बेटियों की कुर्बानी

बेटियों की कुर्बानी

(तर्ज- ऐ मेरे वतन के लोगो)

(By- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)

ऐ क्षत्री समाज के लोगो …. तुम खूब उमेठो मूंछें,
बेटों की लगा कर बोली… कैसे तुम सबसे ऊंचे !
बेटी की आंख में आंसू …. जब आए धरती रोए,
हर आह हमें कहती है ….  कैसे ये स्वप्न संजोए !
कैसे ये स्वप्न संजोए !!

ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी !
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

थी फूल सी कोमल बिटिया,जब मां के गर्भ में आई,
मां को लगी जान से प्यारी, औरों को नहीं सुहाई !
दहेज के डर से पिता ने , उसे गर्भ में ही मरवाई,
खुद बाप बना हत्यारा, दुनिया से ये बात छुपाई !
दुनिया मे आने से पहले, हुई उसकी खतम कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

गर घर – आंगन में गूंजी , उसकी प्यारी किलकारी,
मां को तो हुई खुशी पर, दिए समाज ने ताने भारी !
वो चन्द्र कला सी बढ़ रही, पर बाप को चिंता भारी,
हम जिस समाज का हिस्सा, है दहेज बड़ी लाचारी !
दहेज जुटाने पिता ने, तब खाक परदेस की छानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

हो जाती है जवां जब, एक बेटी बाप के घर पर,
झुकती है बाप की पगड़ी, बेटे वालों के दर पर !
लड़की की भले हो चाहे, लड़के से अधिक पढ़ाई,
फिर भी दहेज की चाहत, ना हो धेला एक कमाई !
आवारा को कहते अफसर, नित गढ़ते झूठ कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

गहना टीका फर्नीचर AC, गाड़ी की फरमाईश,
खाने में बकरा मुर्गा, वाईन भी अपनी च्वाईस !
संचित धन सब खरचा, और खरचा कर्जा ले कर,
पुरखों की बेची धरती, या घर को गिरवी रख कर !
घर ओर दिल को खाली कर, आंखों में दे गई पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!
ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

कर बाप के घर को खाली, बेटी ससुराल में आई,
बेटे वालों की नीयत में, आ गई फिर और बुराई !
कभी बाईक-गाड़ी चाहिए, कभी चेन कभी ब्रेसलेट,
ओर भिखमंगों ने जला दी, फिर डाल उसे घासलेट !
‘घनश्याम’ कहे बेटी की , बस सच्ची यही कहानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

ऐ मेरे समाज के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी,
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!
इस दहेज ने ले ली कितनी, ही बेटियों की कुर्बानी !!

*घनश्यामसिंह राजवी चंगोई*


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