राठौड़ वंश – contents

राठौड़ वंश

 ब्रज देशां , चंदन वनां , मेरु पहाड़ां मोड़ !
गरुड़ खगां, लंका गढां, राजकुलां राठौड़ !

(जिस प्रकार सभी प्रदेशों में ब्रज प्रदेश, वनों में चंदन वन, पहाड़ों में सुमेरु पर्वत, पक्षियों मे गरुड़ व गढ़ों में लंका गढ़, मोड़ (मुकुट) की तरह है, या सर्वोच्च है ! उसी प्रकार राठौड़ कुल सभी राजकुलों का मुकुट है!)

भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी राजा सुमित्र के एक पुत्र विश्वराज के वंशज *राठौड़* हुए। सुमित्र के दूसरे पुत्र कूर्म के वंशज *कछवाह* कहलाये। सुमित्र के तीसरे पुत्र वज्रनाभ के वंशज आगे चलकर *गुहिलोत* कहलाये। (कुछ इतिहासकार कच्छवाहों की उत्पत्ती कुश के नाम से भी मानते हैं) !

राठौड़ नाम की उत्पत्ति

इसमे इतिहासकारो के अलग-अलग मत हैं। कुछ का कहना है कि ‘राजा सुमित्र के वंशज मल्लराय ने राठेश्वरी देवी की आराधना की व उनके आशीर्वाद से प्राप्त पुत्र का नाम राष्ट्रवीर रखा, जिससे राठौड़ वंश नाम हुआ।’
रविवंश में अवतंश एक भूप राष्ट्रवीर भयो,
तस नाम सों संसार मं राठवर कुल उत्पन्न हुयो !
चंद्रहांस शत्रु नाश कर चहुं दिश में शासन कियो,
अयोध्या रोहिताश तारातम्बोल मुलतान को राजकियो !
जबकि दूसरा मत है कि महाभारत काल में राजा विश्वतमान के पुत्र बृहदबल को कुरुक्षेत्र युद्ध मे जाते समय रास्ते मे गौतम ऋषि मिले। सन्तानहीन राजा को गौतम ऋषि ने आशीर्वाद स्वरूप सन्तान हेतु मन्त्र सिद्ध जल रानी को पिलाने हेतू दिया। राजा ने शराब के नशे में प्यास लगने पर गलती से वह जल स्वंय पी लिया। ऋषि के मंत्र बल से राजा के शरीर मे पनपे बालक को राजा की राठ (रीढ़) फाड़ कर निकाल गया। जिससे उस बालक का नाम राठौड पड़ा।
एक अन्य मत यह भी है कि देवताओं के धार्मिक मापदण्डों पर खरा न उतरने पर ढूंढी राज गणेश को कन्नौज जाना पड़ा। ‘कन्नौज‘ उस समय राष्ट्रीय देश था, वे वहां के राजा हुए और उनके वंशज राष्ट्रोर कहलाये। इसी वंश में आगे राजा जयचंद गहरवार (राठौर) प्रसिद्ध हुऐ हैं।

क्षत्रियों के 36 कुलों में राठौड़ की गणना की जाती है। सबसे पहले विक्रम संवत 1205 की कल्हण की ”राजतरंगिणी” में क्षत्रियों के 36 कुलों का उल्लेख मिलता है| यहाँ ”पृथ्वीराज रासो” की उन पंक्तियों का उल्लेख किया जा रहा है जिनमें उन 36 कुलों के नाम गिनाये गए हैं –

“रवि ससि जादव वंस ककटस्थ परमार सदावर !

चाहुवान   चालुक्य   छन्द    सिलार अभीयर !!

दोयमत मकवान गुरुअ गोहिल गोहिलपुत !

चापोत्कट  परिहार  राव   राठौर    रोसजुत !!

देवरा टांक सैंधव अणिग योतिक प्रतिहार दघिषत !

कारटपाल कोटपाल हूल हरित गोरकला[मा] ष मट !!

धन [धान्य] पालक निकुंभवार, राजपाल कविनीस !

कालच्छुरकै आदि दे बरने बंस छतीस !!”

ये 36 कुल सूर्यवंश, चन्द्रवंश एवं अन्य वंशों में विभक्त हैं।

क्षत्रिय वर्ण के अन्तर्गत अनेक जातियों का जन्म हुआ। इन जातियों में ”राठौर” जाति प्रमुख है क्योकि इसका बहुत प्राचीन एवं विशाल इतिहास है। इस जाति में अनेक राजा और महाराजा हुए जो बडे शक्तिशाली एवं प्रतापी थे। ये गहरवार, राष्ट्रवर, राष्ट्रकूट एवं राष्ट्रिक नामों से भी जाने गये।

बलहट बंका देवड़ा, करतब बंका गौड़ !

हाड़ा बंका गाढ मं, रण बंका राठौड़ !!

स्वधर्म परायण मीराबाई का जन्म राठौर वंश में ही हुआ था, जिनकी कृष्ण भक्ति के गीत भारत के सभी प्रान्तों में गाये जाते हैं।

ऐतिहासिक तथ्य

‘‘राठौर या राठौड़,” के इतिहास के शोध से स्पष्ट हुआ है कि बौद्ध काल के पूर्व राष्ट्रकूट का दक्षिण भारत में राज था।महाराष्ट्र के कालाडिगी जिले में येवूर गांव के प्राचीन सोमेश्वर महादेव मंदिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 550 में दक्षिण में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण के पुत्र का प्रबल राज्य था, जिसकी सेना में 800 हाथी थे। चालुक्य राजा जयसिंह प्रथम ने उसे हराया था।

एलोरा के दशावतार शिलालेख के अनुसार मयूरखंडी (वर्तमान में कर्नाटक के बीदर जिले में) के राठौड़ राजा दंतिवर्मा के वंशज गोविन्दराज तृतीय ने पुलकेशी (द्बितीय) पर चढ़ाई की। उसके पोत्र दंतिदुर्ग ने सम्वत 810 में चालुक्य राजा वल्लभ को हराया व कांची, लाट, कलिंग, कौशल, श्रीशैल, मालव, टंक आदि देशों के राजाओं को हराकर ‘श्रीबल्लभ‘ नाम धारण किया। तथा उज्जैन में स्वर्ण व रत्न का दान किया। इसके उत्तराधिकारी कृष्णराज ने एलोरा का केलाशमन्दिर बनवाया। कृष्णराज के 11 वे वंशज अमोघवर्ष (सम्वत 874 से 934) ने राजधानी मान्यखेट (वर्तमान में कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में) को बसाया। इसीके पुत्र कृष्णराज (द्वितीय) ने भोज प्रतिहार (प्रथम) को हराया (बेगुमरा का ताम्रपत्र सम्वत 945) ! हिजरी सन 332 (वि सं 1001) में आये अरब यात्री ‘अलमसुदी’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुरुजुल जहब’ में लिखा है, ‘इस समय मान्यखेट का राजा बलहारा (राठोड़) कृष्णराज (तृतीय) सर्वाधिक शक्तिशाली है।’ सम्वत 1038 में कृष्णराज के पौत्र कर्कराज द्वि. से चालुक्य राजा तैलप ने राज्य छीनकर इस राठौड़ राज्य का अंत कर दिया।

