ग्राम स्वराज

ग्राम स्वराज

(घनश्यामसिंह चंगोई)

शहरीकरण से भारत बन गया, कंक्रीट का जंगल आज!
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

बैल ऊंट से खेती होती, पूछ बड़ी  थी गौधन  की,
आई विदेशी ट्रैक्टर कम्पनी, भूख उन्हें थी बस धन की!
भू की उर्वरा यूरिया खा गई, गोबर की जो रही ना खाद,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

नही जरूरत रही बैल की, गोवंश फिरे मारा-मारा,
पॉलीथिन खा मर रही गाएं, खाने को न मिले चारा !
खेत खा रहे बछड़े जो कभी, उपजाते थे स्वयं अनाज,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

खत्म  हो  रहे  खेत रोज, फेक्ट्री फ्लैट रोड बनाने को,
क्या पेट भरेगा कंक्रीट से, जब अन्न न होगा खाने को!
दही छाछ को भूल रहे सब, पिज्जा पेप्सी लगते स्वाद,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

अट्टालिकायें झुकी शहरों में, हैं धन्ना सेठ बड़े प्रसन्न,
अन्नदाता अपघात कर रहा, नहीं बचे खाने को अन्न!
हो रहा है इंडिया शाइनिंग, भारत तिल-2 मर रहा आज!
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

मोची दर्जी नाई जुलाहा,  लोहार किरानी और कुम्हार,
खाती तेली कोल्हू वाले, सब हो गए अब बेरोजगार!
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का, देश मे सिक्का चलता आज,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग, ग्राम स्वराज !!

नदियां गन्दा नाला बन गई,  जंगल  नंगे  हुए  पहाड़,
सड़कों पर है धुंआ उड़ाते, वाहनों की अति भीड़मभाड़!
पांच साल के बच्चों को भी, रोग अस्थमा हो रहा आज,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

कोरोना के नाम प्रकृति ने, दिखा दिया हमें चमत्कार है,
ब्रम्हांड विजेता बनता मानव, पर प्रकृति से रहा हार है!
शहर आ रहे खाने को अब, गांव की ओर रहे सब भाग,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

जागो अब तो मानवता हित, पहाड़ नदी व पेड़ बचाओ,
प्रकृति का अपदोहन रोको, अंधाधुंध ना धुंआ उड़ाओ!
नियत सच्ची रखेंगे अपनी, प्रभु संवारेंगे सब काज,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

पश्चिम का अंधानुकरण छोड़ो, आत्मनिर्भर गांव बनाओ,
जन का गांव से पलायन रोको, गांवों में रोजगार बढ़ाओ!
गरीब अमीर का भेद घटे, ‘घनश्याम’ तभी होगा रामराज,
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

शहरीकरण से भारत बन गया, कंक्रीट का जंगल आज !
गांधी का सपना भूले हम, कुटीर उद्योग ग्राम स्वराज !!

✍️ घनश्यामसिंह राजवी चंगोई


मेनू
चंगोई गढ़

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