दामोदरजी घर गिगो जाम्यो*

दामोदरजी घर गिगो जाम्यो

दामोदरजी घर गीगो जायो, साबत थाळी फोड़ी!
मांजी दूजां घर ठाम मांज-2, हुगी बापड़ी खोड़ी!

बापूजी कप धोय – धोय नै, इस्कुल पढण मेल्यो!
पण लालो तो भायला संग, गिल्ली डंडों खेल्यो!

दसमीं गा पेपर आया सामीं,स्कूल छोड छिटकाई!
बापूजी हा भोळा ढाळा, बांनै झूठी स्टोरी सुणाई!

बापूजी चाय बेच – बेच, घड़वाया गैणा गांठा!
सपूतजी गा हाथ पड्या, ताळा तोड़ ले न्हाठ्या!

सदमै सूं बापू गी आत्मा, दुनिया छोड़ सिधारी!
तो ई भाईड़ा तो बापड़ा, ढूंढी कन्या कुंवारी!

जसोदा बेन तो राजी हुई, गबरू मिल्यो मारू!
हीराबेनजी भी मुंडो धोयो, पोती – पोता सारू!

एक बरस तो बिरथ गमायो, न गोर्यो न गाज्यो!
आखर मं 56 इंची गबरू, घर छोडगे भाज्यो!

ना ब्याही, ना रयी कुंवारी, ना ही मिल्यो तलाक!
जसोदा बेन गो रुल्यो जमारो, हुई जिंदगी खाक!

घनश्यामसिंह चंगोई
(26 मार्च 2019)


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चंगोई गढ़

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