दक्षिण में जब चालुक्यों का वर्चस्व बढ़ा, तब राष्ट्रकूट के अंतिम राजा कर्कराज के वंशज ने दक्षिण छोड़कर उत्तर में बदायूं में राठौर राज स्थापित किया। तब से राठौर नाम को मान्यता प्राप्त है। बदायूं से मिले एक शिलालेख के अनुसार ‘इस नगर का पहला राजा राठौड़ चन्द्र हुआ ! उसका पुत्र विग्रहपाल बड़ा प्रतापी हुआ। उसके बाद भुवनपाल, गोपाल, मदनपाल (वि सं 1176), देवपाल, भीमपाल, शूरपाल व लखनपाल हुए।’ यह शिलालेख लखनपाल का है। श्रावस्ती से में संवत 1176 के लेख के अनुसार वास्तव्य वंशी विद्याधर मदनपाल का मंत्री था। उसका पिता जनक, राजा गोपाल का मंत्री था।

बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में बदायूं के राष्ट्रकूट राजा गोपाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीन लिया। उपरोक्त मदनपाल के वंशज सम्भवतः गोविंदचंद्र, विजयचंद्र, जयचन्द्र हुए। जयचन्द के वंशज क्रमशः वरदाई सेन, सेतराम व सीहाजी हुए।

 राठौड़ व गहड़वाल शब्द

 क्षत्रिय दर्शन विशेषांक [क्षत्रिय राजवंश] पृष्ठ 86 में इतिहासकार श्री ओझा जी का मत उल्लेखित है। उन्होंने लिखा है कि कन्नौज का राजा जयचंद्र गहड़वाल था, किन्तु राजस्थान के राठौड़ों ने अपने को गहड़वाल नहीं माना है और न ही उनके लेखों में गहड़वाल लिखा मिलता है। गहड़वाल, राष्ट्रवरों [राठौड़ों] कि खाँप प्रतीत होती है। संभवतः अपने क्षेत्र कन्नौज से दूर राजस्थान में आने के कारण उपखाँप गहड़वाल नाम से न जानी जाकर प्रसिद्द खाँप राष्ट्रवर ,राठौड़, कमधज अदि नाम से पुकारे जाने लगे हों। ऐसे कई शिलालेख राजस्थान में मिले हैं जिसमें प्रधान खाँप न लिखकर उपखाँप को ही अंकित किया गया है। कन्नौज के राठोड़ों ने अपनी उपखाँप गहड़वाल अंकित करवा दी किन्तु उनकी मूल खाँप राठौड़ ही थी। अतः सीहाजी कन्नौज से बाहर दूर राजस्थान में आकर राज्य जमाया तो अपने को स्थानीय शब्द गहड़वाल से सम्बोधन न कर मूल खाँप राठौड़ शब्द का ही प्रचलन किया। जयचंद प्रबंध में जयचंद को राष्ट्रकूटिया भी लिखा गया है। इससे माना जा सकता है कि वह राष्ट्रकूटिया (राठौड़) था। शताब्दियो तक इस वंश ने  भारत पर राज्य किया है। क्षत्रिय दर्शन विशेषांक [क्षत्रिय राजवंश ] के अनुसार, श्री गोविंदचंद्र के उत्तराधिकारी श्रीविजयचन्द्र ने वि.1211 से 1226 तक शासन किया। श्री विजयचन्द्र के पश्चात् उनके पुत्र श्री जयचंद्र गद्दी पर बैठे। उन्होंने वि. 1227 से 1251 तक शासन किया। वि.1249 ई. पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद, वि.1251, ई .1194 में मोहम्मद गौरी का कन्नौज पर आक्रमण होगया। जयचंद एक विशाल सेना लेकर सुल्तान की सेना से मुकाबले के लिए चला। चंदवार नामक स्थान पर दोनों के बीच युद्ध हुआ, जयचंद हाथी पर सवार था। कुतुबद्दीन का एक तीर उसके सीने पर लगा वहीं जयचंद की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार गहड़वाल साम्राज्य समाप्त हुआ।

राठोड़ वंश के गोत्राचार
वंश – सूर्यवंश
गोत्र- गोतम
प्रवर (तीन) : गोतम, वशिष्ट, वाहस्प्त्य
गुरु- वशिष्ट
निकास – अयोध्या
ईष्ट – सीताराम, लक्ष्मीनारायण
नदी – सरयू
पहाड़ – गांगेय
कुण्ड -सूर्य
वृक्ष- नीम
पितृ – सोम
कुलदेवी – नागणेचा
भेरू- मंडोर, कोडमदेसर
कुलदेवी स्थान – नागाणा (जिला -बाड़मेर)
चिन्ह – चील
क्षेत्र – नारायण
पूजा – नीम
बड- अक्षय
गाय- कपिला
बिडद- रणबंका
उपाधि – कमधज
शाखा – तेरह में से दानेसरा राजस्थान में है
निशान – पचरंगा
घाट -हरिव्दार
शंख -दक्षिणवर्त
सिंहासन -चन्दन का
खांडा- जगजीत
तलवार -रणथली
घोड़ा -श्यामकर्ण
माला -रतन
शिखा -दाहिनी
बंधेज -वामी (बाया)
पाट – दाहिना
पुरोहित -सेवड
चारण -रोहडिया
भाट- सिगेंलिया
ढोली- देहधड़ा
ढोल -भंवर
नगारा- रणजीत

राठौड़ वंश की शाखाएं व उपशाखाएं

राठौड़ों की सम्पूर्ण भारत में कुल 13 मुख्य शाखाएं हैं …

1.दानेश्वरा, 2.अभेपुरा, 3.कपालिया, 4.कुरहा, 5.जलखेड़ा, 6.बुगलाणा, 7.अहर, 8.पारकरा, 9.चंदेल, 10.वीर, 11.दरियावरा, 12.खरोदिया, 13.जयवंशी (दहिया)

इनमें से राजस्थान में मात्र दानेश्वरा (दानेसरा) शाखा के राठौड़ हैं। जिनकी निम्नांकित उप शाखाएं हैं …

