़ावण नै।
मैं बाबरी मस्जिद तुड़वाई, हिंदू-मुस्लिम लड़वावण नै॥
गुजरात मैं दंगा घणा हुया, तो जींवती माखी मैं गिटग्यो।
जीं तांई अटल नै नाराज करयो, बो चेलो ही मंनै नटग्यो॥
जद PM री बारी आई, मेरी पुरस्योड़ी थाळी खींची।
नहीं मेरो कोई बस चाल्यो, मजबूरी मैं आंख्यां मींची॥
जद याद करूं मैं बीर अटल री, नैणां मैं नीर भरयो आवै।
सुख-दुख मैं देतो साथ मेरो, चाहे सारी दुनिया नट ज्यावै॥
आ’ सोच हुई जद तार-2, भीष्म पितामह री लौह छाती।
मार्गदर्शक रो अब के धीणो, लिखस्यू इस्तीफै री पाती॥
संसद स्यू इस्तीफो मैं देस्यूं, पार्टी राजनीति सब छोड़ूं।
अब कुछ मिलणै री आस नही, शाह-मोदी रो भांडो फोड़ू॥
उड़ती सी खबर हुई वायरल, कुछ खुश हुया कुछ हुया उदास।
बुडळिया साथी दौड़ पड़्या, ओ’ करसी आपां सगळां रो नास॥
जोशी, सिन्हा, शांता, शौरी, जसवन्त स्यू भी करी बात।
शत्रुघ्न, कोश्यारी भी आया, सब मिल समझाया रातो-रात॥
“बावळ छोडो, थ्यावस राखो, मोदी नै ओजूं समझावा।
भारत रत्न थांनै देवै , और पद्म विभूषण म्हे पावां ॥”
‘भारतरत्न’ रो नाम सुण्यो, बूढ़ी आंख्यां हुई चमकदार।
“आ’ पार्टी म्हारी माता है”, कह इस्तीफे नै दियो फाड़॥
मीडिया रै हाथां आयोड़ी, एक धांसू सी खबर खुसगी।
‘घनश्याम’ पटाखो फूटण स्यूं, पैली ही बत्ती फुसगी॥
घनश्यामसिंह राजवी चंगोई
(31 जुलाई 2017)