* द्विअक्षरी छन्द *
(By – घनश्यामसिंह चंगोई)
यह पूरा छंद सिर्फ दो अक्षर ‘क’ व ‘न’ का प्रयोग कर रचित किया गया है !
कनक का कन नीका, ना कन नीका कनक का !
कनक की नोक नीकी, कानन नीका कनक का !
कान में कनक नीका, कूक नीकी किंकिनी !
कंकन कुनकाना नीका, नैन नीके कंक के !
कीकान के कान नीके, न नाक नीकी कंक की !
कोकी की कूक नीकी, न कीक नीकी काक की !!
शब्दार्थ* …
कनक = गेहूं, धतूरा, नागचंपा, पलाश, सोना !
कन = भिक्षा, कन = प्रसाद, नीका = अच्छा, नीकी = अच्छी, नोक = नुकीलापन, कानन = बाग, कूक = सुरीली ध्वनि, किंकिनी = करघनी में लगी छोटी घण्टियां, कंकन = कंगन, कुनकाना = खनकाना, कंक = सफेद चील, कोकी = कोकिला (कोयल), कीक = चिल्लाहट, काक = कौआ, कीकान = केकाण प्रदेश का घोड़ा, कंक = बगुला !
*सरलार्थ* …
गेहूं (अन्न) का दान (भिक्षा) सबसे अच्छा है,
धतूरा प्रसाद के रूप में भी अच्छा नहीं है।
नागचम्पा की पत्तियां सुंदर नुकीली होती हैं,
पलाश का बाग बहुत ही अच्छा (सुरम्य) होता है।
कंगन की खनक अच्छी लगती है,
करघनी की घण्टियों की सुमधुर ध्वनि अच्छी लगती है।
कान में स्वर्ण (आभूषण) अच्छा लगता है,
सफेद चील की आंखे अच्छी (बहुत तेज) होती हैं।
कीकान घोड़े के कान (कनौती) अच्छे होते हैं,
बगुले की नाक (चोंच) सुंदर नहीं होती।
कोयल की कूक सबको अच्छी लगती है,
पर कौवे की चिल्लाहट अच्छी नहीं लगती।
✍️ *घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*