1.महेचा राठौड़ (4 उप शाखाए) 2.जौधा राठौड़ (45 उप शाखाएँ) 3.बीका राठौड़ (26 उप शाखाएं) 4.मेड़तिया राठौड़ (26 उप शाखाएँ) 5. कांधलोत राठौड़ (4 उप शाखाएं) 6.चांपावत राठौड़ (15 उप शाखाएँ) 7.मण्डलावत राठौड़ (13 उप शाखाएँ) 8.रूपावत राठौड़ (7 उप शाखाएँ है) 9.बीदावत राठौड़ (22 उप शाखाएँ) 10.उदावत राठौड़ 11.बनीरोत राठौड़ (11 उप शाखाए) 12.इडरिया राठोड़ 13.हटुण्डिया राठौड़ 14.बरजोर राठौड़ 15.जोरावर राठौड़ 16.रैकवार राठौड 17.बागडिया राठौड 18.छप्पनिया राठौड 19.साल राठौड 20.खोपसा राठौड 21.सिवी राठौड़ 22.पीथड़ राठौड़ 23.कोटेचा राठौड़ 24.बहड़ राठौड़ 25.ऊनड़ राठौड़ 26.फिटक राठौड़ 27.सुण्डा राठौड़ 28.महिपाल राठौड़ 29.शिवराज राठौड़ 30.डांगी राठौड 31.मुहणोत राठौड़ 32.मापावत राठौड़ 33.लूका राठौड़ 34.राजू राठौड़ 35.विक्रम राठौड़ 36.भोवोत राठौड़ 37.बांदर राठौड़ 38.उडा राठौड़ 39.खोखर राठौड़ 40.मकलोत राठौड़ 41.बिठवासा राठौड़ 42.सलखावत राठौड़ 43.जैतमालोत राठौड़ 44.जुंजाणी राठौड़ 45.राधा राठोड 46.भादावत राठौड़ 47.पोकरणा राठौड़ 48.बाडमेरा राठोड़ 49.कोरिया राठौड़ 50.खाबडिया राठौड़ 51.गोगादेव राठौड़ 52.देवराजोत राठौड़ 53.चाड़दैवत राठौड़ 54.जैसिंधवे राठौड़ 55.सातावत राठौड़ 56.भीमावत राठौड़ 57.अरड़कमलोत राठौड़ 58.रणधीरोत राठौड़ 59.अर्जुन राठौड़ 60.कानावत राठौड़ 61.पुनावत राठौड़ 62.जैतावत राठौड़ (3 उपशाखाएँ है) 63.कालावत राठौड 64.बाजी राठौड 65.खेड़ा राठौर 66.धुडिया राठौड़ 67.धांधल राठौड़ 68.चाचक राठौड 69.हस्ती राठौड़ 70.गोलू राठौड़ 71.सिंघल राठौड़ 22.उहड़ राठौड 73.गोलू राठौड़ 74.बाढेल (बाढेर) राठौड़ !

(उपरोक्त सभी उपशाखाओं का विस्तृत विवरण नीचे देखें)

राजपुताना में राठोड़ों का आगमन

राठौड़ अयोध्या के राजा श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज हैं। अयोध्या के बाद कौशाम्बी, फिर पालगढ़ व फिर कन्नौज राठोड़ों की मुख्य राजधानी रही।

मध्य भारत के कन्नौज व बदायूं के राठौड़ राज्यों के मोहम्मद गोरी के हाथों पराभव होने के लगभग आधी सदी बाद 1292 (विक्रम सम्वत) में राजा जयचंद के प्रपोत्र ‘सीहाजी‘ मध्य भारत से अपने सैनिकों के साथ द्वारिका की तीर्थ यात्रा करने के लिए आये। द्वारिका से पुष्कर की ओर जाते समय पाली के धनाढ्य पालीवाल ब्राह्मणों ने निकटस्थ बालेचा सरदारों के हमले व लूटमार से रक्षा करने की प्रार्थना सीहाजी से की। सीहाजी ने इसे एक अवसर के रूप में देखा व वहीँ ठहर कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार किया व वही पर स्थायी रूप से अपना ठिकाना कायम किया।

सेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे ‘सिहों’ जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।

बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
‘सीहा’ कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।

सीहाजी के बाद उनके पुत्र आस्थानजी ने गोहिलों से ‘खेड़‘ (मालाणी में जसोल के पास) को जीतकर वहां अपना ठिकाना कायम किया,जो मण्डोर प्राप्त होने तक राठोड़ों का मुख्य स्थान रहा। अस्थानजी के ही पुत्र धांधल जी के पाबूजी व बूड़ाजी हुए। आस्थान जी के पुत्र धुहड़ जी ने चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लाकर पचपदरा के नागाणा गांव में स्थापित की जो बाद में नागणेचीजी कहलाई।

धुहड़ जी के पुत्र रायपाल जी ने परमारो से बाड़मेर छीना व महेवा पर अधिकार किया। रायपाल जी के पुत्र मोहण से मुहणोत ओसवाल हुये। रायपाल जी के उत्तराधिकारी क्रमशः – कान्हपालजी – छाड़ा जी – टिडा जी व सलखा जी हुये। सलखा जी के दो पुत्र मल्लीनाथ (माला) जी व वीरम जी हुये। मल्लीनाथ जी के नाम पर महेवा का प्रदेश मालाणी कहलाया व उनके वंशज महेचा राठौड़ कहलाये। मल्लीनाथ जी के छोटे भाई वीरम जी जोहियावाड़ में ‘दल्ला जोहिया’ के हाथों लड़ाई में मारे गए।

मंडोर व जोधपुर राज्य

वीरम जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र चूंडा जी व देवराज जी मण्डोर राज्य की सेना में भर्ती हो गए। इंदा पड़िहारो के राज्य मण्डोर के शक्तिहीन हो जाने के कारण नागौर के तुर्क ईंदों को तंग करते थे। वीर योद्धा चूंडा जी ने शीघ्र ही अपने रणकौशल व नेतृत्व क्षमता से सबको प्रभावित कर दिया। चुंडाजी का प्रताप देखकर मण्डोर के स्वामी ‘रायधवल ईन्दा’ ने चूंडाजी को अपनी पुत्री ब्याहकर मण्डोर का राज्य दहेज में दे दिया।
“ईन्दा रो उपकार, कमधज कदे न बीसरै !
चूंडा चंवरी चाड, मण्डोर दीनी दायजै !!”

सम्वत 1462 में चूंडाजी ने खानजादा को हराकर नागौर छीन लिया। लेकिन पुनः सम्वत 1475 में नागौर की ही लड़ाई में मुल्तान के शासक के हाथों चूंडाजी मारे गये। चूंडाजी की पुत्री ‘हंसाबाई’ मेवाड़ के महाराणा लाखा को ब्याही थी।  चुंडाजी के भाई देवराज से ‘देवराजोत’ राठौड़ हुये, जोकि मुख्यतः जोधपुर जिले कि शेरगढ़ तहसील में हैं।

मण्डोर के राव चुंडाजी के रणमल जी, कान्हा जी व सत्ता जी आदि पुत्र हुए। अपने बहनोई, मेवाड़ के राणा लाखा की असमय मृत्यु के बाद राव रणमल अपने भानजे राणा मोकल के पास मेवाड़ मे रहे। लेकिन रणमलजी की महत्वाकांक्षा से आशंकित कतिपय सिसोदिया सरदारों ने वहीँ षड्यंत्र पूर्वक उनकी हत्या करदी। लेकिन उनके पुत्र जान बचाकर भागने में सफल हुए।

राव रणमल के चौबीस पुत्र हुए …
1. राव जोधाजी ( जोधपुर केे संस्थापक – इनके जोधा, मेड़तिया, बीका, बीदावत आदि राठौड हुए )
2. कांधल जी    (इनके कांधलोत, बणीरोत, रावतोत, साईंदासोत)
3. चाम्पा जी     (चाम्पावत राठौड़ हुए)
4. लखा जी      (लखावत राठौड़)
5. भाखरसी     (पुत्र बाला से बालावत)
6. डुंगरसी        (डूंगरोत)
7. जेतमाल      (पुत्र भोजराज से भोजराजोत)
8. मंडला         (मंडलावत)
9. पाता           (पातावत)
10. रूपा         (रूपावत)
11. कर्ण         (करणोत)
12. सांडा       (सांडावत)
13. मांडण      ( मांडणोत)
14. नाथा        (नाथूओत)
15. ऊदा         (उदावत)
16. वेरा          (वेरावत)
17. अखैराज  (पौत्र कुम्पा से कुम्पावत व जेता से जैतावत)
18. हावा
19. अड़वाल
20. सावर
21. जगमाल
22. सगता
23. गोइंद
24. करमचंद

मण्डोर के राव जोधा ने सम्वत 1516 जेष्ठ सुदी11 को मण्डोर के पास ही ‘चिड़ियाटूंक’ पहाड़ी पर नए किले ‘मेहरानगढ़’ की नींव करणी माताजी के हाथों लगाई, व अपने नाम से ‘जोधपुर‘ नगर बसाया।

बीकानेर राज्य

राव जोधाजी के जेष्ठ पुत्र बीकाजी का जन्म सांखली राणी नोरंगदे के गर्भ से विक्रम सम्वत 1495, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को हुआ। युवावस्था प्राप्त होने पर एक बार किसी ने बीकाजी के सामने किसी ने ऐसे बोल कहे कि  ” पिता की सम्पत्ति का भोग तो सभी करते हैं, लेकिन वीर वो होते हैं जो अपनी भुजाओं से सम्पत्ति अर्जित कर उसका उपभोग करते हैं।”
कुंवर बीकाजी को ये बात लग गई। अपने पिता राव जोधाजी की आज्ञा व आशीर्वाद लेकर कुंवर बीकाजी ने सम्वत 1522, आसोज सुदी 10 को जोधपुर से नए राज्य की खोज में प्रस्थान किया। उनके साथ आए …
चाचा – कांधल जी, रूपा जी, मांडण जी व नाथूजी !
भाई- बीदाजी व जोगाजी !
बेला पड़िहार, नापा सांखला, लाला मेहता, लाखण मेहता, महतावर सिंह बच्छावत आदि व कई सैनिक साथ आये।

सम्वत 1542 में नापा सांखला की सलाह पर, अजमेर व जोधपुर से मुल्तान जाने वाले मार्गों के सन्धि स्थल पर रातिघाटी में भगवती करणीजी के हाथ से किले की नींव लगाई। 1545 बैसाख सुदी 2, शनिवार को किले की प्रतिष्ठा कर प्रवेश किया व अपने नाम से बीकानेर नगर बसाया। करणीजी ने अपने पुत्र पुण्यराज को भेजकर राज्याभिषेक कराया।

1547 में जोधपुर के राव जोधाजी का स्वर्गवास होने पर बीकाजी ने जेष्ठ पुत्र होने के नाते राजगद्दी पर अपना अधिकार जताया। लेकिन अपनी सौतेली मां के यह कहने पर कि “तुम तो पहले से ही एक स्वतंत्र राज्य के स्वामी हो, अपने पिता का राज्य अपने छोटे भाइयों के लिए छोड़ दो”। बीकाजी ने जोधपुर की राजगद्दी पर अपना अधिकार इस शर्त पर छोड़ दिया कि भविष्य में बीकानेर राज्य को टिकाई माना जाएगा। उनके छोटे भाईयों ने इसे स्वीकार करते हुए टिकाईपने की चीजें उन्हें भेंट की, जिन्हें लेकर वे बीकानेर चले गए।

 

राठौड़ के वंश की उपशाखाएं (खांप) 

महेचा राठौड़ (राव मल्लीनाथ जी से) चार उप शाखाएँ-

  1. पातावत महेचा
  2. कालावत महेचा
  3. दूदावत महेचा
  4. उगा महेचा

जौधा राठौड़ (जोधपुर के राव जोधा से) 45 उप शाखाएँ-

  1. बरसिंगोत जौधा
  2. रामावत जौधा
  3. भारमलोत जौधा
  4. शिवराजोत जौधा
  5. रायपालोत जौधा
  6. करमसोत जौधा
  7. बणीवीरोत जौधा
  8. खंगारोत जौधा
  9. नरावत जौधा
  10. सांगावत जौधा
  11. प्रतापदासोत जौधा
  12. देवीदासोत जौधा
  13. सिखावत जौधा
  14. नापावत जौधा
  15. बाघावत जौधा
  16. प्रताप सिंहोत जौधा
  17. गंगावत जौधा
  18. किशनावत जौधा
  19. रामोत जौधा
  20. के सादोसोत जौधा
  21. चन्द्रसेणोत जौधा
  22. रत्नसिंहोत जौधा
  23. महेश दासोत जौधा
  24. भोजराजोत जौधा
  25. अभैराजोत जौधा
  26. केसरी सिंहोत जौधा
  27. बिहारी दासोत जौधा
  28. कमरसेनोत जौधा
  29. भानोत जौधा
  30. डंूगरोत जौधा
  31. गोयन्द दासोत जौधा
  32. जयत सिंहोत जौधा
  33. माधो दासोत जौधा
  34. सकत सिंहोत जौधा
  35. किशन सिंहोत जौधा
  36. नरहर दासोत जौधा
  37. गोपाल दासोत जौधा
  38. जगनाथोत जौधा
  39. रत्न सिंगोत जौधा
  40. कल्याणदासोत जौधा
  41. फतेहसिंगोत जौधा
  42. जैतसिंहोत जौधा
  43. रतनोत जौधा
  44. अमरसिंहोत जौधा
  45. आन्नदसिगोत जौधा

कांधलोत राठौड़ (राव जोधा के छोटे भाई रावत कांधलजी से) चार उप शाखाएँ-

  1. रावरोत कांधल
  2. सांइदासोत कांधल
  3. पूर्णमलोत कांधल
  4. परवतोत कांधल

मण्डलावत राठौड़ (राव जोधा के छोटे भाई मंडलाजी से) 13 उप शाखाएँ-

  1. भाखरोत बाला राठौड़
  2. पाताजी राठौड़
  3. रूपावत राठौड़
  4. करणोत राठौड़
  5. माण्डणोत राठौड़
  6. नाथोत राठौड़
  7. सांडावत राठौड़
  8. बेरावत राठौड़
  9. अड़वाल राठौड़
  10. खेतसिंहोत राठौड़
  11. लाखावत राठौड़
  12. डूंगरोत राठौड़
  13. भोजराजोत राठौड़

चांपावत राठौड़ (राव जोधाजी के भाई चाम्पाजी से) 15 उप शाखाएँ-

  1. संगतसिंहोत चांपावत
  2. रामसिंहोत चांपावत
  3. जगमलोत चांपावत
  4. गोयन्द दासोत चांपावत
  5. केसोदासोत चांपावत
  6. रायसिंहोत चांपावत
  7. रायमलोत चांपावत
  8. विठलदासोत चांपावत
  9. बलोत चांपावत
  10. हरभाणोत चांपावत
  11. भोपतोत चांपावत
  12. खेत सिंहोत चांपावत
  13. हरिदासोत चांपावत
  14. आईदानोत चांपावत
  15. किणाल दासोत चांपावत

मेड़तिया राठौड़ (राव जोधाजी के पुत्र दूदा से) की 26 उप शाखाएँ-

  1. जयमलोत मेड़तिया
  2. सुरतानोत मेड़तिया
  3. केशव दासोत मेड़तिया
  4. अखैसिंहोत मेड़तिया
  5. अमरसिंहोत मेड़तिया
  6. गोयन्ददासोत मेड़तिया
  7. रघुनाथ सिंहोत मेड़तिया
  8. श्यामसिंहोत मेड़तिया
  9. माधोसिंहोत मेड़तिया
  10. कल्याण दासोत मेड़तिया
  11. बिशन दासोत मेड़तिया
  12. रामदासोत मेड़तिया
  13. बिठलदासोत मेड़तिया
  14. मुकन्द दासोत मेड़तिया
  15. नारायण दासोत मेड़तिया
  16. द्वारकादासोत मेड़तिया
  17. हरिदासोत मेड़तिया
  18. शार्दूलोत मेड़तिया
  19. अनोतसिंहोत मेड़तिया
  20. ईशर दासोत मेड़तिया
  21. जगमलोत मेड़तिया
  22. चांदावत मेड़तिया
  23. प्रतापसिंहोत मेड़तिया
  24. गोपीनाथोत मेड़तिया
  25. मांडणोत मेड़तिया
  26. रायसालोत मेड़तिया

जैतावत राठौड़ (राव जोधाजी के भाई अखैराजजी के पौत्र जेताजी से) तीन उप शाखाएँ-

  1. पिरथी राजोत जैतावत
  2. आसकरनोत जैतावत
  3. भोपतोत जैतावत

कूँपावत राठौड़ (राव जोधाजी के भाई अखैराजजी के पौत्र कूंपाजी से) 7 उप शाखाएँ-

  1. महेशदासोत कूंपावत
  2. ईश्वरदासोत कूंपावत
  3. माणण्डणोत कूंपावत
  4. जोध सिंगोत कूंपावत
  5. महासिंगोत कूंपावत
  6. उदयसिंगोत कूंपावत
  7. तिलोक सिंगोत कूंपावत

बीदावत राठौड़ (राव जोधा के पुत्र बीदा से) 22 उप शाखाएँ-

  1. केशवदासोत बीदावत
  2. सावलदासोत बीदावत
  3. धनावत बीदावत
  4. सीहावत बीदावत
  5. दयालदासोत बीदावत
  6. घेनावत बीदावत
  7. मदनावत बीदावत
  8. खंगारोत बीदावत
  9. हरावत बीदावत
  10. भीवराजोत बीदावत
  11. बैरसलोत बीदावत
  12. डँूगरसिंगोत बीदावत
  13. भोजराज बीदावत
  14. रासावत बीदावत
  15. उदयकरणोत बीदावत
  16. जालपदासोत बीदावत
  17. किशनावत बीदावत
  18. रामदासोत बीदावत
  19. गोपाल दासोत
  20. पृथ्वीराजोत बीदावत
  21. मनोहरदासोत बीदावत
  22. तेजसिंहोत बीदावत

बीका राठौड़ (बीकानेर के राव बीकाजी के वंशज से) 26 उप शाखाएँ-

  1. घड़सियोत बीका
  2. निम्बावत बीका
  3. राजसिंगोत बीका
  4. मेघराजोत बीका
  5. केलण बीका
  6. अमरावत बीका
  7. बिसावत बीका
  8. रतनसिंहोत बीका
  9. प्रतापसिंहोत बीका
  10. रामसिंहोत बीका
  11. नारणोत बीका
  12. बलभद्रोत नारणोत बीका
  13. भोपतोत बीका
  14. जैमलोत बीका
  15. तेजसिंहोत बीका
  16. सूरजमलोत बीका
  17. करमसिंहोत बीका
  18. नीबावत बीका
  19. भीमराजोत बीका
  20. बाघावत बीका
  21. मानसिंहोत बीका
  22. माधोदासोत बीका
  23. मालदेवोत बीका
  24. श्रृगोंत बीका
  25. गोपालदासोत बीका
  26. पृथ्वीराजोत बीका
  27. किशनहोत बीका
  28. अमरसिंहोत बीका
  29. राजवी बीका

बनीरोत राठौड़ (रावत कांधल के पौत्र बणीर से) 11 उप शाखाएँ-

  1. मेघराजोत बनीरोत
  2. मेकरणोत बनीरोत
  3. अचलदासोत बनीरोत
  4. सूरजसिंहोत बनीरोत
  5. जयमलोत बनीरोत
  6. प्रतापसिंहोत बनीरोत
  7. भोजरोत बनीरोत
  8. चत्र सालोत बनीरोत
  9. नथमलोत बनीरोत
  10. धीरसिंगोत बनीरोत
  11. हरिसिंगोत बनीरोत

मंडोर से पूर्व सीहाजी के वंशजो से जो अन्य खांपे चली वे निम्न प्रकार है …

  1. ईडरिया राठोड़ :- सीहाजी के पुत्र सोनग ने ईडर पर अधिकार जमाया। अतः इडर के नाम से सोनग के वंशज ईडरिया राठोड़ कहलाये।
  2. हटूंडिया राठोड़ :- सोनग के वंशज हस्तीकुण्डी (हटुंडी) में रहे, वे हटूंडीया राठोड़ कहलाये |
  3. दोहठ राठोड़ – सोनग के वंशज क्रमशः अभयजी, सोहीजी, मेहपाल जी, भारमल जी, व चूंडारावजी हुए। चूंडाराव अमरकोट के सोढा राणा सोमेश्वर के भांजे थे | इनके समय मुसलमान ने जोर लगाया की अमरकोट के सोढा हमारे से बेटी व्यवहार करें | तब चूंडाराव जो उस समय अमरकोट थे | इनकी सहायता से मुसलमान की बारातें बुलाई गयी एवं स्वयं इडर से सेना लेकर पहुंचे सोढों और राठोड़ों ने मिलकर मुसलमानों की बरातों को मार दिया | उस समय वीर चूंडराव को दू:हठ की उपाधि दी गयी थे अतः चूंडराव के वंशज दोहठ कहे गए | ये राठोड़ अमरकोट, सोराष्ट्र, कच्छ, बनास कांठा, जालोर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर जिलों में कहीं-2 निवास करते रहे है |

बाढ़ेल राठोड़ :- सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बीजाजी ने द्वारका के चावड़ो को बाढ़ कर (काट कर) द्वारका पर अपना राज्य कायम किया | इसी कारन बेरावलजी के वंशज बाढ़ेल राठोड़ हुए | आजकल ये बाढ़ेर राठोड़ कहलाते है | गुजरात में पोसीतरा, आरमंडा, बेट द्वारका बाढ़ेर राठोड़ों के ठिकाने थे |

  1. बाजी राठोड़ :- बेरावल जी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठोड़ कहलाये है | गुजरात में महुआ, वडाना, आदी इनके ठिकाने हे| बाजी राठोड़ आज भी गुजरात में ही बसते है |
  2. खेड़ेचा राठोड़ :- सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता | खेड़ नाम से आस्थान के वंशज खेड़ेचा राठोड़ कहलाते है |
  3. धुहड़ीया राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धूहड़ के वंशज धुहड़ीया राठोड़ कहलाये |
  4. धांधल राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठोड़ कहलाये | पाबूजी राठोड़ इसी खांप के थे | इन्होने चारणी को दीये गए वचनानुसार पणीग्रहण संस्कार को बीच में छोड़कर चारणी के गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की| यही पाबुजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते है |
  1. चाचक राठोड़ : – आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठोड़ कहलाये |
  2. हरखावत राठोड़ :- आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज।
  1. जोलू राठोड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज।
  2. सिंधल राठोड़ :- जोपसा के पुत्र सिंधल के वंशज। ये बड़े पराक्रमी हुए। इनका जेतारण पाली पर अधिकार था। जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।
  1. उहड़ राठोड़ :- जोपसा के पुत्र उहड़ के वंशज।
  2. मुलु राठोड़ :- जोपसा के पुत्र मुलु के वंशज।
  3. बरजोर राठोड़ :- जोपसा के पुत्र बरजोड के वंशज।
  4. जोरावत राठोड़ :- जोपसा के वंशज।
  1. रेकवाल राठोड़ :- जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है। ये मल्लारपुर , बाराबकी , रामनगर , बड़नापुर , बहराईच उत्तरप्रदेश में है।
  2. बागड़ीया राठोड़ :- आस्थान जी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए। इन्ही में एक विक्रम के वंशज बागड़ (बांसवाड़ा) में बसने से बागड़िया राठौड़ कहलाये।
  3. छप्पनिया राठोड़ :- मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गाँवो का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है | यहाँ के राठोड़ छप्पनिया राठोड़ कहलाये | यह खांप बागदीया राठोड़ों से निकली है। उदयपुर रियासत में कणतोड़ गाँव की जागीरी थी।
  4. आसल राठोड़ :- आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठोड़ कहलाये।
  5. खोपसा राठोड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज।
  6. सिरवी राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज।
  7. पीथड़ राठोड़ :- आस्थान के पुत्र पीथड़ के वंशज।
  8. कोटेचा राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए। रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए। बीकानेर जिले में करनाचंडीवाल , हरियाणा में नाथूसरी व भूचामंडी, पंजाब में रामसरा आदी इनके गाँव है।
  9. बहड़ राठोड़ :- धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज।
  10. उनड़ राठोड़ :- धुहड़ के पुत्र उनड़ के वंशज।
  1. फिटक राठोड़ :- रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठोड़ हुए।
  2. सुंडा राठोड़ :- रायपाल के पुत्र सुंडा के वंशज।

28 . महीपाल राठोड़ :- रायपाल के पुत्र महीपाल के पुत्र वंशज।

  1. शिवराजोत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज।
  2. डांगी :- रामपाल के पुत्र डांगी के वंशज ढोलिन से शादी की अथवा इनके वंशज ढोली हुए।
  3. मोहनोत :- रायपाल के पुत्र मोहन ने ऐक महाजन की पुत्री से शादी की। इस कारन उसके वंशज मुहणोत ओसवाल कहलाये मुहणोत नेंणसी (ख्यात लेखक) इसी खांप से थे।
  4. मापावत राठोड़ :- रायपाल के वंशज मापा के वंशज।
  5. लूका राठोड़ :- रायपाल के वंशज लूका के वंशज।
  6. राजक:- रायपाल के वंशज रजक के वंशज।
  7. विक्रमायत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज।
  8. भोंवोत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज।
  9. बांदर राठोड़ :- रायपाल के पुत्र कानपाल हुए, कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाडा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठोड़ कहलाये। घड़सीसर (बीकानेर  राज्य) में बताते है।
  10. ऊना राठोड़ :- रायपाल के पुत्र ऊडा के वंशज।
  11. खोखर राठोड़ :- छाडा के पुत्र खोखर के वंशज। खोखर ने सांकडा , सनावड़ा आदी गाँवो पर अधिकार किया और खोखर गाँव (बाड़मेर) बसाया। अलाउद्दीन खिलजी ने सातल दे के समय सिवाना पर चढ़ाई की तब खोखर जी सातल दे के पक्ष में वीरता के साथ लड़े और युद्ध मे काम आये। खोखर राठौड़ जिन गाँवो में रहते है :- जैसलमेर जिले में , निम्बली , कोहरा , भाडली , झिनझिनयाली , मूंगा , जेलू , खुडियाला , आस्कंद्र, भादरिया , गोपारयो, भलरीयो , जायीतरा, नदिया बड़ा , अडवाना, सांकडा ,पालवा ,सनावड़ा , खीखासरा , कस्वा चुरू – रालोत जोगलिया। बाड़मेर में – खोखर शिव , खोखर पार। जोधपुर में – जुंडदिकयी, खुडियाला , खोखरी पाला , बिलाड़ा। नागोर में खोखरी पाली – बाली , गंदोग , खोखरी पाला , बिलाड़ा।
  12. सिंहमलोत राठोड़ :- छाडा के पुत्र सिंहमल के वंशज।
  13. बीठवासा उदावत राठोड़ :- रावल टीडा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा की बीठवास जागीर में था| अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये | उदाजी के पुत्र बीरम जी बीकानेर रियासत के साहुवे गाँव से आये | जोधाजी ने उनको बीठवसिया गाँव के जागीर दी | इस गाँव के आलावा वेग्डीयो और धुनाड़ीया गाँव भी इनकी जागीरी में थे।
  14. सलखावत राठोड़ :- छाडा के पुत्र टीडा के पुत्र सलखा के वंशज सल्खावत राठोड़ कहलाये।
  15. जैतमालोत राठोड़ :- सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैत्मालोत राठोड़ कहलाये। बीकानेर में कहीं कहीं निवास करते है।
  16. जूजाणीया राठोड़ :- जैतमाल के पुत्र खेतसी के वंशज है। गाँव थापाणा इनकी जागीर में था।
  17. राड़धरा राठोड़ :- जैतमाल के पुत्र खिंया ने राड़धरा पर अधिकार किया। अतः इनके वंशज राड़धरा कहलाये।
  18. महेचा राठोड़ :- सलखा राठोड़ के पुत्र मल्लिनाथ बड़े प्रसिद्ध हुए | बाड़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता टीडा के अधिकार में था | विक्रमी संवत 1414 में मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ | सलखा को केद कर लिया गया | केद से छूटने के बाद विक्रमी संवत14२२ में आपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया | विक्रमी संवत 1430 में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ | सलखा ने वीर गति पायी | सलखा के स्थान पर ( माला ) मल्लिनाथ राज्य का स्वामी हुआ | इन्होने मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने आपने छोटे भाई जैतमाल को दे दिया | व् छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीरी दे दी| नगर व् भिरड़ गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये | मलिनाथ शक्ति संचय कर राठोड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे | उन्होंने मुसलमानों के आक्रमण को विफल किया | मल्लिनाथ और उनकी राणी रुपादें , नाथ संप्रदाय में दिक्सीत हुए और ये दोनों सिद्ध माने गए | मल्लिनाथ के जीवन काल में हि उनके पुत्र जगमाल को गादी मिल गयी |जगमाल भी बड़े वीर थे | गुजरात का सुल्तान तीज पर इक्कठी हुयी लड़कियों को हर ले गया | तब जगमाल अपने योधाओं के साथ गुजरात गए और सुल्तान की पुत्री गीन्दोली का हरण कर लाया तब राठोड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ | इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई | कहा जाता हे की सुल्तान के बीबी को तो युद्ध में जगह – जगह जगमाल हि दिखयी दिया। पग पग नेजा पाड़ीया , पग -पग पाड़ी ढाल|बीबी पूछे खान ने , जंग किता जगमाल ||इन्ही जगमाल का महेवा पर अधिकार था | इस कारन इनके वंशज महेचा कहलाते है |जोधपुर परगने में थोब , देहुरिया , पादरडी, नोहरो आदी इनके ठिकाने है। उदयपुर रियासत में नीबड़ी व् केलवा इनकी जागीर में थे| उनकी खाँपे निम्न है ..१. पातावत महेचा :- जगमाल के पुत्र रावल मंडलीक के बाद कर्मश भोजराज , बीदा, नीसल , हापा , मेघराज व् पताजी हुए | इन्ही के वंशज पातावत कहलाये जालोर और सिरोही में इनके कई गाँव है। २. कलावत महेचा :- मेघराज के पुत्र कल्ला के वंशज।३. दूदावत महेचा :- मेघराज के पुत्र दूदा के वंशज।४. उगा :- वरसिंह के पुत्र उगा के वंशज।
  19. बाड़मेरा राठोड़ :- मल्लिनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाड़मेरा राठोड़ कहलाये। इनके वंशज बाड़मेर में और कई गाँवो में रहते ह।
  20. पोकरणा राठोड़ :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजो का पोकरण इलाके में निवास हुआ। वे पोकरणा राठोड़ कहलाये इनके गाँव सांकडा , सनावड़,लूना , चौक , मोडरड़ी , गुडी आदी जैसलमेर में है।
  21. खाबड़ीया राठोड़ :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए| भारमल के पुत्र खीमुं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दुसरे पुत्र माँढण के वंशज माडवी कच्छ में रहते है वंशज खाबड़ गुजरात के इलाके के नाम से खाबड़ीया कहलाये | इनके गाँव कुछ राजस्थान के बाड़मेर में रेडाणा और देदड़ीयार है कुछ घर पाकिस्तान में भी हैं।
  22. कोटड़ीया राठोड़ :- जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़ीया राठोड़ कहलाये। जगमाल के पुत्र खींव्सी के वंशज भी कोटड़ीया कहलाये इनके गाँव बाड़मेर में , कोटड़ा , बलाई , भिंयाड़ इत्यादि है।
  23. गोगादे राठोड़ :- सलखा के पुत्र वीरम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठोड़ कहलाये। केतु ( चार गाँव ) सेखला ( 15 गाँव ) खिराज, गड़ा आदी इनके ठिकाने है।
  24. देवराजोत राठोड़ :- बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठोड़ कहलाये। सेतरावो इनका मुख्या ठिकाना है। इसके आलावा सुवालिया आदी ठिकाने थे ।
  25. चाड़देवोत राठोड़ :- वीरम के पुत्र व् देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठोड़ कहलाये।  जोधपुर परगने का देचू इनका मुख्या ठिकाना था। गीलाकोर में भी इनकी जागीरी थी।
  26. जेसिधंदे राठोड़ :- वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज।
  27. सतावत राठोड़ :- चुंडा वीरमदेवोत के पुत्र सता के वंशज।
  28. भींवोत राठोड़ :- चुंडा के पुत्र भींव के वंशज। खाराबेरा जोधपुर इनका ठिकाना था।
  29. अरड़कमलोत राठोड़:- चुंडा के पुत्र अरड़कमल वीर थे। राठोड़ों और भाटियों के शत्रुता के कारन शार्दुल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लोट रहा था। तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों हि वीरता से लड़े शार्दुल भाटी वीरगति प्राप्त हुए और राणी कोडमदे सती हुयी। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए।  इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमल राठोड़ कहलाये।
  30. रणधीरोत राठोड़ :- चुंडा के पुत्र रणधीर के वंशज है फेफाना इनकी जागीर थी।
  31. अर्जुनोत राठोड़ :- राव चुंडा के पुत्र अर्जुन के वंशज।
  32. कानावत राठोड़ :- चुंडा के पुत्र कान्हा के वंशज।
  33. पूनावत राठोड़ :- चुंडा के पुत्र पूनपाल के वंशज है। गाँव खुदीयास इनकी जागीरी में था।

अन्य राठौड़ राज्य

रियासतों के भारत संघ में विलीनीकरण से पूर्व सम्पूर्ण भारत मे राठौड़ों के राज्य ..

  • राजपुताना – जोधपुर, बीकानेर, कुशलगढ़, किशनगढ़ .
  • मालवा- रतलाम, सैलाना, अलीराजपुर, ईडर, झाबुआ, जोबेट, काछी, मुलयान, बड़ोदा व अमझेरा.
  • संयुक्त प्रान्त (उ प्र) – रायपुर (एटा), खिमशेपुर, विजयपुर, मांडा ढहिया.
  • बिहार – खरसवां, सिंगभूमि .
  • उड़ीसा – बोनई, रेसखोल.
  • हिमाचल – जुब्बल, चम्बा.
  • हरियाणा – जहाजगढ़.
  • बुंदेला शाखा के राज्य- इंदौर, ओरछा, पन्ना, दतिया, चरावरी, अजयगढ !

बुन्देला शाखा

राजपूत वंश में वीर बुंदेला का भी महत्वपूर्ण स्थान है। काशी के शासक माणिक राय गहढ़वाल के पांचवे पुत्र का नाम पंचम सिंह था। राज्य न मिलने के कारण वह मध्यप्रदेश में विंध्यवासिनी देवी के चरणों में आया। पंचम सिंह विंध्यवासिनी देवी का परम भक्त था इसलिए देवी की स्मृति में इसके वंशज विंध्येय, विंध्येला या *बुंदेला* कहलाए।

पंचम सिंह ने मध्य प्रदेश में अपना राज जमाया। इसके पुत्र वीरभद्र ने अफगान सरदार तातार खाँ को पराजित कर महोबा को राजधानी बनाया। वीरभद्र के प्रपौत्र सोहनपाल ने गढ़कुण्डार को राजधानी बनाया। सोहनपाल की 9वी पीढ़ी में राजा रुद्र प्रताप हुए। इन्होंने विक्रम संवत 1587 में ओरछा बसाया व सुदृढ़ किला तथा राजमहल बनवाए। इसका शेरशाह सूरी से युद्ध हुआ। राजा रूद्र प्रताप के 3 पुत्र भारतीचंद मधुकर व उदयजीत थे।

रूद्र प्रताप के बाद मधुकर ओरछा का राजा बना। इसके 8 पुत्र थे। पहला पुत्र राम शाह ओरछा का राजा बना दूसरा पुत्र इंद्रजीत संगीत का रसिक था। प्रसिद्ध कवि केशव इसका दरबारी था। तीसरे पुत्र रत्न सेन को अकबर ने गौड़ प्रदेश का राजा बनाया। चौथे पुत्र वीर सिंह देव ने सलीम के कहने पर अबुल फजल को मारा। इस पर सलीम ने बादशाह बनने पर राम शाह को हटाकर वीरसिंह देव को ओरछा का राजा बनाया।

राजा वीर सिंह देव धर्म रक्षक पुरुष था इसने मथुरा में केशव मंदिर व ओरछा में चतुर्भुज मंदिर बनवाया। वीरसिंह देव के चार पुत्र थे। पहला पुत्र जुझार सिंह शाही मनसबदार हुआ किंतु इसने शाहजहां से बगावत कर दी जिस पर गोड़ों ने इसे मार दिया। दूसरा पुत्र पहाड़ सिंह ओरछा का राजा बना। पहाड़ सिंह के बाद सुजान सिंह ओरछा का राजा बना सुजान सिंह की विक्रम संवत 1725 में मृत्यु होने पर उसके छोटे भाई इंद्रमन को ओरछा का राज मिला। इंद्रमन के वंशज पृथ्वी सिंह ने विक्रम संवत 1840 में राजधानी ओरछा की जगह टीकमगढ़ बनाई।

राजा वीर सिंह देव के तीसरे पुत्र भगवान दास के वंशज दतिया के स्वामी बने। राजा वीर सिंह देव के सबसे छोटे पुत्र *हरदोल* को आज भी लोक देवता के रूप में बुंदेलखंड में पूजा जाता है। राजा रूद्र प्रताप के तीसरे पुत्र उदय जीत के प्रपौत्र चंपत राय शाहजहां से गुरिल्ला युद्ध करते रहे। एक बार वह दारा के साथ काबुल युद्ध में भी गए। उन्होंने औरंगजेब से संधि कर ली।

इस्वी सन् 1664 में चंपत राय की मृत्यु होने पर उनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध वीर छत्रसाल बुंदेला  उनका  उत्तराधिकारी हुआ। छत्रसाल हमेशा मुगलों के विरुद्ध लड़ता रहा। सन् 1659 ईसवी में छत्रपति शिवाजी से छत्रसाल का मिलन हुआ। छत्रसाल ने सन् 1671 में गढ़ाकोटा जीता व औरंगजेब के सेनापति तव्वाहर खाँ को हराया। यमुना व चंबल के बीच के क्षेत्र में छत्रसाल की दुंदुभी बजने लगी।

*इत जमुना उत नर्मदा , इत चंबल उत तोंस।* 

*छत्रसाल सो लरन की , रही ना काहू होंस।।*

सन् 1707 में बादशाह ने छत्रसाल को स्वतंत्र शासक मान लिया। छत्रसाल के 52 पुत्र थे चार रानियों से व 48 दासियों से। रानियों से उत्पन्न पुत्र ह्रदय शाह को पन्ना का वह जगत राज को जैतपुर का राज्य मिला। छत्रसाल एक वीर योद्धा के साथ कुशल राजनीतिज्ञ व सच्चे क्षत्रिय थे। बुंदेले अंग्रेजी काल में भी लड़ते रहे। जगत राज के पुत्र परीक्षित देव को अंग्रेजों ने सन् 1842 में फांसी दी। सन् 1857 में भी बुंदेल नरेशों ने डटकर अंग्रेजी सत्ता का मुकाबला किया। इस प्रकार वीर बुंदेले अपने धर्म व मातृभूमि की रक्षार्थ लड़ते रहे। उनका क्षेत्र आज भी मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड कहलाता है।

*बुंदेला की शाखाएँ*- जिगनिया, मोहनिया, दतेले, घुंदेल, डोंगरा, नराटा, विजयरात, जेता, जेतवार, सरनिया, कर्मवार आदि।

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चंगोई गढ़

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